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बैटल ऑफ बारामती: शरद पवार को 'चेक एंड मेट' करने की कवायद में है BJP?

क्या Amit Shah के कहने पर Ajit Pawar ने अपनी पत्नी सुनेत्रा को बारामती से चुनाव में उतारा है?

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Sharad Pawar
बारामती सीट पर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार चुनाव लड़ रही हैं. (फोटो- इंडिया टुडे)
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22 अप्रैल 2024
Updated: 22 अप्रैल 2024 24:39 IST
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साल 1960. महाराष्ट्र राज्य बनने से पहले बॉम्बे स्टेट के नाम से जाना था. जिस शरद पवार को आज राजनीति का ‘भीष्म पितामह’ कहा जाता है, वो तब सियासत के नए-नए रंगरूट थे. उम्र मात्र 20 बरस. पवार कांग्रेस पार्टी के सदस्य और पदाधिकारी थे. पुणे शहर में युवा कांग्रेस के सचिव के रूप में पार्टी का कामकाज देख रहे थे. तभी बारामती के सांसद केशवराव जेधे का निधन हो गया. लोकसभा चुनाव में दो साल का वक्त था, इसलिए उपचुनाव हुए. शरद पवार के बड़े भाई वसंतराव पवार ने उपचुनाव लड़ने का एलान कर दिया. लेकिन वसंतराव कांग्रेस के टिकट पर नहीं, पार्टी के खिलाफ मैदान में थे. उन्हें 'पीज़ेंट एंड वर्कर्स पार्टी' ने टिकट दिया था. कांग्रेस की तरफ से उम्मीदवार शरद पवार तो नहीं थे, पर बारामती में ये पहला मौका था जब पवार Vs पवार का मुकाबला हुआ. चुनाव में शरद पवार ने बड़े भाई का नहीं, अपनी पार्टी कांग्रेस का प्रचार किया. पवार के भाई चुनाव हार गए, कांग्रेस जीत गई.

64 साल बाद बारामती में एक बार फिर पवार Vs पवार होने जा रहा है. शरद पवार इस बार भी मैदान में नहीं है. दांव पर उनकी साख है. पवार की बेटी सुप्रिया सुले, जो बारामती से मौजूदा सांसद हैं, एक बार फिर मैदान में हैं. और दूसरी तरफ हैं शरद पवार के भतीजे और NCP (जिस पार्टी को शरद पवार ने बनाया था) के अध्यक्ष अजित पवार. मैदान में अजित भी नहीं हैं. उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार हैं. लेकिन साफ है कि ये लड़ाई सुप्रिया सुले बनाम सुनेत्रा पवार से कहीं ज्यादा, शरद पवार Vs अजित पवार है.

पवार का बारामती किला

1960 में बारामती में शरद पवार ने कांग्रेस के लिए मेहनत की. भाई को हरवाया. पार्टी ने 1967 में विधानसभा चुनाव में इनाम दिया. 27 साल के पवार पहली बार बारामती विधानसभा सीट से MLA बने. तब से आज तक विधानसभा की ये सीट पवार परिवार के पास ही है. 1967 से 1991 तक शरद पवार ही यहां से विधायक रहे. इस बीच उन्होंने 1984 में बारामती में लोकसभा चुनाव लड़ा जिसमें जीत मिली. 1991 में उपचुनाव लड़ा, तब भी जीत मिली. 

शरद पवार. (फाइल फोटो- PTI)

1991 में अजित पवार ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा. तब से आजतक वो बारामती से विधायक हैं. 1991 के बाद शरद पवार ने बारामती को एक तरह से अजित पवार को सौंप दिया और खुद राष्ट्रीय राजनीति का रुख कर लिया. 1996 में शरद पवार ने बारामती से लोकसभा चुनाव लड़ा. 96 से 2009 तक वो इसी सीट से सांसद रहे. 2009 में उन्होंने बारामती लोकसभा सीट को अपनी बेटी सुप्रिया सुले को सौंप दिया. तब से सुप्रिया बारामती की सांसद हैं.

इस पूरी क्रोनोलॉजी में एक बात साफ है. बारामती में पवार परिवार का एकक्षत्र राज है. 1967 से शुरू हुआ ये दबदबा आज तक कायम है. पर जितनी अजित पवार की उम्र है उतने सालों का राजनीतिक तजुर्बा रखने वाले शरद पवार इन दिनों भतीजे से ही परेशान हैं. पहले वो पार्टी जिसकी शरद पवार ने स्थापना की, वो हाथ से गई और अब दांव पर साख है.

'पवार Vs पवार' में कौन भारी?

