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पॉलिटिकल पार्टियों की फंडिंग को लेकर क्या नियम हैं?

अगर पॉलिटिकल पार्टी की कमाई पर टैक्स नहीं लगता तो कांग्रेस को आईटी का नोटिस क्यों मिला है?

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POLITICAL FUNDING
पॉलिटिकल फंडिंग (फोटो-एक्स)
9 अप्रैल 2024
Updated: 9 अप्रैल 2024 14:21 IST
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सब कुछ मुझे मुश्किल है, न पूछो मेरी मुश्किल
आसान भी हो काम तो आसां नहीं होता

नातिक़ गुलावठी का ये शेर इन दिनों  कांग्रेस पार्टी के हालत पर एकदम सटीक बैठता है. पिछले 10-12 सालों में इस पार्टी को हर मोर्चे पर एक बड़ी चोट पहुंची है. कई राज्यों में चुनाव हारी. जिन राज्यों में जीत गई वहां नेताओं ने बगावत कर सरकार गिरा दी. विधायक टूट गए. अभी-अभी इलेक्टोरल बॉन्ड्स की लिस्ट आई. जो पार्टी अपोजिशन की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है. उसे TMC जैसी एक रीजनल पार्टी के लगभग बराबर का चंदा मिला. ऊपर से पार्टी के नेताओं पर इनकम टैक्स, CBI और ED के मुकदमें चल रहे है. और अब चुनाव से चंद दिन पहले पूरी पार्टी ही इनकम टैक्स के घेरे में आ गई है. क्या हुआ है? इसको जानने से पहले एक रोचक बात जानिए. आप हम साल भर मेहनत करते हैं और फरवरी में इनकम टैक्स देते हैं. अब हमारे दिए टैक्स से ही तो सरकार चलती है. लेकिन पॉलिटिकल पार्टी की कमाई पर कोई टैक्स नहीं लगता. इसके बाद भी कांग्रेस को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने लगभग 3567 करोड़ का जुर्माने का नोटिस भेजा. कांग्रेस के बैंक अकाउंट सीज किए. और तो और कांग्रेस के नेताओं ने ये भी कहा कि बैंक में रखे पैसों से थोड़ा बहुत जुर्माना भी वसूल लिया.  सवाल उठता है कि अगर पॉलिटिकल पार्टी की कमाई पर टैक्स नहीं लगता तो कांग्रेस को आईटी का नोटिस क्यों मिला है?  चूंकि बात टैक्स की होनी है. इसलिए पहले समझते हैं किसी पोलिटिकल पार्टी की आमदनी क्या होती है.  

पॉलिटिकल पार्टी की आमदनी 

टैक्स हमेशा आमदनी पर लगाया जाता. तो सबसे पहला सवाल ये आता है कि पॉलिटिकल पार्टियों की आमदनी क्या है. अब चाहे नौकरी पेशा व्यक्ति हो या कोई बिजनेस संस्थान हो या कोई पॉलिटिकल पार्टी. सबकी आमदनी, वो कितना टैक्स देंगे और टैक्स में कितनी छूट मिलेगी. इन सभी बातों के लिए देश में एक कानून है. इनकम टैक्स एक्ट 1961. इस कानून के सेक्शन 13ए के अनुसार, पॉलीटिकल पार्टी की कुछ सोर्सेज हुई आय को टैक्स फ्री किया गया है. जैसे राजनीतिक दल को किसी व्यक्ति से मिले चंदे से होने वाली आय,घर की संपत्ति से होने वाली आय.
कैपिटल गेन्स माने किसी भी एसेट को बेचने से होना वाला फायदा. एसेट माने पूंजी. यानी अगर कोई पॉलिटिकल पार्टी अपनी किसी पूंजी जैसे कोई पार्टी ऑफिस, क्या कोई जमीन बेचती है तो उससे जो मुनाफा हुआ उसे कैपिटल गेन्स कहेंगे. इस तरह पर भी पॉलिटिकल पार्टी को टैक्स नहीं देना पड़ता है. हालांकि आपकी जानकारी के लिए बता दें. कोई आम व्यक्ति अगर अपनी पूंजी बेचता है और उससे कमाई होती है तब उसे कैपिटल गेन्स टैक्स देना पड़ता है. इस कानून के तहत समझ आता है कि पोलिटिकल पार्टी को टैक्स नहीं पड़ता. लेकिन ये इतना सिम्पल नहीं है. टैक्स न देने के लिए कुछ शर्तें भी हैं.  
 

