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ये धारा लगी तो ज़मानत मिलने में पसीने छूट जाएंगे

पैसे के कई सारे सोर्स हो सकते हैं. भ्रष्टाचार, क्राइम, ड्रग्स की तस्करी, आंतकवाद. और, इसके जरिये बस कुछ लाख या करोड़ रुपये नहीं कमाए जाते हैं, यहाँ खेल होता है सैकड़ों या हज़ारों करोड़ रुपयों का.

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Prevention Of Money Laundering Act
प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (फोटो-एक्स)
9 अप्रैल 2024 (Updated: 9 अप्रैल 2024, 13:29 IST)
Updated: 9 अप्रैल 2024 13:29 IST
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नवंबर 2012, मौसम ठंडा था लेकिन दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में गर्मी बढ़ रही थी. ईमानदारी की प्रतिज्ञा और करप्शन के खिलाफ वार का वादा. जन्म हुआ एक नई राजनीतिक पार्टी का - आम आदमी पार्टी. समय के साथ इसके कुछ फाउंडर्स जैसे कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण ने पहले ही पार्टी का साथ छोड़ दिया था. पार्टी के बाकी बचे बड़े नेता जैसे संजय सिंह, सतेंद्र जैन, मनीष सिसोदिया और अब खुद मुख्यमंत्री जेल में है. दिल्ली शराब घोटाला केस में. केस दर्ज हुआ प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 के तहत.

तो समझते हैं-
-क्या है मनी लॉन्ड्रिंग और प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002?
-साथ ही ये भी जानेंगे कि इसमें बेल मिलना इतना मुश्किल क्यों है?

 

मनी लॉन्ड्रिंग

सीधे साधे शब्दों में कहें तो मनी लॉन्डरिंग माने-काले धन को सफ़ेद बनाना. TED-ED की एक वीडियो के अनुसार, 'मनी लॉन्डरिंग' - इस शब्द का जन्म 20वी सदी के गैंगेस्टर और बिजनेसमैन Al Capone की कहानी से हुआ.  इस गैंगस्टर ने गैरकानूनी तरीकों से अपने वक़्त में करोड़ों डॉलर कमाए. ड्रग समग्लिंग वगैरह से. लेकिन पुलिस को उसका ये पैसा कभी नहीं मिलता था. वजह? Al Capone अपने आदमियों की मदद से इस पैसे को अलग-अलग जगह इन्वेस्ट करता था और इससे होने वाली कमाई सफ़ेद हो जाती थी.

अब मनी लॉन्ड्रिंग को लॉन्ड्री के उदाहरण से समझिए. जैसे गंदे कपड़ों को धोने के लिए लॉन्ड्री में भेजा जाता है, और साफ़-सुथरे कपड़े पैक होकर वापस मिलते हैं; ठीक वैसा ही मनी लॉन्ड्रिंग के केस में भी होता है. बस यहां कपड़ों की जगह होते हैं पैसे. मनी. यानी, गैर कानूनी तरीके से कमाया गया पैसा, कुछ इस तरह पूरे सिस्टम में घुमाया जाता है कि वो सफ़ेद हो जाता है.

अब ये गैर-कानूनी पैसा कहां से आता है और इसे बदलना क्यों जरुरी है?

इस पैसे के कई सारे सोर्स हो सकते हैं. भ्रष्टाचार, क्राइम, ड्रग्स की तस्करी, आंतकवाद. और, इसके जरिये बस कुछ लाख या करोड़ रुपये नहीं कमाए जाते हैं,  यहाँ खेल होता है सैकड़ों या हज़ारों करोड़ रुपयों का. अगर इतना पैसा कोई व्यक्ति सीधे उपयोग करेगा तो इनकम टैक्स और बाकी एजेंसियों को बड़ी आसानी से उसकी खबर लग जाएगी. इस वजह से इस पैसे को पूरे सिस्टम में इस तरह घुमाया जाता है कि काला धन पूरी तरह से सफ़ेद हो जाता है.
इसमें तीन स्टेज होते हैं. इसको समझिए एक उदाहरण से.
मान लीजिए किसी ने 100 करोड़ रूपए काला धन कमाया. अब अगर ये पैसा सीधे बैंकिंग सिस्टम में जाएगा तो बैंकिंग सिस्टम सचेत हो जाएगा इसलिए इसमें तीन अलग अलग स्टेज में पैसे को घुमाया जाता है.  
सबसे पहला स्टेप है, प्लेसमेंट. इसमें पैसे को एक वैध वित्तीय सिस्टम जैसे बैंकों में जमा किया जाता है. कैसे? सौ करोड़ रूपए को छोटे-छोटे अमाउंट में बांटा जाएगा. जैसे 1 लाख या 50 हजार. और फिर इसे बैंकिंग सिस्टम में लाया जाएगा.  

