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घोसी उपचुनाव: इन 5 वजहों के बिना सपा को नहीं मिलती इतनी बड़ी जीत, बसपा का भी 'हाथ' है

घोसी उपचुनाव के नतीजों से लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बीजेपी पर कोई असर पड़ेगा?

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Yogi Adityanath and Akhilesh Yadav
घोसी उपचुनाव के नतीजों का लोकसभा चुनाव में क्या असर होगा? (तस्वीरें- पीटीआई)
8 सितंबर 2023 (Updated: 8 सितंबर 2023, 22:09 IST)
Updated: 8 सितंबर 2023 22:09 IST
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यूपी की घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने बहुत बड़ी जीत हासिल की है. सपा के उम्मीदवार सुधाकर सिंह ने बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को 42,759 मतों से हरा दिया. घोसी सीट पर हुए चुनाव का यूं तो सरकार पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन ये चुनाव कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण था. कयास लग रहे हैं कि सपा की जीत से बीजेपी की चिंता बढ़ सकती है. इस उपचुनाव को 'NDA बनाम I.N.D.I.A.' वाला चुनाव भी कहा गया. साथ ही NDA के नए सहयोगी सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर की परीक्षा वाले चुनाव के तौर पर भी देखा गया. यही नहीं, इस चुनाव को अखिलेश यादव के PDA समीकरण वाला चुनाव भी कहा गया. आइए समझते हैं घोसी के नतीजों के क्या मायने हैं.

जीत-हार की 5 वजहें!

1- दारा सिंह चौहान को लेकर स्थानीय लोगों में नाराज़गी - कभी बीएसपी के कद्दावर नेता रहे दारा सिंह 2017 में बीजेपी में आए और मधुबन से चुनाव जीतकर मंत्री बन गए. 2022 में बीजेपी छोड़ सपा में चले गए और घोसी आकर चुनाव लड़ विधायक बने. सवा साल बाद अचानक सपा छोड़ वापस बीजेपी में चले गए और इस वजह से उपचुनाव कराना पड़ा. बीजेपी ने उन्हीं को टिकट भी दे दिया. ऐसे में स्थानीय लोग मान रहे थे कि दारा सिंह चौहान की वजह से ये उपचुनाव कराना पड़ा है. दलबदल और उपचुनाव लोगों की नाराज़गी की वजह बन गई.

2- सपा को कांग्रेस का साथ मिलना और बीएसपी का प्रत्याशी ना उतारना - घोसी उपचुनाव से ठीक पहले I.N.D.I.A. गठबंधन बना जिसकी वजह से एक बार फिर सपा को कांग्रेस का साथ मिल गया. ऐसे में कांग्रेस के वोट सपा को मिल गए. सपा की जीत की बड़ी वजह बीएसपी का चुनाव न लड़ना भी रहा. ऐसे में जो भी बीएसपी का वोटर बीजेपी को वोट नहीं करना चाहता था, उसके पास मज़बूत विकल्प के तौर पर सपा ही थी. ऐसे में कुछ पिछड़ी जाति, कुछ दलित वोट, मुस्लिम और सुधाकर सिंह की अपनी जाति राजपूत बिरादरी के वोटर सपा के पक्ष में आ गए.

3- बीजेपी के स्थानीय नेताओं का अघोषित असहयोग - घोसी के नतीजों का सीधे तौर पर सरकार पर कोई असर नहीं पड़ना था. ऐसे में बीजेपी के स्थानीय नेताओं का ये मानना था कि अगर दारा सिंह ये चुनाव जीते तो वो इस सीट पर स्थापित हो जाएंगे. साथ ही ओम प्रकाश राजभर इस जीत को अपने प्रभाव की वजह से हुई जीत बताने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे. ऐसे में दारा सिंह चौहान और ओम प्रकाश राजभर का पार्टी में प्रभाव कम करने के लिए स्थानीय नेताओं ने खुलकर प्रत्याशी को समर्थन नहीं दिया. स्थानीय नेताओं की बेरुख़ी का भी चुनाव पर असर हुआ है.

4- मुस्लिमों का सपा की तरफ आ जाना - 2022 में मुस्लिम वोट सपा को मिले थे. हालांकि घोसी में माहौल अलग था. यहां बीएसपी ने वसीम इक़बाल को टिकट दिया था. घोसी में एक अनुमान के मुताबिक़ लगभग 70 हज़ार मुस्लिम वोट हैं. तब वसीम इक़बाल को क़रीब 55 हज़ार वोट मिले और वो तीसरे नम्बर पर रहे. इस बार बीएसपी के चुनाव न लड़ने और कोई मज़बूत मुस्लिम प्रत्याशी न होने की वजह से ज़्यादातर मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी प्रत्याशी सुधाकर सिंह को मिल गए.

