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धुरंधर : शत्रुदेश में गिद्धभोज करता एक अज्ञात योजींबो (Dhurandhar Movie Review)

Director Aditya Dhar की नई फ़िल्म धुरंधर एक स्पाय थ्रिलर है जो हैरतअंगेज़ ढंग से पाकिस्तान में ही सेट है. अपने समय का बेहद पावरफुल और महत्त्वपूर्ण सिनेमा. कैसी है ये स्पाय सागा? इसमें Ranveer Singh, Sanjay Dutt, Akshaye Khanna, Madhavan, Arjun Rampal का काम कैसा है? जानें ये सब इस Dhurandhar Movie Review में.

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इस अज्ञात नायक की एंट्री वाले दृश्यों सी अर्थपूर्ण फीलिंग और निर्लिप्त एक्टिंग कहीं और नहीं // फ़िल्म के एक दृश्य में रणवीर सिंह का पात्र हम्ज़ा.
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गजेंद्र
6 दिसंबर 2025 (Published: 01:13 AM IST)
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         Rating: 4.5 / 5 Stars        

नसों में ग्रोथ और जॉय हार्मोन्स का तूफ़ान है “धुरंधर.” एक विस्फोटक, नशीली सी फीलिंग. एक व्यसनात्मक आनंद का ज्वाराभाटा. साल 2025 में ऐसी फीलिंग किसी दूसरी फिल्म ने नहीं दी. आसानी से, इसे जीवन में देखी सबसे प्रचंड फ़िल्मों में रखूंगा.    

“धुरंधर” शांति काल की युद्ध कथा है. चित्ताकर्षक. वीर, वीभत्स और रौद्र रसों में आकंठ डूबी. ए रेटेड. ख़ून, मांस, अस्थि, मज्जा का शृंगार करती फ़िल्म. ऐसा गोर-स्लैशर-एक्शन सिनेमा जो देख सकते हैं, सिर्फ उन्हीं के लिए यह है. 

आदित्य धर ने 3 घंटे 32 मिनट का एक भीषण शाहकार रचा है जो स्लर्प कर-करके भोज किए जाने लायक है. यह एक इंस्टेंट क्लासिक है. एक नई अप्रोच, नई स्टोरीटेलिंग, नए ट्रीटमेंट वाली फ़िल्म.

फ़िल्म का रूपबंध नया है. इसकी कथात्मक ऊर्जा नई है. शिवकुमार वी. पनिक्कर की एडिटिंग नई है. बस एक-दो फ्रेम्स में स्मूद नहीं है, बाकी टाइट है. आदित्य धर के साथ मिलकर उनके ब्रश स्ट्रोक्स बेफिक्र हैं. वे ढर्रे तोड़ते हैं. यह एक नए तरह के सिनेमा का निर्माण है. 

“धुरंधर” एक genre-defying फिल्म है. यानी इसमें बहुत सारे कथा-प्रकार ओवरलैप करते हैं. मूल रूप से यह एक स्पाय थ्रिलर है. फिर यह गैंगस्टर ड्रामा भी है. फिर इसमें स्लैशर एक्शन भी है. कॉमेडी भी लगातार रहती है. यह एक रिवेंज थ्रिलर भी है. पेट्रियॉटिक एक्शन मूवी भी है. रोमैंस के तत्व भी हैं. पोलिटिकल ड्रामा भी है. साउथ-एशियन ड्रामा भी है. कुछ हद तक इसे रिविज़निस्ट हिस्ट्री के कथा-प्रकार में भी रख सकते हैं. इनके सबके इतर यह एक लज्ज़तदार, चटखारेदार upapologetic पाकिस्तान बैशर भी है.

दुदुंभि बजती है और जैस्मिन सैंडलस मधुर गर्जना में कहती भी हैं कि - आप कुछ ऐसा देखने जा रहे हो जिसकी कल्पना भी न की होगी.   

