दुलारचंद की हत्या, अनंत सिंह गए जेल... अब मोकामा की चुनावी जंग किसके पक्ष में दिख रही?
Mokama Assembly Election: पिछले 20 साल से खुद अनंत सिंह इस सीट से जीतते आ रहे हैं. लेकिन दुलारचंद यादव की हत्या और उसके आरोप में अनंत सिंह के जेल जाने के बाद, उनकी राह इस सीट पर आसान रह गई है या नहीं, अब क्या बदल गया? आइए सब जानते हैं.

बिहार के बाहुबली नेता अनंत सिंह एक बार फिर जेल से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. 10 साल पहले 2015 में भी वह विधानसभा चुनाव के समय जेल में थे. तब वह मोकामा विधानसभा सीट से निर्दलीय लड़कर चुनाव जीत गए थे. इस बार दुलारचंद यादव हत्याकांड में उनका नाम आया है और पुलिस ने चुनाव से कुछ ही दिन पहले अनंत सिंह को गिरफ्तार कर लिया है. मोकामा सीट पर अनंत सिंह और उनके परिवार का ही दबदबा रहा है. पिछले 20 साल से खुद अनंत सिंह इस सीट से जीतते आ रहे हैं. लेकिन इस बार उनकी राह आसान है या नहीं, आइए पता लगाने की कोशिश करते हैं.
जाति समीकरणसबसे पहले इस सीट का जाति समीकरण समझ लेते हैं. बिहार की अधिकतर सीटों की तरह मोकामा में भी जाति समीकरण ही चुनाव का गुणा-गणित तय करती है. मोकामा में भूमिहार वोटर जीत का सबसे बड़ा फैक्टर हैं, क्योंकि यहां भूमिहारों की सबसे ज्यादा 30 फीसदी से भी अधिक आबादी रहती है. इसी वजह से मोकामा को भूमिहारों की राजधानी भी कहा जाता है. इसके अलावा यहां पर 20 फीसदी यादव, 10 फीसदी राजपूत, 20-25 फीसदी अति पिछड़ी जातियां, 16-17 फीसदी दलित और 5 फीसदी मुसलमान रहते हैं. सीट पर भूमिहारों के सियासी दबदबे को यादव समुदाय से ही चुनौती मिलती रही है.
मोकामा सीट का इतिहासभूमिहार बहुल आबादी होने के कारण 1952 से लेकर आज तक मोकामा से केवल भूमिहार जाति के ही प्रत्याशी जीते हैं और विधायक बने हैं. अनंत सिंह भी भूमिहार समाज से आते हैं. यही वजह है कि 20 साल से लगातार चुनाव भी जीतते आ रहे हैं. इससे पहले 1990 में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह जनता दल के टिकट पर मोकामा से विधायक चुने गए थे. 1995 में उन्हें दूसरी बार भी जीत मिली थी. लेकिन 2000 में उन्हें भूमिहार समाज के ही दूसरे बाहूबली नेता सूरजभान सिंह ने शिकस्त दी थी. इन्हीं सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी इस बार राजद से अनंत सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं.

2005 में अनंत सिंह ने पहली बार मोकामा से विधानसभा चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी. इसके बाद लगातार, 2010, 2015 और 2020 में जीतते चले आए. 2015 में वह निर्दलीय लड़े थे तो 2020 में वह राजद के टिकट पर विधायक बने थे. हालांकि 2022 में उन्हें एक मामले में सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई थी. फिर उनकी पत्नी ने मोकामा से उपचुनाव लड़ा और जीत गईं.
दुलारचंद की हत्या के बाद मोकामा की सियासत किस ओर?इस बार अनंत सिंह खुद जेडीयू के टिकट पर मोकामा से चुनाव लड़ रहे हैं. उनके खिलाफ राजद से सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी मैदान में हैं. वहीं जन सुराज ने पीयूष प्रियदर्शी को मोकामा से उतारा है. अनंत सिंह और सूरजभान सिंह, दोनों भूमिहार समुदाय से हैं, इसलिए भूमिहारों के वोट बंटने की संभावना जताई जा रही थी. हालांकि, अनंत सिंह की गिरफ्तारी से गेम बदल गया है. दरअसल, दुलारचंद यादव की शव यात्रा के दौरान उनके समर्थकों ने कई अभद्र टिप्पणियां कीं. नारे लगाए गए. इससे भूमिहार समाज नाराज दिख रहा है. इसके अलावा यात्रा में अनंत सिंह को भी बुरा भला कहा गया. RJD प्रत्याशी वीणा देवी उस यात्रा में शामिल थीं, जहां टिप्पणियां की गईं.
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ऐसे में माना जा रहा है कि भूमिहार समाज गोलबंद हो सकता है, जिसका फायदा अनंत सिंह का मिल सकता है, क्योंकि भूमिहार समाज में उनकी पकड़ ज्यादा मानी जाती है. वहीं, भूमिहारों के लामबंद होने से लड़ाई अगड़ा बनाम पिछड़ा की हो सकती है. ऐसे में यादव समाज भी RJD के साथ लामबंद हो सकता है, जो कि पहले बिखरता हुआ दिख रहा था. दुलारचंद यादव खुद जन सुराज के पक्ष में प्रचार कर रहे थे, जो कि कभी लालू के बेहद करीबी थे. लेकिन, यादव के अलावा धानुक और अन्य ओबीसी जातियां कितना एक साथ आ सकती हैं, इस पर सवाल है. जनसुराज के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी धानुक समाज से आते हैं. वह लड़ाई को अगड़ा बनाम पिछड़ा बनाकर धानुक समाज को साधने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में अब देखना होगा कि हत्याकांड और अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद बदले हालात में मोकामा का सियासी समीकरण किस ओर झुकता है.
वीडियो: अनंत सिंह, सूरजभान... दुलारचंद यादव की हत्या के बाद मोकामा की जनता क्या बोली?



