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नेल्सन मंडेला के साथ चार क़दम, वहाँ तक जहाँ गाँधी का ख़ून बिखरा था

नेल्सन मंडेला के साथ चलते हुए हम बिड़ला भवन में ठीक उस जगह पहुँच गए थे जहाँ 75 वर्ष पहले नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी की गोली मारकर हत्या की थी.

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नेल्सन मंडेला और महात्मा गांधी. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे)
30 जनवरी 2023 (Updated: 30 जनवरी 2023, 14:57 IST)
Updated: 30 जनवरी 2023 14:57 IST
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नेल्सन मंडेला के साथ चलते हुए हम बिड़ला भवन में ठीक उस जगह पहुँच गए थे जहाँ 75 वर्ष पहले नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी की गोली मारकर हत्या की थी.

वो शायद अक्तूबर का महीना था पर दिल्ली की सुबहें सर्द होने लगी थीं. अख़बार का सबसे जूनियर रिपोर्टर होने की वजह से मुझे तड़के गाँधी स्मृति जाने को कहा गया. पूरे 27 साल की जेल काटने के बाद मंडेला फ़रवरी 1990 में रिहा हुए थे और आठ महीने बाद ही भारत की यात्रा पर आ गए. मंडेला उस जगह को देखना चाहते थे जहाँ अहिंसा की राह दिखाने वाले एक निहत्थे बूढ़े की 30 जनवरी 1948 को हिंसक और दर्दनाक मौत हुई थी. वो गाँधी को अपना राजनीतिक गुरू मानते थे.

तब भारत में 24 घंटे चलने वाले टीवी न्यूज़ का दौर शुरू नहीं हुआ था. इसलिए कोई टीवी कैमरा वहाँ मौजूद नहीं था. अख़बारों के रिपोर्टरों को भी शायद मंडेला के गांधी स्मृति जाने की ख़बर में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं रही होगी. मेरे अलावा सिर्फ़ एक और रिपोर्टर वहाँ था. कुल जमा दस-बाहर लोग मंडेला के आने का इंतज़ार कर रहे थे. सुरक्षा का भी कोई भारी इंतज़ाम नहीं था. कुछ पुलिस वाले ज़रूर खड़े थे.

तभी कुछ लोगों के साथ गहरे नीले रंग का कोट-पैंट और टाई पहने हुए एक लहीम शहीम शख़्स लंबे लंबे डग भरता हुआ गेट से पैदल अंदर की ओर आता दिखाई दिया. उसका क़द हर तरह सबसे ऊँचा था. मेरे सामने वो व्यक्ति खड़ा था जो उस दौर की सबसे क्रूर शासन व्यवस्था से टकराया था और जीता था. मैं ख़ुद को रोक नहीं पाया. आसपास खड़े लोगों और प्रोटोकॉल की परवाह किए बिना मैंने अफ़्रीकन नेशनल काँग्रेस वाले अंदाज़ में मुट्ठी भींचकर दाहिना हाथ हवा में उठाया और ज़ोर से चिल्लाकर कहा – कॉमरेड मंडेला!

("कॉमरेड मंडेला" अफ्रीकी नेशनल काँग्रेस में प्रयोग किया जाने वाला सामान्य संबोधन था)

2008 में भारत दौरे के दौरान नेल्सन मंडेला. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे)

नेल्सन मंडेला ने मेरी ओर देखा और अपना लंबा सा हाथ बढ़ाते हुए मुझ तक चले आए.  मैंने उनकी चौड़ी हथेली को अपने हाथ में महसूस किया. इसी हाथ से क़ैदी मंडेला ने रोबेन आइलैंड में पत्थर तोड़े थे. दक्षिण अफ़्रीका की रंगभेदी सरकार ने उन्हें इसी द्वीप में क़ैद रखा था क्योंकि उन्होंने अपने लोगों की मुक्ति का सपना देखा था.

हम साथ साथ चलने लगे. बाक़ी लोगों का एक छोटा झुंड भी हमारे साथ चल रहा था. एक भद्र महिला बहुत देर तक अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पाईं और उन्होंने मंडेला के पास आकर पूछ ही डाला, “विनी हैज़न्ट कम?” (नेल्सन मंडेला की पूर्व पत्नी विनी मंडेला). “नो, शी हैज़न्ट”. बस इतना ही कहा था मंडेला ने. दो साल बाद ख़बर आई कि दोनों में सैपरेशन हो गया है और 1996 में दोनों ने तलाक़ ले लिया.

नेल्सन मंडेला उस जगह के बारे में बारीक से बारीक चीज़ जानना चाहते थे जहाँ गाँधी का ख़ून बिखरा था. वहीं एक दरवाज़े पर पैर पोछने के लिए रखे गए मैट पर अंग्रेज़ी में लिखा था ‘कुमार’. मंडेला ने मुझसे पूछा – कुमार का क्या अर्थ होता है? मैंने बताया कि इसका मतलब सुपुत्र से लेकर राजा का बेटा कुछ भी हो सकता है, और ये किसी का नाम भी हो सकता है.

