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आज़ाद भारत की पहली लोकसभा की इन महिलाओं के बारे में जानते हैं आप?

अमृत महोत्सव पर जानिए देश की पहली 24 महिला सांसदों के बारे में.

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first women in loksabha
शकुंतला नायर, मणिबेन पटेल, उमा मिश्रा (फोटो - वीकीमीडिया)
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15 अगस्त 2022 (Updated: 15 अगस्त 2022, 22:52 IST)
Updated: 15 अगस्त 2022 22:52 IST
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देश के पहले लोकसभा चुनाव हुए 1952 में. इस कैबिनेट में 24 महिलाएं शामिल थीं. 2019 में हुए 17वें लोकसभा चुनाव में 78 महिला सांसद चुनी गईं. और, ये आज तक का सबसे बड़ा नंबर है. आज हम आज़ादी के 75 सालों का जश्न मना रहे हैं. अमृत महोत्सव. लेकिन लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी की शुरुआत कहां से हुई थी? पहली लोकसभा में वो महिलाएं कौन थीं, जिन्होंने देश की लोकतांत्रिक यात्रा में अहम भूमिका निभाई? आइए जानते हैं उन महिलाओं के बारे में, जो देश की सबसे पहली संसद का हिस्सा थीं.

(ये इस स्टोरी का तीसरा हिस्सा है. पहला और दूसरा हिस्सा यहां पढ़ें)

उमा नेहरू

जन्म हुआ था आगरा में. 8 मार्च 1884 को. शुरुआती पढ़ाई की हुबली के सेंट मेरीज़ कान्वेंट से. जवाहरलाल नेहरू के रिश्ते के भाई श्यामलाल नेहरू से उमा की शादी हुई. जवाहरलाल नेहरू के पिता जी के भाई नंदलाल नेहरू के दो बच्चे थे, श्यामलाल नेहरू और बृजलाल नेहरू. इन्हीं श्यामलाल नेहरू से उमा की शादी हुई थी. उमा और श्यामलाल के दो बच्चे हुए- श्याम कुमारी नेहरू और आनंद कुमार नेहरू.

उमा नेहरू (फोटो - वीकिमीडिया)

उमा को बचपन से ही लिखने-पढ़ने का बहुत शौक़ था. बृजलाल नेहरू की पत्नी रामेश्वरी नेहरू 'स्त्री दर्पण' नाम की मैगज़ीन एडिट किया करती थीं. उसमें उमा भी लेख लिखती थीं. उमा ने नमक यात्रा और भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया था और जेल भी गईं थीं. पहले और दूसरे लोकसभा चुनाव में उन्होंने सीतापुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीता. 28 अगस्त 1963 को लखनऊ में उनका देहांत हो गया.

शिवराजवती नेहरू

अक्टूबर 1897 में जन्म हुआ. अलीगढ़ के गवर्नमेंट ही स्कूल से पढ़ाई की. नवम्बर 1915 में डॉक्टर किशन लाल नेहरू से इनकी शादी हुई. 1939 और 1942 में जेल भी गई थीं. आज़ादी के बाद लखनऊ सेन्ट्रल से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं. 1951 में इसी सीट से विजयलक्ष्मी पंडित चुनी गई थीं, लेकिन इसके कुछ समय के बाद ही वो यूनाइटेड नेशंस चली गईं. उनकी सीट पर बाई इलेक्शन हुए. इस सीट से ही अटल बिहारी वाजपेयी, त्रिलोकी सिंह और शिवराजवती नेहरू ने चुनाव लड़ा. इस चुनाव में शिवराजवती को 49,324 वोट मिले और अटल बिहारी वाजपेयी 33,986 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे. इस चुनाव को लेकर त्रिलोकी सिंह ने कोर्ट में पेटीशन भी डाली थी. वो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से थे. ये अर्जी थी कि इस चुनाव में धांधली हुई है, लेकिन कोर्ट ने इस मामले को ख़ारिज कर दिया था.

कुमारी मणिबेन वल्लभभाई पटेल

मणिबेन वल्लभभाई पटेल सरदार वल्लभभाई पटेल की बेटी थीं. जन्म हुआ 3 अप्रैल 1903 को. मणिबेन 6 साल की थीं, जब मां का देहांत हो गया. उनके ताऊजी विट्ठल भाई पटेल ने उनका लालन-पालन किया. तब के बॉम्बे के क्वीन मेरी हाई स्कूल से अपनी पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी करने के बाद वो अपने पिता के साथ स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बन गईं. 1928 में जब बारडोली सत्याग्रह हुआ था, तब मणिबेन वहां गई थीं. मीठूबेन पेतित और भक्तिबा देसाई के साथ मिलकर उन्होंने बारडोली सत्याग्रह में महिलाओं को जोड़ा और उनकी संख्या पुरुषों से भी ज्यादा हो गई. 1938 में राजकोट सत्याग्रह हुआ. उसमें कस्तूरबा गांधी भी जाना चाहती थीं, लेकिन उनकी तबियत ठीक नहीं थी. तो साथ में मणि गईं. जब उन दोनों को अलग करने का आदेश दिया गया तो मणिबेन अनशन पर बैठ गईं. अंत में सरकार को हार माननी पड़ी.

