नए साल का तीसरा दिन. जगह, इराक की राजधानी बगदाद का अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा. तड़के सुबह गाड़ियों का एक छोटा सा काफिला एयरपोर्ट से बाहर निकल रहा था. एकाएक वहां ज़ोर का धमाका हुआ. काफिले की दो कारों पर मिसाइल दागे गए थे. जैसे ही मारे गए लोगों और मारने वालों की पहचान मालूम चली, ये पूरी दुनिया की मीडिया में हेडलाइन्स बन गई.

कुद्स उर्फ़ ‘जेरुसलेम’ फोर्स
इस्लामिक रेवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC). ये ईरान की आर्म्ड फोर्सेज़ का एक हिस्सा है. IRGC की एक यूनिट है- कुद्स फोर्स. ‘कुद्स’ फारसी भाषा का शब्द है. इसका मतलब होता है- जेरुसलेम. यही इसका अल्टीमेट मकसद भी है- जेरुसलेम को आज़ाद कराना. ईरान की इस्लामिक क्रांति के बाद बनी इस यूनिट का ओवरऑल लक्ष्य है- ईरान के दुश्मनों को ख़त्म करना. और, मिडिलईस्ट में ईरान का प्रभाव बढ़ाना. इस यूनिट पर ख़ुफिया जानकारियां इकट्ठा करने के साथ-साथ ईरान से बाहर होने वाले ईरानी ऑपरेशन्स का भी दारोमदार है. हमास, हिजबुल्लाह जैसे नॉन-स्टेट खिलाड़ी, जिन्हें ईरान अपने हितों के मुताबिक दूसरे मुल्कों में खड़ा करता है, उनके साथ वास्ता रखने की जिम्मेदारी भी इस कुद्स फोर्स की ही होती है. ईरान अपनी सरहद से बाहर जितनी रणनीति बनाता है, उसके पीछे इसी यूनिट का हाथ माना जाता है.
3 जनवरी को बगदाद इंटरनैशनल एयरपोर्ट के बाहर हुए हमले के निशाने पर था इसी Quds Force का मुखिया. नाम- मेजर जनरल क़ासिम सुलेमानी.उम्र, 62 साल. मार्च 2019 में उन्हें ईरान का सर्वोच्च सैन्य सम्मान मिला था- ऑर्डर ऑफ ज़ुल्फि़कार. जानकार कहते हैं कि ईरान में नंबर-दो की हैसियत थी जनरल सुलेमानी की. सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली ख़ामेनई के बाद ईरान में सबसे ज़्यादा ताकत उनके पास थी.
General Soleimani was actively developing plans to attack American diplomats and service members in Iraq and throughout the region. https://t.co/Me5DMvMgSp
— The White House (@WhiteHouse) January 3, 2020
किसने किया हमला?
जनरल सुलेमानी के साथ इराकी मिलिशिया के करीब छह अफसर और कमांडर भी ख़त्म हुए. इनमें इराकी मिलिशिया फोर्स के कमांडर अबू महदी अल-मुहानदिस भी शामिल थे. हमला किया अमेरिका ने. अमेरिकी MQ-9 रीपर ड्रोन की मदद से सुलेमानी के काफिले पर मिसाइल अटैक किया गया. अमेरिकी रक्षा विभाग ने एक बयान जारी कर इस हमले की जिम्मेदारी ली. बताया कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के निर्देश पर ये अटैक किया गया. मारने की वजह बताई, विदेशों में मौजूद अमेरिकी अमले की हिफ़ाजत.
मिलिटरी कमांडर को मारना युद्ध की शुरुआत है?
