पवन सिंह बहाना थे, उपेंद्र कुशवाहा निशाना थे? बिहार की काराकाट सीट पर क्या खेला हुआ?
Bihar के काराकाट लोकसभा सीट से NDA के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा चुनाव हार गए हैं. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस सीट पर पवन सिंह के आने से उपेंद्र कुशवाहा का खेल खराब हुआ. अब इसको लेकर उपेंद्र कुशवाहा ने BJP के प्रदेश नेतृत्व पर निशाना साधा है. BIHAR में NDA के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने काराकाट से अपनी हार को लेकर इशारों-इशारों में बीजेपी प्रदेश नेतृत्व पर सवाल उठाया है. मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि
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काराकाट लोकसभा सीट से उपेंद्र कुशवाहा चुनाव हार गए. जब सवाल हुआ कहां चूक हो गई तो बोले चूक हुई या चूक करवाई गई ये सबको मालूम है. कहा कि उनको इस बारे में कुछ भी नहीं कहना. आगे पवन सिंह की उम्मीदवारी पर सवाल हुआ तो बोले पवन सिंह फैक्टर बना या बना दिया गया सबको पता है. उपेंद्र कुशवाहा किस चूक की ओर इशारा कर रहे हैं और क्या पवन सिंह उनकी हार का कारण बने?
काराकाट से CPI(ML) के राजाराम सिंह चुनाव जीते हैं. निर्दलीय प्रत्याशी पवन सिंह दूसरे नंबर पर रहे. और एनडीए उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा तीसरे स्थान पर रहे. पवन सिंह ने आखिर कैसे उपेंद्र कुशवाहा का खेल खराब किया, समझने के लिए आपको फ्लैशबैक में चलना होगा.
आसनसोल छोड़ काराकाट पहुंचे पवन सिंहभोजपुरी स्टार पवन सिंह को BJP ने पश्चिम बंगाल के आसनसोल से मैदान में उतारा था. इसके बाद TMC ने उनके गानों में बंगाल की महिलाओं को गलत तरीके से दिखाने का दावा करते हुए उनकी उम्मीदवारी का विरोध करना शुरू कर दिया. विवाद बढ़ा तो पवन सिंह ने खुद यहां से उम्मीदवारी छोड़ने का फैसला किया. हालांकि बाद में उनके समर्थकों ने तर्क दिया कि पवन सिंह बंगाल से नहीं बिहार या पूर्वांचल की किसी सीट से चुनाव लड़ना चाहते है. इसलिए उम्मीदवारी वापस ली.
इसके बाद पवन सिंह BJP के कई नेताओं से संपर्क में रहे. उनको उम्मीद थी कि बीजेपी उनको बिहार में किसी न किसी सीट से फिट कर देगी. लेकिन उनको निराशा हाथ लगी. बीच में ऐसी भी खबरें अफवाह की शक्ल में बिहार की सियासी हल्कों में चलीं कि पवन सिंह RJD के संपर्क में हैं. और RJD ने उनको आरा से टिकट का ऑफर दिया है. लेकिन 10 अप्रैल को सारे कयासों पर विराम लग गया जब पवन सिंह ने एक पोस्ट कर काराकाट से निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की.
क्यों की बीजेपी से बगावत?पवन सिंह बीजेपी से बगावत कर निर्दलीय क्यों चुनाव में आए और बिहार में BJP उनके लिए कोई सीट क्यों नहीं खोज पाई. इस सवाल के जवाब में इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े संतोष सिंह ने बताया,
"अपर कास्ट की कोई सीट ही नहीं बन रही थी. आरा जहां से पवन सिंह आते हैं, वहां से केंद्रीय मंत्री आरके सिंह थे. बक्सर से अश्विनी चौबे की जगह किसी ब्राह्मण को टिकट देना था. कोई वैकेंसी नहीं थी. इसलिए पवन सिंह के सामने कोई रास्ता नहीं था. उनको बगावत करनी पड़ी."
BJP भले ही पवन सिंह को बिहार से कोई लोकसभा सीट नहीं ऑफर कर पाई, लेकिन पार्टी का दावा है कि उनको दूसरे रास्ते से एडजस्ट करने की कोशिशें की गईं. बिहार के छातापुर विधानसभा से एक विधायक हैं नीरज बब्लू. एक समय कोशी सीमांचल के चर्चित बाहुबली आनंद मोहन के शागिर्द रहे थे. और अब उनकी पहचान BJP के युवा राजपूत चेहरे के तौर पर है. एक वीडियो जारी कर नीरज बब्लू ने दावा किया था कि आसनसोल से टिकट छोड़ने के बाद बीजेपी ने पवन सिंह को राज्यसभा का ऑफर दिया था. उन्होंने आगे आरोप भी लगाया कि पवन सिंह राजद के जाल में फंस गए हैं. और राजद उनको आगे कर रही है ताकि राजपूत समाज का वोट कट जाए. और CPI(ML) के कैंडिडेट को इसका फायदा मिले.
आखिर नीरज बब्लू राजपूत वोटों की बात क्यों कर रहे थेय़ इसको समझने के लिए आपको काराकाट का जातीय गणित समझना होगा.
काराकाट लोकसभा यादव और कुर्मी-कुशवाहा बहुल सीट मानी जाती है. यहां लगभग 3 लाख यादव वोटर हैं जबकि 3 लाख कुर्मी-कुशवाहा वोटर हैं. लेकिन इसके बाद यहां सबसे अधिक राजपूत वोटर्स हैं जिनकी संख्या लगभग 2 लाख मानी जाती है. इसके अलावा यहां लगभग 1 लाख ब्राह्मण वोटर और 50 हजार भूमिहार वोटर्स हैं. NDA को सबसे अधिक राजपूत वोटर्स के खिसकने का डर था. क्योंकि पवन सिंह इसी बिरादरी से आते हैं. और अगर नतीजों को देखें तो आशंका सही साबित होती दिख रही है.
