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अलविदा धर्मेंद: सिनेमा के ही-मैन, जिसने 'मर्दानगी' को भी मोहब्बत सिखाई, अब नहीं रहे

Dharmendra Death News: 24 नवंबर 2025 बॉलीवुड के ही-मैन कहे जाने वाले धर्मेंद्र ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. धरम पाजी नहीं रहे, पर उनका जज़्बा, मुस्कान और देसी ठाठ हमेशा ज़िंदा रहेंगे. किसान के बेटे से बॉलीवुड के ही-मैन बने धर्मेंद्र ने सिनेमा को सिखाया कि मर्दानगी में भी मोहब्बत होती है. ‘शोले’ का वीरू, ‘चुपके चुपके’ का कवि और ‘सत्यकाम’ का सच्चा इंसान अब यादों में है. धरम पाजी गए नहीं, बस किसी और सीन की शूटिंग पर निकल गए हैं.

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Dharmendra death news
बॉलीवुड का ही-मैन जिसने ‘सख्ती’ को भी दिल बना दिया
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दिग्विजय सिंह
24 नवंबर 2025 (Updated: 24 नवंबर 2025, 02:22 PM IST)
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आज सिनेमा थोड़ा खाली हो गया है. परदे से एक चेहरा उतर गया है, जो सिर्फ हीरो नहीं था- वो हमारी यादों का हिस्सा था. बॉलीवुड के ही-मैन धर्मेंद्र अब नहीं रहे. पर ये कहना मुश्किल है कि ऐसे लोग जाते भी हैं क्या? क्योंकि जब तक “बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना!” याद रहेगा, तब तक धरम पाजी कहीं न कहीं ज़िंदा रहेंगे.

अब ज़रा सोचिए, अगर 60 के दशक में कैमरा चलता और किसी देसी हीरो की झलक मिलती तो सामने वही चौड़ा सीना, वही मुस्कान जिसमें पूरा पंजाब बसता है, और आंखें जो कहती हैं “कुड़ीए, तैनूं प्यार कर बैठा हां” , तो समझ लीजिए, धर्मेंद्र स्क्रीन पर हैं.

किसान का बेटा, जो दिलीप कुमार देखकर हीरो बन गया

8 दिसंबर 1935, नसराली गांव, लुधियाना. एक सीधा-सादा लड़का धर्मेंद्र सिंह देयोल, जो खेतों में काम करता, पर शाम को सिनेमा के परदे पर दिलीप कुमार को देखकर सपना बुनता था- “मैं भी कभी पर्दे पर आऊंगा.” वो लड़का सचमुच आया, और इस मुल्क ने उसे प्यार से बुलाया- धरम पाजी.

1958 में जब बंबई पहुंचे, तो जेब में ख्वाब थे, पैसे नहीं. स्टूडियो के बाहर लाइन में खड़े रहते, किसी ने कहा - “तेरे में कुछ बात है.” ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ से शुरू हुई कहानी, और ‘फूल और पत्थर’ ने धर्मेंद्र को बना दिया हिंदुस्तान का पहला He-Man. सीना चौड़ा, दिल उससे भी बड़ा.

‘ही-मैन’ कैसे बने

धर्मेंद्र हिंदी सिनेमा के पहले एक्शन स्टार थे. लेकिन फर्क ये कि उनके एक्शन में गुस्सा नहीं, गरमजोशी थी. “तू हाथ लगाना नहीं, वरना मैं तोड़ दूंगा” वाला डायलॉग अगर कोई सलीके से बोल सकता था, तो वो बस धर्मेंद्र थे.

फिर आई ‘शोले’ - और वीरू तो जैसे हिंदुस्तान के हर शराबी का आइकन बन गया. पानी की टंकी पर चढ़कर “बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना!” - ये डायलॉग अब भी उतना ही ज़िंदा है जितना रमेश सिप्पी का कैमरा।

रोमांस में भी हीरो नंबर वन

धर्मेंद्र जितने जोशीले थे, उतने ही दिलफेंक भी. ‘अनुपमा’, ‘चुपके चुपके’, ‘शराफ़त’, ‘सत्यकाम’ - इन फिल्मों में उनका नर्मदिल रूप देखने लायक था. वो रोमांस करते नहीं थे, महसूस कराते थे. और ऑफ-स्क्रीन?