कहानी खुलती है दिसंबर 1999, कंधार, अफगानिस्तान में. एक भारतीय विमान पहाड़ों से घिरी हवाई पट्टी पर खड़ा है. उसके ठीक सामने खड़े हैं अजय सान्याल (आर माधवन). आईबी के चीफ. और मंत्री कपूर (आकाश खुराना). तीन दुर्दांत आतंकियों को छोड़कर भारतीय यात्रियों को छुड़वाने आए हैं. लौटते हैं तो विमान हाइजैक करने वाले पाकिस्तानी आतंकियों से ज़लील होकर. दिमाग में वह विचलित कर देने वाला विजुअल लिए जिसमें वे आतंकी एक भारतीय यात्री को ज़िबह करते हैं. वक्त बीतता है. 2001 आता है. भारतीय संसद पर हमला होता है. उसके बाद तंग होकर एक मिशन शुरू किया जाता है. और हम उसी अफगानिस्तान के क्षितिज पर एक जटाधारी, लंबी दाढ़ी वाला, चरित्र उभरता देखते हैं. एक गीत साथ आता है जो उसका परिचय देता है. उसे न तो कारवां की तलाश है, न हमसफर की तलाश है. वो आंधी बनकर आया है. उसकी भूरी, रहस्य समेटी आंखें आधी बातें बोलती हैं आधी छुपाती हैं. हालांकि इरशाद कामिल के ये बोल 1960 के साहिर लुधियानवी के लिखे मूल गीत से परिचय का एक क़तरा छुपा जाते हैं कि उसके नामुराद जुनून का इलाज अब मौत ही है. जो दवा के नाम पर ज़हर दे ऐसे चारागर की उसे तलाश है. वह भूरी आंखों वाला जटाधारी है -  हम्ज़ा. हम्ज़ा अली मज़ारी.

कुरोसावा की आज भी दिल लूट ले रही मास्टरपीस "योजींबो" (1961) में पगडंडियों से अकेला गुजरकर वह परम बुद्धिमान, शक्तिसाली रोनिन जिस तरह उस गैंगवॉर वाले टाउन में पहुंचता है, उसी तरह हम्ज़ा भी पहुंचता है - लयारी. कराची का एक कुख्यात टाउन. कहानी का केंद्र. यहां वॉरिंग गैंग्स हैं. इनसे कराची की राजनीति, यथा पूरे पाकिस्तान की राजनीति सीधे तौर पर जुड़ी हुई है. हम्ज़ा अब क्या करता है, अपनी जगह कैसे बनाता है और जिस मिस्टीरियस काम के लिए आया है, उसे जिस देह और आत्मा तोड़ देने वाले परंतु चमत्कारिक ढंग से पूरा करना शुरू करता है, वह अनप्रडिक्टेबल है और लाजवाब है.

इस क्रम में कई ड्रामेटिकली लज्ज़तदार कैरेक्टर आते हैं. कहानी और आदित्य धर का महत्वाकांक्षी विज़न इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है. दूसरी ताकत है बहुत बारीकी से किया गया गूदेदार, पल्पी, चटख़ कैरेक्टराइज़ेशन और उनमें एक्टर्स की एक्टिंग. 

जैसे, यह कितना नायाब है कि आप शुरू के 10-20 मिनट या शायद पूरी ही फिल्म में गौरव गेरा को शर्तिया नहीं पहचान पाते. 

अर्जुन रामपाल ISI के मेजर इकबाल के रोल में हैं जो कि इलियास कश्मीरी का भी स्पाइसियर वर्जन है. कुछ फ्रेम्स में अर्जुन अपना करियर बेस्ट काम करते हैं. यहां हम “एनिमल-बॉबी देओल” वाला मैजिक मूमेंट घटते देखते हैं.

राकेश बेदी जमील जमाली के रोल में लाजवाब और मन मोहने वाले हैं. इतने लंबे करियर के बावजूद वे आज भी कुछ नया निकालकर ले आ रहे हैं. अपने हर सीन में वो कुछ न कुछ नया, फ्रैश, विटी करते जाते हैं. और आपके चेहरे पर मुस्कान दौड़ जाती है. जमील नेशनल असेंबली का मेंबर है और लयारी भी उसका एरिया है. यह पात्र नबील गबोल पर बेस्ड है.

