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फ्रेंच लेखक जो बंगाल का 'दादा' बन गया!

डोमिनिक लेपियर की पूरी कहानी क्या है?

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French author Dominique Lapierre attends the dedication ceremony of a school in a village of Lakshmikantapur, some 40 kms south of Kolkata, 28 February 2007. (AFP photo)
French author Dominique Lapierre attends the dedication ceremony of a school in a village of Lakshmikantapur, some 40 kms south of Kolkata, 28 February 2007. (AFP photo)
6 दिसंबर 2022 (Updated: 6 दिसंबर 2022, 21:08 IST)
Updated: 6 दिसंबर 2022 21:08 IST
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फ़रवरी 2006 की एक दोपहर सुंदरबन के तट पर नाव से उतर रहे उस विदेशी मेहमान के लिए पूरा गांव इकट्ठा हुआ था. अधिकतर लोग अपने रोज़मर्रा का काम छोड़कर आए थे. उनके लिए ये मेहमानवाज़ी से ज़्यादा अपना प्यार जताने का मौका था. इसलिए, वे बड़ी मेहनत से बैनर्स बनाकर लाए थे, जिनपर टेढ़ी-मेढ़े अक्षरों में ‘डोमिनिक दादा ज़िंदाबाद’ लिखा हुआ था. उनके हाथों में तरतीबी से गूंथी गई गेंदे के फूल की मालाएं भी थीं. कुछ समय बाद इन मालाओं के भार से नाव का संतुलन भी बिगड़ने वाला था. मगर बेशुमार प्यार और सम्मान से कुछ भी असंतुलित नहीं होने दिया. ये सारा इंतज़ाम फ़्रांसीसी लेखक डोमिनिक लेपियर के लिए था.

उस मौके पर रेडिफ़ डॉट कॉम की पायल सिंह मोहनका भी मौजूद थीं. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में इस घटना के बारे में लिखा, ‘जब फ़्रेंच लेखक डोमिनिक लेपियर अपनी पत्नी के साथ नाव से उतरे, तब वहां बजते ढोलकों से मोहब्बत और कृतज्ञता की धुनें निकल रहीं थी.’

भारत के विभाजन पर ‘फ़्रीडम एट मिडनाइट’, कोलकाता पर ‘सिटी ऑफ़ जॉय’, भोपाल गैस ट्रेजडी पर ‘फ़ाइव पास्ट मिडनाइट’ जैसी किताबें लिखने वाले डोमिनिक लेपियर फ़्रांस में पैदा हुए थे, लेकिन सुंदरबन के लोगों के लिए वो अपने ‘डोमिनिक दादा’ थे. 04 दिसंबर 2022 को डोमिनिक दादा नहीं रहे. 91 बरस की उम्र में उनका निधन हो गया.

आज हम जानेंगे,
- डोमिनिक लेपियर की पूरी कहानी क्या है?
- और, उनकी रचनाओं ने दुनिया को कैसे प्रभावित किया?

इसके अलावा जानेंगे, पाकिस्तान में इमरान ख़ान को अब कौन सा बड़ा झटका लगने वाला है?

साल 1948 का पेरिस शहर. सत्रह साल का एक नौजवान लड़का क्लासरूम में बैठा झपकियां ले रहा है. उसे किताबी ज्ञान में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी. उसे बाहर घूमकर दुनियावी अनुभवों को दर्ज़ करना अच्छा लगता था. एक दिन उसने स्कूल से घर लौटकर अपनी गुल्लक खंगाली. उसमें कुल जमा 30 डॉलर्स थे. इन्हीं पैसों को जेब में भरकर वो लड़का नॉर्थ अमेरिका की यात्रा पर निकल गया. उसने लगभग 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा इन्हीं पैसों से की. बीच में उसे कुछ समय छोटी-मोटी नौकरियां भी कीं. मगर उसने अपना सफ़र पूरा किया और आगे चलकर इसपर एक किताब लिखी. अ डॉलर फ़ॉर अ थाउजेंड माइल्स. यानी एक हज़ार मील के लिए एक डॉलर. ये किताब बाद में बेस्टसेलर बनी और इसने उस लड़के को सफ़लता का पहला स्वाद महसूस कराया. वो लड़का डोमिनिक लेपियर था.