हां, वही हेमामालिनी वाला किस्सा. ‘ड्रीम गर्ल’ और ‘ही-मैन’ का प्यार बॉलीवुड की सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में से एक बन गया. दोनों ने 1980 में शादी की, और आज उनके बेटे सनी देओल और बॉबी देओल भी इंडस्ट्री के बड़े नाम हैं.

ये भी पढ़ें- "तुम्हारे पास 10 लोग हैं, मेरे पास..." - जब धर्मेंद्र ने अंडरवर्ल्ड की खटिया खड़ी कर दी

परदे पर मर्दानगी का नया चेहरा

धर्मेंद्र ने दिखाया कि मर्द सिर्फ लड़ने के लिए नहीं होता, प्यार करने के लिए भी होता है. ‘शोले’ के वीरू में जो नटखटपन था, ‘सत्यकाम’ में वही इंसानियत बन गया.

कभी टंकी पर चढ़कर शादी के लिए धरना दिया, तो कभी ‘अनुपमा’ में आंखों से कविता कह दी. एक्शन में वो गुस्से वाले नहीं थे, “दिल से गरमजोशी देने वाले” थे.

सांसद बने, पर दिल किसान ही रहा

राजनीति में गए, संसद पहुंचे, पर उनकी बातों में गांव की मिट्टी ही रही. सोशल मीडिया पर खेतों में घूमते, पेड़ से बात करते, गाय को पुचकारते, कहते-

“प्यार बांटो, नफरत मत फैलाओ.”

वो आखिरी वक्त तक ज़मीन से जुड़े रहे. धरम पाजी ने स्टारडम को सिर पर नहीं चढ़ाया, दिल में बसाया.

उनकी फिल्में अब यादों की रील बन गईं

धर्मेंद्र की फिल्मों की फेहरिस्त यूं तो बेहद लंबी है, मगर कुछ चुनिंदा फिल्में हैं, जिन्हें उनकी यादों की इंस्टा रील में जगह दी जा सकती है. आप इस लिस्ट में लेखक की निजी पसंद भी कह सकते हैं, मगर मौका मिले तो इन फिल्मों को देखिएगा जरूर.

  • फूल और पत्थर (1966)
  • शोले (1975)
  • चुपके चुपके (1975)
  • शराफ़त (1970)
  • सत्यकाम (1969)
  • अनुपमा (1966)
  • धरम वीर (1977)
  • यमला पगला दीवाना (2011)

हर फिल्म में कोई न कोई धर्मेंद्र था- कहीं वीर, कहीं कवि, कहीं दीवाना.

आज जब वो नहीं हैं…

अब शायद कोई और टंकी पर नहीं चढ़ेगा, कोई और “हेमा जी” को इतने प्यार से नहीं बुलाएगा, कोई और “बसंती” को यूं रोक नहीं पाएगा.

धरम पाजी ने सिखाया कि ताकत की असली खूबसूरती तब है, जब वो किसी को चोट न पहुंचाए. वो हंसते थे, तो पर्दे पर धूप पड़ती थी. आज वो धूप ढल गई है.

लेकिन याद रखिए- धरम पाजी मरे नहीं हैं.

वो वहीं हैं- शोले के उस गांव में, पानी की टंकी के ऊपर, जहां वीरू अब भी चिल्ला रहा है-

“बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना!”

और नीचे, लोग अब भी ताली बजा रहे हैं. शब्दों में बस एक बात- धर्मेंद्र गए नहीं हैं, वो बस किसी और सीन की शूटिंग पर निकल गए हैं.

वीडियो: धर्मेंद्र को प्रेरणा मानने वाले मुकेश ऋषि ने बताया, सेट पर उनसे मिलने क्यों नहीं गए?

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