The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Election
  • Bihar assembly election chirag paswan create suspense on seat sharing in nda

चिराग पासवान ने बीजेपी-जदयू को 9 के फेर में फंसाया, बात तो हुई मगर बनी नहीं!

Chirag Paswan अपने पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान की पुण्यतिथि मनाने के लिए पटना में हैं. बीजेपी के चुनाव प्रभारी और राज्य प्रभारी Dharmendra Pradhan और Vinod Tawde भी पटना पहुंच चुके हैं. ऐसे में आज (8 अक्टूबर) को चिराग के साथ सीट शेयरिंग पर आखिरी फैसला हो सकता है.

Advertisement
chirag paswan bjp jdu nitish kumar narendra modi
चिराग पासवान चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी की परफॉर्मेंस का सम्मान हो. (इंडिया टुडे)
pic
आनंद कुमार
8 अक्तूबर 2025 (Published: 02:14 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

6 नवंबर और 11  नवंबर, इन दोनों तारीख पर बिहार में चुनाव होंगे. लेकिन एनडीए गठबंधन में ‘ऑल इज नॉट वेल’ जैसी खबरें हैं. चिराग पासवान के तेवरों ने सत्तारूढ़ गठबंधन में सीट शेयरिंग का मामला उलझा दिया है. बीजेपी के नेता LJP(R) के मुखिया को मनाने में जुटे हैं. लेकिन उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए जो संकेत दिए हैं उससे बीजेपी-जदयू की मुश्किलें बढ़ने वाली है.

चिराग पासवान ने अपने पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को पुण्यतिथि पर याद करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा,  

पापा हमेशा कहा करते थे -जुर्म करो मत, जुर्म सहो मत. जीना है तो मरना सीखो, कदम-कदम पर लड़ना सीखो.

इस मैसेज की टाइमिंग बहुत अहम है. इसलिए पोस्ट का राजनीतिक मतलब भी निकाला जाने लगा. चिराग जो बात इशारों में कह रहे हैं उनकी पार्टी के यूथ प्रदेश अध्यक्ष वेद प्रकाश पांडे ने साफ लफ्जों में कहा. उन्होंने एक्स पर लिखा, 

चिराग फैक्टर बिहार की दिशा तय करता है. और इसका प्रमाण हमारा 100 प्रतिशत स्ट्राइक रेट है. अकेले लड़ने की हिम्मत है. अकेले लड़ कर 137 सीटों पर 6 प्रतिशत से ज्यादा मत लाए.

पसंद की सीटों पर मामला फंस रहा है

यानी चिराग किसी भी राजनीतिक परिस्थिति के लिए तैयार हैं. अब सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘हनुमान’ के नाराजगी की वजह क्या है. 7 अक्टूबर को बीजेपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और बीजेपी महासचिव विनोद तावड़े ने दिल्ली में उनसे मुलाकात की. बताया जा रहा है कि इस दौरान चिराग को 25 सीटों का ऑफर दिया गया. और संख्या को लेकर वो संतुष्ट भी दिखे. लेकिन गरारी पसंद की सीटों को लेकर फंसी है. सीनियर पत्रकार मनोज मुकुल के मुताबिक चिराग पासवान उन सीटों की लिस्ट लिए बैठे हैं, जिन पर बीजेपी अपना उम्मीदवार तय कर चुकी है.

धर्मेंद्र प्रधान और विनोद तावड़े के साथ मीटिंग में चिराग ने 9 ऐसी सीटों की लिस्ट थमा दी है, जहां से जदयू और बीजेपी की दावेदारी है. उन्होंने वैशाली जिले की लालगंज, महुआ और राजापाकड़ विधानसभा सीट पर दावेदारी की है. वहीं बेगुसराय जिले की मटिहानी और साहेबपुर कमाल सीट, बक्सर जिले की ब्रह्मपुर सीट, पश्चिमी चंपारण जिले की गोविंदगंज सीट और शेखपुरा विधानसभा सीट पर भी अपना दावा पेश किया है.