डोमिनिक लेपियर (क्रेडिट-Getty)

नॉर्थ अमेरिका से वापस लौटने के बाद डोमिनिक को फ़्रेंच आर्मी में शामिल कर लिया गया. वहां उनकी मुलाक़ात एक अमेरिकी सैनिक लैरी कॉलिन्स से हुई. आर्मी में अनिवार्य सेवा पूरी करने के बाद कॉलिन्स ने न्यूज़वीक जॉइन कर लिया, जबकि डोमिनिक पेरिस मैच के लिए रिपोर्टिंग करने लगे. फ़ील्ड रिपोर्टिंग के दौरान दोनों की अक्सर मुलाक़ातें होतीं थी. दोनों में दोस्ती हो गई. और, उन्होंने साथ मिलकर किताबें लिखने का फ़ैसला किया. 1965 में उन्होंने साथ में पहली किताब लिखी, इज पेरिस बर्निंग? ये सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान मित्र सेनाओं द्वारा पेरिस को आज़ाद कराने की घटना पर बेस्ड थी. ये किताब भी बेस्ट-सेलिंग साबित हुई. डोमिनिक और लैरी कॉलिन्स का साथ चल निकला. उन्होंने आगे भी कई मशहूर किताबों पर काम किया. कुछ नाम जान लीजिए.

- इज़रायल के बनने पर ‘ओ जेरूसलम!’. ये पहली बार 1971 में पब्लिश हुई. इसमें जेरूसलम शहर के इतिहास और पहले अरब-इज़रायल युद्ध की कहानी है. किताब लिखने से पहले डोमिनिक और लैरी कॉलिन्स ने दोनों तरफ़ के हज़ारों ऐसे लोगों से बात की थी. इसे इज़रायल-फ़िलिस्तीन विवाद पर लिखी सबसे मुकम्मल और सबसे निष्पक्ष किताबों में गिना जाता है. इसपर 2006 में फ़िल्म भी बनी.

- दोनों ने 1971 में भारत के आज़ादी आंदोलन और विभाजन पर ‘फ़्रीडम एट मिडनाइट’ लिखी. इसमें ब्रिटिश राज के आख़िरी दिनों से लेकर महात्मा गांधी की हत्या और उनके अंतिम-संस्कार तक की घटना दर्ज़ है.
इसके अलावा, दोनों ने साथ में ‘द फ़िफ्थ हॉर्समैन’ और ‘इज़ न्यू यॉर्क बर्निंग’ जैसे थ्रिलर उपन्यास भी लिखे.

डोमिनिक लेपियर और लैरी कॉलिन्स फ़्रांस में आसपास में ही रहा करते थे. 2005 में कॉलिन्स की मौत हो गई.

डोमिनिक लेपियर ने अकेले भी कई किताबों पर काम किया, जो दुनियाभर में प्रतिष्ठित हुईं. सिटी ऑफ़ जॉय में उनका फ़ोकस कोलकाता पर रहा. उनकी किताब ‘फ़ाइव पास्ट मिडनाइट इन भोपाल’ भोपाल गैस हादसे पर लिखी सबसे मुकम्मल किताबों में गिनी जाती है. लेपियर ने सोवियत संघ की यात्रा पर ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन यूएसएसआर’ लिखी. उनकी अधिकतर किताबें बेस्टसेलर्स बनीं. उन्हें करोड़ों बार खरीदा गया. लेपियर दुनिया के सबसे सफ़ल लेखकों में शुमार किए गए. लेकिन उन्होंने इस सफलता को उन लोगों के साथ भी बांटा, जो उनकी रचनाओं के आधारस्तंभ थे.

अब डोमिनिक लेपियर के इंडिया कनेक्शन के बारे में जान लीजिए.

- लैपियर पहली बार भारत हनीमून मनाने आए थे. उन्हें भारत से प्यार हो गया. कुछ समय बाद वो वापस लौटे. इस दौरान वो तीन साल तक भारत में घूमे, इंटरव्यूज़ किए और फिर फ़्रीडम एट मिडनाइट सामने आई.

- लैपियर ने 1985 में सिटी ऑफ़ जॉय लिखी. ये कोलकाता के एक रिक्शाचालक हसारी पाल के अनुभवों और झुग्गियों में ईसाई मिशनरियों के काम पर आधारित थी. हसारी पाल एक समय भरा-पूरा किसान हुआ करता था. अकाल और सूखे के चलते उसे अपना गांव छोड़कर कोलकाता आना पड़ा था. उस शहर में उसके जैसे लाखों थे. सिटी ऑफ़ जॉय में ज़िंदा रहने का संघर्ष लिखा है.