काराकाट चुनाव कवर कर रहे स्थानीय पत्रकार उपेंद्र मिश्रा ने बताया,
“BJP के कार्यकर्ता चुनाव में सक्रिय नहीं रहे. उनका बूथ कमिटी और बूथ मैनेजमेंट धवस्त रहा. और जाति के नाम पर बीजेपी के कई कार्यकर्ता पवन सिंह के साथ लगे रहे.”
हालांकि BJP की ओर से डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी की गई. काराकाट में पीएम मोदी की रैली हुई. इसके अलावा बीजेपी ने राजपूत समुदाय से आने वाले इस स्टार को काउंटर करने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और लवली आनंद जैसे नेताओं को प्रचार में उतारा था, लेकिन नतीजा बता रहा है कि इसका फायदा नहीं हुआ.

NDA उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी चुनावी सभाओं में पवन सिंह पर राजद से पैसे लेकर चुनाव में खड़े होने का आरोप लगाया था. आजतक से जुड़े सुजीत झा से बातचीत में उपेंद्र कुशवाहा ने बताया कि उनकी लड़ाई INDIA गठबंधन के दो उम्मीदवारों से है. लेकिन अब चुनाव के बाद उपेंद्र कुशवाहा के सुर बदल गए हैं. इशारों-इशारों में अब पवन सिंह की उम्मीदवारी को लेकर उन्होंने प्रदेश बीजेपी नेतृत्व पर निशाना साधा है. इस मसले पर संतोष सिंह ने बताया,
"उपेंद्र कुशवाहा का इशारा है कि पवन सिंह बीजेपी प्लॉटेड कैंडिडेट हैं. इसके पहले बीजेपी ने एलजेपी को भी कमजोर करने की कोशिश की. फिर देखा कि पांच एमपी हटाने के बावजूद चिराग का कोर वोटर उन्हीं के साथ है. तो बीजेपी ने उनमें फिर से इनवेस्ट किया. ये व्यावहारिक राजनीति है. बीजेपी उपेंद्र कुशवाहा को, विवेक ठाकुर की जो राज्यसभा सीट खाली हुई है, उसमें अगर भेज देती है तो लोग कहेंगे कि बीजेपी प्लॉटेड नहीं है."
उन्होंने आगे बताया कि BJP इस डाउट को क्लियर करना चाहती है तो कुशवाहा को राज्यसभा भेज दे. अगर नहीं भेजेगी तो इसका सीधा मतलब यही निकाला जाएगा कि कहीं न कहीं पवन सिंह के उम्मीदवारी में ‘BJP का खेल’ है.
उपेंद्र कुशवाहा इशारों में BJP प्रदेश नेतृत्व पर निशाना जरूर साध रहे हैं. लेकिन केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका को लेकर उन्होंने कोई बयान नहीं दिया है. आजतक से जुड़े सुजीत झा ने बताया,
“उपेंद्र कुशवाहा के बयान का मतलब यही है कि बीजेपी चाहती तो पवन सिंह को चुनाव लड़ने से रोक सकती थी. ये हुआ नहीं खासतौर पर बीजेपी का जो स्टेट यूनिट है उन्होंने उसको ब्लेम किया है.”
सम्राट चौधरी घेरे में
पवन सिंह की उम्मीदवारी को लेकर BJP के प्रदेश अध्यक्ष और उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी सवालों के घेरे में हैं. एक थ्योरी ये भी चलाई जा रही है कि सम्राट चौधरी ने ही पवन सिंह को आगे किया. ताकि उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति को खत्म किया जा सके. और वो एकमात्र कुशवाहा चेहरे के रूप में स्थापित हो जाएं. इससे जुड़े सवाल पर सुजीत झा ने कहा,
“सीधे तौर पर इस आरोप का कोई आधार नहीं है. लेकिन ये स्वाभाविक है कि सम्राट चौधरी प्रदेश अध्यक्ष हैं. और कुशवाहा जाति से आते हैं तो उनकी जिम्मेदारी बनती है.”
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सारे आरोप-प्रत्यारोप अभी कयासों की शक्ल में हैं. अब पवन सिंह की उम्मीदवारी का सच चाहे जो हो, लेकिन काराकाट से उपेंद्र कुशवाहा की हार ने उनके राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है. इस हार के बाद निश्चित ही एनडीए में उनकी बारगेनिंग पावर कम होगी. इसका नुकसान उनको 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है.
उपेंद्र कुशवाहा का ट्रैक रिकॉर्ड किसी एक दल से जुड़ कर रहने का नहीं हैं. कभी नीतीश कुमार के करीबी रहे. फिर BJP के साथ गठबंधन किया. उसके बाद RJD के साथ भी गए. बीच में ओवैसी की पार्टी से भी गठबंधन किया. फिर नीतीश कुमार से जुड़े. अलगाव भी हुआ. और अब एक बार फिर से बीजेपी-जदयू के साथ NDA गठबंधन में हैं. बिहार के लगभग सभी राजनीतिक घाटों का पानी पी चुके उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति अब किस करवट बैठेगी, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है.
वीडियो: BJP का ऑफर क्यों ठुकराया? पवन सिंह ने पीएम मोदी, उपेंद्र कुशवाहा पर भी दिए जवाब

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