इनमें से लालगंज, महुआ, ब्रह्मपुर, मटिहानी और गोविंदगंज सीट को लेकर चिराग पासवान समझौते के मूड में नहीं दिख रहे. लालगंज विधानसभा सीट से चिराग वैशाली के पूर्व सांसद रामा सिंह को लड़ाना चाहते हैं. वहीं लोजपा (रामविलास) के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हुलास पांडेय के लिए ब्रह्मपुर , पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी के लिए गोविंदगंज और अपने विश्वासपात्र संजय कुमार सिंह के लिए महुआ सीट चाहते हैं. 

पिछले विधानसभा चुनाव में मटिहानी एक मात्र ऐसी सीट थी जो चिराग पासवान की पार्टी ने जीती. हालांकि उनके विधायक राजकुमार सिंह ने बाद में जदयू जॉइन कर लिया. अब चिराग एक बार फिर से इस सीट पर दावेदारी कर रहे हैं. जबकि जदयू सीटिंग विधायक को चुनाव लड़ाना चाहती है. जहां तक लालगंज और गोविंदगंज विधानसभा सीट की बात करें तो यहां से बीजेपी के सिटिंग विधायक है. जबकि महुआ से पिछली बार जदयू की आफशां परवीन दूसरे नंबर पर रही थीं. और ब्रह्मपुर से चिराग की पार्टी से हुलास पांडेय दूसरे स्थान पर रहे थे.

चिराग पासवान
7 अक्टूबर को धर्मेंद्र प्रधान और विनोद तावड़े ने चिराग पासवान से मुलाकात की.
दबाव की राजनीति कर रहे चिराग

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो चिराग पासवान गठबंधन की राजनीति के दांव पेंच में सिद्धहस्त हो चुके हैं. और अपने पिता की राजनीतिक विरासत को भी संभाल लिया है. करीब पांच प्रतिशत पासवान वोटर उनके पीछे लामबंद हैं. वहीं युवा वोटर्स में भी उनकी एक अपील है. मनोज मुकुल बताते हैं,

 अभी चिराग पासवान ने जो स्टैंड लिया है उसकी स्क्रिप्ट छह महीने पहले से लिखी जा रही है. उनके समर्थकों की तरफ से विधानसभा चुनाव में चिराग की भूमिका को लेकर माहौल बनाया जा रहा था. उनके जीजा अरुण भारती तो उनको मुख्यमंत्री फेस तक बता चुके हैं. सारी कवायद बीजेपी और एनडीए पर प्रेशर बनाकर अपनी ज्यादा से ज्यादा मांगें मनवाने की है.

एनडीए गठबंधन में सीट बंटवारे के प्रकरण से जदयू ने अपने को अलग कर लिया है. उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और चिराग पासवान से निपटने की जिम्मेदारी बीजेपी के कंधे पर है. 7 अक्टूबर को पहली बार बीजेपी के बड़े नेताओं ने चिराग के साथ वन टू वन बात की. बातचीत में चिराग ने अपनी डिमांड सामने रखी. अब गेंद बीजेपी के पाले में है कि वो चिराग की मांगों के सामने कितना झुकती है.

चिराग पासवान की पार्टी के फिलहाल पांच सांसद हैं. एक संसदीय क्षेत्र में औसतन पांच से छह विधानसभा सीट होती है. इस हिसाब से चिराग ने 30 सीटों की लिस्ट तैयार की थी. मगर मसला कुल सीट से ज्यादा पसंद की सीटों पर फंसा है.

ये भी पढ़ें - क्या रामविलास पासवान वाली पॉलिटिक्स कर रहे हैं चिराग पासवान?

पटना में आज होगा फैसला!

चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान की पुण्यतिथि मनाने के लिए पटना में हैं. बीजेपी के चुनाव प्रभारी और राज्य प्रभारी विनोद तावड़े और धर्मेंद्र प्रधान भी पटना पहुंच चुके हैं. ऐसे में आज (8 अक्टूबर) को चिराग के साथ सीट शेयरिंग पर आखिरी फैसला हो सकता है. मनोज मुकुल का मानना है कि जिन सीटों पर बात फंस रही है उस पर बीच का रास्ता निकाला जा सकता है. यानी कुछ सीटों पर बीजेपी और जदयू पीछे हट सकती है. और कुछ सीटों पर चिराग को दावेदारी छोड़नी होगी. इसके बदले उनको दूसरी सीट ऑफर की जा सकती है. वहीं कुछ सीटों पर बीजेपी उनके प्रत्याशियों को अपना सिंबल दे सकती है.

एनडीए गठबंधन की छीछालेदर 

चिराग पासवान और बीजेपी की बातचीत का नतीजा चाहे जो निकले लेकिन एक बात साफ है कि इस पूरे एपिसोड ने एनडीए गठबंधन की छीछालेदर करवा दी है. बिहार बीजेपी की ओर से कल तक महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर तंज किया जा रहा था. लेकिन अब उनकी कलई खुल गई है. मैसेज साफ है कि चीजें सिर्फ बीजेपी की शर्तों पर तय नहीं होगी. चिराग के हितों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. मनोज मुकुल बताते हैं,

 इससे उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी का भी मन बढ़ेगा. बहुत जल्दी अगर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने दखल देकर मामले में सुलह नहीं कराया तो चीजें और बिगड़ सकती है. स्थिति 2015 की तरह हो सकती है. जब नॉमिनेशन के समय तक एनडीए गठबंधन में प्रत्याशी तय नहीं हो पाए थे. और लड़ाई खुलकर कैमरे पर सामने आ गई थी. 

गठबंधन से बाहर जाएंगे चिराग?

चिराग पासवान ने जिस तरह से बागी तेवर अपनाए हैं. उनके गठबंधन से बाहर जाने की बातें भी चल रही हैं. लेकिन ये फैसला चिराग लिए आसान नहीं रहेगा. पिछली बार चुनाव से ठीक पहले पिता रामविलास पासवान का निधन हुआ था. पार्टी तोड़ दी गई थी. अकेले सांसद बचे थे. पार्टी के पास खोने को कुछ नहीं था. पिता की मृत्यु को लेकर सहानुभूति भी थी. इसलिए अकेले चुनाव में उतर गए. जीत तो एक ही सीट पर मिली लेकिन कई सीटों पर जदयू को नुकसान पहुंचाया.

इस बार परिस्थितियां अलग हैं. बीजेपी और जदयू के बीच अच्छी अंडरस्टैंडिंग दिख रही है. चिराग केंद्रीय मंत्री हैं. लोकसभा चुनाव में पार्टी के पांच सांसद लड़े, पांचो जीते. यानी 100 परसेंट स्ट्राइक रेट. इसमें भी बीजेपी और जदयू के समर्थकों की अहम भूमिका रही है. 

राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो हवा का रुख भी एनडीए के खिलाफ नहीं है. और महागठबंधन में भी सीटों के लिए मारामारी चल रही है. वहां पहले से काफी दावेदार हैं. जो एनडीए में मिल रहा है, उससे ज्यादा की गारंटी वहां भी नहीं मिलने वाली. ऐसे में मौसम वैज्ञानिक माने जाने वाले रामविलास पासवान के बेटे और राजनीतिक उत्तराधिकारी एनडीए से अलग होने का जोखिम लेंगे इसकी संभावना कम ही दिख रही है. फिलहाल सारी लड़ाई अपनी ज्यादा से ज्यादा मांग मनवाने की ही दिख रही है.

वीडियो: राजधानी: बिहार चुनाव से पहले चिराग पासवान और प्रशांत किशोर की नजदीकियां?

Advertisement

Advertisement

()