जनरल सुलेमानी मिलिटरी अफसर थे. इस तरह हमला करके न केवल उन्हें मारना, बल्कि अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा बयान जारी कर इस हमले की जिम्मेदारी लेना, ये युद्ध के ऐलान जैसा है. ऐसे कि एक पक्ष ने जंग की आधिकारिक तौर पर शुरुआत कर दी है. जनरल सुलेमानी की मौत पर ईरान में तीन दिन लंबे राष्ट्रीय शोक का ऐलान किया गया है. ईरान के सुप्रीम लीडर आयतोल्लाह अली ख़ामेनई का बयान आया है. कहा है, जनरल सुलेमानी अमर शहीद हैं. उनकी हत्या करने वाले अपराधियों से बेहद ज़ोरदार बदला लिया जाएगा. इत्तेफ़ाक की बात देखिए. सुलेमानी के बारे में कहा जाता है कि उन्हें शहीद हुए सैनिकों के साथ अलग सा ही लगाव था. वो अक्सर शहीदों के परिवारों से मिलने जाते थे. एक बार अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था. कि जब वो शहीदों के बच्चों को देखते हैं, तो उनकी गंध सूंघकर ख़ुद को भूल जाना चाहते हैं.

अमेरिका और इज़रायल हाई अलर्ट पर
जनरल सुलेमानी के मारे जाने के मद्देनज़र बढ़े तनाव में अमेरिका और इज़रायल, दोनों अलर्ट पर हैं. बदले की कार्रवाई की आशंका में इज़रायली सेना को लेबनन और सीरिया, दोनों तरफ की सीमाओं से हाई अलर्ट पर रखा गया है. बगदाद के अमेरिकी दूतावास ने भी इराक में रह रहे अपने नागरिकों को तुरंत इराक छोड़ने के लिए कहा है.
JUST IN: U.S. embassy in Baghdad urges American citizens to depart Iraq immediately pic.twitter.com/dblw0h15Yy
— Reuters (@Reuters) January 3, 2020
पढ़िए: इराक में ऐसा क्या हुआ कि ईरान समर्थक भीड़ अमेरिकी दूतावास में घुस गई?
पिछले दिनों बढ़े तनाव की टाइमलाइन
ये स्थिति ईरान और अमेरिका के आपसी तनावों का हिमालय हो जाना है. बीते कुछ दिनों में ये टेंशन किस तरह बढ़ा है, इसकी एक टाइमलाइन देखिए-
27 दिसंबर
इराक में किरकुक के पास एक इराकी मिलिटरी बेस पर 30 से ज़्यादा रॉकेट दागे गए. इसमें एक अमेरिकी कॉन्ट्रैक्टर की मौत हुई. चार अमेरिकी और दो इराकी सर्विसमैन जख़्मी भी हुए. अमेरिका ने कहा, ये हमला ‘कताइब हेजबुल्लाह’ ने किया है. ये एक इराकी मिलिशिया फोर्स है, जिसे ईरान से समर्थन मिलता है.
29 दिसंबर
जवाबी हमले में अमेरिका ने ‘कताइब हेजबुल्लाह’ के पांच ठिकानों पर हवाई हमला किया. इसमें 24 लोग मारे गए. ईरान का कहना है, 31 की मौत हुई.
31 दिसंबर
इराकी मिलिशिया फोर्सेज़ के लोगों ने बगदाद स्थित अमेरिकी दूतावास पर प्रदर्शन किया. 24 घंटे से ज़्यादा समय तक अमेरिकी डिप्लोमैट्स दूतावास के अंदर बंद रहे. बाहर प्रदर्शनकारियों ने ‘डेथ टू अमेरिका’ के नारे लगाए. कंपाउंड में घुसकर पत्थरबाज़ी की. चेकपोस्ट और रिसेप्शन बिल्डिंग को फूंक दिया.
Full @DeptofDefense statement: https://t.co/Z1wZUbnLrs
— The White House (@WhiteHouse) January 3, 2020
इस हमले के बारे में क्या कहा है अमेरिका ने?
इसी बैकग्राउंड में हुआ है ये अमेरिकी हमला. इसे लेकर ‘US डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस’ ने एक ‘इमिडिएट रिलीज़’ निकाला. इसके मुताबिक-
जनरल सुलेमानी इराक और आसपास के हिस्सों में मौजूद अमेरिकी डिप्लोमैट्स और सर्विस के लोगों पर हमला करने की योजना बना रहे थे. जनरल सुलेमानी और उनकी कुद्स फोर्स सैकड़ों अमेरिकी नागरिकों और US-इराक गठबंधन (कोलेशन फोर्स) के लोगों की हत्या के ज़िम्मेदार हैं. इन्होंने हज़ारों लोगों को जख़्मी किया है.
