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डायबिटीज होने पर किडनी क्यों खराब होने लगती है? कैसे होगी ठीक?

हमारे देश में डायबिटीज़ के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. अब डायबिटीज़ को समय रहते कंट्रोल न किया जाए तो इससे किडनी को भी नुकसान पहुंच सकता है.

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what is diabetic kidney disease its symptoms and treatment
डायबिटीज़ कंट्रोल न की जाए तो किडनी की बीमारी होना तय है.
30 अप्रैल 2024
Updated: 30 अप्रैल 2024 15:34 IST
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भारत को 'डायबिटीज कैपिटल ऑफ़ द वर्ल्ड' कहा जाता है. यानी हमारे देश में डायबिटीज के मामले बहुत ज़्यादा हैं. भारत की एक बड़ी आबादी इससे परेशान है. डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जिसका असर आपके हर अंग पर पड़ता है. अगर डायबिटीज को समय रहते कंट्रोल न किया गया, तो ज़्यादातर मामलों में किडनी की बीमारी होना तय है. कई बार तो किडनी फेल (Diabetes Kidney Failure) होने तक की नौबत आ जाती है.

अब सवाल उठता है, ऐसा क्यों? डायबिटीज का असर किडनी पर क्यों पड़ता है? दरअसल, जब खून में शुगर की मात्रा बढ़ने लगती है तो इससे हमारी किडनी में मौजूद खून की नालियों को नुकसान पहुंचता है. वो ठीक तरह काम नहीं कर पातीं. इससे किडनी को नुकसान पहुंचता है. लंबे समय तक ऐसा रहने से डायबिटिक किडनी डिजीज हो जाती है. इसलिए अगर आपको डायबिटीज है, तो ये जानकारी आपके बहुत आम आएगी. आज डॉक्टर से जानेंगे कि डायबिटिक किडनी डिजीज क्या है? इसके लक्षण क्या होते हैं? साथ ही जानेंगे, इससे बचाव और इलाज कैसे किया जा सकता है?

डायबिटिक किडनी डिजीज क्या है?

ये हमें बताया डॉ. मोहित खिरबत ने. 

डॉ. मोहित खिरबत, कंसल्टेंट, नेफ्रोलॉजी, सीके बिड़ला हॉस्पिटल, गुरुग्राम

क्रोनिक किडनी डिज़ीज़ बहुत आम समस्या है. करीब 10 फ़ीसदी लोगों में यह दिक्कत होती है. जब किडनी की बीमारी को तीन महीने या उससे ज़्यादा का समय हो जाता है, तब उसे क्रोनिक किडनी डिज़ीज़ कहा जाता है. किडनी की बीमारी का सबसे आम कारण डायबिटीज़ है. अगर डायबिटीज़ का समय पर ठीक से इलाज न किया जाए. उसका डायग्नोसिस न किया गया हो या उसपर ध्यान न दिया जाए, तब अक्सर 8 से 10 साल बाद डायबिटीज़ के कारण किडनी पर असर पड़ने लगता है. इसे डायबिटिक किडनी डिज़ीज़ या डायबिटिक नेफ्रोपैथी कहते हैं. 

लक्षण

शुरू-शुरू में इसका कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है. फिर टेस्टिंग में यूरिन में प्रोटीन आ सकता है, इसे माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया कहते हैं. जैसे-जैसे समय बीतता है, प्रोटीन की मात्रा बढ़ने लगती है. पैरों में सूजन शुरू हो जाती है. बाद में क्रिएटिनिन भी बढ़ने लगता है. क्रिएटिनिन शरीर में पाया जाने वाला एक तरह का वेस्ट प्रोडक्ट है. यह खून में पाया जाता है. इसका प्रोडक्शन किडनी द्वारा होता है. यूरिन में प्रोटीन और क्रिएटिनिन की मात्रा बहुत ज़्यादा होने पर इसे रिवर्स करना मुमकिन नहीं होता. हालांकि, डायबिटीज़ का डायग्नोसिस होने पर इसका सही से इलाज किया जाए. ब्लड शुगर लेवल और ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रखा जाए, तब ऐसा हो सकता है कि डायबिटीज़ कम होने की वजह से किडनी की दिक्कत न हो. 

डायबिटिक नेफ्रोपैथी का बचाव तभी हो सकता है जब डायबिटीज़ कंट्रोल में होगी
बचाव और इलाज

इसमें बचाव ही इलाज है. अगर डायबिटीज़ का ठीक से इलाज हो तो डायबिटिक किडनी डिज़ीज़ से बचा जा सकता है. अगर किसी को डायबिटिक किडनी डिज़ीज हो जाती है, तब भी डायबिटीज़ को अच्छे से कंट्रोल करना होगा. मरीज़ का ब्लड प्रेशर 130/80 के बीच रखें. अगर मरीज़ दर्द की कोई दवाई लेता हो तो उससे परहेज करे. कोई भी ऐसी चीज़ न खाएं जो किडनी के लिए हानिकारक हो. साथ ही, अपने किडनी के डॉक्टर से मिलते रहें. अगर डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर को अच्छे से कंट्रोल कर लिया जाए. भले ही डायबिटिक किडनी डिज़ीज़ को ठीक न किया जा सके, तो भी इस बीमारी की रफ्तार को कम कर सकते हैं. काफी सालों तक दवाइयों से इसे कंट्रोल किया जा सकता है. 

अगर मरीज़ क्रोनिक किडनी डिज़ीज के स्टेज 5 में आ जाता है, तब मरीज़ को डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ सकती है. वहीं अगर डायबिटिक किडनी डिज़ीज में मरीज़ स्टेज 5 में पहुंच जाता है और उसके घर में डोनर है तो ट्रांसप्लांट सबसे बेहतर विकल्प है. अगर ट्रांसप्लांट नहीं हो सकता तो डायलिसिस किया जा सकता है. डायलिसिस दो तरह का होता है- हीमोडायलिसिस और पेरिटोनियल डायलिसिस. दोनों में से कोई भी डायलिसिस किया जा सकता है.

अगर आप अपनी किडनी को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो ज़रूरी है अपनी डायबिटीज़ को कंट्रोल में रखें. डायबिटीज़ की दवाई लें. ब्लड शुगर लेवल को बढ़ने न देना आपको तमाम बीमारियों से दूर रखेगा. फिर आपको न तो डायलिसिस और न ही किडनी ट्रांसप्लांट कराने की ज़रूरत पड़ेगी.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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