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घनश्याम लोधी के लिए कभी आज़म ने हेलिकॉप्टर से मंगाया था सिंबल, उन्हीं ने रामपुर में बाजी पलट दी

रामपुर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी के घनश्याम सिंह लोधी ने समाजवादी पार्टी के मोहम्मद असीम रज़ा को 42 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया है.

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Aazam-Ghanshyam Lodhi
आजम खान और घनश्याम लोधी. (फाइल फोटो- आजतक)
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सौरभ
26 जून 2022 (Updated: 28 जून 2022, 12:10 PM IST)
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आज़म खान के किले में आखिरकार बीजेपी सेंध लगाने में कामयाब हो ही गई. यूपी की रामपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव के नतीजे आ गए हैं और बीजेपी के घनश्याम सिंह लोधी ने समाजवादी पार्टी के मोहम्मद असीम रज़ा को 42 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया है. बीजेपी को रामपुर में 3 लाख 67 हजार से ज्यादा वोट मिले जबकि सपा के खाते में लगभग 3 लाख 25 हजार वोट आए. शुरुआत में मो. असीम ने बढ़त बनाई थी, लेकिन जैसे जैसे EVM खुले बीजेपी की जीत का रास्ता साफ होता गया.

कौन हैं घनश्याम सिंह लोधी?

राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता. कम से कम रामपुर की सियासत देखकर इस बात को पुख्ता किया जा सकता है. चंद दिन पहले तक जो घनश्याम लोधी, आज़म खान के सबसे सगों में शुमार थे आज वही रामपुर में आज़म की किरकरी का सबब बन गए हैं. सालों तक सपा से सियासत करने वाले घनश्याम लोधी ने इस साल की शुरुआत में साइकिल से उतरकर बीजेपी का दामन थाम लिया और आज रामपुर के सांसद बन गए.

हालांकि, लोधी ने अपनी सियासत की शुरूआत बीजेपी से ही की थी. घनश्याम 90 के दशक में राजनीति में आए. बताया जाता है कि तब वो बीजेपी के कद्दावर नेता और सीएम रहे कल्याण सिंह की शागिर्दी में आ गए. लेकिन 90 का दशक खत्म होने से पहले ही लोधी बीजेपी छोड़ बसपा शामिल हो गए. 1999 में बसपा में शामिल होने के साथ ही लोधी ने रामपुर सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़ा. लेकिन तीसरे नंबर पर रहे. 

आजतक से जुड़े आमिर खान की रिपोर्ट के मुताबिक, घनश्याम लोधी को किसी मौसम वैज्ञानिक से कम नहीं माना जाता. उन दिनों बीजेपी से नाराज़ होने के बाद कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई थी. साल 2004 में घनश्याम बसपा छोड़ राष्ट्रीय क्रांति पार्टी में शामिल हो गए. फिर कल्याण सिंह और मुलायम सिंह के आशीर्वाद से विधान परिषद के सदस्य बन गए. 

अगला चुनाव आया और लोधी ने पार्टी बदल दी. लोधी का विधान परिषद का कार्यकाल अभी बाकी था लेकिन 2009 में लोकसभा चुनाव से पहले वो फिर मायावती के साथ हो लिए. 2009 लोकसभा चुनाव में बसपा ने लोधी को रामपुर सीट से टिकट दे दिया. लोधी ने चुनाव लड़ा लेकिन इस बार भी तीसरे नंबर पर ही रहे. 

इस चुनाव के बाद लोधी ने फिर पलटी मारी. विधानसभा चुनाव अभी दूर थे, लेकिन यूपी की हवा का रुख लोधी पहले ही भांप गए थे. 2010 में ही घनश्याम लोधी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. सपा में लोधी ने अब तक की सबसे लंबी सियासी पारी खेली. 2012 में यूपी में अखिलेश यादव की सरकार बनी. और समय के साथ लोधी को इनाम मिला. 2016 में घनश्याम लोधी को रामपुर-बरेली क्षेत्र से सपा ने विधान परिषद भेज दिया.

जब आज़म ने हेलिकॉप्टर से सिंबल भिजवाया

सपा में आने के बाद लोधी आज़म खान के करीब आते गए. 2022 के इस चुनाव में जिन घनश्याम लोधी के खिलाफ आज़म खान ने प्रचार किया, उन्हीं लोधी को एक समय में आज़म का राइट हैंड कहा जाने लगा था. बात साल 2016 के यूपी विधान परिषद चुनाव की है. लोधी MLC बनने के दावेदारों में से थे. आज़म की बैकिंग भी थी. लेकिन पार्टी ने लोधी का टिकट काट किसी और दे दिया. आज़म को ये बात पता चली, तो आसमान सिर पर उठा लिया. आज़म ने पहले तो उस उम्मीदवार का टिकट कटवाया और उसके बाद हेलिकॉप्टर से पार्टी का सिंबल लखनऊ से रामपुर मंगवाया. फिर घनश्याम लोधी को दोबारा विधान परिषद भिजवाया.

हालांकि, कुछ समय बाद आज़म खान और घनश्याम लोधी के बीच नज़दीकियां दूरी में तब्दील होने लगीं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कहा जाता है कि साल 2019 में रामपुर शहर की सीट पर हुए विधानसभा उपचुनाव के दौरान घनश्याम लोधी के घर पर बीजेपी नेताओं की बैठक हुई थी. तब भी ये कयास लगाए जा रहे थे कि वो बीजेपी में शामिल हो जाएंगे. लेकिन तब घनश्याम बीजेपी में नहीं गए.

रामपुर में आज़म खान का इतिहास

रामपुर को आज़म खान का गढ़ माना जाता है. आज़म यहीं के रहने वाले हैं और राजनीतिक तौर पर पूरे क्षेत्र में आज़म का अच्छा रसूख माना जाता रहा है. 2019 में आज़म खान खुद इस सीट से चुनकर लोकसभा पहुंचे थे. 2004 और 2009 लोकसभा चुनाव में जया प्रदा सपा के टिकट पर ही इस सीट पर जीतीं. हालांकि 2014 की मोदी लहर में रामपुर में बीजेपी ने जीत हासिल की थी. इसके अलावा बात अगर रामपुर विधानसभा सीट की करें, तो पिछले 42 साल में सिर्फ एक बार ये सीट आज़म खान के हाथ से फिसली. 1980 से लेकर अबतक हुए विधानसभा चुनावों में 1996 के चुनाव के अलावा रामपुर की विधानसभा सीट आजम के घर में ही सुरक्षित रही. ये आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि रामपुर समाजवादी पार्टी और खासकर आज़म खान के लिए कितना खास रहा है.

इस उपचुनाव में बीजेपी और सपा के अलावा कोई भी उम्मीदवार 5 हजार का आंकड़ा नहीं छू पाया. यहां तक कि सपा के बाद अगर सबसे ज्यादा EVM का कोई बटन दबा, तो वो नोटा का था. करीब साढ़े 4 हजार लोगों ने नोटा को चुना. इसके अलावा संयुक्त समाजवादी दल के हरिप्रकाश आर्य को 4,130 वोट मिले. बतां दें कि इस उपचुनाव में बसपा ने रामपुर की सीट से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था.

रामपुर की ये सीट इसी साल हुए यूपी विधानसभा चुनावों के बाद खाली हुई थी. आज़म खान ने रामपुर की ही विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीतने के बाद राज्य की राजनीति को चुना. 23 जून को देश की अलग अलग सीटों के साथ यहां भी उपचुनाव के लिए वोटिंग हुई थी. और नतीजों में आज बीजेपी ने परचम लहरा दिया.

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