5- लोकल बनाम बाहरी का मुद्दा - घोसी में जब बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को प्रत्याशी बनाया तो सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने सबसे पहले स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा छेड़ दिया. लोगों का कहना था कि दारा सिंह चौहान रहने वाले आज़मगढ़ के, राजनीति की मऊ ज़िले की मधुबन सीट से और अब वो घोसी आ गए. जबकि सुधाकर सिंह स्थानीय होने की वजह से व्यक्तिगत तौर पर लोगों से हमेशा जुड़े रहे. 2012 में वो विधायक भी रहे और घोसी में रह कर राजनीति करने की वजह से वो आसानी से दारा सिंह को बाहरी बता चुनाव को 'लोकल बनाम बाहरी' का कर ले गए.

घोसी के नतीजे क्यों जरूरी?

इस उपचुनाव को आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. अगले 7-8 महीनों में होने वाले आम चुनाव में 

80 लोकसभा सीटें होने के चलते यूपी को आम चुनाव के लिहाज से सबसे ज़रूरी राज्य के तौर पर देखा जाता है. ऐसे में घोसी का उपचुनाव NDA और I.N.D.I.A. दोनों के लिए यूपी में अपनी चुनावी पकड़ का अंदाजा लगाने का अंतिम मौका था. इसके बाद सीधा 2024 में निर्णायक टक्कर होगी. 

घोसी सीट पर मिली जीत के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का रुतबा I.N.D.I.A. गठबंधन में बढ़ना तय है. इसके बाद लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच विपक्ष जनता को ये बताने का मौका नहीं चूकेगा कि लोग सरकार और बीजेपी से नाराज़ हैं. वहीं बीजेपी को भी ये नतीजे मंथन कर नए सिरे से रणनीति बनाने को मजबूर करेंगे. 

बीजेपी पर इस चुनाव का कोई बहुत बड़ा असर पड़ेगा ऐसा लगता नहीं. लेकिन सपा पर ये बेशक मनोवैज्ञानिक असर छोड़ेगी. पार्टी और मज़बूती के साथ 2024 चुनाव की तैयारी में जुट जाएगी.

ओम प्रकाश राजभर का क्या होगा?

हाल ही में बीजेपी की अगुवाई वाली NDA ने अपने सहयोगी दलों की फ़ेहरिस्त में एक नाम जोड़ा. ये नाम था सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का. सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर हमेशा से दावा करते रहे हैं कि पूर्वांचल में उनका दबदबा है. खासतौर पर घोसी को वो गढ़ होने का दम भरते रहे. 2022 में राजभर सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे थे. पूर्वी उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़, बलिया, मऊ, गाज़ीपुर और अम्बेडकरनगर में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो ओम प्रकाश राजभर ने ये दावा किया कि उनकी वजह से बीजेपी की हार हुई. अब राजभर बीजेपी के साथ हैं और उनके गढ़ में हुई हार से राजभर का असर थोड़ा कम होगा. उन्हें मंत्री बनाए जाने की अटकलें हैं. अगर वो मंत्री बन भी गए तो इस हार के बाद राजभर के पास वो ताक़त नहीं रहेगी, जिसकी उम्मीद करके वो बीजेपी के साथ गठबंधन में आए थे.

बीजेपी पर क्या असर होगा?

बीजेपी ने 2024 में यूपी की सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. एक विधानसभा उपचुनाव की हार से उसके अभियान पर शायद ही असर पड़े. फिर भी राजनीतिक रूप से चुनावी हार से अच्छा संदेश तो नहीं ही जाएगा. लेकिन ये कहना जल्दबाजी ही होगी कि घोसी का चुनाव लोकसभा की दिशा और दशा तय करेगा. उसके लिए बीजेपी के पास पीएम मोदी का चेहरा है. फिर बड़े चुनाव में बड़ी रणनीति के साथ चुनाव लड़ा जाएगा. 

बीएसपी भी लोकसभा चुनाव मज़बूती से लड़ने की तैयारी में है. ऐसे में बीजेपी नई प्लानिंग के साथ बूथ मैनेजमेंट करके चुनाव में जाएगी. बीजेपी घोसी के नतीजों के बदले अपने सहयोगी दलों पर दबाव बना सकती है. सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर के अलावा निषाद पार्टी के डॉ संजय निषाद और अपना दल के आशीष पटेल ने जम कर घोसी में प्रचार किया था. तीनों अपनी अपनी जाति के वर्चस्व का दावा करते हैं, लेकिन घोसी में किसी का दम नहीं दिखा. ऐसे में सहयोगी दलों में भी बीजेपी के सामने बारगेन करने की क्षमता कम होगी. 

वीडियो: घोसी चुनाव में OP राजभर ने क्यों कहा ये राजभर-अखिलेश की लड़ाई है

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