पिछले कुछ महीनों में उन्होंने कोलेशन के कई ठिकानों पर हमले करवाए. इनमें 27 दिसंबर को हुआ हमला भी शामिल है. इस हफ़्ते बगदाद स्थित अमेरिकी दूतावास पर जो हमला हुआ, उसकी इजाज़त भी जनरल सुलेमानी ने ही दी थी. हमारे हमले का मकसद था ईरान द्वारा होने वाले हमलों को रोकना. संयुक्त राज्य अमेरिका अपने लोगों और अपने हितों की रक्षा के लिए हर ज़रूरी कार्रवाई करता रहेगा, फिर चाहे वो दुनिया में कहीं भी हों.
कौन थे जनरल सुलेमानी?
जुलाई 2018. ट्रंप ने ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी के लिए एक चेतावनी जारी की. ईरान का भी जवाब आया. मगर रूहानी की तरफ से नहीं. जवाब देने वाले शख्स का नाम था जनरल क़ासिम सुलेमानी. उन्होंने कहा-
तुम्हें जवाब देना हमारे राष्ट्रपति की शान, उनकी गरिमा के मुताबिक नहीं. मैं, बतौर सैनिक, तुम्हें जवाब देता हूं. हम तुम्हारे नज़दीक हैं, ऐसी जगह जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते हो. हम तैयार हैं. हम इसी अखाड़े के लोग हैं. अगर अमेरिका ने जंग शुरू की, तो ईरान वो सबकुछ तबाह कर देगा जो US के पास है. तुम लोग जंग शुरू करोगे, मगर इसे ख़त्म हम करेंगे.
The United States killed Iranian Major-General Qassem Soleimani in an air strike at Baghdad airport. The Pentagon said President Trump authorized the strike that was ‘aimed at deterring future Iranian attack plans’ https://t.co/PhH3bTOwBRpic.twitter.com/HXGa9X8ga3
— Reuters (@Reuters) January 3, 2020
पहले भी कई बार मारने की कोशिश की गई थी
ये डेयरिंग जनरल सुलेमानी का चारित्रिक विशेषण था. बहुत हद तक इसी के दम पर उन्होंने ईरान में अपने लिए नैशनल हीरो की पहचान बनाई थी. ईरान कई देशों में सक्रिय है. मसलन- इराक, लेबनान, सीरिया, फिलिस्तीन. यहां खड़े किए गए उसके नॉन-स्टेट प्लेयर उसका हाथ मज़बूत करते हैं. मिडिल-ईस्ट में ताकतवर बने रहने में ईरान की मदद करते हैं. इस लिहाज से कुद्स फोर्स का काम काफी अहम है. जनरल सुलेमानी ने इस यूनिट की कमान संभाली साल 1998 में.
Congratulations to all involved in eliminating Qassem Soleimani. Long in the making, this was a decisive blow against Iran’s malign Quds Force activities worldwide. Hope this is the first step to regime change in Tehran.
— John Bolton (@AmbJohnBolton) January 3, 2020
इराक के साथ हुई जंग के हीरो थे जनरल सुलेमानी
ईरान में नैशनल हीरो थे सुलेमानी. इस कद का अतीत इराक और ईरान के बीच 1980 से 1988 तक चली आठ साल लंबी जंग के समय तक जाता है. उस वक़्त जनरल सुलेमानी रेवॉल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर हुआ करते थे. इस जंग के कई कामयाब मिशनों का नेतृत्व करके उन्होंने अपना नाम बनाया. इसके बाद पूरे टाइम इराक उनका प्लेग्राउंड बना रहा. अमेरिका उन्हें अपने सैकड़ों नागरिकों की हत्या का जिम्मेदार मानता है.