हम साथ साथ उसी रास्ते पर चल रहे थे जिस पर चलकर महात्मा गाँधी आख़िरी बार प्रार्थना सभा गए थे, लेकिन बीच में ही नाथूराम गोडसे ने उनका रास्ता रोक लिया था. जिस जगह पर गोडसे ने गाँधी को गोली मारी, उस जगह को अब किसी स्मारक की तरह सजा दिया गया है. वहाँ कंक्रीट और चमकीले पत्थरों की एक छतरी सी बना दी गई है. दूसरे लोगों की तरह मंडेला ने भी वहाँ पहुँचने से पहले जूते उतार  दिए थे.

पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा (बाएं) और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव (दाएं) के साथ नेल्सन मंडेला. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे.)

दस साल बाद नेल्सन मंडेला ने टाइम मैगज़ीन के लिए गाँधी पर एक लेख लिखा था – द सेक्रेड वॉरियर. इस लेख में उन्होंने गाँधी को उपनिवेशवाद विरोधी क्रांतिकारी कहा. वो गाँधी को अपना राजनीतिक गुरू मानते थे. इसी लेख में उन्होंने लिखा, “गाँधी की इस बात ने दुनिया भर के उपनिवेश विरोधी और नस्लभेद विरोधी आंदोलनों को ताक़त दी है कि ‘हमें तभी दबाया जा सकता है जब हम अपने आततायी से सहयोग करते हैं’.” मंडेला मानते थे कि उन्हें और गाँधी को औपनिवेशिक सरकार की यातनाओं से इसलिए गुज़रना पड़ा क्योंकि हमने अपने लोगों को उन सरकारों के ख़िलाफ़ गोलबंद किया जिन्होंने हमारी आज़ादी को कुचल दिया था.

अन्याय के ख़िलाफ गाँधी के अहिंसक तौर-तरीक़ों का दुनिया ने लोहा माना है. भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि गाँधी के बिना अधूरी है. दुनिया भर में गाँधी और भारत को एक दूसरे के पर्याय के तौर पर देखा जाता है. मगर पिछले कुछ साल में गाँधी के अपने देश में ही उन पर लगातार और भयावह हमले होते रहे हैं. ये हमले ज़िंदा गाँधी पर हुए हमले से किसी मायने में कम नहीं हैं.

गाँधी पर होने वाले इन हमलों में एक पैटर्न होता है. अचानक कोई नेता गाँधी के ख़िलाफ़ एक बयान देगा, फिर उसकी पार्टी उस बयान से ख़ुद को दूर कर लेगी. एक दूसरा नेता कहेगा कि हम महात्मा गाँधी के ख़िलाफ़ ऐसे बयानों का बिलकुल समर्थन नहीं करते. लेकिन फिर कहीं सोशल मीडिया में एक वीडियो जारी कर दिया जाएगा जिसमें गाँधी की तस्वीर पर खिलौना पिस्तौल से गोली चलाने का दृश्य व्हाट्सऐप के ज़रिए घर घर तक पहुँचा दिया जाएगा. कुछ दिनों तक उस पर आश्चर्य जताने और आलोचना करने का दौर चलेगा. कुछ महीनों की शांति के बाद फिर किसी दिन सत्ताधारी पार्टी का कोई नेता नाथूराम गोडसे को देशभक्त बता देगा. मगर बाकी सब लोग कहेंगे कि वो इसका अनुमोदन नहीं करते.

भोपाल से भारतीय जनता पार्टी की सांसद और मालेगाँव बम विस्फोट कांड की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर ने 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान गोडसे को देशभक्त बताया था. तुरंत बीजेपी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने कह दिया कि हम पूरी तरह उनसे असहमत हैं और इस बयान की आलोचना करते हैं. ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कहना पड़ गया कि इस बयान के लिए वो प्रज्ञा ठाकुर को दिल से माफ़ नहीं कर पाएँगे. हालाँकि इस विवाद के बावजूद ठाकुर बंपर वोटों से भोपाल की सीट जीतीं.

मोदी शासन के पहले पाँच वर्षों में बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने भी संसद के बाहर गोडसे की तारीफ़ की थी. हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने तो यहाँ तक कह दिया था कि आज गाँधी को कैलेंडर से हटाया गया है, कल नोट से भी उनकी तस्वीर हट जाएगी. ये बात उन्होंने तब कही जब 2017 में खादी ग्रामोद्योग ने अपने सालाना कैलेंडर में गाँधी की तस्वीर हटाकर उनकी जगह चरखा कातते नरेंद्र मोदी की तस्वीर छाप दी थी. इस पर विवाद हुआ तो बीजेपी प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने कह दिया कि ये अनिल विज के निजी विचार हैं और पार्टी इससे सहमत नहीं है.