मणिबेन वल्लभभाई पटेल और सरदार पटेल (फोटो - वीकीमीडिया)

असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन, सभी का हिस्सा रहीं मणिबेन. पहले लोकसभा चुनाव में दक्षिण कैरा सीट से कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने चुनाव जीता. दूसरी लोकसभा में आणंद से. उसके बाद वो राज्यसभा की गईं. 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर मेहसाणा से चुनाव जीतकर फिर लोकसभा पहुंचीं. 1990 में उनका देहांत हो गया.

जयश्री नैषध रायजी

जन्म हुआ गुजरात के सूरत में. 26 अक्टूबर 1895 को. बड़ौदा कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की. 1918 में उनकी शादी नैषध रायजी से हुई. चार बच्चे हुए. दो बेटे और दो बेटियां. 1919 में बॉम्बे प्रेसिडेंसी विमेंस काउंसिल की चेयरपर्सन बनीं. असहयोग आन्दोलन के समय ये दुकानों पर पिकेटिंग करने जाया करती थीं. पिकेटिंग मतलब विदेशी वस्तुएं बेचने वाली दुकानों के सामने जाकर विरोध प्रदर्शन करना और वहां आए खरीददारों को स्वदेशी वस्तुएं लेने की बात बताना. इस सिलसिले में जयश्री को जेल भी जाना पड़ा.

(फोटो - वीकीमीडिया)

आज़ादी के बाद बॉम्बे सब-अर्बन चुनाव क्षेत्र से उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत कर संसद पहुंचीं. इंडियन काउंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर यानी बच्चों के कल्याण के लिए बनी संस्था की वो फाउन्डिंग मेम्बर्स में से एक रहीं. बच्चों और महिलाओं के कल्याण के लिए किए गए उनके कामों के लिए उन्हें 1980 में जमनालाल बजाज अवॉर्ड भी दिया गया.1985 में उनका देहांत हो गया.

शकुंतला नायर

जिस समय लोकसभा में कांग्रेस का बोलबाला था, उस समय हिन्दू महासभा के टिकट पर गोंडा वेस्ट से इलेक्शन जीतकर पहली लोकसभा में पहुंचने वाली महिला थीं शकुंतला नायर. मूलतः उत्तराखंड की थीं. मसूरी के विंडबर्ग गर्ल्स हाई स्कूल से पढ़ाई की थी. इनकी शादी के के नायर से 1946 में हुई थी जो उस समय इंडियन सिविल सर्विसेज में थे. केरल के एलेप्पी से थे, लेकिन पोस्टिंग के बाद अधिकतर समय यूपी में गुज़रा.

शकुंतला नायर (फोटो - वीकीमीडिया)

शकुंतला हिन्दू महासभा में थीं, तो के के नायर भारतीय जनसंघ से जुड़े हुए थे. 1952 के चुनाव में शकुंतला ने कांग्रेस के उम्मेदवार लाल बिहारी टंडन को गोंडा सीट पर हराया था. 1962 से 1967 तक वो उत्तर प्रदेश विधान सभा की भी सदस्य रहीं. 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ ने कैसरगंज सीट से उन्हें उतारा. उस समय वहां कांग्रेस और स्वतंत्र पार्टी ने भी अपने-अपने कैंडिडेट उतारे, लेकिन शकुंतला ये चुनाव जीत गईं. 1967 में ही के के नायर ने भी बहराइच से लोकसभा चुनाव लड़ा. भारतीय जनसंघ के टिकट पर. इस तरह चौथी लोकसभा में पति और पत्नी दोनों संसद पहुंचे.

मिनीमाता अगम दास गुरु 

1916 में असम के नवगांव डिस्ट्रिक्ट में पैदा हुईं. मिनीमाता को दलित अस्मिता के लिए काम के लिए जाना जाता है. डॉक्टर बी आर आंबेडकर का इन पर खासा प्रभाव था. 1930 में इन्होने गुरु अगमदास से शादी की. वो पहली लोकसभा में चुनकर गए थे, लेकिन 1955 में उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद बिलासपुर-दुर्ग-रायपुर की उनकी सीट पर हुए बाई-इलेक्शन में मिनीमाता लड़ीं और जीत दर्ज की. तब ये इलाका मध्य प्रदेश में ही था. उस समय छत्तीसगढ़ बना नहीं था. उन्होंने दलितों के नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए अस्पृश्यता अधिनियम को संसद में पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पहली लोकसभा के बाद मिनीमाता दूसरी, तीसरी, और चौथी लोकसभा में भी चुनी गईं. बाद में परिसीमन के बाद बनी जांजगीर सीट से उन्होंने 67 और 71 में चुनाव लड़ा और जीता. 1973 में एक प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु हो गई. फिर उनकी सीट पर बाई इलेक्शन हुए.

(ये स्टोरी हमारी साथी प्रेरणा ने लिखी है)

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