खुसरो पाती प्रेम की बिरला बांचे कोय,
वेद, क़ुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय.गोरी सोवे सेज पर मुख पर डारे केस,
चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुं देस.
तुर्की मूल के खुसरो पूरी जिंदगी बड़े ही फख्र के साथ खुद को हिन्दुस्तानी कहते रहे. उनके दुनिया से विदा लेने के लगभग 700 साल बाद भी हम खुसरो को हिंदुस्तानी शायर के तौर पर ही याद करते हैं. 1253 में पैदा हुए अमीर खुसरो ने यह कभी नहीं सोचा होगा कि उनकी पैदाइश के 765 साल बाद एक छोटी सी कहा-सुनी के चलते उनका कासगंज इस तरह जलने लगेगा.
2008 में एटा से अलग होकर जिला बने कासगंज के बीचो-बीच एक चौराहा पड़ता है, बारहदरी चौराहा. यहां एक बात लतीफे की तरह सुनाई जाती है कि कासगंज इतना छोटा शहर है कि अगर कोई बारहदरी चौराहे पर खड़ा होकर कायदे से पत्थर फेंके तो यह कासगंज से बाहर जाकर गिरेगा. इसी बारहदरी चौराहे से निकलने वाली एक सड़क बिलग्राम गेट की तरफ जाती है. इसी के पास है तहसील कार्यालय और कासगंज पुलिस कोतवाली. 26 तारीख के रोज तहसील दफ्तर के सामने एक युवक की लाश पड़ी हुई थी जिसे बाद में अभिषेक उर्फ़ चंदन गुप्ता के नाम से पहचाना गया. चंदन के यहां पहुंचने और गोली लग जाने का किस्सा रेलवे स्टेशन से शुरू होता है.

कासगंज जंक्शन रेलवे स्टेशन के पास बाबा शेर नाथ का मंदिर है. बाबा शेर नाथ कासगंज के गोरखपंथी संन्यासी थे. 2017 में योगी आदित्यनाथ सूबे के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद से प्रदेश भर में गोरखपंथ के भुला दिए गए मंदिर कई लोगों को अचानक से याद आना शुरू हुए. बाबा शेर नाथ के मंदिर के साथ भी ऐसा ही हुआ.
कासगंज में कुछ नौजवानों ने संकल्प फाउंडेशन नाम का एक एनजीओ बनाया था. यह एनजीओ रक्तदान और गरीबों को कपड़े बांटने का काम करता था. मारा गया युवक चंदन गुप्ता भी इस एनजीओ का सदस्य था. जुलाई के आस-पास इस एनजीओ से जुड़े कुछ नौजवानों ने बिसरा दिए गए बाबा शेर नाथ के मंदिर पर बैठकबाजी शुरू की. हर मंगलवार को यहां दूसरे नौजवान भी जुटने लगे और कीर्तन शुरू हो गया.

21 जनवरी 2018. काल दर्शक पंचांग में इस तारीख के खांचे में बारीक अक्षरों में दर्ज था, “माघ चतुर्थी”. इस दिन ही बाबा शेर नाथ के मंदिर का प्रतिष्ठा दिवस था. चंदन और उसके दोस्तों ने बाबा गोरखनाथ की मूर्ति के साथ शहर भर में शोभायात्रा निकाली. इस शोभायात्रा के दौरान रास्ता देने को लेकर उसकी कुछ मुस्लिम नौजवानों के साथ कहासुनी भी हो गई थी. इसके बाद कासगंज के माहौल में तनाव पैदा होना शुरू हो गया था. 26 तारीख की घटना इसी तनाव की उपज थी.
इससे एक दिन पहले 20 जनवरी को कासगंज के एक हिन्दू युवक ने अपनी फेसबुक वॉल पर एक उत्तेजक पोस्ट लिखी. इस पोस्ट का मजमून था-
” सीएम योगी ने मुसलमानों को कह दिया पाकिस्तान जाना है तो चले जाओ. अगर भाड़ा नहीं है तो मैं दे दूंगा.”
इस पर कासगंज के ही एक मुस्लिम युवक का जवाब आया,
“ये देश तुम्हारे बाप का है क्या?”
इसके बाद दोनों तरफ से अभद्र भाषा में कमेंटबाजी शुरू हो गई. देखते ही देखते कमेंट 1000 के करीब पहुंच गए. इसमें मुस्लिम समुदाय के एक युवक की तरफ से कमेंट किया गया था,
“हिम्मत है तो चामुंडा गेट आकर दिखा.”
हिन्दुओं की तरफ से इसका जवाब दिया गया,
“आएंगे, जरुर आएंगे.”

26 तारीख को क्या हुआ?
26 तारीख को सुबह करीब 9.30 बजे 80 के करीब युवक बाइक पर तिरंगा झंडा लेकर झुण्ड में रवाना हुए. इन नौजवानों ने इसे नाम दिया था, “तिरंगा यात्रा.” ये लोग 15 अगस्त के मौके पर भी ऐसी ही यात्रा निकाल चुके थे. उस समय भी इनकी मुस्लिम युवकों के साथ हलकी झड़प हुई थी.
चामुंडा गेट के पास एक इलाका है बद्दुनगर. यह पतली गलियों और घनी मुस्लिम आबादी वाला इलाका है. यहां पर प्राइमरी स्कूल के सामने एक तिराहा है. 1965 की जंग के जांबाज शहीद अब्दुल हमीद की याद में इसका नामकरण हुआ था. 26 तारीख की सुबह बाइक पर सवार चंदन और उसके साथी जब यहां पहुंचे तो यहां पर भी गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में झंडारोहण चल रहा था.

