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उस जंग की कहानी जिसने बदलूराम को अमर कर दिया!

सशस्त्र सेना झंडा दिवस: कोहिमा की जंग से निकला असम रेजिमेंट का मार्चिंग गीत

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armed forces flag day
साल 1949 के बाद 7 दिसंबर को सशस्त्र सेना झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता है (तस्वीर : mygov.in)
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7 दिसंबर 2022 (Updated: 5 दिसंबर 2022, 20:11 IST)
Updated: 5 दिसंबर 2022 20:11 IST
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“जब तुम घर लौट जाओगे तो उन्हें हमारे बारे में बताना और उनसे कहना, तुम्हारे कल के लिए हमने अपना आज दिया है.”

लगभग कालजयी हो चुकी ये लाइनें सबसे पहले कोहिमा (Battle of Kohima) में बने द्वितीय विश्व युद्ध के स्मारक पर उकेरी गई थीं. साल 2013 में यूनाइटेड किंगडम के नेशनल आर्मी म्यूजियम ने एक पोल करवाया. पोल में सवाल पूछा गया था, ब्रिटेन के इतिहास की सबसे महान लड़ाई कौन सी है?

इनमें पांच ऑप्शन दिए गए थे. 

पहला- वॉटरलू की लड़ाई  
दूसरा- जर्मनी पर हमले की ‘डी डे’ की लड़ाई 
तीसरा- 1879 का जुलू युद्ध  
चौथा- 1846 में एंग्लो-सिख युद्ध के दौरान अलीवाल की लड़ाई 
और पांचवा- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई कोहिमा की लड़ाई 

अप्रत्याशित रूप से लोगों ने इस पोल में कोहिमा की लड़ाई को ब्रिटेन के इतिहास की सबसे महान जंग चुना. जबकि तब तक इसे एक भुला दी गयी लड़ाई माना जाता था. 

आर्म्ड फोर्सेस फ्लैग डे

साल 1949 से 7 दिसंबर को ‘आर्म्ड फोर्सेस फ्लैग डे’ (Armed Forces Flag Day) के रूप में मनाया जाता है. आप में से कुछ लोगों ने अपने स्कूल के दिनों में देखा होगा कि इस दिन छोटे छोटे झंडे बांटे जाते हैं. और उसके बदले में बच्चे कुछ रूपये इकठ्ठा करते हैं. ये रुपया जमा होता है आर्म्ड फोर्सेस फ्लैग फंड में. जिसकी मैनेजिंग कमिटी के अध्यक्ष खुद रक्षा मंत्री होते हैं. इसके अलावा इस कमिटी में तीनों सेनाओं के चीफ, डिफेन्स सक्रेटरी और बाकी वरिष्ठ अधिकारी शामिल होते हैं. इस फंड का इस्तेमाल युद्ध में वीरगति प्राप्त किए सैनिक परिवारों या सेना से रिटायर होने वाले सैनिकों की मदद या पुनर्वास के लिए किया जाता है. साल 1949 में जब आर्म्ड फोर्सेस फ्लैग डे की शुरुआत हुई थी. तब प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा था, 

“ये दिन एक अवसर मुहैया कराता है, ताकि आम नागरिक सेना के प्रति अपना आभार प्रकट कर सकें”

कोहिमा युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों की याद में बना स्मारक (तस्वीर: wikimedia Commons)

जॉन ब्राउन्स अमेरिकन गृह युद्ध के दौरान एक नेता हुआ करते थे, जिन्होंने दास प्रथा के उन्मूलन के लिए एक बार दासों के विद्रोह का नेतृत्व किया था, और इसके लिए उनकी हत्या कर दी गई थी. तब उन पर एक गीत लिखा गया, जिसका हिंदी में तर्जुमा है,  जॉन ब्राउन का शरीर कब्र में है, लेकिन उसकी आत्मा आगे बढ़ रही है. कुछ इसी तर्ज़ पर लिखा गया है एक और गीत है 

