3 जून 2016 (Updated: 3 जून 2016, 12:12 PM IST) कॉमेंट्स
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आम आदमी को हर चीज की जल्दी होती है. फेयरनेस क्रीम्स सात दिन में रंग गोरा करने का वादा करती हैं. पर आम आदमी सुबह लगा ले तो शाम तक में चार बार शीशा निहारता है कि एकाध शेड तो रंग निखरा ही होगा. नहीं हो पाता तो आदमी केस भी कर देता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने लोगों को फटकारा कि क्रीम गोरा नहीं कर पा रही तो हम क्या करें? मुकदमा क्यों खड़ा कर रहे हो? सुप्रीम कोर्ट को समझना होगा, करना क्या है. जुर्माना थोड़े ठोंकिएगा यामी गौतम पर. बस सात दिन को चार दिन कहलवा दीजिए. आम आदमी को तीन दिन जल्दी पता चल जाएगा कि इस क्रीम के बूते कुछ होने से रहा. उम्मीद जल्दी टूटेगी.
दौड़ सारी जल्दी की है. दोस्त से मिलिए. बेरोजगार है पर कहेगा यही कि जल्दी में है. फिर भले खाली लेटे-लेटे आंख के नीचे अंगुली लगा एक पंखे को दो कर देखते दिन गुजार दे. भले नकमिटनियां खोद-खोद टेबल या बिस्तर की किनारी को दिसंबर से जून की चिल्का झील से ज्यादा नमकीन बना दे. जो आदमी फ्लिपकार्ट से आए सामान की पन्नी को सलीके से खोलने की बजाय जल्दी सामान देखने के फेर में फाड़ डाले, पैसे निकलते ही एटीएम की रसीद को यूं फाड़कर फेंक दे जैसे उसमें रॉ के खुफिया एजेंट्स के कोडनेम लिखे हैं. चोकोबार भी ऐसे हपर-हपर खा जाए जैसे मौसी का लड़का आके आधी छुडा लेगा. वही आदमी जाने क्यों फ्लाइट का लगेज टैग निकालने में आलस कर जाता है.
कभी लिफ्ट मे इनके साथ जाइए. खुद घुसते ही गेट क्लोज करने का बटन दबाएंगे. भले पीछे किसी और को उसी लिफ्ट में चढ़ने के लिए भागते आता देख चुके हैं. लिफ्ट में रहेंगे तो अपने फ्लोर की बटन बार-बार दबाएंगे. मानो इनके मनोभाव समझ लिफ्ट बीच के फ्लोर स्किप कर जाएगी. ट्रैफिक जाम में कार का हॉर्न यूं बेदर्दी से दबाते रहेंगे मानो जाम लगना मूलत: उस गरीब हॉर्न का अपराध हो. और उसे ताड़ना देने से जाम जल्दी खुल जाने का प्रावधान हो. ये भी लगेज का टैग निकालने में जल्दी नहीं दिखाते
भले इनके बारे में आप पूर्वाग्रह पाल लें पर सारे सवालों के जवाब तब मिल जाते हैं. जब इनके बैग पर फ्लाइट का लगेज टैग लगा दिख जाए, आदमी इतना आलसी कभी नहीं होता. जितना लगेज टैग निकालने में हो जाता है. इतना विनम्र कभी नहीं होता जितना बैंक में बगल वाले से पेन मांगते वक़्त हो जाता है और इतना निरीह कभी नहीं होता जब उसे वाइवा में एक्सटर्नल के सामने बिठा दिया जाए. ये उनका आलस है जो उन्हें लगेज का टैग निकालने से रोकता है.
नादान लोग इसके पीछे वजह बताते हैं कि ये तो बस शो ऑफ का प्रयास है. ये दिखाने कि कोशिश है कि हम भी हवाई जहाज से चक्कर लगाते रहते हैं. पर विद्वान जो कह गए हैं वो ये कि समाज दो वर्गों में बंटा है हवाई चप्पल और हवाई जहाज वाला. लगेज टैग उन्हीं के बीच का महीन अंतर है.