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फिल्म रिव्यू- आज़ाद

Ajay Devgn के भांजे Aaman Devgn और Raveena Tandon की बिटिया Rasha Thadani की पहली फिल्म कैसी है, जानिए ये रिव्यू पढ़कर.

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'आज़ाद' से अमन देवगन और राशा थडानी ने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की है.
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श्वेतांक
17 जनवरी 2025 (Updated: 17 जनवरी 2025, 05:24 PM IST) कॉमेंट्स
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फिल्म- आज़ाद
डायरेक्टर- अभिषेक कपूर
एक्टर्स- अजय देवगन, अमन देवगन, राशा थडानी, पियूश मिश्रा 
रेटिंग- 2.5 स्टार्स 

***

विक्रमादित्य मोटवानी की 'उड़ान' फिल्म में एक सीन है. रोहन अपने पिता को अपना फुटबॉल मैच देखने के लिए बुलाता है. रोहन को लगता है कि उसका पिता नहीं आया. बाद में वो अपने पिता से पूछता है कि वो मैच देखने क्यों नहीं गए. तो रोनित रॉय का निभाया पिता कहता है- "हम आए थे तुम्हारे स्कूल. मगर तुमसे मिले बिना चले गए. क्योंकि हमारे पास तुमसे कहने के लिए कुछ था नहीं."  'आज़ाद' के केस में भी मुझे यही लगता है कि इस फिल्म के पास कहने के लिए ऐसी कोई बात थी नहीं. इस फिल्म को देखते हुए मुझे पर्पस की कमी महसूस हुई. 

'आज़ाद' की कहानी 1920 के दशक में सेंट्रल प्रोविंस में घटती है. एक किसान का बेटा है गोविंद. जो अपनी नानी से महाराणा प्रताप और उनके धोड़े चेतक का किस्सा सुनता हुआ बड़ा हुआ है. उसकी दिली तमन्ना है कि उसके पास भी चेतक जैसा घोड़ा होता. भारी स्ट्रगल के बाद गोविंद को एक ऐसा घोड़ा मिलता है, जो उसके किरदार की परतों को खोलता है. इस घोड़े पर बैठकर गोविंदा बाहर नहीं, अपने भीतर की यात्रा करता है. इसमें उसकी मदद करती है गांव के जमींदार की लड़की जानकी.  

'आज़ाद' उस तरह की फिल्म है, जिसका फैब्रिक थोड़ा-थोड़ा 'मिर्ज़या' से मेल खाता है. मगर इस कहानी में वैसी डेप्थ नहीं है. क्लाइमैक्स में ये फिल्म 'लगान' नुमा कुछ करने की कोशिश करती है. जो कि काफी हद तक काम कर जाता है. मगर वो क्लाइमैक्स बहुत देर में आता है. फिल्म को खींचकर समेटा जा सकता था. बहुत सारे ऐसे सीन्स हैं, जो नैरेटिव में कुछ खास जोड़ते नहीं हैं. बस वो फिल्म में इसलिए बने रहते हैं, ताकि आपको समझ आ सके कि एडिटिंग किसी फिल्म को किस कदर प्रभावित कर सकती है.  

अमन देवगन ने फिल्म में गोविंदा का रोल किया है. अमन, अजय देवगन के भांजे हैं. अमन के साथ अच्छी चीज़ ये है कि वो अपनी ही उम्र का किरदार निभा रहे हैं. उस किरदार को जिस बाल सुलभ चंचलता की ज़रूरत है, उसकी कमी अमन की उम्र पूरी कर देती है. उन्हें देखकर नहीं लगता कि ये उनकी पहली फिल्म है. वो कैमरे पर सहज हैं. कॉन्फिडेंट हैं. उनको फिल्म में जो भाषा बोलने को दी गई, उसे उन्होंने काफी हद तक साफ रखा है. जो कि प्रभावी लगता है. दूसरी न्यूकमर हैं राशा थडानी. जो कि रवीना टंडन की बिटिया हैं. राशा ओवर-ट्रेंड लगती हैं. उन्हें इस बात की बहुत ट्रेनिंग मिल चुकी है कि कैमरे पर कैसे पेश आना है. जो कि उनकी परफॉरमेंस में नज़र आता है. ऑर्गैनिक नहीं लगता. उन्हें फिल्म में ज़्यादा स्क्रीनटाइम भी नहीं मिला है. दो-तीन गाने और नायक की प्रेमिका होने के अलावा फिल्म में उनकी कोई पहचान नहीं है. ये चीज़ भी उनकी परफॉरमेंस के खिलाफ जाती है. क्योंकि हमें उनका काम बिट्स एंड पीसेज़ में देखने को मिलता है. 

पियूष मिश्रा ने एक टिपिकल जमींदार का रोल किया है, जिसमें उनके करने के लिए कुछ खास है नहीं. मोहित मलिक ने 'आज़ाद' से फिल्मों में शुरुआत की है. टीवी के बड़े स्टार रह चुके हैं. मगर वो टीवी वाली इमेज ही फिल्मों में भी कैरी कर रहे हैं. वो टीवी में गुस्सैल पेट्रियार्क का रोल करते रहे हैं. इस फिल्म में भी वो वही करते नज़र आते हैं. अजय देवगन ने बीहड़ के डाकू विक्रम सिंह का रोल किया है. उनकी स्टार पावर और स्क्रीन प्रेज़ेंस फिल्म का कद ऊंचा करती है. जब तक अजय फिल्म में होते हैं, एक किस्म की गंभीरता का भान होता है. मगर जिन सीन्स में वो नहीं हैं, वो बचकानी लगती हैं. 

मजबूरी और शौक, दो अलग-अलग चीज़ें हैं. शौक में की हुई चीज़ों में वजन और वजह दोनों की कमी रहती है. 'आज़ाद' की मूल कहानी के साथ यही समस्या है. क्योंकि वो ज़रूरत से नहीं पनपी. 

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