लैपियर को कोलकाता बहुत पसंद आया. कोलकाता के बारे में उन्होंने कहा था,

‘कोलकता और बंगाल के लोगों से प्यार की कहानी बहुत लंबी है. इस शहर के कई पहलू हैं और उससे भी ज्यादा मुझे इस शहर के लोग प्रभावित करते हैं. वे हर परिस्थिति में मुस्कुराना जानते हैं.’

सिटी ऑफ़ जॉय के नायक ने बाद में उन्होंने सिटी ऑफ़ जॉय फ़ाउंडेशन की स्थापना की. अपने किताबों से मिलने वाली रॉयल्टी का अधिकतर हिस्सा कोलकाता और सुंदरबन के गांवों पर खर्च करते थे.

कोलकाता में ही रहने के दौरान उन्हें भोपाल गैस हादसे के पीड़ितों से मिलने के लिए बुलाया गया. इस मुलाक़ात ने उन्हें इस हद तक प्रभावित किया कि उन्होंने इसपर किताब लिखने का फ़ैसला किया. ये किताब ‘फ़ाइव पास्ट मिडनाइट इन भोपाल’ के नाम से जानी गई. इस किताब की रॉयल्टी को उन्होंने भोपाल हादसे के पीड़ितों की मदद के लिए लगा दिया.

डोमिनिक लेपियर (क्रेडिट-Getty)

लैपियर हमेशा कहा करते थे कि जो चीज़ मैं लिखता हूं. अगर असल ज़िंदगी में उसका पालन नहीं कर पाया, तो इसका कोई मतलब नहीं रह जाएगा.

लैपियर आज इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन उनका लिखा और उनका किया बरगद की शाखों की तरह पूरी दुनिया में फैल चुका है. वो इस दुनिया के कायम रहने तक बरकरार रहेगा.

डोमिनिक लैपियर के चैप्टर को यहीं पर विराम देते हैं. अब चलते हैं पाकिस्तान.

पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को एक और बड़ा झटका लग सकता है.

2022 का साल उनके लिए कतई अच्छा नहीं रहा है. अप्रैल में उनके ख़िलाफ़ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव पास हो गया. उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. अक्टूबर में चुनाव आयोग ने उन्हें पांच साल के लिए अयोग्य ठहरा दिया. नवंबर में उनके ऊपर हमला हो गया. अब चुनाव आयोग उन्हें उनकी पार्टी के मुखिया की पोस्ट से हटाने की बात कर रहा है. इमरान अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ (PTI) की स्थापना के समय से पार्टी के चेयरमैन बने हुए हैं. बहुत संभव है कि चुनाव आयोग इमरान को पार्टी चीफ़ के पोस्ट से हटाने में सफ़ल हो जाए. लेकिन चुनाव आयोग ऐसा क्यों कर रहा है? और, इमरान को पद से हटाने का प्रोसेस क्या होगा? ये भी जान लेते हैं.

साल 1974. पाकिस्तान ने अपने नेताओं, सरकारी अफसरों, नौकरशाहों , सैन्य कर्मियों और दूसरे सरकारी अधिकारियों के लिए एक विभाग की स्थापना की और नियम बनाया. नियम ये था सरकार से संबंधित लोगों को विदेशी महमानों से जो भी कीमती गिफ्ट मिलेंगे उन्हें तोशाखाना में रखा जाएगा. इस तरह पाकिस्तान में तोशखाना की स्थापना हुई.

कट टू साल 2018.

अगस्त के महीने में इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. इमरान के सामने पाकिस्तान की खस्ता हालत अर्थव्यवस्था संभालने के अलावा एक और बड़ी चुनौती थी. वो चुनौती थी दूसरे देशों के साथ पाकिस्तान के रिश्ते सुधारना. 2015 में पाकिस्तान FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर निकला था. लेकिन 2018 में उसकी ग्रे लिस्ट में वापसी भी हो गई थी. FATF की ग्रे लिस्ट में आने के मायने थे कि इमरान को विदेशी आर्थिक मदद नहीं मिलेगी. इसके लिए इमरान का दूसरे देशों से पाकिस्तान से संबंध नोर्मलाइज़ करना और अहम हो गया था. फिर इमरान ने विदेशी दौरे शुरू किए. अरब और यूरोप के कई छोटे बड़े देशों में उन्होंने यात्रा की. इस यात्रा के दौरान उन्हें कई महंगे तोहफ़े मिले.

