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'टाइम मशीन' पर Prof. HC Verma ने कहा कि हम समय में हजारों साल पीछे देख तो सकते हैं लेकिन...

साल था 2009, तारीख थी 28 जून. स्टीफन हॉकिंग (Stephen Hawking) ने एक पार्टी रखी. बाकायदा गुब्बारे लगाए गए. ‘शरबत’ भी रखा गया. लाइट-वाइट लगा के कमरा सजाया गया. लेकिन पार्टी में कोई नहीं आया. इस पार्टी का टाइम ट्रैवल से भी लेना देना है. साथ ही जानते हैं Prof. HC Verma ने समय में यात्रा करने के बारे में क्या कुछ बताया?

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आइंस्टीन की रिलेटिविटी थ्योरी के मुताबिक ब्लैक होल के पास घड़ी धीमी चलती है. (image: hcverma.in/X)
16 अप्रैल 2024 (Updated: 16 अप्रैल 2024, 09:30 IST)
Updated: 16 अप्रैल 2024 09:30 IST
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लल्लनटॉप के शो ‘गेस्ट इन द न्यूज रूम (Guest in the newsroom)’ में कुछ दिन पहले भौतिक विज्ञान (Physics) के जाने माने प्रोफेसर एच सी वर्मा (Prof. HC Verma) आए. इंटरव्यू के दौरान हमारे संपादक सौरभ द्विवेदी (Saurabh Dwivedi) ने उनसे एक सवाल पूछा. सवाल कुछ यूं था,

क्या ऐसा ठेला बनाया जा सकता है, जिससे समय में पीछे जाया जा सके? मतलब किसी गाड़ी की तरह की एक मशीन, जिसमें बैठकर समय यात्रा की जा सके. कि भईया, 500 साल पीछे ले लो जरा!

सवाल का जवाब प्रो. वर्मा ने कुछ यूं दिया,

मैं इस विषय का ज्ञाता तो नहीं हूं. लेकिन जहां तक मेरा मानना है ये मुमकिन नहीं है. लेकिन हम बीते समय में घट चुकी चीजों को देख जरूर सकते हैं. 2000 साल पहले, 5000 साल पहले की घटना को लाइव देखना संभव है. यह रोज होता है. जब भी हम किसी तारे को देखते हैं ,तो हो सकता है उससे आने वाली लाइट हजारों लाइट ईयर दूरी तय करके आयी हो. मतलब हजारों साल पहले की घटना को हम आज देख सकते हैं. देख सकते हैं, लेकिन वहां कोई परिवर्तन नहीं कर सकते.

समय में पीछे देख सकते हैं, भला ये क्या माजरा है? तो आइए आज टाइम मशीन और समय यात्रा के बारे में समझने की कोशिश करते हैं… 

करीब डेढ़ दशक पहले, जाने माने ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी (physicist)  स्टीफन हॉकिंग ने एक पार्टी रखी थी. पार्टी ये बताने के लिए थी कि समय में यात्रा करके पीछे जाना संभव नहीं है. वहीं सैद्धांतिक तौर पर समय में यात्रा करना संभव माना जाता है. इसके लिए कई तर्क भी हैं. तो आइए जानते हैं समय यात्रा का कच्चा-चिट्ठा.

स्टीफन हॉकिंग की पार्टी में कोई नहीं आया

साल था 2009, तारीख थी 28 जून. स्टीफन हॉकिंग ने एक पार्टी रखी. बाकायदा गुब्बारा लगाए गए. ‘शरबत’ भी रखा गया. लाइट-वाइट लगा के कमरा सजाया गया. लेकिन पार्टी में कोई नहीं आया. क्योंकि पार्टी का निमंत्रण उसके खत्म होने के बाद भेजा गया. लिखा था, ‘समय यात्रियों के रिसेप्शन में आपका स्वागत है.’ माने ये पार्टी उन लोगों के लिए थी, जो समय में यात्रा करके वहां पहुंच सकें. 

क्योंकि पार्टी के बारे में जब लोगों को पता चला तब तक तो उसका ‘केक कट’ चुका था. जाहिर सी बात है कोई नहीं आया, आएगा भी कैसे किसी को तब पार्टी के बारे में मालूम ही नहीं था. स्टीफन हॉकिंग ने कहा कि अब मैंने प्रयोग करके बता दिया है कि समय में पीछे यात्रा संभव नहीं है. कमाल की बात ये है कि इस पार्टी के दरवाजे आज भी लोगों के लिए खुले हैं. आप चाहें तो जा सकते हैं. बस शर्त एक है कि इसके लिए आपको टाइम में ट्रैवल करके 2009 में जाना होगा.