एसपी चौधरी असलम के रोल में संजय दत्त की एंट्री ताकतवर है. हालांकि उनके पात्र को राइटिंग से एनहांस किया जाता है, अभिनय से नहीं. चौधरी असलम भी असल किरदार था जिस पर 2022 में एक खराब फ़िल्म “चौधरी द मार्टर” बनी थी.

आर माधवन अजीत डोभाल पर बेस्ड कैरेक्टर प्ले करते हैं. वो डोभाल की स्पिरिट और अपने यकीनी इंटरप्रिटेशन से एक नया किरदार गढ़ते हैं जो मिशन धुरंधर का प्रणेता है.

रहमान डकैत भी रियल कैरेक्टर है जिसे अक्षय खन्ना ने संजोया है. उनके रिएक्शन और अस्पताल में किसी अपने की लाश देखकर रोने वाला सीन परफेक्ट से कम कुछ नहीं. फिर जब उनका किरदार कहता है कि रहमान डकैत की मौत बड़ी कसाईनुमा होती है तो वह सच में ऐसा करते भी हैं. वह लोहे के वजन करने वाले बाट से अपने ही पिता का सिर पल्प भरी मटकी की तरह फोड़-फंफोड़ देता है. अंत में जब उसे मारने की कोशिश होती है तब फिल्ममेकर इस सत्य को सच में पकड़े रहते हैं कि रहमान बलोच किसी शेर से कम नहीं. वो सीन इतना लंबा चलता है कि हम देखने वाले थक जाते हैं. विकास नवलखा की सिनेमैटोग्राफी इस समेत कई एक्शन सीन्स में चमत्कृत करती है.

रणवीर सिंह हम्ज़ा बने हैं, जो असल में कौन है यह फ़िल्म में एक जगह कुछ उद्घाटित किया जाता है लेकिन वह अभी भी झलक भर ही है. वह कौन है, कहां से आया है, इस मिशन में क्यों है, अब आगे क्या करने जा रहा है, भारत को कितने खतरों से बचाने वाला है, कितने आतंकी हमलों में ख़ुफिया जानकारियां देने-न देने वाला है, यह सब धुरंधर के भाग-2 में पता चलने वाला है. रणवीर की एक्टिंग अक्ष्क्षुण है. कोई वाचालता नहीं. भारी गंभीरता. सजगता. टूटना. रोना. किसी के प्राण लेने के बाद का पश्चाताप, ये अद्भुत है.

एक दृश्य फ़िल्म में सबसे अनूठा है. रहमान डकैत मर रहा है. हम्ज़ा चिल्ला रहा है - सांस लेते रहो भाई. आपको कुछ नहीं होगा. रहमान उसका गला दबाता है क्योंकि सच वो नहीं है जो दिख रहा है और दर्शक हंसते हैं. ये जॉनर बेडिंग सीन हंसोड़ भी है और थ्रिलिंग भी और अंत में अलग ही मैजिकल पल पर ले जाकर छोड़ता है. जहां मर चुका रहमान सिगरेट पी रहा है और हम्ज़ा के अंदर कुछ टूट सा गया है. कुछ मर सा गया है. अक्षय खन्ना की आखिरी इमेज, हॉन्टिंग इमेज. क्या नायाब विदाई अपने एक स्ट्रॉन्ग कैरेक्टर को. फिर वहां गूंजता है "असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय." बृहदारण्यक उपनिषद का मंत्र. अर्थ - मुझे असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर, और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो.  

