गाड़ी में स्टेपनी गायब! कार कंपनी को कोसना छोड़िए, इसमें सरकार का भी हाथ है
Spare tyre in Cars: कभी गाड़ी का टायर पंचर हो जाए तो भरोसा रहता था कि स्पेयर है. अब नहीं है. TPMS, रिपेयर किट और ट्यूबलैस टायर के सहारे कार कंपनियां एक्स्ट्रा टायर हटाकर पैसे और स्पेस दोनों बचा रही हैं.
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आजकल कार कंपनियो ने गाड़ियों में स्पेयर टायर देना बंद सा ही कर दिया है. कहें तो ये गायब ही हो गया है. कुछ कारों में आता भी है तो वो एक पतला सा टायर होता है जिसका काम आपको नजदीकी पंचर दुकान पर पहुचाना होता है. माने इस टायर भरोसे आप अपनी यात्रा तो पूरी नहीं कर सकते. अब बाहर से देखने पर ये ऑटो कंपनियों की तरफ से की गई एक कॉस्ट कटिंग लगती है. लेकिन ऐसा है नहीं. कार में से स्पेयर व्हील को स्पेयर (अलग) करने के पीछे सड़क परिवहन मंत्रालय का भी हाथ है.
दरअसल 2020 में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) ने केंद्रीय मोटर व्हीकल रूल्स (CMVR) में संशोधन करते हुए एक नोटिफिकेशन जारी किया. जिसमें कहा गया कि M1 कैटेगरी में आने वाले व्हीकल और N1 कैटेगरी वाली गाड़ियों में स्पेयर टायर देना अनिवार्य नहीं है. बशर्ते वे कुछ सुरक्षा शर्तों को पूरा करते हों. पूरा मामला समझाते हैं.
M1 कैटेगरी मतलब में आठ से कम सीटों वाले पैसेंजर व्हीकल आते हैं, जबकि N1 कैटेगरी में 2.5 टन तक के हल्के गुड्स व्हीकल आते हैं. अब उन शर्तों पर आते हैं. जो स्पेयर टायर न देने के बदले लागू होती है.
# ट्यूबलैस टायर
# टायर प्रेशर मॉनिटरिंग सिस्टम (TPMS)
# टायर रिपेयर किट
अगर कोई कंपनी इन तीनों में से कुछ नहीं देती है, तो उन्हें स्पेयर टायर गाड़ी में देना जरूरी है. अब यह तीन चीजें देने का तर्क भी जान लीजिए.
# ट्यूबलेस टायर- मॉडर्न ट्यूबलेस टायर पुराने ट्यूब-टाइप के टायरों के मुकाबले कहीं ज्यादा टिकाऊ होते हैं. पंचर अगर छोटा हो तो ये कई किलोमीटर तक आसानी से चल भी जाते हैं. रिपेयर करने के लिए भी कोई मशक्कत नहीं करना पड़ती है. खड़ी गाड़ी में ही काम हो जाता है.
# टायर प्रेशर मॉनिटरिंग सिस्टम (TPMS)-TPMS ड्राइवर को पहले ही प्रेशर में कमी के बारे में सचेत कर देता है. आजकल ये कई गाड़ियों में पहले से लगा होता है स्पेशली टॉप मॉडल में. अगर नहीं लगा तो बाहर से खरीद कर भी लगाया जा सकता है.
# टायर रिपेयर किट- इससे छोटे-मोटे पंक्चर को ठीक किया जा सकता है. इसकी वजह से एक्स्ट्रा टायर गाड़ी में रखने की जरूरत नहीं पड़ती है.
ठीक बात लेकिन अब जरा इस सब तामझाम का खर्चा जान लेते हैं. लगभग 5 हजार रुपये में TPMS मिल जाता है. वहीं रिपेयर किट 500 से हजार रुपये में आती है. ट्यूबलैस टायर को इसमें नहीं जोड़ना चाहिए क्योंकि वो तो कई सालों से गाड़ियों में आ ही रहा है. कंपनियां खुद ही ट्यूब वाले टायर नहीं देती हैं. माने कुल खर्च हुआ 6-7 हजार रुपये. कोई बात नहीं 10 हजार पकड़ लेते हैं.
वहीं, स्पेयर टायर की कीमत 20-25 हजार रुपये तक हो सकती है. मतलब ऑटोमेकर्स का पैसा तो बच ही रहा है. स्पेयर टायर हटाने से पीछे यह भी तर्क दिया जाता है कि ऐसा करने से इंडियन व्हीकल स्टैंडर्ड, कई इंटरनेशनल मार्केट जैसे हो जाएंगे. खासकर यूरोप जैसे. यूरोप में लंबे समय से स्पेयर टायर के बिना गाड़ियां चल रही हैं. लेकिन इंडियन सड़कों क्या. सड़के सुधरी हैं मगर अभी यूरोप जैसी नहीं हुई हैं.

गाड़ियों में स्पेयर टायर न देने की कई वजह बताई जाती है. जैसे कि बदलती तकनीक और बेहतर सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर. सड़क की गुणवत्ता में सुधार होने से पंक्चर या टायर फटने की संभावना कम हो गई है. इसके अलावा, एक्स्ट्रा टायर हटाने से बूट स्पेस भी बढ़ जाता है. जिससे इलेक्ट्रिक गाड़ियों में बैटरी के लिए स्पेस बढ़ जाता है. बिना स्पेयर टायर के गाड़ी हल्की भी हो जाती है. जिससे फ्यूल एफिशिएंसी बढ़ती है. ये सभी कारण ऑटोमेकर्स के लिए गाड़ियों में स्पेयर टायर न देने की वजह बनी है. वो बात अलग है कि अभी भी बारिश की दो बूंद पड़ते ही अब भी कई सड़कों को जलमग्न होने में समय नहीं लगता.
‘नो स्पेयर टायर’ पर तर्क-वितर्कइस फैसले के बाद से कई कार कंपनियों ने स्पेयर टायर को एक तरीके से 'नो' बोल दिया है. Maruti Suzuki ने हाल ही में लॉन्च हुई Victoris के सभी वेरिएंट्स से एक्स्ट्रा टायर के वेट को घटा दिया है. Tata Motors ने भी Punch EV, Tiago EV, Harrier और Safari में स्पेयर टायर देना बंद कर दिया है. इन गाड़ियों में TPMS, रिपेयर किट दी जाती है. MG Comet EV एक छोटी गाड़ी है. इसका स्पेस भी लिमिटेड है. इसलिए कंपनी स्पेयर टायर के बजाय टायर सिलेंट जेल, एयर पंप और TPMS देती है. बढ़िया…
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