नीतीश-लालू की दोस्ती कराने वाले नेता का चुनाव में क्या हुआ? 35 सालों से हारे नहीं हैं
Supaul Election Result 2025: सुपौल सीट से बिजेंद्र प्रसाद यादव 1990 से विधायक हैं. इस बार भी वो जेडीयू के टिकट पर लड़े और जीत के करीब भी हैं. ये वही शख्स हैं, जिन्होंने 2015 में लालू-नीतीश की दोस्ती कराई थी.
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वो 9 बार से विधायक हैं. जब से चुनाव लड़ रहे हैं, तब से कभी नहीं हारे. जिस सीट से वह लड़ते हैं, उस पर उनके अलावा आखिरी बार कोई विधायक 1985 में हुआ था. इसके बाद से यह सीट और उनका नाम एक दूसरे का पर्यायवाची बन गए हैं. ये वो नेता है, जिनके होने से इलाका किसी एक पार्टी का गढ़ बन जाता है. ये वो नेता हैं, जिन्होंने अब ‘सियासी दुश्मन’ बन चुके दो पुराने दोस्तों, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार, को एक साथ लाने में अहम भूमिका निभाई थी. वो नीतीश की पार्टी का यादव चेहरा हैं और 9वीं बार विधानसभा चुनाव में जीत के एकदम करीब हैं.
हम बात कर रहे हैं नीतीश कुमार सरकार के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव की. वह सुपौल विधानसभा सीट से जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़े. पहली बार नहीं, 1990 से लगातार लड़ रहे हैं. 1990 से लगातार जीत रहे हैं. शुक्रवार 14 नवंबर को जब बिहार चुनाव 2025 के नतीजे घोषित किए गए तब बिजेंद्र प्रसाद के नाम एक और जीत दर्ज हो गई. इस बार वह 30 हजार 803 वोटों के अंतर से जीते हैं. उन्हें एक लाख 9085 वोट मिले. उनके बाद कांग्रेस के मिन्नातुल्लाह रहमानी को 78 हजार 282 लोगों ने वोट किया.
लालू-नीतीश की दोस्ती की कहानीबिहार की राजनीति में दो दोस्तों की कहानी मशहूर है. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव. दोनों ने जेपी आंदोलन के समय एक साथ बिहार में अपनी राजनीति शुरू की. इस दौरान दोस्ती ऐसी गाढ़ी हुई कि लालू प्रसाद नीतीश के ‘बड़े भाई’ बन गए. साल 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल पार्टी को बहुमत मिला. सीएम पद के लिए लड़ाई राम सुंदर दास और लालू प्रसाद के बीच थी. नीतीश ने लालू के लिए बैटिंग की और उन्हें सीएम बनाकर ही छोड़ा. लेकिन बाद में ये दोस्ती टूट गई.
इसके बाद एक और घटना हुई. जनता दल टूटा. नीतीश ने अलग पार्टी बनाई- समता पार्टी और लालू ने बनाया राष्ट्रीय जनता दल. दोनों दोस्तों की राहें अलग हुईं तो फिर दोनों ने कभी एक-दूसरे को न देखा. इस बीच नीतीश की भाजपा से नजदीकियां बढ़ीं और वह एनडीए का हिस्सा बन गए. फिर आया साल 2015. लालू लंबे समय से सत्ता से दूर थे और नीतीश को बिहार के मुख्यमंत्री बने 10 साल हो गए थे. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की अगुआई में चुनाव लड़ने वाले एनडीए से नीतीश ने नाता तोड़ लिया.
यहां बिजेंद्र यादव का काम शुरू होता है. 2015 में बिहार चुनाव आया. नीतीश अकेले थे. मौका भी था और दस्तूर भी. पुराने दोस्तों को मिलाने का काम किया गया. आरजेडी और जेडीयू ने मिलकर चुनाव लड़ा. महागठबंधन को बंपर सीटें मिलीं. मोदी लहर पर सवार भाजपा को मुंह की खानी पड़ी. हालांकि ये दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चली. 2017 में दोनों अलग हो गए. फिर इसके 5 साल बाद 2022 में दोनों एक बार फिर साथ आए, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश ने फिर एनडीए का पाला चुन लिया.
बिजेंद्र ने लालू की जगह चुना नीतीश कोये तो हुई लालू-नीतीश की कहानी. जब लालू और नीतीश अलग हुए तो बिजेंद्र को भी दोनों में से एक को चुनना था. जाति से यादव थे. आरजेडी ‘यादवों’ की पार्टी कही जाती है, लेकिन उन्होंने लालू के बदले नीतीश कुमार को चुना. ईटीवी को दिए एक इंटरव्यू में पूछा गया, ऐसा क्यों किया? तो वह कहते हैं,
मैं जनता दल में रहा हूं. जनता दल ने ही लालू यादव को मुख्यमंत्री बनाया था. जब उन्होंने RJD बना लिया तो मैं उस समय दो-दो विभाग का मंत्री था, लेकिन मैं उनके साथ नहीं गया.
हालांकि, वो साफ-साफ नहीं बताते कि नीतीश का साथ उन्होंने क्यों चुना. लेकिन लालू राज और नीतीश सरकार में अंतर बताते हुए वो कहते हैं,
लालू के राज में ईमान का संकट था. नीतीश के राज में बेईमानों को संकट है.
बिजेंद्र नीतीश के बेहद करीबी हैं. पार्टी में जब भी कोई बड़ा फैसला लेना होता है, नीतीश कुमार बिजेंद्र यादव से सलाह लेते हैं. बिजेंद्र अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सुपौल जिले में विकास की कई बड़ी योजनाओं को ले गए, जिससे क्षेत्र में वो काफी लोकप्रिय हुए. यही वजह है कि सुपौल पिछले 2 दशक से जनता दल यूनाइटेड का मजबूत गढ़ बना हुआ है.
बिजेंद्र प्रसाद यादव 1990 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और लगातार 8 बार यहां से जीत दर्ज की है. उन्होंने पहले दो चुनाव जनता दल के टिकट पर जीते हैं. साल 2000 में समता पार्टी से चुनाव लड़े और जीत हासिल की. इसके बाद लगातार जदयू के टिकट पर सुपौल से जीतते आ रहे हैं. बिहार में 2015 में महागठबंधन की सरकार बनाने में बिजेंद्र यादव की बड़ी भूमिका रही थी.
नीतीश के भरोसेमंदनीतीश का उन पर भरोसा ऐसा है कि अपने पूरे शासनकाल में उन्होंने बिजेंद्र यादव को बेहद अहम मंत्रालय सौंपे हैं. शराबबंदी जैसा अहम फैसला लेने वाले नीतीश कुमार ने मद्य निषेध विभाग का प्रभारी मंत्री बिजेंद्र को ही बनाया. मौजूदा सरकार में ऊर्जा विभाग बिजेंद्र के ही पास है. पहले वह जल संसाधन विभाग भी संभाल चुके हैं. साल 2014 में जब नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था और जीतनराम मांझी को सीएम बनाया था, तब बिजेंद्र को वित्त मंत्रालय सौंपकर गए थे, जो इससे पहले उनके पास था. 2015 तक बिजेंद्र इस पद पर रहे.
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