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CAA पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार को नोटिस, तीन हफ्ते में जवाब मांगा

संसद से पारित होने के पांच साल बाद जब नरेंद्र मोदी सरकार ने CAA लागू किया, तो इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में 200 याचिकाएं दायर की गई थीं.

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CAA लागू करने के ख़िलाफ़ 200 याचिकाएं दायर की गई थीं. (फ़ोटो - इंडिया टुडे)
19 मार्च 2024 (Updated: 19 मार्च 2024, 16:34 IST)
Updated: 19 मार्च 2024 16:34 IST
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सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी. अदालत ने दाख़िल याचिकाओं पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. केंद्र को ये जवाब तीन हफ़्तों के भीतर कोर्ट में जमा करना होगा. केंद्र के पास जवाब जमा करने के लिए 2 अप्रैल तक का समय है. इसके बाद याचिकाकर्ताओं को 8 अप्रैल तक अपना जवाब दाख़िल करना होगा. और, इस मामले पर अगली सुनवाई 9 अप्रैल को होगी.

सोमवार, 11 मार्च को केंद्र सरकार ने विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) लागू कर दिया था. इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में 200 याचिकाएं दायर की गई थीं, कि CAA और नागरिकता संशोधन नियम (2024) पर रोक लगाई जाए. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने इन याचिकाओं पर सुनवाई की.

ये भी पढ़ें - CAA के जरिए मुसलमानों को नागरिकता क्यों नहीं दे रहे? अमित शाह का सीधा जवाब

वैसे तो CAA दिसंबर, 2019 में ही संसद में पारित हो गया था. लागू हुआ पांच साल बाद. 11 मार्च, 2023 को. देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए. क़ानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का सार ये है कि CAA धर्म के आधार पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ भेदभाव किया जा रहा है और ये संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन होगा.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने अदालत से आग्रह किया कि इस मामले पर जब तक अंतिम फैसला न आ जाए, तब तक CAA के तहत किसी को भी नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए. हालांकि, अदालत ने अनुरोध पर कोई भी आदेश पारित करने से इनकार कर दिया.

किसने दायर की थी याचिकाएं?

केरल के इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने जो याचिका दायर की, उसमें कहा गया है कि क़ानून लागू करने की टाइमिंग संदिग्ध है, क्योंकि लोकसभा चुनाव नज़दीक हैं. 

IUML के अलावा कुछ और याचिकाकर्ताओं भी हैं. जैसे, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा, वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, AIMIM प्रमुख और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी; असम कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, क्षेत्रीय छात्र संगठन असोम जातीयताबादी युवा छात्र परिषद, डेमोक्रेटिक यूथ फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (DYFI) और सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (SDPI); NGO रिहाई मंच और सिटीज़ेन्स अगेंस्ट हेट, असम ऐडवोकेट्स असोसिएशन और क़ानून के कुछ छात्र.

शुरू से ही केंद्र ने अपना रुख वही रखा हुआ है कि ये नागरिकों के क़ानूनी, लोकतांत्रिक या धर्मनिरपेक्ष अधिकारों पर कोई असर नहीं डालेगा. इसी तर्ज़ पर अदालत से इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं को ख़ारिज करने का अनुरोध किया था.

वीडियो: भारत में CAA लागू होने पर विदेशी मीडिया क्या-क्या बातें लिख रही है?

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