एक खूबसूरत लड़की थी 
उसको देखकर राइफल-मैन
 
चिंदी खींचना भूल गया 
हवलदार मेजर देख लिया

उसको पिट्ठू लगाया

बदलूराम एक सिपाही था 
वो तो वॉर में मर गया  
क्वार्टर मास्टर स्मार्ट था  
उसने राशन निकाला
बदलूराम का बदन 
ज़मीन के नीचे है 
तो हमें उसका राशन मिलता है 

दरअसल ये असम रेजिमेंट का मार्चिंग सांग है. इस गीत को साल 1946 में लिखा गया था. लिखने वाले थे मेजर M.T. प्राक्टर. प्राक्टर ने ये गीत एक अमेरिकी गीत ‘जॉन ब्राउन्स बॉडी’ से प्रेरित होकर लिखा था. कौन थे बदलूराम, (Badluram ka Badan) और कैसे बना ये गीत, ये जानने के लिए हमें चलना होगा 1941 में. 

कोहिमा की जंग 

पर्ल हार्बर पर हमले के बाद अमेरिकी नौसेना ने जापान को चारों तरफ से घेर लिया था. तब जापानी सेना ने जमीन के रास्ते मित्र राष्ट्रों पर हमला किया. धीरे धीरे उन्होंने हॉन्ग कॉन्ग, मलाया, सिंगापोर और बर्मा को अपने कब्ज़े में ले लिया.

जब बर्मा पर कब्ज़ा हुआ तो ब्रिटेन को इसकी बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी. जनवरी 1942 में हमला शुरू हुआ. और ब्रिटिश फोर्सेस के पांव उखड़ने लगे. मार्च तक जापानी फौज ने रंगून और उसके बंदरगाहों को अपने कब्ज़े में ले लिया. ब्रिटिश फौज पीछे हटते हुए भारत तक चली आई. ये 1600 किलोमीटर की एक दुर्गम यात्रा थी. लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों को यकीन था कि मलेरिया और दलदल से भरे इन जंगलो को पार कर जापानी पीछा करने की हिम्मत नहीं करेंगे. लेकिन जापान ने ठीक ऐसा ही किया. और वो बर्मा में उत्तर की तरफ बढ़ते गए.

इम्फाल की लड़ाई (तस्वीर: Wikimedia Commons)

1943 में ब्रिटेन ने लुइस माउंटबेटन के नेतृत्व में एक नए साउथ ईस्ट एशिया कमांड का गठन किया. और अपनी युद्ध नीति को पूरी तरह बदल डाला. अभी तक यूं हो रहा था कि जैसे ही जापानी फौज संचार लाइनें ध्वस्त करतीं, ब्रिटिश ट्रूप्स उतना पीछे हट जाते. ये सामान्य युद्ध नीति थी, क्योंकि संचार लाइनें कट जाने पर न आपके पास न रसद पहुंच सकती है, ना जानकारी. लेकिन यही युद्ध नीति अभी तक ब्रिटेन के लिए हार का सबब साबित हो रही थी. नए प्लान के तहत तय हुआ कि अब कोई पीछे नहीं हटेगा. संचार लाइनें कट जाने की स्थिति में ट्रूप्स तक आसमान के सहारे सप्लाई पहुंचाई जाएगी. सैनिकों को कैसी भी हालात में डटे रहना था. 

मार्च 1944 में जापान की 15th आर्मी ने भारत के नॉर्थ ईस्ट फ़्रंटियर में मूव करना शुरू किया. उनका प्लान था दीमापुर और इम्फाल के बीच सप्लाई लाइन को काटना. इसके लिए कोहिमा को अपने कब्ज़े में करना जरूरी था. कोहिमा और इम्फाल पर कब्ज़ा होते ही जापान को भारत पर हमला करने के लिए एक एयर बेस मिल जाता. 4 अप्रैल 1944 को कोहिमा में युद्ध की शुरुआत हुई. और 22 जून तक चली. इस बीच लड़ाई इतनी भीषण थी कि एक बार दोनों सेनाओं के बीच सिर्फ़ एक टेनिस कोर्ट का फ़ासला रह गया था. कोहिमा में एक चेरी का पेड़ था. इस पेड़ पर जापान की फ़ौजें गोली चलाने का अभ्यास करती थीं. इस युद्ध में ये पेड़ बर्बाद हो गया था. बाद में इसी पेड़ की एक शाखा कोहिमा के वॉर मेमोरियल में लगाई गई. इस पेड़ के नाम पर इस युद्ध को ‘द बैटल अंडर द चेरी ट्री' भी कहा जाता है. 

