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सालों तक कैसे चलता रहा IIPM का फ़र्ज़ी कारोबार?

२०१४ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ प्लानिंग ऐंड मैनेजमेंट यानी IIPM के सारे संसथान बंद कर दिए गए थे. इसके बाद साल २०२० में IIPM के निदेशक अरिंदम चौधरी को टैक्स चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया.

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Arindum Chaudhuri IIPM, Shahrukh khan
अरिंदम चौधरी ने IIPM के प्रचार के लिए शाहरुख़ खान के चेहरे के खूब इस्तेमाल किया(तस्वीर-Indiatoday)
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8 दिसंबर 2022 (Updated: 7 दिसंबर 2022, 17:59 IST)
Updated: 7 दिसंबर 2022 17:59 IST
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शाहरुख़ खान(Shahrukh Khan) स्टेज पर खड़े हैं. एक किस्सा बतिया रहे हैं. बचपन में जब मैं पतंग उड़ाता था, मांझे में अक्सर गांठ पड़ जाती थी. मैं घंटो उसे सुलझाने में लगा रहता. फिर एक रोज़ मेरी मां ने मुझसे कहा कि मैं अंडे के कुछ छिलके और पेंट से नया मांझा बना सकता हूं. और मुझे अहसास हुआ, ये घंटों मांझे को सुलझाने से कहीं बेहतर है. 
इसके बाद कहानी का मर्म समझाने के लिए शाहरुख़ कहते हैं.

“परेशानियां ऐसी ही हैं. उन पर घंटों सोचने से कोई फायदा नहीं है.”

साल 2009 में एक बुक लांच के दौरान शाहरुख़ शाहरुख़ ने ये बात कही थी. किताब का नाम था, ‘डिस्कवर द डायमंड इन यू’. किताब भी ऐसे ही नायाब वन लाइनर्स से भरपूर थी.

“Success occurs twice in life: Once in your mind & once in reality” 
“To believe that you are a diamond, you have to believe that you are rare. You have to believe that you can dazzle, once shown the right path.”

किताब की प्रस्तावना भी शाहरुख़ खान ने ही लिखी थी. और अंदर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन(Amitabh Bachchan) ने बुक रेकमेंड करते हुए लिखा था कि ये किताब आपको हरगिज़ नहीं चूकनी चाहिए. अब इस घटना के 11 साल आगे चलिए. साल 2020. हीरे तराशने वाला ये जौहरी यानी किताब का लेखक 23 करोड़ टैक्स की चोरी के मामले में जेल में था. इन 11 सालों के भीतर नए भारत ने अपनी आखों ने सामने एक फ्रॉड होते देखा. जिसमें सभी शामिल थे. फ्रॉड करने वाला, जिसके साथ फ्रॉड हुआ वो, और वो लोग जो इस धोखाधड़ी को अपना चेहरा देकर उसके विश्वसनीयता प्रदान कर रहे थे, वो भी.

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इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ प्लानिंग ऐंड मैनेजमेंट (IIPM)

इस धोखाधड़ी का नाम था, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ प्लानिंग ऐंड मैनेजमेंट यानी IIPM, और इसका पता थे, अख़बार और टीवी चैनल में ख़रीदे गए लाखों के विज्ञापन. जिनमें नज़र आता था, चश्मा पहने, पोनी टेल बांधे हुए एक शख़्स, जिसका नाम था अरिंदम चौधरी(Arindam Chaudhuri). अरिंदम से ही जुड़ी है हमारी आज की कहानी. दिल्ली के मध्यवर्गीय परिवार में पैदा होने वाला शख़्स कैसे अचानक पूरे भारत में छा जाता है. और कुछ साल बाद जब चंकाचौंध ढीली पड़ती है, तो सामने आता है, नए भारत का मॉडर्न स्कैम. पिछले जमाने में जहां धर्मगुरुओं ने आम जनता को उल्लू बनाते थे. वहां अब नए जमाने में नए टाइप के गुरु आ गए थे. सक्सेस गुरु, मेजेमेंट गुरु. जिनके भक्त होते थे, युवा छात्र. यहां धर्म नहीं था, लेकिन अंधभक्ति में हरगिज़ कमी नहीं थी.