इतनी छोटी रकम के ट्रांजैक्शन को बैंकिंग सिस्टम शक की निगाह से नहीं देखता है. क्योंकि देश में रोज इतने पैसों का ट्रांजेक्शन होता है. ये कुछ आउट ऑफ़ दा ऑर्डिनरी नहीं है.

खैर, अभी कपड़े वाशिंग मशीन में डाले गए हैं, इनका धुलना बाकी है.

तो सेकंड स्टेज में होगी धुलाई.इसे लेयरिंग कहते हैं. जैसे वॉशिंग मशीन कपड़े धोने के लिए बार बार घूमती है. वैसे ही इस पैसे को बैंकिंग सिस्टम में बार बार घुमाया जाता है. इतने कॉम्प्लेक्स ट्रांजैक्शन किए जाते हैं कि इस पैसे का असली सोर्स पता लगाना लगभग असंभव हो जाता है. इसके बाद पैसा तो वैध हो जाता है. लेकिन इसे वैध तरीके से वापस अब उस क्रिमिनल तक भी पहुंचाना भी यानी धुलाई के बाद अब आती है पैकेजिंग की बारी.

यानी थर्ड स्टेज -इंटीग्रेशन.इसमें कई तरीके आजमाए जाते हैं. जैसे डोनेशन, कई अलग अलग सोर्स से और कानूनी तरीकों का इस्तेमाल करके डोनेशन दिया जा सकता है. या विदेश में बनी कोई शेल कंपनी से इनवेस्टमेंट के नाम पर भी पैसा आ सकता है.

मनी लॉन्ड्रिंग से दो बड़े संकट खड़े होते हैं.

एक तो ये इतना कॉम्प्लेक्स क्राइम है. इसके लिए एक अलग एक्सपर्ट जांच एजेंसी की जरूरत है.
दूसरा संकट है इस पैसे का सोर्स और इस्तेमाल. इतना बड़ा अमाउंट कुछ बड़े क्राइम से बनाया जा सकता है, जैसे स्मगलिंग, भ्रष्टाचार और आंतकवाद. और जब ये पैसा लौट कर क्रिमिनल या आतंकवादी के पास पहुंचेगा तब फिर ऐसा क्राइम और तेज़ी से बढ़ेगा.
इन दोनों संकटों को ध्यान में रखते हुए. साथ FATF के मानकों का भी खयाल करते हुए. भारत सरकार ने साल 2002 में एक कानून बनाया. प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002. (PMLA)
 

प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 (PMLA )

इस कानून को बनाने के पीछे 3 उद्देश्य थे.

-मनी लॉन्डिंग जैसे क्राइम पर रोक लगाना.
-मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए कमाई हुई संपत्ति को जब्त करना.
-मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े बाकी मुद्दों पर कारवाही करना.

इस कानून में 3 मुख्य बिंदु है.

-अधिकारियों की शक्तियां
-दोषी को मिलने वाला दंड
-केस की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट

अब इन सब को बारी-बारी समझते हैं. सबसे पहले बात अधिकारियों को मिलने वाली शक्तियों की.
 

