अमित शाह सुनिए, बद्रीनाथ चुनाव में वोट डालने न आएंगे
गद्दी के डर से अमित शाह हेलीकॉप्टर की बजाय कार से बद्रीनाथ जा रहे हैं. हमें पसंद नहीं आया.
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Source- mycamerashots
इसके पहले इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, एनडी तिवारी, वीर बहादुर सिंह, रमेश पोखरियाल, यूपी के राज्यपाल सूरजभान, मोतीलाल वोरा, रोमेश भंडारी और लालकृष्ण आडवाणी वगैरह भी वहां हेलिकॉप्टर से गए थे. बकैतों का कहना है वहां हेलीकॉप्टर से जाने के कारण सबकी कुर्सी चली गई.अब हमारी बात सुनिए जैसा कि कहते हैं बद्रीनाथ सबके नाथ हैं, उनके सामने ऐश्वर्य लेकर नहीं जाना चाहिए, नहीं तो वो छीन लेते हैं. तो क्या कार सो कॉल्ड 'ऐश्वर्य' में नहीं आएगी. कुछ लोगों के लिए कार भी लक्जरी है, मेरी तो ड्रीम बाइक भी स्प्लेंडर है. भगवान अगर हेलीकॉप्टर से बुरा मान जाते हैं तो कार से भी मान सकते हैं. ये कब तय हो गया कि कार ऐश्वर्य का पैरामीटर नहीं है? कार से काहे जाएंगे, साइकल से जाएं. हम तो कहते हैं. पूरा पैदल चले जाएं. हेलीकॉप्टर से ऑफेंड होकर कुर्सी छीनने वाले भगवान कार भी छीन लेंगे तब तो आप लोकसभा-विधानसभा का क्या प्रधानी का चुनाव भी न जीत पाएंगे. इंदिरा हारीं, लालकृष्ण हारे. अरे भगवान के कारण थोड़े न हारे. अपनी चाल लगाए हारे. उनकी नीतियां जनता को पसंद न आई होंगी. वोट न दिया होगा. जनता उनके साथ नहीं थी. लोगों ने बहुमत नहीं दिया. इसलिए हारे. भगवान बैलट बॉक्स में थोड़े घुस जाते हैं कि नतीजा पलट दें. या भगवान रातोंरात उल्टा चुनाव प्रचार कर आते हैं. भगवान वोटर्स को सपना देकर कहते हैं कि फलाने को वोट न देना? या जब आदमी वोट देने जाता है तो गलत जगह ठप्पा या बटन दबवा देते हैं? मुझे अभी से पता है मैं अगले चुनावों में किसे वोट दूंगा. ऐसा ही बाकी लोगों का भी थोड़ा-बहुत तो तय रहता ही होगा. अमित शाह हेलीकॉप्टर से न जाएंगे तो क्या ये फैसला बदल जाएगा. कुर्सी तो उसी तरीके से ही जानी है न?
इस तरह का अंधविश्वास जो भी फैलाते हैं और जो भी ऐसी बातों को सच मानते हैं. वो तय मानें कि भगवान इतने खलिहर तो नहीं ही बैठे हैं कि सारा दिन बैठकर ये गिनें कि आज किसने मेरे मंदिर के ऊपर से हवाईजहाज उड़ा दिया. आपको क्या लगता है भगवान लिस्ट बनाते होंगे कि फलाने और ढिकाने बहुत उड़ रहे थे इनकी कुर्सी छीननी है.एक चीज और बुरी है, अमित शाह या कोई भी नेता हेलिकॉप्टर से न जाए, कोई फर्क नहीं पड़ता. आप हेलीकॉप्टर से न जाएंगे. ईंधन बचेगा, पैसा बचेगा. एक अंश ही सही पर्यावरण का भी भला होगा. हम तो कहते हैं रैली करने भी न जाएं हेलीकॉप्टर-हवाईजहाज से. ट्रेन के जनरल डिब्बा में बैठकर जाएं. लेकिन आप ये हेलीकॉप्टर छोड़ काहे रहे हैं अंधविश्वास के चलते. माने कोई बड़ी अच्छी वजह होती, आस्था होती कि उड़कर नहीं जाना है. कार से जाना है, रास्ते में तकलीफें सहकर पहुंचना है तब तो बड़ी भली होती, पर ये क्या बात हुई कि कुर्सी न चली जाए. इस डर से कार से जाएंगे.
एक हमारे इधर अखिलेश यादव हैं. नोएडा नहीं आते. यहां ये हौफा चलता है कि जो मुख्यमंत्री नोएडा आएगा उसकी कुर्सी चली जाएगी.मध्यप्रदेश में एक जगह है अशोकनगर. कोई मुख्यमंत्री वहां नहीं जाया करता था. कहते हैं 1975 में प्रकाशचंद्र सेठे गए थे, उनकी कुर्सी चली गई. श्यामाचरण शुक्ला 1977 में एक तालाब के उद्घाटन में आए उनकी कुर्सी चली गई. फिर वीरेंद्र सकलेचा से लेकर अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह तक वहां आए और अगले चुनावों में सबकी कुर्सी चली गई. लेकिन उस जगह का दोष थोड़े है. जानी थी तो गई. पिछले महीने की बात है, उज्जैन में सिंहस्थ चल रहा था, शिवराज सिंह ऐसे व्यस्त थे जैसे तिलक के दो दिन पहले लड़के का भाई बिजी रहता है. पर उनको रात को सोना था तो उज्जैन में नहीं सोए, देवास में जाकर सोए. काहे कि लोग मानते हैं. उज्जैन के राजा महाकाल हैं, कोई और 'मुखिया' वहां सोया तो उसकी कुर्सी चली जाएगी. और ये आज से नहीं हमेशा से चला आ रहा है. शिवराज सिंह ने वो बरकरार रखा, देवास में जाकर सो गए लेकिन उज्जैन में नहीं सोए. ये तो हाल है. देख लीजिए.