जीरो टैक्स की शर्तें 

सबसे पहली शर्त है, इलेक्शन कमीशन में रजिस्ट्रेशन. देश में चुनाव और राजनितिक दलों के एडमिनिस्ट्रेशन के लिए एक विशेष कानून है. रिप्रजेंटेशन ऑफ़ people’s एक्ट 1951. इसका एक सेक्शन है. सेक्शन 29(ए). इसके अनुसार देश में मौजूद राजनैतिक दलों को अगर कुछ बेनिफिट्स चाहिए जैसे, पार्टी सिंबल मिलने में वरीयता  चाहिए या टैक्स में छूट चाहिए तो इलेक्शन कमीशन में रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है. दूसरी बात पॉलिटिकल पार्टियों को अपनी अकाउंट बुक्स और कुछ डाक्यूमेंट्स को लगातार अपडेट रखना होता है. जिससे आयकर विभाग यानी इनकम टैक्स के अधिकारी आमदनी का हिसाब चेक कर सके.  
अकाउंट्स बुक्स क्या होती हैं? कोई भी व्यक्ति या संस्था के पास कई जगहों से पैसा आता है और कई जगह खर्च होता है. इस आय और खर्च का हिसाब कई ढंग से रखा जाता है. इन अलग अलग रिपोर्ट्स को अकाउंट बुक्स कहते है. उदाहरण के तौर पर बैलेंस शीट.  
तीसरी शर्त, इन अकाउंट बुक्स में कुछ महत्वपूर्ण चीजों का जिक्र. जैसे, 20 हज़ार रुपये से ज्यादा का डोनेशन अगर हुआ है तब डोनर का नाम और अड्रेस का लेखा जोखा रखना भी जरुरी है. अब आप सोच सकते हैं कि चुनावी चंदे के लिए तो इलेक्टोरल बॉन्ड्स आया था. फिर ये अलग चंदा क्या है. दरअसल इलेक्टोरल बॉन्ड्स सिर्फ एक जरिया था. इलेक्टोरल बॉन्ड्स के अलावा चेक और कैश से भी पार्टी चंदा ले सकती थी. इलेक्टोरल बॉन्ड्स में बस फायदा ये था कि पार्टी को इलेक्टोरल की डिटेल्स देनी जरूरी नहीं है. मसलन किसने इलेक्टोरल बॉन्ड्स दिया, उसका नाम पता, दर्ज़ करने की जरुरत नहीं है. न इनकम टैक्स विभाग आपसे वो मांगेगा. हालाँकि अगर चेक से पैसा आया है. तो सारी डिटेल्स रखना जरूरी है.
अब अगली और चौथी शर्त है, सभी अकाउंट बुक्स का ऑडिट. पॉलीटिकल पार्टियों को अपने अकाउंट बुक्स का ऑडिट किसी chartered accountant से करवाना होता है. 
पांचवी शर्त, कोई भी पॉलिटिकल पार्टी कैश के माध्यम से 2000 रुपये से ज्यादा का डोनेशन नहीं ले सकती.
छठी शर्त, एक वित्तीय वर्ष में 20 हज़ार रुपये से ज्यादा के सभी डोनेशंस का पूरा लेखा जोखा इलेक्शन कमीशन को देना अनिवार्य है. ये जानकारी पॉलिटिकल पार्टी को अपना ITR भरने की डेडलाइन से पहले इलेक्शन कमीशन को सौपनी होती है. 
ये सब शर्तें पूरी की. तो किसी पोलिटिकल पार्टी को टैक्स नहीं भरना पड़ता. लेकिन इस मामले में एक बहुत महत्वपूर्ण चीज है. इनकम टैक्स रिटर्न की फाइलिंग. भले ही अभी बताई सभी शर्तें कोई पॉलिटिकल पार्टी पूरी कर दे. लेकिन सेक्शन 13A के अनुसार यदि कोई पार्टी इनकम टैक्स रिटर्न को डेडलाइन से पहले नही भरती है तब उसे टैक्स रिलीफ नहीं मिलेगा. 
 

इनकम टैक्स रिटर्न

इनकम टैक्स रिटर्न एक तरीके का फॉर्म है. जिससे ये समझ आता है कि किसी व्यक्ति या संस्था की एक साल में कितनी आमदनी हुई है. इस फॉर्म के जरिये व्यक्ति या संस्था कुछ चीजें डिक्लेअर करते हैं. 
जैसे, 
-अपनी आमदनी
-टैक्स में मिलने वाली छूट
-टैक्स कितना भरा गया है
 
इनकम टैक्स एक्ट 1961 के सेक्शन 139 4B के हिसाब से अगर किसी पॉलिटिकल पार्टी को इनकम टैक्स में छूट चाहिए तो उसे इनकम टैक्स रिटर्न भरना जरुरी है. इस फॉर्म पर पार्टी के treasurer के हस्ताक्षर होते हैं.

कांग्रेस की मुश्किलें लगातार बढ़ रही है. लेकिन फिलहाल इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने सुप्रीम कोर्ट में कहां है कि चुनाव होने तक इनकम टैक्स डिपार्टमेंट कांग्रेस के खिलाफ कोई बड़ा कदम नहीं उठाएगा. 

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