सीरिया का किला बनाए रखा
सीरिया में गृहयुद्ध शुरू होने के बाद जनरल सुलेमानी वहां भी काम आए. ईरान को दरअसल अपने मतलब के लिए असद की ज़रूरत थी. अगर असद की सत्ता चली जाती, तो ईरान के लिए हिजबुल्लाह से संपर्क रखना मुश्किल हो जाता. हिजबुल्लाह की मौजूदगी में लेबनन इज़रायल के विरुद्ध ईरान का एक बेस है. ऐसे में सीरिया छूटने का मतलब था तेहरान के लिए ख़तरा. सीरिया की लड़ाई में कुद्स फोर्स कितनी अहम थी कि 2012 में एक बार असद विरोधी गुट ने करीब 48 ईरानियों को पकड़ा. वो ख़ुद को तीर्थयात्री बता रहे थे. मगर विरोधी गुट का मानना था कि वो कुद्स हैं. इन 48 लोगों को आज़ाद करवाने के लिए असद ने दो हज़ार से ज़्यादा विरोधी गुट वालों को रिहा किया था.
सीरिया बहुत कामयाब रहा ईरान के लिहाज से. बशर अल-असद का पक्ष हारने की कगार पर था. मगर ईरान और रूस की एंट्री के बाद सारे समीकरण पलट गए. वेस्ट की तमाम कोशिशों के बाद असद बने रहे. इस जीत ने ईरान को मिडिलईस्ट की जियोपॉलिटिक्स में बहुत बूस्ट दिया. और इस बूस्ट का बहुत बड़ा श्रेय लोग जनरल सुलेमानी को देते हैं.
‘मिडिलईस्ट का सबसे क़ाबिल मिलिटरी इंटेलिजेंस अफसर’
विदेशों में किए जाने वाले ऑपरेशन्स के बूते बहुत मशहूर/कुख़्यात (आप जिस तरफ से देखें) थे जनरल सुलेमानी. उनको ईरान के सबसे क़ाबिल, सबसे तेज़-तर्रार और दिमागवाले सैन्य अफ़सरों में गिना जाता था. कहते हैं, पूरे मिडिल-ईस्ट के सबसे क़ाबिल मिलिटरी इंटेलिजेंस अफसर थे वो. ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली ख़ामेनई के साथ नज़दीकी थी उनकी. जानकारों के मुताबिक, मुमकिन था कि आगे चलकर ईरान की बागडोर संभालने का जिम्मा मिल जाता जनरल सुलेमानी को. ‘न्यू यॉर्क टाइम्स’ के मुताबिक, इराक के सीनियर खुफिया अधिकारी ने एक बार एक अमेरिकी अधिकारी से कहा था. कि जनरल सुलेमानी का परिचय है, इराक में होने वाली तमाम ईरानी गतिविधियों का मास्टरमाइंड. इकलौती अथॉरिटी.
This is a very dangerous moment. 17 years after the catastrophic decision to go to war in Iraq violence still rages every day. World leaders must stand up to Trump. The last thing we need is another all out war. https://t.co/dB04Zpx3Qf
— Lisa Nandy (@lisanandy) January 3, 2020
पहले भी कई बार मारने की कोशिशें हुईं
कुद्स फोर्स का चीफ होने और मिडिलईस्ट पर पकड़ की वजह से जनरल सुलेमानी लंबे समय से अमेरिका, इज़रायल और सऊदी की हिटलिस्ट में थे. कई बार उन्हें मारने की कोशिशें हुईं. जैसे- अक्टूबर 2019 में एक ख़बर आई थी. ईरान ने बताया था कि उसने जनरल सुलेमानी को मारने की एक साज़िश का भंडाफोड़ किया है. उसके मुताबिक, साज़िश के पीछे थीं इज़रायल और अरब की खुफिया एजेंसियां. IRGC के मुताबिक-
9 और 10 सितंबर को तेहरान में एक धार्मिक आयोजन होना था. हमलावरों की प्लानिंग थी कि वो सुलेमानी के पिता द्वारा बनाई गई एक मस्जिद के पास ज़मीन खरीदेंगे. ताकि वहां से एक सुरंग खोदी जा सके और उसमें विस्फोटक भर दिया जाए. आगे की प्लानिंग ये थी कि जैसे ही जनरल सुलेमानी मस्जिद में घुसते, सुरंग में भरे विस्फोटकों के सहारे पूरी मस्जिद को उड़ा दिया जाता.