Arindam Chaudhuri
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ प्लानिंग ऐंड मैनेजमेंट के निदेशक अरिंदम चौधरी(तस्वीर-Indiatoday)

विकिपीडिया की मानें तो 8 दिसंबर, 1971 को अरिंदम की पैदाइश हुई. पिता का नाम था, मलयेंद्र किशोर चौधरी. दिल्ली में रहते थे. 1973 में यहीं उन्होंने एक मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट खोला- IIPM. कारवां के एक आर्टिकल जिस पर अरिंदम ने बैन लगवा दिया था, और बाद में जिसे दोबारा प्रकाशित किया गया, के अनुसार अरिंदम का नाम पड़ने के पीछे भी एक रोचक कहानी है. आर्टिकल लिखने वाले सिद्दार्थ देब लिखते हैं कि अरिंदम ने उन्हें खुद ये किस्सा सुनाया था. IIPM जब पुराने गुरुग्राम के एक ख़स्ताहाल इलाक़े में हुआ करता था. एक रोज़ यहां के छात्रों ने मलयेंद्र के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर दिया. उनकी गाड़ी को भी घेर लिया गया. सिद्दार्थ लिखते हैं कि इस घटना के बाद उन्होंने अपने बेटे का बाम अरिंदम रख दिया. जिसकाअर्थ था- दुश्मनों का संहार करने वाला. दुश्मन कौन थे? - विरोध प्रदर्शन करने वाले. लेकिन विरोध प्रदर्शन क्यों हुआ, क्या कारण थे, इसके बारे में अरिंदम ने कुछ न कहा. सिर्फ़ इतना बताया हैं कि इस घटना से उसने सीखा कि अपने आसपास सिर्फ़ भरोसे वाले लोगों को रखना है.

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इसी मंत्र पर चलकर अरिंदम ने अपने पिता से IIPM की बागडोर अपने हाथ में ले ली. अरिंदम ने खुद अपने पापा के इंस्टिट्यूट से पहले ग्रेजुएशन, फिर पोस्ट ग्रेजुएशन किया था. और बाद में वो वहीं पढ़ाने लगा था.

अरिंदम का नाम चमका कैसे? 

उस दौर में अख़बारों में कुछ विज्ञापन दिखाई देते थे. इनकी टैग लाइन थी, “dare to think beyond IIT एंड IIM”. इन विज्ञापनों में IIPM कैंपस की ऐसी तस्वीरें होतीं कि लगता फाइव स्टार होटेल है. क्लब, स्विमिंग पूल, स्नूकर टेबल. और वादे ऐसे कि 100 पर्सेंट प्लेसमेंट. हर स्टूडेंट को लैपटॉप. यूरोप ट्रिप. विदेशी यूनिवर्सिटीज़ से टाई-अप. ये वो दौर नहीं था कि आप इंटर्नेट पर जाकर किसी यूनिवर्सिटी के बारे में खुद जानकारी ले लें. दुनिया बीटेक और एमबीए के पीछे भाग रही थी. हर कोई IIT और IIM में नहीं जा सकता था. ऐसे में छोटे क़स्बे के लड़के लड़कियों ने पाया कि वो IIM से भी आगे जा सकते हैं. IIPM के विज्ञापनों में शाहरुख़ की तस्वीर थी. शाहरुख़ यानी सक्सेस. छात्रों ने IIPM में दाख़िला लेना शुरू किया. महंगी फ़ीस थी. लेकिन सपनों के लिए कोई क़ीमत ज़्यादा नहीं होती. ये सोचकर छात्र IIPM पहुंचे. दिल्ली के छत्तरपुर इलाक़े के सतबरी इलाके के एक फ़ार्म हाउस में IIPM का कैम्पस हुआ करता था. जिम, स्विमिंग पूल सब मौजूद. बिलकुल करन जौहर की फ़िल्मों में दिखने वाले किसी स्कूल कॉलेज के जैसा. साथ में फ्री लैपटॉप मिलता था. और विदेशों का दौरा भी.