अजित पवार के NDA में शामिल होने के बाद बीजेपी शरद पवार के खिलाफ फ्रंट फुट पर खेल रही है. शरद पवार पर पार्टी के पिछले हमलों को छोड़ भी दें तो इस चुनाव में अजित पवार के साथ-साथ बीजेपी ने भी पूरी ताकत झोंकी हुई है. इतना ही नहीं, बारामती में सुनेत्रा पवार के प्रचार के लिए संघ (RSS) ने भी टेंट गाड़ दिया है. 29 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुनेत्रा पवार के लिए रैली करने पुणे जा रहे हैं. यानी संघ से लेकर पार्टी तक और कार्यकर्ता से लेकर आलाकमान, बारामती के लिए जुटा पड़ा है.

ननद-भाभी की इस सियासी लड़ाई ने बारामती को लोकसभा चुनाव में सबसे हॉट सीटों में एक बना दिया है. पर एक कहानी तो ये भी चल रही है कि ऐसा अपने आप नहीं हुआ है, इसके पीछे सोची समझी रणनीति है. कहा तो ये भी जा रहा है कि अमित शाह ने रणनीति के तहत अजित पवार की पत्नी को शरद पवार की बेटी के खिलाफ चुनाव में उतरवाया है. हाल में एक इंटरव्यू के दौरान जब इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई ने शरद पवार से पूछा कि “ऐसा कहा जा रहा है कि अमित शाह के इशारे पर सुनेत्रा पवार को बारामती से उतारा गया है.” तो उन्होंने जवाब दिया-"ऐसा मैंने भी सुना है."

इस मसले पर हमने राजदीप सरदेसाई से बात भी की. वो कहते हैं,

“बीजेपी शरद पवार के किले को पूरी तरह से ढहाना चाहती है. सीधे पवार को घेरना मुश्किल है इसलिए निशाने पर उनकी बेटी है. बेटी अगर चुनाव हारती है तो साख शरद पवार की जाएगी.”

राजदीप जो बात कह रहे हैं, वही सुप्रिया सुले भी कह चुकी हैं. 7 अप्रैल को नवी मुंबई के कोपरखैरणे में महा विकास अघाड़ी की रैली में सुले ने कहा था,

“जब सत्तारूढ़ दल के नेता बारामती आते हैं, तो उनका एक सूत्री एजेंडा शरद पवार को खत्म करना होता है.”

सुप्रिया सुले. (फाइल फोटो- PTI)

तो सवाल ये है कि क्या वाकई शरद पवार की सियासत को बारामती में खतरा है. पुणे के अंदर 6 लोकसभा सीट आती हैं. खड़गवासला, भोर, पुरंदर, बारामती, इंदापुर और दौंड. इनमें से खड़गवासला और दौंड बीजेपी के पास है. बारामती और इंदापुर NCP के पास हैं. पुरंदर और भोर कांग्रेस के पास हैं. खड़गवासला में बीजेपी की अच्छी पकड़ है और बारामती में अजित पवार की. इसके अलावा दौंड और इंदापुर में NDA के विधायक हैं. यानी ऊपर से देखने पर सुनेत्रा पवार का पलड़ा भारी दिखता है.

लेकिन जमीन पर हवा किस ओर बह रही है, ये जानने के लिए हमने आजतक से जुड़े बारामती के स्थानीय पत्रकार नावेद पठान से बात की. नावेद कहते हैं कि मौजूदा हालात देखकर ये कहा जा सकता है कि अजित पवार बीस साबित हो सकते हैं. क्योंकि बारामती में अजित पवार की अच्छी पकड़ है. वो तीन दशक से ज्यादा से बारामती में एक्टिव हैं. नावेद के मुताबिक ये कहा जा सकता है कि अजित पवार को फिलहाल बारामती में एज तो है.

नावेद पठान इलाके की राजनीति का एक किस्सा सुनाते हुए कहते हैं,

“बेटी के लिए वोट जुटाने के लिए शरद पवार हर संभव कोशिश कर रहे हैं. इसलिए वो विधायकों से भी मिल रहे हैं. हाल ही उन्होंने भोर विधानसभा के MLA संग्राम थोपटे से मुलाकात की. थोपटे ने पवार को समर्थन का भरोसा तो दिया. लेकिन बाद में खबर आई कि थोपटे मुकर भी सकते हैं. दरअसल, यहां थोपटे और शरद पवार की बरसों पुरानी अदावत है. संग्राम थोपटे के पिता अनंतराव थोपटे महाराष्ट्र में बड़े नेता रहे हैं और एक वक्त ऐसा आया था जब उनका नाम मुख्यमंत्री की रेस में था. तब शरद पवार ने अनंतराव थोपटे के नाम पर अड़ंगा लगाया था और मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया. उनके बेटे के लिए इसका बदला लेने का सही वक्त हो सकता है.”