अमेरिका से लड़ने के लिए शिया मिलिशिया को ट्रेनिंग दी
ईरान और अमेरिका के बीच दशकों से इराक पर काबिज़ होने की होड़ लगी है. 2003 में जब अमेरिका ने इराक पर हमला किया, तो होड़ और बढ़ गई. ईरान के आगे इराक के अंदर अपनी पकड़ बनाए रखने की चुनौती थी. इसी क्रम में फिर जनरल सुलेमानी की भूमिका आती है. उस दौर में इन्हीं जनरल सुलेमानी के नेतृत्व वाली कुद्स फोर्स ने इराक की शिया मिलिशिया को हथियार मुहैया कराया. हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी. इराक में अपने कई नागरिकों के मारे जाने का जिम्मेवार जनरल सुलेमानी को बताता है अमेरिका. 2011 में अमेरिका के ट्रेज़री डिपार्टमेंट ने सुलेमानी का नाम सेंक्शन ब्लैकलिस्ट में डाल दिया. इल्ज़ाम था कि सुलेमानी ने वॉशिंगटन में नियुक्त सऊदी राजदूत को मारने की साज़िश बनाई. इसके बाद सीरिया में असद को समर्थन देने और आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए भी सेंक्शन लगाया गया उनपर.
If Iran decides to follow through on its vow of harsh retaliation for the killing of its top general in a U.S. airstrike near the Baghdad airport, it can call upon heavily armed allies across the Middle East. https://t.co/4mGgrHy7yq
— The Associated Press (@AP) January 3, 2020
ISIS से लड़ाई में ईरान और अमेरिका साथ थे
फिर आया 2014. जब इस्लामिक स्टेट (ISIS) ने इराक के मोसुल शहर को अपना हेडक्वॉर्टर बनाया. उनसे निपटना अकेले इराक के बस की बात नहीं थी. ISIS से लड़ने के लिए इराक में पॉपुलर मोबलाइज़ेशन फोर्सेज़ (PMF) बना. इसमें करीब 30 मिलिशिया ग्रुप्स थे. ज़्यादातर ईरान समर्थक. इस लड़ाई में अमेरिका और ईरान, दोनों लगभग एक ही टीम में थे. NYT में 2015 की तिकरित की लड़ाई का ज़िक्र मिला. ISIS के कब्ज़े से इसे वापस लेने के लिए जंग चल रही थी. इराक के शिया मिलिशिया संगठनों का नेतृत्व जनरल सुलेमानी ही कर रहे थे. इस लड़ाई में अमेरिका ने आसमानी मदद थी.
इराक: कॉमन ग्राउंड
ISIS से लड़ाई ख़त्म हो जाने के बाद एकबार फिर अमेरिका और ईरान अपने कॉमन ग्राउंड इराक में एक-दूसरे के सामने थे. ईरान के पास न केवल भूगोल का फ़ायदा था, बल्कि इराकी शिया मिलिशिया भी उसके साथ थी. इनके साथ मिलकर पिछले कुछ समय में कुद्स फोर्स ने अमेरिकी ठिकानों के पास कई रॉकेट हमले किए. अक्टूबर 2019 में इराक के अंदर शुरू हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों का एक मुद्दा ईरान की बढ़ती दखलंदाजी भी थी. इसके बावजूद इन प्रदर्शनों से ईरान को काफी फ़ायदा मिला.
My statement on the killing of Qassem Soleimani. pic.twitter.com/4Q9tlLAYFB
— Joe Biden (@JoeBiden) January 3, 2020
अमेरिका में कैसी प्रतिक्रिया हो रही है?
इराक में अभी कार्यकारी सरकार है. नवंबर के आख़िर में प्रधानमंत्री अदेल अब्दुल महदी को जनता के गुस्से की वजह से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. इराक में पिछले दिनों हुए अमेरिकी एयरस्ट्राइक्स के बाद US को लेकर काफी नाराज़गी देखी गई. इराक नहीं चाहेगा कि उसके यहां ईरान और अमेरिका में इस तरह तनाव बढ़े. उधर अमेरिकी संसद के ‘हाउस ऑफ रेप्रेजेंटेटिव्स’ की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने कहा है कि इस हमले के बाबत कांग्रेस से कोई सलाह नहीं ली गई. नैंसी ने बयान दिया-
अमेरिकी नागरिकों की जान और उनके हितों की रक्षा करना अमेरिकी लीडरान की सबसे बड़ी प्राथमिकता है. मगर हम इस तरह की उकसाने वाली बेढ़ंगी हरकतों से अमेरिकी डिप्लोमैट्स, सर्विस मेंबर्स और बाकी लोगों की जान जोख़िम में नहीं डाल सकते हैं. आज रात हुए हवाई हमले की वजह से हिंसा के बेहद ख़तरनाक स्तर पर पहुंच जाने का जोख़िम पैदा हो गया है.