IIPM campus Delhi
IIPM का दिल्ली कैम्पस (तस्वीर-wikimedia commons)

छात्रों को बहलाने वाली ताक़तें सिर्फ़ पैसिव ही नहीं अक्टिवली भी काम करती थीं. 'कारवां' के एक आर्टिकल के अनुसार IIPM में दाखिले करवाने का प्रति छात्र के हिसाब से कमीशन तय होता था. 1 से 24 स्टूडेंट्स लाने वाले एजेंट को प्रति छात्र 75 हज़ार रुपये. 25 से ऊपर स्टूडेंट्स लाने पर 90 हज़ार प्रति छात्र के हिसाब से कमीशन. 50 से ऊपर स्टूडेंट लाने पर प्रति छात्र सवा लाख रुपये. इस बीच अरिंदम दिन रात तरक़्क़ी कर रहा था. सांप की खाल के बने जूते, नीला सूट, ज़बान पर हॉर्वर्ड, मैकेंसी जैसे नाम. और शब्दकोश में हार्ड वर्क, सक्केस मंत्रा, सफलता की चाभी जैसे कीवर्ड. बेंटली में चलने वाले अरिंदम को देखकर लगता था कि सफलता है तो यही है. अरिंदम टीवी शोज़ में बुलाया जाने लगा. अरिंदम को दो चीजों से खास खुन्नस थी. हर शो में वो सरकार और सरकारी पैसे पर चलने वाले IIM की जमकर आलोचना करता. उसका कहना था कि एक एलीट क्लास ने इन संस्थानों पर कब्ज़ा कर लिया है. उसका इरादा था कि मैनेजमेंट की पढ़ाई को इन उच्च संस्थानों से निकाल कर आम आदमी के बीच लाया जाए.

जल्द ही देशभर में IIPM की शाखाएं खुलने लगीं. लेकिन ये सब दिल्ली वाले इंस्टीट्यूट जैसे नहीं थे. ये बिल्डिंगों में चल रहे थे. जैसे अन्य हजारों इंस्टीट्यूट चलते हैं. इनमें कोई स्वीमिंग पूल नहीं था. लेकिन इन्हें औरों से अलग करता था अरिंदम का नाम. जब देश के बड़े बड़े न्यूज़ चैनल आपके संस्थान की पहचान को बजट पर चर्चा के लिए बुलाएं, तो उस कॉलेज पर कोई उंगली उठा सकता था. अरिंदम का कहना था कि वो IIPM से कुछ नहीं कमाते. उनकी कमाई सेमिनार्स से होती थी. जिनकी एंट्री फीस चार हजार रूपये से लाखों तक में थी. जल्द ही अरिंदम ने अपनी मैगज़ीन छापना भी शुरू कर दिया. और इसका अगला कदम उसने रखा, फिल्म इंडस्ट्री में. अरिंदम ने फालतू और दो दूनी चार जैसी फिल्में प्रोड्यूस की. इन फिल्मों को नेशनल अवार्ड भी मिला. अरिंदम की शोहरत और विश्वसनीयता का गुब्बारा दिन पर दिन भूलता जा रहा था. और इसी गुब्बारे की मदद से उड़ने की आस में थे, IIPM के वो हजारों छात्र जिनसे लाखों लेकर करोड़ों कमाने का सपना दिखाया गया था. लेकिन गुब्बारा चाहे कितना फ़ैल जाए, उसके लिए सिर्फ एक छोटी सुई की नोक काफी होती है.

