बिहार चुनाव: 'तेजस्वी प्रण' पर यकीन नहीं, हाइड्रोजन बम फुस्स! महागठबंधन की दुर्गति की वजहें जानें
बिहार चुनाव के रुझानों में एनडीए की सरकार बन रही है. महागठबंधन को बुरी शिकस्त मिली है. गठबंधन के दलों के आपसी कलह और सीट बंटवारे में असमंजस की स्थिति ने उसे नुकसान पहुंचाया है.
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बिहार की चुनावी लड़ाई का नतीजा तकरीबन साफ हो गया है. रुझान अगर नतीजों में बदले तो एनडीए की सरकार बनेगी. चुनाव आयोग की वेबसाइट के आंकड़े देखिए. भाजपा को 94 सीटों पर जीत मिल रही है. जेडीयू को 84 पर. दोनों को मिलाकर जितनी सीटें बनती हैं, वो बहुमत की सीमा रेखा के भी आगे बहुत दूर जा चुकी है. सपना टूटा है विपक्ष का. तेजस्वी यादव का, जो पिता लालू प्रसाद यादव की तरह बिहार का सीएम बनना चाहते हैं. राष्ट्रीय जनता दल का, 2005 के बाद से जिसे सत्ता नसीब ही नहीं हो रही है. 2020 में तो हालत फिर भी ठीक था. 75 सीटें आई थीं. इस बार तो धागा ही खुल गया. 143 सीटों पर लड़ने वाली राष्ट्रीय जनता दल को सिर्फ 25 सीटें मिलती दिख रही हैं. कौन जाने ये भी कम हो जाए.
महागठबंधन के अन्य दलों में कांग्रेस सिर्फ 2 सीटों पर सिमटती दिख रही है. सीपीआई-माले ने पिछली बार 12 सीटें जीती थीं. इस बार तो ऐसा हाल है कि 2 मिल जाए तब भी ठीक. डिप्टी सीएम उम्मीदवार मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी का तो खाता भी नहीं खुला. सीपीएम फिर भी एक सीट पर बढ़त बनाए है.
अब सवाल है कि 20 साल की कथित एंटी-इन्कम्बैंसी का साथ होने के बाद भी महागठबंधन की ये दुर्गति क्यों हुई? आखिर नीतीश-भाजपा का चक्रव्यूह तोड़ने में विपक्ष फिर फेल क्यों हो गया? हारे-जीते लोग अपने-अपने हिसाब से इसका विश्लेषण करेंगे ही. लेकिन, इंडिया टुडे से जुड़े शशि भूषण के अनुसार, फौरी तौर पर देखें तो मोटे-मोटे कुछ कारण नजर आते हैं.
SIR कोई मुद्दा नहीं था5 नवंबर 2025 को जब बिहार में पहले चरण की वोटिंग की तैयारी पूरी हो गई थी, तब ‘हाइड्रोजन बम’ के नाम पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दावा किया कि हरियाणा चुनाव में 25 लाख वोटों की हेराफेरी हुई है. चुनाव आयोग और भाजपा पर आरोप लगाते हुए वे ये भी बोले कि बिहार के चुनाव में भी यही होगा. इससे पहले बिहार के विशेष सघन पुनरीक्षण यानी SIR की चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर भी उन्होंने सवाल उठाया था.
वोट चोरी को मुद्दा बनाकर 17 अगस्त 2025 को उन्होंने बिहार के सासाराम से वोटर अधिकार यात्रा भी निकाली. जो 1 सितंबर 2025 को 1300 किमी चलकर 16 दिन में पटना के गांधी मैदान में खत्म हुई. आरजेडी ने इसमें कांग्रेस का साथ दिया था. तेजस्वी इस मुद्दे पर राहुल गांधी के पीछे चलने लगे.
लेकिन दोनों ही पार्टियां मिलकर SIR को बिहार चुनाव में मुद्दा नहीं बना पाईं. उल्टे जब इसके कथित ‘नुकसान’ का आभास हुआ तो कांग्रेस ने अपना अभियान मद्धम कर लिया. तेजस्वी भी इससे बाहर आने के लिए 16 सितंबर 2025 से बिहार अधिकार यात्रा निकालने लगे. हालांकि, ये सारी कवायदें धरी की धरी रह गईं. चुनाव के रुझानों से लगता है कि जनता ने इसे एकदम गंभीरता से नहीं लिया और यह दांव महागठबंधन पर उल्टा ही पड़ गया.
तेजस्वी के चुनावी वादे'तेजस्वी प्रण' महागठबंधन के घोषणा पत्र का नाम था. समस्या सिर्फ ये नहीं थी कि इस घोषणा पत्र से महागठबंधन का आरजेडी-सेंट्रिक व्यवहार उजागर होता था और बाकी के दल मद्धम पड़ते दिखते थे. समस्या बड़ी ये थी कि इसमें व्यवहारिक वादे नहीं किए गए थे. घोषणा पत्र में तेजस्वी का पूरा जोर नौकरी देने पर था. वह भी हर घर में सरकारी नौकरी. लोगों ने कहा कि इतनी तो सरकारी नौकरियां हैं ही नहीं, जितनी देने का वादा तेजस्वी कर रहे हैं. लोगों ने ‘ब्लूप्रिंट’ मांगना शुरू किया कि कैसे करेंगे? तेजस्वी इस मांग को टालते रहे. कहते रहे कि जल्दी ही वह पूरा खाका देंगे कि कैसे हर घर में सरकारी नौकरी मिलेगी. लेकिन चुनाव बीत गया. अब तक वो ब्लूप्रिंट नहीं आया. ऐसे वादों ने आरजेडी की गंभीरता को हल्का किया.
'फ्रेंडली फाइट' नहीं रहा 'राइट'सीट शेयरिंग पर कलह ने महागठबंधन की इमेज खूब खराब की. चुनाव नजदीक आ गए लेकिन सीट बंटवारे पर सहमति न बनने की वजह से गठबंधन के दलों ने एक दूसरे के खिलाफ ही उम्मीदवार खड़े कर दिए. वैशाली, सिकंदरा, कहलगांव, सुल्तानगंज, नरकटियागंज और वारिसलीगंज की सीटों पर राजद और कांग्रेस के कार्यकर्ता आमने-सामने आ गए. बछवाड़ा, राजापाकर, बिहार शरीफ और करघर में लेफ्ट पार्टी और कांग्रेस ने एक दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी खड़े कर दिए. जनता में कन्फ्यूजन क्रिएट हुआ और इससे महागठबंधन को बड़ा घाटा हो गया.
शशिभूषण के मुताबिक, इसके अलावा महागठबंधन के घटक दलों के बीच तालमेल में काफी कमी देखी गई. सीट बंटवारे में जो हुआ सो हुआ. चुनाव प्रचार के दौरान भी दलों के बीच वैसी एकता नहीं दिखी, जैसी दिखनी चाहिए थी.
इसके अलावा, राष्ट्रीय जनता दल के यादव समर्थकों का एग्रेशन भी एक कारक रहा कि बहुत से पिछड़ा और दलित समाज के वोटर महागठबंधन से दूर हो गए. इसका फायदा एनडीए को मिला.
वीडियो: बिहार चुनाव 2025: रुझानों में पिछड़े तेजस्वी तो कौन सा वीडियो वायरल हो गया, राघोपुर से क्या बोले थे?


