24 घंटों में जारी हो जाने वाले 'वोटिंग पर्सेंट' के आने में 11 दिन क्यों लग गए?
चुनाव आयोग ने मंगलवार, 30 अप्रैल को पहले और दूसरे चरण के वोटिंग पर्सेंटेज जारी किए. पहले चरण को 11 दिन बीत गए और दूसरे को चार.
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 66.14% और दूसरे चरण में 66.71% वोट पड़े. ये जानकारी केंद्रीय चुनाव आयोग ने जारी की है. मगर बड़ी देर कर दी मेहरबां ने आते-आते. पहले चरण को 11 दिन बीत गए और दूसरे को चार. इसी पर उठ रहे हैं सवाल, कि इतनी देर लगी क्यों? सवाल एक और है. पहले आयोग ने बताया था कि दूसरे फे़ज़ में 60.96% वोटिंग हुई है. फिर, 30 अप्रैल की शाम बताया कि दूसरे चरण में 66.71% वोट पड़े. यानी 5.75% का अंतर. सो सवाल उठे कि मतदान प्रतिशत बढ़ कैसे गया?
योगेंद्र यादव, डेरेक ओब्रायन, जयराम रमेश समेत कई चुनावी जानकारों और विपक्षी नेताओं ने चुनाव आयोग को घेरा है. उससे मत प्रतिशत की डिटेल्स बताने की मांग की है.
वोटिंग पर्सेंट का सिस्टम क्या है?फ़र्ज़ कीजिए अमुक लोकसभा क्षेत्र में 10 लाख वोटर हैं. लोग नहीं, वोटर. जो वोट करने के लिए दक्ष हैं, जिनके वोटर ID कार्ड बने हुए हैं, जिनके नाम वोटर लिस्ट में हैं. मतदान वाले दिन इन दस लाख लोगों में से जाकर वोट कितनों ने डाला, यही है मतदान प्रतिशत या वोटर्स टर्नआउट. इस उदाहरण में अगर दस लाख में से 6,21,723 लोगों ने वोट किया, तो पर्सेंट बनेगा 62.17%.
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कैसे निकाला जाता है? चुनाव आयोग की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक़, इस प्रक्रिया में जितना आदमी का काम है, उतना ही मशीन का भी.
एक लोकसभा के अंतर्गत 250-300 सेक्टर्स बांटे जाते हैं. लोकसभा के एरिया के हिसाब से ये संख्या कम-ज़्यादा हो सकती है. हर सेक्टर के तहत 15-20 बूथ आते हैं. बूथ पर मौजूद अफ़सरान के और ज़िला, राज्य और केंद्रीय डेटाबेस के पास पहले से वोटरों की लिस्ट होती है. सभी सेक्टर मजिस्ट्रेट्स का ये दायित्व होता है कि वो हर दो घंटे पर सभी बूथ्स को कॉल करें. वहां से ये जानकारी लें कि कितने वोटर आए.
डेटा कलेक्शन के लिए समय भी बांटा गया है. सुबह 9 बजे, फिर 11 बजे, दोपहर 1 बजे, दोपहर 3 बजे, शाम 5 बजे और शाम 7 बजे. हर दो-दो घंटे पर फ़ोन कर के इकट्ठा करने के बाद रिटर्निंग ऑफिसर/असिस्टेंट रिटर्निंग ऑफिसर को इस डेटा को ऑनलाइन पोर्टल (ENCORE) में अनिवार्य रूप से भरना होता है. जब मतदान ख़त्म हो जाते हैं, तो अगले दिन सुबह विस्तृत रिपोर्ट बनाई जाती है. इसमें निर्वाचन क्षेत्र के हिसाब से, बूथ के हिसाब से, कुल मतदाताओं की संख्या, लिंग-आधारित डेटा होता है.
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नागरिकों और मीडिया संस्थाओं के लिए 'वोटर टर्नआउट ऐप' है, जहां लाइव टर्नआउट देखा जा सकता है. हालांकि, द हिंदू बिजनेसलाइन की रिपोर्ट कहती है कि आयोग की वेबसाइट पर हर लोकसभा क्षेत्र के कुल मतदाताओं की संख्या उपलब्ध नहीं है.
ECI ने क्या कहा?चुनाव आयोग की तरफ़ से चुनावी आंकड़ों में आए अंतर पर सफ़ाई दी गई है. आयोग के एक अफ़सर ने नाम न बताने की शर्त पर इंडिया टुडे को बताया कि 26 अप्रैल की शाम, जब ये आंकड़े आए, तब भी सैकड़ों मतदान केंद्रों पर कतारें लगी हुई थीं. मतदान ख़त्म होने की समय सीमा के साथ ही बूथ के दरवाज़े बंद कर दिए गए. क़ानून के मुताबिक़, उस समय तक जो मतदाता बूथ में दाखिल हो गए, उनको मतदान करने को मिलता है.
फिर दूसरा मसला लॉजिस्टिक्स का बताया. दूर-दराज़, पर्वतीय या जंगली इलाक़ों में स्थित गांवों के बूथों से मतदान कराने वाली टीम को EVM सेट के साथ मुख्यालय तक आने में लगभग उतना ही वक़्त लगता है, जितना जाने में लगा होता है. कहीं एक से दो दिन, कहीं-कहीं ढाई-तीन दिन भी लग जाते हैं. सो आंकड़े अपडेट होते रहते हैं.
देरी पर क्या सफ़ाई? आयोग ने मंगलवार, 30 अप्रैल को प्रेस विज्ञप्ति तो जारी की. मगर उसमें देरी के कारण के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है. दी लल्लनटॉप ने चुनाव आयोग से संपर्क करने की कोशिश की. उनकी मीडिया टीम के संबंधित अफ़सर को फ़ोन किया, मगर उधर से कोई जवाब नहीं आया. जवाब आने पर अपडेट कर दिया जाएगा.
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