IIPM के गुब्बारे में छेद 

साल 2003 में द आउटलुक मैगज़ीन ने देशभर के कॉलेजों का एक सर्वे करवाया. इस सर्वे में इंडस्ट्री इंटरफेस के मामले में IIPM को चौथे नंबर पर रखा गया था. महेश्वर पेरी(Maheshwer Peri) तब आउटलुक ग्रुप के पब्लिशर हुआ करते थे. उनके पास इस सर्वे को लेकर कुछ शिकायतें आई. पेरी ने IIPM से उनका डाटा मांगा. ऑडिट में पता चला कि डाटा फ़र्ज़ी था. IIPM कहता था, 100 फीसद प्लेसमेंट, जबकि असली प्लेसमेंट सिर्फ 50% था. पेरी बताते हैं,

“IIPM के एक स्टूडेंट के अभिभावक मेरे पास आए. उन्होंने कहा, इतनी मोटी फीस देने के बाद भी उनके बेटे की नौकरी नहीं लगी. उनकी कही बात मेरे दिल पर लगी. मैंने सी फोर को इस बात पर IIPM से उनका पक्ष पूछने को कहा. मैंने IIPM से कहा कि अगर आपका 100 पर्सेंट प्लेसमेंट रेकॉर्ड है, तो हमें ब्योरा दिखाइए. वो बोले, हम ये जानकारी किसी के साथ साझा नहीं करते.”

कुछ साल बाद पेरी ने अपनी खुद की एक कंपनी बनाई. पाथफाइंडर पब्लिशिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड. इसी में एक मैगज़ीन शुरू की- करियर्स 360. इसके पहले अडिशन, अप्रैल 2009, की थीम थी- शैक्षणिक संस्थानों की गड़बड़ियां. कई संस्थानों को क्वेश्चनायर भेजे गए. इनमें IIPM भी था. करियर्स360 के आर्टिकल पर स्टे लगवाने IIPM कोर्ट पहुंच गया. यहां से कानूनी लड़ाई शुरू हुई. महेश्वर पेरी ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की. अदालत ने कहा, पब्लिक इंट्रेस्ट में है तो लिखिए. लेकिन आधा पन्ना IIPM को भी दीजिए. आरोपों पर अपना पक्ष रखने के लिए. जून 2009 में आर्टिकल छपा. टाइटल था- IIPM, बेस्ट ओनली इन क्लेम्स? करियर्स 360 IIPM द्वारा किए जा रहे दावों की जांच कर रहा था. इसमें सबसे बड़ा मसला डिग्री से जुड़ा था.

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महेश्वर पेरी ने IIPM के ख़िलाफ़ एक लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी (तस्वीर-mxmindia.com)

IIPM का दावा था कि वो IMI बेल्ज़ियम नाम के एक इंस्टीयूट से डिग्री देता है. विदेश का इन्टीट्यूट, IIM से मिलता जुलता नाम कौन शक करता. लेकिन यहीं पर अरिंदम ने एक गलती कर दी. साल 2009 में कुछ विज्ञापनों में लिखा कि IIPM की डिग्री अब यूनिवर्सिटी ऑफ बकिंघम से मिलेगी. पेरी ने यूनिवर्सिटी ऑफ बकिंघम से कांटेक्ट कर तहकीकात की. वहां से पता चला कि उनका IIPM से कोई ताल्लुक नहीं है. पेरी ने एक और बार मैगज़ीन में खबर छापी. IIPM ने विज्ञापनों में दोबारा IMI बेल्जियम का नाम लिखना शुरू कर दिया. बाद में पता चला कि IMI बेल्जियम को खुद बेल्जियम की सरकार या कहें कि वहां की UGC से मान्यता हासिल नहीं थी. IIPM के दावे थे कि वो बर्कले, स्टैनफोर्ड के सस्थानों में सर्टिफिकेट कोर्स कराता है. इन संस्थानों की तरफ से भी कई बार कहा गया कि उनका IIPM से कोई लेना देना नहीं है.

