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डाकू छविराम के एनकाउंटर का किस्सा सीधे एटा से

जब डाकू को मारने के लिए महबूबा और दूध के गिलास का सहारा लिया गया.

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4 फ़रवरी 2017 (Updated: 4 फ़रवरी 2017, 07:23 IST)
Updated: 4 फ़रवरी 2017 07:23 IST
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अकबर पूरी रफ्तार से गंगा की कछार में बसे गांवों को रौंदते हुए आगे बढ़ रहा है. अगली बारी ‘सकीट’ की है. रास्ते में हरे भरे खेत. उनके पार गढ़ी, जिसे ध्वस्त करना बस कुछ घंटों का खेल है. पहली कतार में हैं खुद बादशाह अकबर. अपने हाथी दिलशंकर पर सवार, मगर ये क्या? हाथी तो गिर गया. क्योंकि जिसे जमीन समझा था, वो खाई थी. मगर ये क्या. ये तीर सनसनाता कहां से आया. जो अकबर के जिरहबख्तर को छेद कर सात अंगुल भीतर चला गया.
ऊपर आपने जो पढ़ा. वो एटा के बुजुर्ग पत्रकार कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय ने सुनाया. कहा, “जैसा मैं बता रहा हूं वैसा आइने अकबरी में भी लिखा है”.
मैंने वो किताब नहीं पढ़ी. किस्सों को किताबों से अलग कर के ही देखना चाहिए. श्रुति परंपरा, आपके वास्ते. आप सोच रहे होंगे कि हाथी, उसके सवार और सेना को खाई नजर क्यों नहीं आई?
दरअसल सकीट के चतुर बाशिंदों ने पहले खाई खोदी. फिर पानी भरा. फिर धान बो दिया. लश्कर को लगा कि सपाट मैदान है. और यहीं वो धोखा खा गए. तीरंदाज तैनात थे. लेकिन अकबर की किस्मत मेहरबानी के बुर्ज पर तैनात थी. सो वो बच गए. सकीट के लोगों को भागना पड़ा. भयंकर प्रतिशोध लिया बादशाह ने. 1 हजार हिंदुओं को जला दिया गया. ऐसा उपाध्याय जी ने कहा. वह जिस हिंदुस्तान समाचार एजेंसी से जुड़े हैं, वह आरएसएस के विचार से संबद्ध है. उपरोक्त प्रसंग इस तथ्य की रौशनी में ही पढ़ें.
कृष्ण प्रभाकर जी अपने घर के बड़े बुजुर्ग से दिखते हैं. सज्जन स्वभाव के. उनसे कहा कि एटा के नौजवान तो अकड़े से दिखते हैं. आपसे बात कर ऐसा नहीं लगा. तो वह मजाक में बोले, “रिवॉल्वर निकालें क्या?”
फिर रिवॉल्वर निकलीं. सब तरफ से, बातों की, किस्सों की. मौके पर एटा के कई पत्रकार थे. हर उमर के. उन्होंने जो कहा उस पर गौर फरमाएं. प्रमाणिकता आपकी अपनी.

1- विधायक को मार जमीन में गाड़ दिया, फर्जी एनकाउंटर से पहले पता चला...

छिबरामऊ की एक औरत थी, फूलश्री. उसके पति को पुलिस पकड़ ले गई. डकैतों का साथ देने के जुर्म में. फूल को लगा कि आदमी अब मार दिया जाएगा. वो पुलिस कप्तान के पास गिड़गिड़ाई. बोली, हम आपको विधायक के अपहरण की जानकारी देंगे. मगर हमारे मरद को बख्श दो.
कौन सा विधायक? कैसा किडनैप? एटा जिले की अतरौली सीट से 1967 में जनसंघ के टिकट पर विधायक रहे सतीश शर्मा. फिर वह गायब हो गए. शोर मचा कि उठा लिया गया है. माने किडनैप हो गया है. इलाके में छविराम डकैत का आतंक था. आस-पास के यादव बहुल गांवों में उसका प्रभाव था. तीन चार महीने बीत गए. विधायक जी का कुछ पता नहीं चला. उन्हीं विधायक की बात कर रही थी पड़ोसी जिले की फूलश्री. उसने पुलिस को बताया कि नेता जी गड़े हैं. जिंदा नहीं मुर्दा. एक जगह और उन्हें गाड़ा है महावीरा ने. जो छविराम गैंग का मेंबर है. लाश खोदी गई. सबूत भी मिल गया. नाम सामने आया लटूरी सिंह यादव का. जो सतीश शर्मा से चुनाव हारे थे. उसके पहले और बाद में कई बार विधायक रहे. उनके भाई साधु सिंह समेत कई लोगों को सतीश शर्मा मर्डर में सजा हुई.

