गिरते-गिरते डॉलर के मुकाबले 90 के पास पहुंचा रुपया, अब क्या करेगा RBI?
कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले यह 89.79 तक लुढ़क गया. हालांकि सोमवार को रुपया 8 पैसे गिरकर 89.53 प्रति डॉलर पर बंद हुआ.
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डॉलर के मुकाबले रुपया इतिहास के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक सोमवार 1 दिसंबर को कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 89.79 तक लुढ़क गया. दिन खत्म होने तक रुपया 89.53 प्रति डॉलर पर बंद हुआ.
इंटरबैंक फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में सोमवार को रुपया 89.45 पर खुला. इसके बाद कारोबार के दौरान अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89.79 के रिकॉर्ड निचले स्तर तक गिर गया. यह गिरावट पिछले कारोबारी दिन के मुकाबले 34 पैसे कम है. शुक्रवार 28 नवंबर को डॉलर के मुकाबले रुपया नौ पैसे गिरकर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89.45 पर बंद हुआ था. वहीं 21 नवंबर को, रुपया 98 पैसे गिरकर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89.66 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ था.
रुपया क्यों गिर रहा है?
रुपये पर दबाव के कई कारण बताए जा रहे हैं. पीटीआई की रिपोर्ट बताती है कि विदेशी मुद्रा कारोबारियों का कहना है कि डॉलर में मजबूती और इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी की वजह से रुपये पर दबाव पड़ा है. भारत बड़ी मात्रा में कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है. इसका भुगतान डॉलर में होता है. इसलिए ये डॉलर खरीदने के लिए भारत को पहले के मुकाबले अब ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ेंगे. इसलिए रुपये पर दबाव बढ़ गया है.
कई दूसरे आयातक हैं जोकि अपना सामान विदेश से मंगाते हैं. ये भी खूब डॉलर खरीद रहे हैं. जैसे कि सोने के व्यापारी भी विदेशों से सोना खरीदते हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भुगतान भी डॉलर में होता है. इन सब कारोबारियों की बढ़ती मांग के कारण भी रुपया गिरा है. कारोबारियों का कहना है कि कंपनियों और केंद्र सरकार को जो अंतरराष्ट्रीय कर्ज चुकाने होते हैं, वे भी डॉलर में चुकाए जाते हैं. इससे भी डॉलर की मांग बढ़ गई.
जानकारों का कहना है कि रुपये में जारी गिरावट का एक और बड़ा कारण ये है कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं. फिनरेक्स ट्रेज़री एडवाइजर्स LLP के ट्रेजरी हेड और एग्जिक्युटिव डायरेक्टर अनिल कुमार भंसाली ने पीटीआई से कहा, “एफपीआई यानी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक बड़े पैमाने पर डॉलर खरीद रहे हैं. जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारतीय शेयर बेचकर अपना पैसा वापस विदेश ले जाते हैं, तो वे डॉलर खरीदते हैं, जिससे रुपये की वैल्यू गिरती है.
कई कंपनियों में हाई वैल्यूएशन होने के कारण निवेशकों ने अपने शेयर बेचे, जिससे बाहर पैसा गया और डॉलर की मांग बढ़ी. हाई वैल्यूएशन का मतलब है कि शेयर अपनी असली कीमत से ज़्यादा दाम पर ट्रेड हो रहा है. भंसाली ने आगे कहा, "भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर तनाव बना हुआ है क्योंकि अब तक डील फाइनल नहीं हो पाई है.”
रुपया गिर रहा है, लेकिन RBI ने खुले बाजार में डॉलर बेचकर रुपये को थामने का प्रयास नहीं किया है. जानकार कहते हैं कि शायद आरबीआई की रणनीति बाज़ार को नेचुरली एडजस्ट करने की लग रही ह. आमतौर पर रिजर्व बैंक ऐसा करता है. लेकिन अगर डॉलर के बरक्स रुपया 90 का स्तर तोड़े तो संभवतः रुपये की गिरावट को थामने के लिए आरबीआई कोई कदम उठाए.
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