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कैमरा, बाजीराव और मस्तानी, तीनों से अय्याशी की भंसाली ने

संजय लीला भंसाली ने बाजीराव मस्तानी में भी वही किया है जिसके लिए वो जाने जाते हैं. सुन्दर सेट्स, महंगे कॉस्टयूम, और एक लव ट्रेजेडी बनाने की कोशिश.

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प्रतीक्षा पीपी
18 दिसंबर 2015 (Updated: 12 मई 2016, 12:51 PM IST) कॉमेंट्स
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जल्दी में हैं तो एक लाइन में कहे देते हैं. चेप और चोमू लव स्टोरी है ये पिच्चर. फुर्सत हो तो पढ़ लो डीटेल में. धरम मतलब जोधा अकबर रिवर्स. इस बार लड़की आधी मुसलमान है. लेकिन पेशवा पक्का हिंदू. पूरे हिन्दुस्तान के आसमान पर भगवा रंग लहराएगा. ये सपना है पेशवा का. मस्तानी की मदद क्यों की? क्योंकि एक हिंदू राज्य का फर्ज है दूसरे हिंदू राज्य की मदद करना. लेकिन कोशिश पूरी है सेकुलर बनने की. मस्तानी से पैदा हुए बेटे का मुसलमान नाम रखा जायेगा पर वो बड़ा होगा तो संस्कृत श्लोक पढ़ते हुए. मस्तानी प्यार में हिंदू हो जायेगी. 'हर हर महादेव' कह पेशवा का तिलक करेगी जब वो मुसलमान निजाम से लड़ने जाएगा. बार बार खुद के मुसलमान होने को डिफेंड करती रहेगी. मस्तानी लेक्चर देगी कि मुसलमान भी भगवा चादर चढ़ाते हैं और दुर्गा को हिंदू हरी चूड़ियां पहनाते हैं. पर ये हिंदू-मुस्लिम एकता का फंडा अब पुराना हो गया है. बासी लगता है. मैसेज तो यही है कि हिंदू दिल बड़ा कर के मुसलमान को अपना ले. क्योंकि मुसलमान बाहरी है. जैसे मस्तानी थी. जो इंतज़ार करती रही अपने ब्राह्मण पति का. कि वो आ कर उसे ले जाए और पत्नी का दर्जा दिला दे. इक्स-मोहब्बत  'ब्राह्मण हूं पर काम क्षत्रिय वाले करता हूं.' बाजीराव चोटी वाला ब्राह्मण है. पर है योद्धा. चालीस लड़ाइयों को लगातार जीतने वाला लेकिन अंत में हार जाता है. प्रेम से. वो बीमारी से नहीं मरता. बल्कि धर्म के रक्षक उसे मरने पर मजबूर करते हैं. मस्तानी निडर है. मिलावटी हिंदू है इसलिए उसमें शर्म नहीं है. जिस तरह बाजीराव की पत्नी काशी (प्रियंका चोपड़ा) में है जो पूरी हिंदू है. प्रेम के लिए कुछ भी करेगी. खुद को सौगात में ले आएगी. दूसरी पत्नी बनकर रहेगी. दुनिया से लड़ेगी. पर खुद की बेज्जती करने वालों से नहीं. उनके सामने हथियार डाल देगी. बाजीराव के लिए. बाजीराव की तरह वो भी हारेगी प्रेम से. बकर  डायलाग अच्छे लगते हैं जब फिल्म शुरू होती है. और ख़त्म होते होते ड्रामेबाजी की हद तक आ जाते हैं. फिल्म में एक-दो पंचलाइन्स हो तो सालों तक लोग उन्हें दोहराते हैं. पर पूरी फिल्म को भारी डायलॉग्स से भर देना उसे चेप बना देता हैं. पब्लिक के पास टैम कम है भंसाली साहब. जल्दी में निपटाते तो बेटर होता. कहानी  प्रेडिक्टेबल है. इंटरवल तक तो लगता है कुछ नया नया. पर इंटरवल के बाद आपको पता होता है कि सलीम और अनारकली की तरह ये साथ न हो पाएंगे. क्योंकि पेशवाई का मान ऐसा होना नहीं देगा. क्यों देखें फील लेने के लिए. हमको तो पीछे का टिकस नहीं मिला तो मुंडी उचका के देखे आगे से. पर आप देखना तो पीछे से. एनीमेशन कहते हैं जिसे, वो बढ़िया है. 40 हजार सैनिक ऊपर से दिखाते हैं चींटी की तरह. वैसे ये भी संजय लीला भंसाली से एक्सपेक्टेड है. पर थोड़ी तारीफ भी करनी चाहिए. क्यों न देखें अगर एक चोमू लव स्टोरी न देखनी हो तो. वही अमर प्रेम. वही अमन का पैगाम. जिएंगे मरेंगे इक्स में टाइप. आपको पता होता है कि फिल्म में क्या होगा इसलिए बाजीराव जब टूट कर गिरता है, या मस्तानी जब बेड़ियों में दम तोड़ती है, आपको कोई फर्क नहीं पड़ता. यू आर लाइक, आई न्यू इट ब्रो!

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