2019 में ईरान पर विशेष कानून लाने की कोशिश हुई थी
रिपब्लिकन पार्टी ने भले ट्रंप की तारीफ़ की हो, मगर इस हमले पर अमेरिका में संशय का माहौल है. एक बहस ये शुरू हुई है कि क्या कांग्रेस को चाहिए कि वो राष्ट्रपति की इस तरह की शक्तियों को सीमित करे. ऐसी व्यवस्था, जिसमें इस तरह का ईरान पर हमला करने से पहले राष्ट्रपति को कांग्रेस की इजाज़त लेनी पड़े. 2019 में ऐसा एक क़ानून पास करने की कोशिश हुई थी. एक प्रस्ताव लाया गया था इस बारे में. मगर रिपब्लिकन पार्टी की मेजॉरिटी वाले सेनेट में ये पास नहीं हो पाया था. जबकि कुछ रिपब्लिकन सेनेटर्स ने अपनी पार्टी लाइन के बाहर जाकर इस प्रपोजल के पक्ष में वोट डाला था. सेनेट के मेजॉरिटी लीडर मिच मैककोनेल ने तब मीडिया से कहा था कि ट्रंप ने साफ किया है कि ईरान के साथ युद्ध शुरू करने में उनकी बिल्कुल दिलचस्पी नहीं है.
No one should mourn Qassem Soleimani, a man whose hands were soaked in blood. But this targeted assassination by the USA against a state actor risks escalating the conflict with Iran – apparently without thinking through the regional and global consequences. It is reckless.
— Wes Streeting MP (@wesstreeting) January 3, 2020
लग रहा है ट्रंप वॉर रेडी हैं
मगर अब ऐसा लग रहा है कि ट्रंप की दिलचस्पी इस युद्ध में है. 3 जनवरी को हुए इस हमले की वजह से ईरान के साथ अमेरिका का तनाव बेहद बढ़ गया है. इसका असर पूरे मिडिलईस्ट पर दिखेगा. बीते सालों में अमेरिका के अंदर विदेश में लड़ी जा रही जंग के विरुद्ध एक माहौल बना है. इराक और अफ़गानिस्तान से पूरी तरह बाहर निकलने की मांग शुरू हुई है. ऐसी ही जनभावना थी कि जिसके कारण ओबामा प्रशासन सीधे-सीधे सीरिया के गृहयुद्ध में घुसने से हिचक रहा था. ट्रंप के चुनावी वायदों में भी ये बात शामिल थी. लेकिन इस तरह तनाव बढ़ाकर वो अमेरिका के विदेशी ऐंगेजमेंट बढ़ा रहे हैं.
सवाल पूछे जा रहे हैं कि…
– क्या आने वाले राष्ट्रपति चुनावों के मद्देनज़र ये हमला किया गया?
– क्या इम्पीचमेंट से ध्यान हटाने के लिए ये किया गया?
– क्या ईरान को उकसाने के लिए ये कार्रवाई हुई? ताकि टेंशन बढ़े, राष्ट्रवादी भावनाओं को दूहा जा सके!
– क्या ईरान (इन पर्टिकुलर) और मिडिलईस्ट (इन जनरल) के लिए ट्रंप प्रशासन के पास कोई ठोस रणनीति नहीं है?
Iran has promised to retaliate for the killing of a key military commander in a US airstrike.
One place is particularly vulnerable: the Strait of Hormuz, off Iran’s southern coast: https://t.co/YcxNc0WWKt
— CNN International (@cnni) January 3, 2020
पढ़िए: दुनिया के कच्चे तेल कारोबार के लिए क्यों इतनी अहम लोकेशन है ईरान के पास की ये जगह?
कच्चे तेल के बाज़ार को इस घटना से क्या डर है?
