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फोन देखकर किराया वसूल रहे Ola-Uber वाले? अंदर की कहानी हमने पता लगा ली है

Ola-Uber, iPhone-Android, चार्ज-सरचार्ज, के चक्कर को हम पर छोड़िये. हम पता करने कि कोशिश करेंगे कि वास्तव में ओला आपको ई-गोला पर घुमाने में क्या झोल कर रहा या फिर Uber भी Sober नहीं रहा.

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Recent tests suggest ride-hailing apps are allegedly charging iPhone users more than Android users for similar routes
Ola-Uber का करनामा.
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सूर्यकांत मिश्रा
28 दिसंबर 2024 (Updated: 28 दिसंबर 2024, 11:19 AM IST)
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Ola-Uber एंड्रॉयड और iPhone में अलग-अलग चार्ज वसूल रहे. आइफ़ोन में ज्यादा और एंड्रॉयड में कम. शायद आपको इस खबर की जानकारी होगी. इंस्टावीरों से लेकर रील के रंगीलों ने इसके स्क्रीन शॉट और वीडियो पोस्ट करके आपकी फीड में ट्रैफिक जाम कर रखा है. मतलब, मुआ आइफ़ोन पहले से महंगा, उससे जुड़ी कई सर्विस भी महंगी. मगर अब तो सफर में भी अंग्रेजी के suffer का इंतजाम हो गया. क्या करें? आइफ़ोन छोड़कर एंड्रॉयड में शिफ्ट हो जाएं या फिर हर बार दोस्त के फ़ोन से कैब बुक करें. आप कैब बुक कीजिए मगर आराम की. क्योंकि

Ola-Uber, iPhone-Android, चार्ज-सरचार्ज, के चक्कर को हम पर छोड़िये. हम पता करने कि कोशिश करेंगे कि वास्तव में ओला आपको ई-गोला पर घुमाने में क्या झोल कर रहा या फिर Uber भी Sober नहीं रहा.

चार्ज का चक्कर क्या है?

देसी ओला और विदेशी Uber जब से देश में अपना पहला गियर डाले, तभी से विवादों की सवारी कर रहे हैं. ड्राइवरों की अभद्रता से लेकर अनाप-शनाप किराया कोई नई बात नहीं. मौका देखा नहीं कि किराया स्पीड पकड़ लेता है. छंटाक भर पानी गिरा तो चार्ज बढ़ जाता है. जरा सी रात क्या हुई नहीं कि Surge Pricing लग जाती है. सुबह भले अलसाई रहे लेकिन इनके चार्जेस हमेशा ताजा रहते हैं. चार्ज भले ज्यादा है मगर कारों की क्वालिटी डिस्चार्ज हो रखी है. हालांकि Surge Pricing को लेकर सरकार ने भी इन कंपनियों को चेतावनी दी थी, इसलिए अब इसे रियल टाइम डिमांड, डायनामिक प्राइस कहकर वसूला जाता है. 

आपकी हमारी भी मजबूरी है कि इनके बिना काम भी नहीं चलता. इसलिए एक बात पक्के से जान लीजिए कि कंपनियां अपनी मर्जी से पैसा ले सकती हैं. फिर गाड़ी के मॉडल के नाम पर हो या फिर ट्रैफिक और उपलब्धता के नाम पर. कीमत या किराया तय करने का अधिकार तो कंपनी को ही है. आप कहोगे ठीक है भाई, ले लो किराया मगर भेदभाव क्यों कर रहे. एंड्रॉयड यूजर्स से कम और आईफ़ोन वालों से ज़्यादा.