केस पर केस 

जब ये खबर बाहर आई, IIPM के कुछ संस्थानों में छात्रों ने हंगामा करना शुरू कर दिया. 2009 में जब देहरादून कैम्पस में हंगामा हुआ तो उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी, UTU से इस मामले की जांच करने को कहा. UTU ने जवाब दिया कि IIPM ने उनसे मान्यता नहीं ली है. मतलब पूरा खेल फ़र्ज़ी था. न कोई वैध कॉलेज था न ही वैध डिग्री. कोई आम देश होता तो अरिंदम की दुकान तत्काल बंद हो चुकी होती. लेकिन इस रंग रंगीले परजातंतर में अरिंदम के पास अभी काफी मुहरे बाकी थे. उसने गुवाहाटी में महेश पेरी के खिलाफ केस करवाया. साल 2011 में कारवां ने एक आर्टिकल छापा. अरिंदम ने सिद्धार्थ और उनकी किताब के पब्लिशर पेंग्विन्ग के खिलाफ सिलचर जाकर 50 करोड़ की मानहानि का दावा ठोक दिया. 

कई छोटे बड़े ब्लॉगर्स पर भी केस हुआ. जिन्होंने सिर्फ इतना लिखने की हिम्मत की थी कि IIPM को UGC से मान्यता हासिल नहीं है. अरिंदम को IIPM असलियत का पता था. ये केस जीतने के लिए नहीं किए गए थे. इनका मकसद था एक बहाना. कोई छात्र या उसके मां बाप पूछें तो कहना कि केस अदालत में है. अरिंदम इसमें सफल भी था. IIPM में लगातार छात्रों का आना लगा रहा. फिर साल 2013 में एक बड़ी घटना हुई. जिसने इस केस को पूरे इंटरनेट पर फैला दिया. उस साल डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकम्यूनिकेशन्स (DoT) ने IIPM की आलोचना में लिखे गए कई आर्टिकल्स पर कैंची चला दी. इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को निर्देश देकर करीब 73 URL ब्लॉक कर दिए. सेंसरशिप का ये आदेश ग्वालियर ज़िला अदालत की तरफ से आया था. अब तक इंटरनेट भारत के छोटे कस्बों तक पहुंच चुका था. छात्र आपस में संपर्क कर समझने लगे कि ऐसा महसूस करने वाले वो अकेले नहीं है. कई छात्र कंज्यूमर कोर्ट पहुंचे. आख़िरकार मई 2014 में UGC ने सर्कुलर निकाला. जिसमें लिखा था कि IIPM की कोई डिग्री वैध नहीं है. सितंबर 2014 में दिल्ली हाई कोर्ट ने IIPM को फटकार लगाई. अदालत ने कहा, IIPM अब MBA, BBA, मैनेज़मेंट कोर्स, मैनेज़मेंट स्कूल, बिज़नस स्कूल, बी स्कूल जैसे शब्द इस्तेमाल नहीं कर सकेगा. उसे अपनी वेबसाइट पर साफ लिखना होगा कि वो किसी वैधानिक संस्था से मान्यता प्राप्त नहीं है.

अदालत के आदेश के बाद IIPM ने अपने सभी इंस्टीट्यूट्स पर ताला लगा दिया. जो छात्र अधर में थे, वो तो लटके ही. जो IIPM से पास हुए थे उनका भी भविष्य अंधेरे में था. उनमें से कइयों को दोबारा डिग्री लेनी पड़ी. कई हमेशा के लिए उच्च शिक्षा से दूर हो गए. अब इस सब के बीच आपके मन में एक सवाल आ रहा होगा. इतने सालों तक IIPM अपने छात्रों को, अभिवावकों को, मूर्ख कैसे बनाता रहा. इसका जवाब है उस कहानी में जो हमने शुरू में सुनाई थी. जब अरिंदम ने कहा था, जैसा उसके पिता के साथ हुआ है, वैसा वो दोबारा कभी नहीं होने देगा. सिद्धार्थ देब कारवां के आर्टिकल में लिखते हैं कि IIPM के छात्रों के लिए अरिंदम उनका आइडल था. छात्र अरिंदम पर पूरा विश्वास करते थे. लेकिन बिना नौकरी के ये विश्वास कायम क्यों रहा?
इसका कारण था एक अजीब दुष्चक्र.