इस हमले के बाद कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें प्रति बैरल 2 डॉलर तक बढ़ गई हैं. मिडिलईस्ट पर केंद्रित तेल बाज़ार में ज़्यादा असर दिखा. इससे पहले सितंबर 2019 में सऊदी की सबसे बड़ी ऑइल फसिलिटी ‘Saudi Aramco’ पर मिसाइल और ड्रोन हमला हुआ था. अमेरिका और सऊदी ने इसके पीछे ईरान का हाथ बताया था. उस हमले के कारण सऊदी के तेल उत्पादन पर बहुत असर पड़ा था. इस वजह से तेल की कीमतें काफी उछल गई थीं.
अभी तेल की कीमतें बढ़ने के पीछे सबसे बड़ा अंदेशा होरमुज़ जलसंधि को लेकर है. समंदर के रास्ते होने वाले तेल के कारोबार का सबसे अहम रूट है. ये अरब की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के बीच में है. कुवैत, सऊदी, बहरीन, कतर और UAE की तरफ से आने वाले पानी के जहाज इसी से गुजरकर ओमान की खाड़ी और फिर आगे अरब सागर के रास्ते जाते हैं. इस रास्ते से हर रोज़ तकरीबन एक करोड़ 80 लाख बैरल तेल ले जाया जाता है. इस पॉइंट के ठीक ऊपर ईरान का होरमुज़ द्वीप पड़ता है. बीते दिनों यहां तेल टैंकरों पर हमले हुए. इनके पीछे ईरान का हाथ बताया गया. 20 जून, 2019 को ईरान ने यहीं पर अमेरिका का एक ड्रोन भी गिराया था. ख़बर आई कि इसके बाद ट्रंप प्रशासन ईरान पर हमला करते-करते रह गया.
पढ़िए: सऊदी अरब में हुए 2 ड्रोन हमले आपकी जेब पर बहुत भारी पड़ सकते हैं
Washington is urging U.S. citizens to leave Iraq “immediately” as Iran vows “harsh retaliation” after a U.S. airstrike killed the country’s top military commander in Baghdad. President Rouhani calls the killing a heinous crime. https://t.co/GvkfrwgBbJ
— The Associated Press (@AP) January 3, 2020
ईरान कैसे जवाब देगा इस अमेरिकी हमले का?
ईरान की ओर से जवाबी कार्रवाई होगी. कब, कहां, किस तरह, कोई नहीं जानता. मगर इससे पूरे मिडिलईस्ट में हिंसा और बढ़ने का ख़तरा है. वहां स्थितियां पहले से ही काफी गंभीर हैं. बीते दिनों ख़राब अर्थव्यवस्था को लेकर ईरान में भी बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए. अमेरिका की ओर से हो रही इस तरह की उकसावे वाली कार्रवाई के बीच वहां लोगों के बीच सरकार के लिए समर्थन बढ़ेगा.
अमेरिका भले IRCG को आतंकी संगठन कहे. भले वो कहे कि जनरल सुलेमानी कई अमेरिकी नागरिकों की हत्या के जिम्मेदार थे और उन्हें मारकर उसने अपना हित सुरक्षित किया है, मगर इससे बात नहीं बदलेगी. जनरल सुलेमानी मिलिटरी कमांडर थे. अमेरिका का ये कदम डेक्लरेशन ऑफ वॉर जैसा है. ट्रंप मानो राष्ट्रपति पद की परंपरा निभा रहे हैं. उनसे पहले के कई राष्ट्रपति अपने पीछे युद्ध की एक विरासत छोड़ गए हैं. कोरियन युद्ध. वियतनाम. अफ़गानिस्तान. इराक. बोस्निया और सीरिया जैसी लड़ाइयां अलग. प्रॉक्सी वॉर अलग. क्या ट्रंप ईरान की विरासत छोड़ जाएंगे? फिर तो बेहतर होगा उन्हें इतिहास की किताबें गिफ़्ट की जाएं. ताकि वो जान सकें कि ऐसी लड़ाइयों में अमेरिका ने हमेशा ही अपना हाथ झुलसाया है.
इराक में ऐसा क्या हुआ कि ईरान समर्थक भीड़ अमेरिकी दूतावास में घुस गई?