Ola Uber iPhone
Ola-Uber चार्ज से जुड़ा स्क्रीन शॉट 
जैसा दिख रहा वैसा नहीं है

सोशल मीडिया से लेकर जहां भी आपने चार्ज में अंतर के स्क्रीन शॉट या वीडियो देखे होंगे, वो असली हैं मगर झोल कहीं और है. झोल है यूजर बिहेवियर का. मतलब क़ीमतों में अंतर है लेकिन दोनों तरफ़ से. मतलब, कई जगह एंड्रॉयड में पैसा ज्यादा है और कहीं आइफ़ोन में. एक ही जगह के लिए कई बार आइफ़ोन में किराया एंड्रॉयड के मुकाबले कम है. एंड्रॉयड तो छोड़िये, एक आइफ़ोन से दूसरे आइफ़ोन में भी चार्ज का फ़र्क़ है.

खुल्लम-खुल्ला कहें तो जो आप बंधे ग्राहक हैं तो आपको पैसा ज़्यादा ही लगेगा भले आपका डिवाइस कोई सा भी हो. क्योंकि ऐप आपकी हर एक्टिविटी को ट्रेक करता है. ऐसे ऐप्स के लिए तो आपको ट्रेक करना और भी आसान है क्योंकि लोकेशन से लेकर कॉल लॉग, पेमेंट ऐप्स का एक्सेस इनके पास होता ही है.

अब जो उनको पता है कि आपने तो रोज इनका इस्तेमाल करना ही है तो वसूली चालू. जैसे हमने Uber को चार अलग-अलग फ़ोन में एक ही जगह को एक समय पर चेक किया. एक एंड्रॉयड डिवाइस में 295 रुपये था क्योंकि 75 रुपये का कूपन लगा हुआ था. ऐसा इसलिए क्योंकि इस डिवाइस का यूजर कैब सर्विस कभी-कभार इस्तेमाल करता है.

Ola Uber iPhone
Uber 

इसी जगह के लिए आइफ़ोन में 389 लग रहे थे क्योंकि वो कैब के रेगुलर यूजर हैं. एक और एंड्रॉयड यूजर जो हमेशा कैब लेते हैं, उनको भी 389 ही लग रहे थे. अब मजे की बात, हमारे एक साथी ने Uber ऐप को कई दिनों बाद डाउनलोड किया और उसी जगह के लिए उनको 283 रुपये लग रहे थे. 100 रुपये का कूपन लगा हुआ था. हालांकि Uber ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से किसी भी डिवाइस के बेस पर चार्ज कम ज़्यादा करने से इंकार किया है. Ola में भी यही हाल है. रेगुलर यूजर्स के लिए आइफ़ोन और एंड्रॉयड में चार्ज बराबर दिख रहा.  लेकिन जब ऐसे डिवाइस पर लॉगिन किया जो कम इस्तेमाल करता है तो दाम में 50 रुपये तक की कमी दिखी. ओला ने इस मुद्दे पर अभी तक कुछ नहीं कहा है मगर चेन्नई बेस्ड कैब सर्विस Fasttrack के MD C. Ambigapathy दावा करते हैं कि कंपनियों के लिए फोन हार्डवेयर के बेस पर चार्ज में उठापटक करना संभव है. हालांकि, The Lallantop इस दावे की पुष्टि नहीं करता. 

Ola Uber iPhone
Ola 

कथा सार ये है कि यूजर की आदतों को रीड करके किराया वसूला जा रहा है. यहां ‘आवश्यकता चार्ज की जननी’ है. फैसला आपको ही करना होगा. ऐसे ही आरोप फ़ूड डिलीवरी ऐप्स पर भी लगे हैं. ज़्यादा गहराई में नहीं जाते. पेमेंट्स ऐप्स का ध्यान कीजिए. जब पहली बार डाउनलोड किया था तो कूपन तो छोड़िये, बिजली बिल भी माफ हो गए. मगर अब जब हम डिजिटल पेमेंट पर निर्भर हो गए हैं तो लास्ट कूपन आपको कब मिला था. 

हम हमारी जरूरतों का जरूरत से ज्यादा भुगतान कर रहे. सिंघम बाबा से प्रेरणा लेने की जरूरत है. 

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