बददु नगर के कुछ मुस्लिम युवक तिराहे पर टेबल डालकर बैठे हुए थे. चारों तरफ तिरंगे गुब्बारे लगे हुए थे और देशभक्ति के गीत बज रहे थे. यह तिराहा इतना संकरा है कि अगर एक टेबल डाल दी जाए तो यह लगभग बंद हो जाता है. चंदन और उसके साथियों ने आगे जाने के लिए रास्ता मांगा. मुस्लिम युवकों ने रास्ता देने से मना कर दिया. इसके बाद जो हुआ उसके दो ब्यौरे हमारे पास हैं.
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि रास्ते को लेकर हुई कहासुनी के बाद चंदन और उसके साथियों ने “हिंदुस्तान में रहना है, तो वंदेमातरम कहना है.” और “क@@ का एक स्थान, पकिस्तान या कब्रिस्तान” जैसे नारे लगाए गए. इसके बाद दोनों पक्षों में झड़प शुरू हो गई. बाद में सामने आए वीडियो में हिन्दू पक्ष के युवक ‘हिंदुस्तान में रहना है तो वन्देमातरम कहना है’ जैसा नारा लगाते हुए दिख भी रहे हैं. लेकिन पकिस्तान और कब्रिस्तान का नारा लगाए जाने का कोई ठोस सबूत नहीं है. इधर इस रैली में शामिल कुछ हिन्दू युवाओं का दावा है कि उन्होंने बददु नगर में ‘पकिस्तान जिंदाबाद’ जैसा नारा सुना था जिसके बाद झड़प की शुरुआत हुई. हालांकि इस दावे के पक्ष में भी कोई ठोस सबूत नहीं है.
गणतंत्र दिवस का जश्न मनाने के लिए उठाए गए झंडे एक पल में ही डंडों में तब्दील हो गए. दोनों तरफ के लोग डंडे और पत्थर चलाने लगे. पत्थरबाजी शुरू होने के बाद चंदन और उसके साथियों ने पीछे हटने में ही भलाई समझी. अपनी बाइक मौके पर छोड़कर ये लोग तहसील दफ्तर की तरफ भागने लगे.
तहसील दफ्तर पहुंचकर इन युवकों ने कुछ दुकानों में तोड़-फोड़ शुरू कर दी. तहसील के आस-पास का इलाका भी घनी मुस्लिम आबादी वाला है. तहसील के सामने वसीम बरकतुल्ला बर्की का घर पड़ता है. बर्की स्थनीय व्यापारी हैं. वसीम उनके बेटे का नाम है. कासगंज का हर पुलिस वाला वसीम को जनता है. इसकी वजह शहर कोतवाली के पास घर होना नहीं है. वसीम का नाम कासगंज कोतवाली की हिस्ट्रीशीट में हैं.

चंदन और उसके साथी तहसील दफ्तर के सामने हंगामा कर रहे थे. दूसरी तरफ से भी पत्थर और डंडे चल रहे थे. तभी अचानक से एक गोली चली और सीधा आकर चंदन के सीने पर लगी. इस गोली के बारे में पुलिस वालों का दावा है कि यह वसीम ने चलाई है. चंदन वहीं पर ढेर हो गया. चंदन के अलावा कम से कम दो और गोलियां थीं जो इंसानी मांस से टकराई. इसमें से एक अकरम को लगी. उन्हें अपनी आंख से हाथ धोना पड़ा. दूसरी नौशाद को लगी. वो अभी अलीगढ़ में भर्ती हैं.
कासगंज में अब तक नौ वाहन जलाए जा चुके हैं. पांच दुकानें आगजनी का शिकार हुई हैं. अपने भाई सलीम और नसीम के साथ गोली चलाने के मुख्य आरोपी वसीम को हिरासत में लिया जा चुका है. इसके अलावा दर्ज किए गए पांच मामलों में 34 दूसरे लोगों को गिरफ्तार किया गया है. 81 लोगों को धारा 144 तोड़ने के जुर्म में जेल में डाल दिया गया है.

ये भी पढ़ेंः
क्या योगी आदित्यनाथ को कासगंज में होने वाले तनाव का पहले से पता था?
जिस बंदूक ने चंदन गुप्ता को मारा, उससे जुड़ी बड़ी सच्चाई सामने आई है
कासगंज के बवाल पर सबसे सही बात बरेली के डीएम ने कही है
कासगंज: अकरम ने कहा, मेरी आंख फोड़ने वालों को अल्लाह माफ करे
कौन हैं कासगंज हिंसा में जान गंवाने वाले चंदन गुप्ता?
स्कूल बस पर हमले में मुस्लिमों के पकड़े जाने का सच