इस जंग से पहली बार जापान की फ़ौज को अहसास हुआ था कि वो हार भी सकते हैं. इस जंग में ब्रिटिश फ़ोर्सेस की मदद करने वाले 98 साल के सोसांगतेम्बा आओ ने साल 2021 में BBC से बातचीत के दौरान बताया था, 

“जापानी फौजी मौत से भी नहीं डरता था. उनके लिए सम्राट के लिए लड़ना भगवान के लिए लड़ने जैसा था. समर्पण करने के बजाय वो लड़ते हुए मर जाने के लिए तैयार थे?”

इसके बावजूद इस युद्ध में जापान की हार हुई. इसके दो कारण थे. पहला कि उन्होंने मदद के लिए आ रही ब्रिटिश फोर्सेस का अंदाजा नहीं लगाया था. दूसरा, इस दौरान इम्फाल और कोहिमा में भोजन की कमी हो गई थी. इस कमी का सामना ब्रिटिश और भारतीय फौजों को भी करना पड़ा था. और यहीं से निकली बदलू राम की कहानी. 

बदलूराम का बदन 

बदलूराम असम रेजिमेंट के एक सिपाही थे. जो युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए . बदलूराम की मौत के बाद क्वॉर्टर मास्टर लिस्ट से उनका नाम हटाना भूल गया या शायद उसने जानबूझकर ऐसा किया. इससे हुआ ये कि बदलूराम के हिस्से का राशन कई महीनों तक लगातार आता रहा और इकट्ठा होता गया. लड़ाई के दौरान जब जापानी सेना ने रसद की लाइन काट दी, तब सैनिकों ने बदलूराम का राशन का कर काम चलाया. इस राशन ने लड़ाई में निर्णायक भूमिका निभाई. जिसके बाद बदलूराम की याद में एक गीत लिखा गया जो आसाम रेजिमेंट का मार्चिंग गीत बन गया. ये गीत बताता है कि कैसे सैनिक युद्ध में बलिदान हुए अपने सैनिकों को याद रखते हैं. जिसे सुनकर आप अपनी रेजिमेंट के प्रति प्रतिबद्धता महसूस करते हैं. बदलूराम हमारे लिए मारा गया, और अब बदलूराम के बदले लड़ेंगे. 

वायमेट शहर का क्लब (तस्वीर: Wikimedia Commons)

बदलूराम की कहानी इकलौती नहीं हैं. दुनिया भर में जितनी सेनाएं हैं उनके अपने नायक है, ऐसे सैनिक हैं जिनकी कहानी एक प्रतीक बनकर एक परम्परा की शुरुआत करती है. ऐसे ही एक और कहानी सुनिए, जो द्वितीय विश्व युद्ध के शुरुआती सालों की है. न्यू जीलैंड में टेड नाम का एक सैनिक युद्ध में जाने वाला था. वायमेट नाम के शहर में वो एक पब में बैठा अपनी ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था. इस दौरान उसने एक बीयर आर्डर की. जैसे ही उसने बोतल का ढक्कन खोलना चाहा, तभी उसे ट्रेन की सीटी सुनाई दी. उसने बोतल वापस करते हुए पब वाले से कहा, आकर पियूंगा! 
इसके बाद वो भागता हुआ ट्रेन तक पहुंचा. ट्रेन में चढ़ा और युद्ध करने चला गया. युद्ध के दौरान उसे एक स्नाइपर की गोली लगी और वो वीरगति को प्राप्त हो गया. उसकी बोतल जो पब में ही रह गई थी, उसे खोला नहीं गया. और उसे आज साल 2022 तक उसी पब में वैसा ही रखा हुआ है. द्वितीय विश्व युद्ध की याद में न्यू ज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में ‘ANZAC डे’ मनाया जाता है. रिटायर हुए सैनिक इस दिन उस पब में जाते हैं. और टेड के नाम पर चीयर्स करते हैं. 

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