अधिकारियों की शक्तियां

ये कानून ED के कुछ अधिकारियों को मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों में जांच करने का अधिकार देता है. इसके साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल व्यक्ति की संपत्ति को अटैच करने और जब्ती के अधिकार का प्रावधान करता है. इस कानून के तहत एक इंटेलिजेंस यूनिट भी बनाई गई है. नाम FIU-India यानी फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट इंडिया. ये एजेंसी वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आती है. जैसे रॉ का काम है, भारत की सुरक्षा के विषय में ख़ुफ़िया जानकारी झुटाना वैसे ही FIU का काम है मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जानकारी झुटाना. इसके साथ ही FIU-IND के निदेशक के पास एक और ताकत है. अगर बैंकिंग कंपनियां, वित्तीय संस्थाएं कानून का पालन करने में विफल हुईं तो FIU के डायरेक्टर इन सस्थाओं पर जुर्माना लगा सकते हैं.

स्पेशल कोर्ट

इस कानून में PMLA के तहत होने वाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत बनाई गई. इस अदालत में दो तरह के मुकदमों की सुनवाई होती है. पहला PMLA के तहत आने वाले अपराध या PMLA के साथ ही कुछ ऐसे अपराध जो IPC का हिस्सा हैं.

गुनाह की सजा

इस कानून में मनी लॉन्ड्रिंग की सजा का जिक्र भी है. जैसे,

-अपराधी की उस संपत्ति को जब्त किया जाता है जो मनी लॉन्ड्रिंग की कमाई से खरीदी गई है.
-इसके अलावा इस कानून में कम से कम 3 साल की सजा और अधिकतम 7 साल तक की सजा का प्रावधान है.
-अपराधी पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
-अगर मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध नार्कोटिक्स और ड्रग्स से जुड़ा है तब 10 साल तक की सजा हो सकती है.

बेल मिलने दिक्कत क्यों?

बेल मिलने में दिक्कत क्यों होती है, इसके पीछे सबसे पहली वजह है बर्डन ऑफ़ प्रूफ. ये क्या होता है? गुनाह साबित करने की जिम्मेदारी देश में ज्यादातर अपराधों जैसे चोरी, अटेम्पट टू मर्डर वगैरह में एक चीज़ का ध्यान रखा जाता है. “इनोसेंट अंटिल प्रूवेन गिल्टी” यानी कोई भी आरोपी तब तक निर्दोष है जब तक उसे दोषी साबित न किया जाए. अगर सबूत नहीं है तो आरोपी को गुनाहगार नहीं माना जाएगा. यहां पुलिस या जांच एजेंसी की ज़िम्मेदारी है कि वो सबूत जुटाए और आरोपी पर दोष साबित करे.
लेकिन देश में कुछ ऐसे अपराध भी हैं जैसे UAPA. इसमें प्रोसेस उल्टा होता है. “गिल्टी अंटिल प्रूवेन इनोसेंट” यानी आरोपी को एक तरह से दोषी माना जाता है. और इस मामले में ये आरोपी की ज़िम्मेदारी होती है कि वो खुद को निर्दोष साबित करे. PMLA में भी ऐसा ही है. आरोपी को ही ये साबित करना पड़ता है कि उस पर लगे आरोप गलत हैं और वो निर्दोष है.

अब सबसे जरुरी चीज़. क्या? इस प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में एक सेक्शन है. सेक्शन 45.
इसमें बेल के लिए दो शर्तें हैं.
पहली शर्त - कोर्ट के सामने पर्याप्त कारण होने चाहिए. जिसे देख कर पहली नज़र में कोर्ट इस बात से संतुष्ट हो सके कि आरोपी निर्दोष है.

दूसरी शर्त- कोर्ट को ये भरोसा हो कि ये आरोपी बेल पर छूटने के बाद इस अपराध में कोई भूमिका नहीं अदा करेगा.

इन दोनों शर्तों को पूरा करना काफी मुश्किल होता है.

इसके अलावा VIJAY MADANLAL केस में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ और भी एक्सेप्शन बताए थे. जैसे- आरोपी किसी अपराध में जेल में है. लेकिन उसकी सुनवाई समय से नहीं हो पा रही है. मान लीजिये उस अपराध में मैक्सिमम सजा 7 साल की है. और अभी तक सुनवाई भी पूरी नहीं हुई है और उसने जेल में रहते हुए उसे मैक्सिमम सजा की आधी से ज्यादा अवधि जेल में गुजार दी है. उदाहरण के मामले में देखे तो साढ़े तीन साल से ज्यादा समय. ऐसी सिचुएशन में बेल मिलने की गुंजाईश होती है.

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