आदित्य धर एक अति सक्षम, संभावनाओं से भरे और बेहद चतुर फिल्ममेकर हैं. वे धुरंधर को हाइब्रिड रखते हैं. इसमें ज्यादातर कैरेक्टर्स, जगहें, घटनाएं एकदम सच्ची हैं. तथ्यात्मक है. कुछ कैरेक्टर्स और कहानी के हिस्से काल्पनिक हैं. कई धमाकों और आतंकी घटनाओं की रियल फुटेज डॉक्यूमेंट्री के अंदाज में बरती गई है. मुंबई हमले के दौरान पाकिस्तान से कौन हैंडलर था और वो कैसे निर्देश दे रहा था, वह शब्दशः रीक्रिएट किया गया है. दिखाया गया है कि कैसे भारतीय मीडिया की कवरेज को देखकर ही हैंडलर उन आंतकियों को गाइड कर रहा था, जिससे भारतीय जानें गईं. इसमें हम इन हमलों की रणनीति बनते देखते हैं. हम सोर्स ऑफ फंडिंग देखते हैं. भारत में पाकिस्तान क्या करवाता है, कैसे ऑपरेट करता है, वो पहली बार पाकिस्तान में सोर्स पर जाकर हमें दिखाया जाता है. हम डेविड हैडली को देखते हैं. कसाब को देखते हैं.

इन सबके बाद फ़िल्म की तीसरी सबसे बड़ी ताकत है म्यूजिक. शाश्वत सचदेव के साउंडट्रैक, बीजीएम ताकतवर, शानदार, थिरकाने वाले, कहानी की मादकता बढ़ाने वाले हैं. जब रहमान डकैत, बलोचों के बाग़ी नेता शिरानी के पास जाते हैं तो उस सीन का बीजीएम चरम है. हैरतअंगेज़. 70-80 के दशक के बॉलीवुड गानों का भरपूर इस्तेमाल हुआ है. जैसे आदित्य धर ने अपनी पर्सनल प्लेलिस्ट फिल्म में डाल दी हो. जैसा एनिमल में संदीप रेड्डी वांगा ने किया था.

1972 के नरसंहार पर बनी फ़िल्म “म्यूनिख” (2005) की लीक पर धुरंधर चलती है. उसका कुछ मिजाज इज़राइली सीरीज़ “फौदा” जैसा भी है.

जैसा कि आदित्य धर अपने हीरो से बुलवाते भी हैं - धुरंधर अपने दौर के सिनेमा में वही करती है जो 90 में राजकुमार संतोषी-सनी देओल की “घायल” (1990) और “घातक” (1996) ने किया था.

यह भारतीय युद्ध फ़िल्मों के लिहाज से भी नया मानक गढ़ती है. "मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये" (बॉर्डर, 1997) के शांतिगीत से राइटर-डायरेक्टर आदित्य धर बहुत आगे बढ़ चुके हैं. 

फ़िल्म की फिलॉसफी हनुमानकाइंड के लिरिक्स से सुस्पष्ट भी होती है - "Mama said, swing back when another man swings." माने, मां ने कहा, कोई मारे तो पलटकर मारो.

फिल्म गांधी और बुद्ध से नहीं क्षात्र धर्म से संचालित है. वह कृष्ण (श्रीमद्भगवद्गीता) से अपनी समझ बनाती है. एक जगह लिखा भी आता है - "हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्. तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः." युद्धस्थल पर अर्जुन जब हथियार तज कहता है कि अपने भाइयों को नहीं मार सकता, तब कृष्ण संदेह दूर करते हैं, "युद्ध में अगर तू मारा जायगा तो स्वर्ग की प्राप्ति होगी. जीता तो पृथ्वी का राज्य भोगेगा. अतः निश्चय कर, खड़ा हो, युद्ध कर." 

यानी, हे भारत, चाहे कोई पड़ोसी है, भाई है, अगर वो अधर्मी है तो उससे युद्ध कर. उसका संहार कर.

Film: Dhurandhar । Writer-Director: Aditya Dhar । Cinematography: Vikash Nowlakha । Editing: Shivkumar V. Panicker । Music: Shashwat Sachdev । Cast: Ranveer Singh, Sanjay Dutt, Akshaye Khanna, Rakesh Bedi, R. Madhavan, Arjun Rampal, Sara Arjun and Gaurav Gera । Run Time: 3hr 32min । Release: 5 December, 2025 । Watch at: Cinemas 

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