भारत आते रहे नेल्सन मंडेला. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे.)

उत्तर कर्नाटक से बीजेपी  एमपी अनंत कुमार हेगड़े ने फरवरी 2020 में एक समारोह के दौरान गाँधी पर हमला करते हुए कहा, “जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने कुछ भी बलिदान नहीं दिया उन्होंने देश को ये समझाया कि उनके उपवास और सत्याग्रह से देश को आज़ादी मिली और इससे वो महापुरुष बन गए.” इस बार भी बीजेपी ने इन्हें हेगड़े के निजी विचार कहकर दूरी बना ली. ये वही अनंत कुमार हेगड़े हैं जिन्होंने 2017 में एक आमसभा में कहा था कि बीजेपी संविधान संशोधन करके सेक्युलर शब्द को हटा देगी. बाद में इसके लिए उन्होंने माफ़ी माँग ली.

गाँधी की हत्या के बाद भी उनके विचार ख़त्म नहीं हुए बल्कि फैले ही हैं. गाँधी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने प्रात:स्मरणीय विभूतियों में शामिल किया है. फिर भी संघ गाँधी को न पूरी तरह स्वीकार कर पाया है और न ही पूरी तरह ख़ारिज. गोडसे के लिए भी पूरी तरह स्वीकार या ख़ारिज करने में संघ के लिए ऐसी ही उहापोह बनी रहती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघचालक प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह उर्फ़ रज्जू भैया ने 1998 में मुझसे एक इंटरव्यू के दौरान कहा था, “गोडसे अखंड भारत के विचार से प्रेरित थे. उसके मंतव्य अच्छे थे पर उसने अच्छे उद्देश्य के लिए गलत मैथड इस्लेमाल किया.”

संघ के ही एक और सिद्धांतकार डॉ. देवेंद्र स्वरूप से गाँधी और गोडसे पर संघ के द्वंद्व को लेकर एक इंटरव्यू में मुझसे कहा, “हमें ये स्वीकार करना पड़ेगा कि नाथूराम गोडसे जो किया निस्वार्थ भाव से किया. उसमें उसका कोई निजी स्वार्थ नहीं था. उसे ये ज़रूर पता होगा कि वो जो कुछ कर रहा है उसके लिए उसे फाँसी होगी. इस भाव से इंकार नहीं किया जा सकता है.”

गोडसे पर संघ के विचारों पर उन्होंने उसी इंटरव्यू में ये भी कहा, “आरएसएस पूरी तरह ये मानता है कि गोडसे ने भावनाओं में बहकर ये कार्य किया और ये हिंदू एकता के लिए ठीक नहीं था. मृत गाँधी जीवित गाँधी से ज़्यादा शक्तिशाली साबित हुए.” बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय समन्वयक प्रकाश शर्मा ने भी स्पष्ट रूप से कहा कि “उस समय गोडसे देश के प्रति चिंतित थे और उन्होंने वही किया जो उन्हें उचित लगा.”

नेल्सन मंडेला. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे.)

एक और समानांतर इकोसिस्टम है जो शायद सीधे किसी संगठन से या विचारधारा से नहीं जुड़ा है. लेकिन ये इकोसिस्टम लगभग रोज़ाना ऐसे कई तरीक़े अपनाता है जिनसे हमारे सामूहिक मानस पटल पर बनी गाँधी की तस्वीर को पिक्सल दर पिक्सल बदलता रहता है. दिनरात हम तक पहुँचने वाले व्हाट्सऐप संदेश, मीम्स, सोशल मीडिया पोस्ट इस तस्वीर को बदल रहे हैं. कभी किसी फोटो में गाँधी को विदेशी महिलाओं के साथ नाचते हुए दिखाया जाता है, किसी में ब्रह्मचर्य के उनके प्रयोगों का हवाला देते हुए उन्हें एक अनैतिक और कामुक बूढ़े के तौर पर पेश किया जाता है तो कभी उन्हें भारत विभाजन का दोषी बताया जाता है. इस तरह सत्य, अहिंसा और हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की बात करने वाले गाँधी की बजाए राष्ट्रपिता की एक नई और डरावनी तस्वीर उभारी जा रही है. ये एक मौका परस्त, समझौता परस्त, मुस्लिम परस्त, हिंदू विरोधी, यौनविकृतियों से भरे हुए एक बूढ़े की तस्वीर है – ऐसी तस्वीर जिससे भारतीयों की आने वाली नस्लें घृणा करें. ये तस्वीर डरावनी है.

वीडियो: तारीख: महात्मा गांधी दुनिया में इतने फेमस क्यों हैं?

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