2- रखैल ने दूध में नशा मिलाया तो राष्ट्रपति मेडल मिला कप्तान को

छविराम का बड़ा खौफ था. पुलिस पकड़े तो कैसे. पहचानती ही नहीं थी. फिर उसने कुरावली के पास पड़रिया चौराहे पर बड़ा भारी जग्ग (यज्ञ) किया. 8 दिन चला. छविराम वहां था. हजारों लोगों के बीच. पुलिस पकड़ नहीं पाई. आगरा तक से पत्रकार देखने कवर करने आए थे. फिर आया साल 1980. वीपी सिंह सीएम बने. उन्होंने कहा कि दस्यु तो खत्म कर के रहेंगे. पुलिस को खुली छूट दी गई. यहां कप्तान थे विक्रम सिंह साहब. बाद में डीजीपी हो रिटायर हुए. उन्होंने एक आदमी को फोड़ा. मथुरा सिंह नाम के. सजातीय, मगर छविराम के गैंग में. मथुरा सिंह की एक रखैल थी. वो छविराम के भी साथ थी.
उसने दूध में कुछ ऐसा नशीला पदार्थ मिला दिया कि पूरा गैंग बेसुध. गैंग उस वक्त जैथरा थाना के सरौट इलाके में था. पिंजरी नाम की जगह पर. मगर पुलिस ऐसे कैसे भरोसा कर ले. तो एक आदमी मौके पर भेजा गया. जब उसने देख लिया कि कोई फायर ठोंकने की हालत में नहीं है, तो पुलिस को खबर की. फिर सब पकड़ लिए गए. खरउआ नाला के पास की बात है. फिर छविराम का एनकाउंटर कर दिया गया.
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डाकू छविराम

कप्तान साहब को पहला प्रेजिडेंट मेडल मिला. 1 लाख का इनामी डकैत था छविराम. यहां जो भी नेता दिख रहे हैं, ज्यादातर उसी के चेले थे, ऐसा भी कहा गया.
लिखे गए की बात करें तो वीपी सिंह ने अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘मंजिल से ज्यादा सफर’ में छविराम का जिक्र किया है. यह भी कहा कि जब उससे समर्पण के लिए बातचीत चल रही थी, तब एक बार पुलिस ने उसका लोकेशन पता होने पर भी एक्शऩ नहीं लिया. ताकि भरोसा न टूटे. बाद में छविराम मुकर गया तो पुलिस ने उसका एनकाउंटर कर दिया.
एक किरदार ने बाद में भी कांड किया. रखैल. जिसका नाम नहीं बताया गया. बस इसी शब्द को दोहराया गया. उसने एक शर्मा इंजीनियर की पत्नी को भी गोली मार दी. पत्रकारों के मुताबिक वहां सौतिया डाह का मामला था. सत्य कथा सी भाषा के लिए माफी. मगर ज्यों का त्यों बताने का बीड़ा जो उठाया है.

3- डाकू का भी विचार मंच

छविराम अभी सिर्फ किस्सों में नहीं हैं. लेटर पैड पर भी है. एटा के सलीम मियां चलाते हैं, ‘छविराम विचार मंच’. मैनपुरी के सादेश यादव उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. कुछ पत्रकार बोले, सादेश छविराम के बेटे हैं. सादेश ने कहा, नहीं ऐसा नहीं है. सादेश ‘वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल’ के नेता हैं. जिसे जौनपुर के भरत गांधी चलाते हैं.
कैसी सुंदर कविता रची जा रही है ये लिखते हुए. सलीम मियां और छविराम विचार मंच पर लौटते हैं. पड़रिया चौराहे पर छविराम की मूर्ति लगाने के लिए आंदोलन हुआ. पुलिस ने उठाकर मुकदमा ठांस दिया. जेल जाना पड़ा. विचार सब हवा हो गए.

4-काहे लड़ंका
  होते हैं सब

एक आखिरी बात. यहां के लोग इतने लड़ंका क्यों होते हैं, इसकी एक व्याख्या, इकलौती नहीं. इस्लाम लगातार बढ़ता आ रहा था. उसे रोकने के लिए यहां कुछ क्रूर खूंखार लड़ाका समूहों को बसाया गया. यहां से लेकर मैनपुरी-इटावा-भिंड-मुरैना तक. इसीलिए मुगलों के काल में भी यहां कोई नवाब नहीं बना. कोई रियासत नहीं बसी और विकास भी नहीं हुआ. अभी भी ऐसा ही है. न लोगों का मिजाज बदला, न इलाके की सूरत. अगर यहां से जीटी रोड न निकले तो निरा गांव है. कुछ भी नहीं है यहां.
इसका एक प्रतिपक्ष भी है. कि एटा तो आप यूं समझ लें कि मक्का-काशी से कम नहीं है. सब कुछ तो यहीं है. बस कोई सरकार देख नहीं पाती. एटा से 15 किलोमीटर दूर अतरंजीखेड़ा में हड़प्पा काल के शुरुआती अवशेष हैं. लोहे, गेहूं और सागौन के चिह्न मिले हैं. यानी आर्यों से भी पहले की बसावट. ईसा से 3500 साल पूर्व की. रामायण काल की तरफ लौटें तो भरत शत्रुघ्न की ससुराल यहीं थी. संकिसा में .राज जनक के चचेरे भाई थे कुशध्वज. उनकी दो बेटियां थीं. मांडवी और श्रुतकीर्ति. ये इलाका इनका मायका था.
महाभारत की बात करते हैं अब. द्रौपदी का मायका भी यहीं था. पड़ोसी जिले फर्रुखाबाद के कंपिल में. राजा द्रुपद की राजधानी थी. ऋषियों का भी जिक्र हो. उत्तर और दक्षिण को एक करने वाले ऋषि अगस्त्य (ये लोकश्रुति मेरे लिए नई थी. मैंने पेशाब कर समंदर बनाने वाली कहानी ही सुनी थी.) की तपस्थली भी यहीं सराय अगहर में थी. इस्लाम के बरेलवी संप्रदाय के गुरु भी यहीं से थे. हम भी यहीं थे. पूरे एक दिन. जब ये सब सुना. सो आपको सुनाया. एटा का लपेटा.


https://www.youtube.com/watch?v=qk0alksFn7o
https://www.youtube.com/watch?v=VWIxUBCT9so


 

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