नियम के मुताबिक इमरान को ये तोहफे तोशखाने में जमा करवाना था. इमरान ने वैसा ही किया. पहले उन बेशकीमती तोहफों को तोशखाने में दे दिया. लेकिन उन्होंने बाद में तोशाखाना से इन्हें सस्ते दामों पर खरीदा और बड़े मुनाफे में बेच दिया. इस पूरी प्रक्रिया को उनकी सरकार ने बकायदा कानूनी अनुमति दी थी.

अगस्त 2022 में PDM माने पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट ने इमरान के ख़िलाफ़ एक केस दायर किया. PDM ने कहा था कि इमरान ने विदेशी दौरों में मिले महंगे तोहफों के सही विवरण पेश नहीं किया है. इलेक्शन कमीशन ऑफ़ पाकिस्तान ने इस मामले में जांच शुरू की. सुनवाई के दौरान इमरान ने चुनाव आयोग को बताया था कि राज्य के खजाने से इन गिफ्ट्स को 2.15 करोड़ रुपए में खरीदा गया था और इन्हें बेचकर उन्हें करीब 5.8 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था. इन गिफ्ट्स में एक Graff घड़ी, कफलिंक का एक जोड़ा, एक महंगा पेन, एक अंगूठी और चार रोलेक्स घड़ियां सहित कई दूसरे तोहफे भी थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इमरान खान को उनके साढ़े तीन साल के प्रधानमंत्री पद के  कार्यकाल के दौरान दुनियाभर के कई नेताओं से 14 करोड़ रुपये से अधिक लागत के 58 गिफ्ट मिले थे.  

ECP के पास इमरान का केस पेंडिंग था. 21 अक्टूबर 2022 को फैसला आया. फैसले में इमरान दोषी पाए गए. ECP ने कहा कि इमरान अगले 5 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते. इस फैसले का विरोध करते हुए इमरान ने लॉन्ग मार्च शुरू किया. देश के अलग-अलग हिस्सों में घूमकर फिर से चुनाव करवाने की मांग की.

अब मामले में कौन सा नया मोड़ सामने आया है?

ECP ने कहा है कि इमरान अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ PTI के अध्यक्ष नहीं रह सकते हैं. ECP के अधिकारी ने पाकिस्तानी अखबार डॉन को बताया है कि इमरान खान को इस मामले में एक नोटिस जारी किया गया है और मामले की सुनवाई 13 दिसंबर तय की गई है. PTI ने भी नोटिस मिलने की बात को कबूला है. साथ में PTI ने कहा कि कोई भी कानून किसी दोषी को राजनितिक दल का ज़िम्मेदार बनने से नहीं रोक सकता.

साल 2002 में पाकिस्तान में ‘पोलिटिकल पार्टी आर्डर’ नाम से राजनैतिक दलों के लिए एक एडवाईज़री जारी की गई थी. उसके मुताबिक पाकिस्तान का हर नागरिक कोई भी पोलिटिकल पार्टी बनाने, उसका सदस्य बनने, किसी पॉलिटिकल पार्टी की गतिविधि में शामिल हो सकता है. पार्टी में बड़ी ज़िम्मेदारी पाने के लिए पाकिस्तान के संविधान में कायदे बताए हुए हैं. संविधान के अनुच्छेद 63 के मुताबिक अगर वो शख्स मजलिस-ए-शूरा माने पाकिस्तान की पार्लियामेंट में नहीं चुना जाता तो वो अपनी पार्टी के बड़े ओहदे में नहीं रह सकता.

हालांकि 2017 चुनाव अधिनियम में इस नियम को समाप्त कर दिया गया था. फिर साल 2018 में ‘2017 चुनाव अधिनियम’ के ख़िलाफ़ याचिका दायर की गई. पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 62 और 63 के मुताबिक अगर कोई शख्स अयोग्य घोषित किया जाता है तो वो किसी राजनीतिक दल का नेतृत्व नहीं कर सकता है.

अली बाबा के फाउंडर जैक मा कहां छिपे हुए थे?

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