यानी जो कांग्रेस जिसके साथ शरद पवार का गठबंधन भी है, अगर उसके विधायक ही गच्चा दे देंगे तो उनके लिए मुश्किल स्थिति पैदा हो सकती है.

‘बैटल ऑफ बारामती’ पर राजदीप सरदेसाई कहते हैं,

“शरद पवार लंबे अरसे पहले राज्य की राजनीति अजित पवार को सौंप चुके हैं. उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की राजनीति की. बारामती विधानसभा सीट पर भी उनके उत्तराधिकारी अजित पवार बने. पवार ने महाराष्ट्र में जमीनी राजनीति की. और बारामती में तो उनकी मजबूत पकड़ है. साथ ही इस सीट पर शहरी वोटर और युवा वोटर बड़ा असर डाल सकते हैं, जो बीजेपी के साथ हैं और अजित पवार के साथ भी हैं.”

सीनियर जनर्लिस्ट और महाराष्ट्र की राजनीति पर ‘चेकमेट’ किताब लिखने वाले सुधीर सूर्यवंशी कुछ हद तक राजदीप से सहमत नज़र आते हैं. सुधीर भी कहते हैं कि बारामती से शरद पवार लंबे समय से दूर हैं. अजित पवार के राजनीतिक रूप से परिपक्व होने के बाद बारामती में शरद पवार नहीं अजित ही मौजूद थे. शरद पवार राष्ट्रीय राजनीति में आ गए. और बारामती समेत महाराष्ट्र की जमीनी राजनीति को अजित पवार संभालने लगे.

सुधीर कहते हैं कि आज की तारीख में बारामती के जमीनी कार्यकर्ता का कनेक्ट शरद पवार से ज्यादा अजित से है. क्योंकि उनके पास पावर थी, जिसका इस्तेमाल करके उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओं और अपने लोगों को फायदा पहुंचाया. सुधीर यहां 'लाभार्थी' शब्द का इस्तेमाल करते हैं. वो कहते हैं कि जिन्होंने अजित पवार से लाभ लिया है, वही लाभार्थी आज उनके लिए प्लस पॉइंट हैं.

पत्नी सुनेत्रा पवार के साथ अजित पवार. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे)

हालांकि, सुधीर यहां इससे इतर भी एक महत्वपूर्ण बात को रेखांकित करते हैं. वो कहते हैं,

“मैथेमेटिक्स के हिसाब से अजित पवार बारामती में ज्यादा मजबूत नज़र आ रहे हैं. लेकिन राजनीति में पार पाने के लिए मैथ्स के साथ-साथ केमेस्ट्री भी बहुत जरूरी है. और केमेस्ट्री शरद पवार के साथ ज्यादा नज़र आती है. अजित पवार का बारामती के कार्यकर्ताओं के साथ तो कनेक्ट है. लेकिन बारामती की जनता के साथ शरद पवार का जुड़ाव कम नहीं है. शरद पवार की पकड़ इस क्षेत्र में दशकों से है. जिसे अगर वो चुनाव में भुना पाए तो अजित पवार के लिए मुश्किल हो सकती है.”

महाराष्ट्र की राजनीतिक समेत बारामती में शरद पवार ने जिस स्पेस को खाली किया, उसे अपने भतीजे को भरने का मौका दिया. अजित ने वहां अपनी जगह बनाई. यही वजह है कि शरद पवार को प्रचार में ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है. और बारामती में ज्यादा समय बिताना पड़ रहा है.

शरद पवार के प्रचार को लेकर सुधीर सूर्यवंशी एक और अहम बात बताते हैं. उन्होंने बताया कि बारामती क्षेत्र में कुछ राजघराने भी हैं, जो किसी ज़माने में सामाजिक और राजनीतिक तौर पर काफी मज़बूत हुआ करते थे. लेकिन शरद पवार के 'उदय' के बाद इन रजवाड़ों को किनारे कर दिया गया. सुधीर कहते हैं कि इस बार चुनाव प्रचार में शरद पवार उन रजवाड़ों से भी मिल रहे हैं और उन्हें सम्मान दे रहे हैं. सुधीर के मुताबिक, छोटे-छोटे इलाकों में अपना प्रभुत्व रखने वाले ये राजघराने, टफ फाइट की स्थिति में नतीजों पर असर डाल सकते हैं.

वीडियो: शरद पवार के हाथ से निकली NCP, सुप्रिया सुले बोल गईं- 'अदृश्य शक्ति ये सब कर रही है...'

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