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'टू फिंगर टेस्ट' पर सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगाया, कहा- ये औरत को दोबारा रेप का सदमा देने जैसा

'टू फिंगर टेस्ट' करने वाले डॉक्टर दोषी पाए जाएंगे.

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Supreme Court and Rape protest representational Image
सांकेतिक तस्वीर: इंडिया टुडे
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31 अक्तूबर 2022 (Updated: 31 अक्तूबर 2022, 21:14 IST)
Updated: 31 अक्तूबर 2022 21:14 IST
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सुप्रीम कोर्ट ने रेप के मामलों में जांच के लिए इस्तेमाल होने वाले ‘टू फिंगर टेस्ट’ पर सख्ती से प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है. 31 अक्टूबर को जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि ‘टू फिंगर टेस्ट’ एक महिला को दोबारा उस तकलीफ से गुज़रने पर मजबूर करना है जिससे वो पहले ही जूझ रही है. 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि रेप की पुष्टि के लिए इस तरह के टेस्ट पर पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा. अगर कोई मेडिकल प्रैक्टिशनर इस तरह का टेस्ट करता है तो उसे गलत व्यवहार का दोषी माना जाएगा. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वो एक गाइडलाइन जारी करें, जिसमें ये सुनिश्चित किया जाए कि रेप पीड़िताओं के साथ संवेदनशील रवैया अपनाया जाए.

बेंच ने कहा,

'कोर्ट ये बार-बार कह चुका है कि रेप और यौन शोषण के मामलों में 'टू फिंगर टेस्ट' का इस्तेमाल बंद करें. इस कथित टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. यह असल में पीड़िता को दोबारा उस दर्द और ट्रॉमा से गुज़रने पर मजबूर करता है. ये टेस्ट बंद करें. ये टेस्ट एक गलत अवधारणा पर आधारित है कि एक सेक्शुअली एक्टिव महिला का रेप नहीं हो सकता है.'

बेंच ने आगे कहा,

एक महिला जो आरोप लगा रही है उसे उसके शारीरिक संबंधों की हिस्ट्री के साथ जोड़ा नहीं जा सकता है. ये पैट्रिआर्कल और सेक्सिस्ट है कि जब एक महिला रेप का आरोप लगाए तो उस पर यकीन न किया जाए, इस आधार पर कि वो सेक्शुअली एक्टिव है.


सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला झारखंड के एक मामले में आया है. उस मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने रेप और हत्या के एक दोषी को बरी कर दिया था. इस आधार पर कि रेप विक्टिम सेक्शुअली एक्टिव थी. हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सज़ा को बरकरार रखा है.

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में बैन कर दिया था टू फिंगर टेस्ट

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में ही इस टेस्ट को असंवैधानिक बताया था. तब कोर्ट ने टू फिंगर टेस्ट को रेप पीड़िता की निजता का हनन बताते हुए कहा था कि इस टेस्ट की वजह से पीड़ित महिला को बार-बार शारीरिक और मानसिक दर्द से गुजरना पड़ता है. कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी साफ तौर पर कहा था कि अगर टेस्ट में ये साबित भी हो जाता है कि एक महिला यौन संबंध बनाती रही है, तो भी इससे ये सिद्ध नहीं हो सकता है कि संबंध सहमति से बने हैं. 

असल में रेप का आरोप लगने पर आरोप लगाने वाली महिला का वजाइनल टेस्ट किया जाता है. इस टेस्ट के लिए मेडिकल प्रैक्टिशनर्स को एक किट भी दी जाती है. इस टेस्ट में ये देखा जाता है कि महिला के वजाइना में चोट और जबरदस्ती के कोई निशान तो नहीं हैं, इसके साथ ही स्वैब टेस्ट भी किया जाता है. मेडिकल भाषा में टू फिंगर टेस्ट नाम का कोई टेस्ट नहीं है. लेकिन कई जगहों पर वजाइनल एक्ज़ामिनेशन के दौरान ‘टू फिंगर टेस्ट’ किया जाता है. इस टेस्ट का मकसद ये पता लगाना होता है कि महिला सेक्शुअली एक्टिव है या नहीं.

आज तक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में 1500 रेप पीड़िताओं ने शिकायत की थी कि उनका टू फिंगर टेस्ट किया गया. वहीं, साल 2021 में वायुसेना की एक महिला अधिकारी ने आरोप लगाया था कि अपने साथी पर रेप का आरोप लगाने के बाद वायुसेना के डॉक्टरों ने उनका टू फिंगर टेस्ट किया था.महिला अधिकारी ने तमिलनाडु पुलिस पर आरोप लगाया,

"मुझे बाद में पता चला कि रेप की जांच में टू फिंगर टेस्ट नहीं होना चाहिए. इस हरकत की वजह से मुझे रेप के ट्रॉमा को दोबारा झेलना पड़ा."

इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग ने वायुसेना के चीफ मार्शल को चिट्ठी भी लिखी थी और टू फिंगर टेस्ट करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ एक्शन लेने की मांग की थी.

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