समय में 2000 साल पहले कैसे देखा जा सकता है?

हालांकि प्रो. वर्मा ने कहा कि समय में हो चुकी किसी घटना को जरूर देखा जा सकता है. कैसे? समझते हैं. दरअसल तारे हमारी धरती से हजारों लाइट ईयर दूर हैं. लाइट ईयर माने एक साल में प्रकाश जितनी दूरी तय कर लेता है. देखिए जैसे किसी ट्रेन को दिल्ली से आगरा जाने में 2 घंटे लगते हैं. तो जब वो ट्रेन आगरा स्टेशन पहुंचेगी, तब ट्रेन को दिल्ली स्टेशन छोड़े 2 घंटे हो चुके होंगे. 

ऐसे ही अब कोई तारा है जो 1000 लाइट ईयर दूर है. उसको आज जब हम देखते हैं, तो इसका मतलब ये है कि उस तारे से लाइट 1000 साल पहले चली होगी. लाइट को पहुंचने में 1000 साल लगे होंगे, जिसे हम आज देखेंगे. मतलब हम 1000 साल पहले की लाइट देख रहे होंगे.

समय में घट चुकी घटनाओं को इस नजरिए से देखना तो संभव है. लेकिन वहां जाना उसमें बदलाव करना नहीं. लेकिन एक तरीका है जिससे समय में आगे यात्रा जरूर की जा सकती है. इसको भी समझते हैं.

ये भी पढ़ें: क्या ध्रुव तारा मर चुका है? जिसे हम देखते हैं, असल में वो अब नहीं है?

स्पेस स्टेशन में करते हैं टाइम ट्रैवल?

अब आते हैं अल्बर्ट आइंस्टीन की एक बात पर. जिन्होंने थ्योरी दी थी कि स्पेस-टाइम जुड़े हुए हैं. टाइम रिलेटिव है. मतलब दो जगहों पर समय का अनुभव अलग-अलग किया जा सकता है. अब ये क्या माजरा है? 
दरअसल आइंस्टीन ने बताया था कि गुरुत्वाकर्षण स्पेस-टाइम (space-time) पर असर डाल सकता है. मोटा-मोटा समझें तो ग्रैविटी और रफ्तार का समय पर असर पड़ता है. अगर कोई चीज बहुत तेज रफ्तार से दौड़ रही है या फिर किसी चीज का मास या द्रव्यमान बहुत ज्यादा है जैसे ‘ब्लैक होल.’ तो वहां समय दूसरी जगहों के मुकाबले धीरे हो जाता है.

ग्रैविटी और रफ्तार का समय पर असर पड़ता है 

इस पर साइंटिस्ट्स ने एक प्रयोग भी किया था. जिसमें एक प्लेन से धरती का चक्कर लगवाया गया. घड़ी के कांटे मिलाकर, एक घड़ी प्लेन में रखी गई. एक घड़ी धरती पर. जब प्लेन चक्कर काटकर आया. तो पता चला कि प्लेन में रखी घड़ी सच में धीरे चल रही थी. 

इसका एक उदाहरण धरती के चक्कर काट रहे सैटेलाइट्स में भी देखने को मिलता है. वहां भी घड़ी धरती के मुकाबले थोड़ा धीरे चलती है. लेकिन ये बहुत कम होता है, सेकेंड के कुछ हिस्से जितना. उतना नहीं जितना फंटूश फिल्म में सदियों पीछे चले जाते हैं.

इसको एक ‘थॉट एक्सपेरिमेंट’ से समझते हैं. थॉट एक्सपेरिमेंट माने वैज्ञानिकों की पटिया बाजी, गप्प. फर्ज कीजिए आप किसी बहुत बड़े ग्रह में जाते हैं. जैसे हॉलीवुड फिल्म इंटरस्टेलर में होता है. खैर तो होगा ये कि उस ग्रह में समय धरती के मुकाबले धीरे चलेगा. धीरे चलेगा, तो हो सकता है वहां का एक घंटा धरती में कई दिनों के बराबर हो. क्योंकि उस ग्रह की ग्रैविटी बहुत ज्यादा है. 

अब चूंकि वहां समय धीमे गुजरा, तो जब आप उस ग्रह में कुछ घंटे बिता कर आएंगे तब धरती में कुछ दिन निकल गए होंगे. यानी आप समय में यात्रा करके आगे आ गए. बाकि ऐसा करने लायक रॉकेट शायद हमारे पास नहीं हैं. जो इतनी दूर बेहद तेज रफ्तार में जाकर वापस लौट सकें. ये सैद्धानंतिक बाते हैं.

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