Arindam Chaudhuri
2014 में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद IIPM ने अपने सभी इंस्टीट्यूट्स पर ताला लगा दिया (तस्वीर-Indiatoday)

मान लीजिए आप IIPM में पढ़ रहे हैं. आपकी नौकरी नहीं लगी. अब IIPM आपसे कहता है, हमारे ही कॉलेज में टीचर लग जाओ , 25 हजार देंगे. आपके पास दो ऑप्शन है. घर बैठ जाओ या चुपचाप 25 हजार कमाओ. ऐसे सैकड़ों IIPM के पूर्व छात्रों ने अरिंदम के अंदर नौकरी की. अरिंदम की सफलता में उनका अपना स्वार्थ छिपा था. अगर वो छात्रों को असलियत बताते तो, उनकी खुद ही नौकरी जाती. और 20-25 लाख खर्च करके बेरोजगार रहना, किसी आम छात्र के लिए स्वीकारने योग्य नहीं हो सकता. ये दुष्चक्र चलता रहता. छात्र आते. घर से दूर चंका चौंध में साल गुजर जाते. फिर नौकरी लग जाती या नहीं लगती. नहीं लगती तो वो IIPM से ही जुड़ जाते. और बाकी छात्रों को वहां एडमिशन दिलाते. ये असलियत सिर्फ IIPM की नहीं है. 2000 से 2020 तक भारत के लाखों करोड़ों छात्रों के साथ अनेक कॉलेजों ने ये खेल खेला. कुछ आज भी खेल रहे हैं.

अरिंदम और IIPM का आगे क्या हुआ?

IIPM बंद हो गया. साल 2019 में IIPM से जुड़े एक मामले में संस्थान के दो पूर्व छात्रों ने कलकत्ता हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की. कहा, हमने शाहरुख़ का चेहरा देखकर IIPM में एडमिशन लिया था. शाहरुख़ की तरफ से एक एफिडेविट डालकर कहा गया, उनका IIPM से कोई लिंक नहीं बस कुछ विज्ञापन किए थे. शाहरुख़ की जिम्मेदारी थी, कि वो समझें कि ऐसे स्कैम उनके चेहरे पर बिकते हैं. उन्हें मान्यता मिलती है. लेकिन जिस देश में UGC को जागने में इतने साल लग गए हों. वहां फिल्म सेलेब्रिटीज़ से जिम्मेदारी की उम्मीद करना बेमानी है.

अरिंदम आजकल क्या कर रहे हैं. इंटरनेट पर खोजा तो एक यूट्यूब चैनल और एक ट्विटर हैंडल मिला. दोनों में कमेंट सेक्शन ऑफ है. इसके अलावा एक खबर की तरफ भी ध्यान गया. 7 नवम्बर की एक खबर दिखती है, शायद पेड विज्ञापन है. लिखा है, 
अरिंदम एक नया प्रोग्राम शुरू करने वाले हैं. INDIGO नाम का. इसमें देश विदेश के 9 विशेषज्ञ (अरिंदम सहित) आपको मैनजमेंट का ज्ञान देंगे. फ़ीस कुछ 4.8 लाख रुपए है. डिग्री कोर्स नहीं है. ज्ञान मिलेगा शायद. आज भी शायद सैकड़ों होंगे जो इस प्रोग्राम से जुड़ने के लिए तैयार हो जाएंगे. अन्धविश्वास का रिश्ता अकेले धर्म के साथ नहीं है. चलिए एक ज्ञान के साथ हम भी आपको छोड़े जाते हैं. वो भी मुफ़्त. दूध के जले को छांछ भी फूंकफूंक कर पीना चाहिए.

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