सरकारी नियमों के मुताबिक़ इंडिया में बच्चा पैदा करने पर मांओं को 26 हफ्ते, यानी 6 महीने से भी ज्यादा की ‘पेड’ मैटरनिटी लीव मिलती है. मगर कुछ मांएं बाक़ी मांओं के बराबर नहीं होतीं. इन्हें काम पर लौटना पड़ता है. वजह, गरीबी. आज के अखबार में इंगलैंड से आई एक खबर पढ़ी. मालूम चला कि एक वेश्या अपनी डिलीवरी के आधे घंटे बाद ही ग्राहक लेने लगी.
इंगलैंड के एक रेड लाइट एरिया में वेश्याओं के हक़ में करने वाली जैकी फेयरबैंक्स ने न्यूज साइट ‘हल डेली मेल’ से बात करते हुए वहां की वेश्याओं के जीवन के बारे में कई बातें बताईं.

इनमें से कई औरतों के साथ बचपन में शारीरिक और मानसिक शोषण हुआ था. हिंसा इनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा रहा है. इनमें से कई औरतें बेघर हैं. कई औरतों को मानसिक तकलीफें हैं. स्वास्थ्य खराब रहता है. क्योंकि इन्हें इनके बॉयफ्रेंड या दलाल ने इन्हें झांसा देकर यहां भेज दिया होता है.
फेयरबैंक्स के मुताबिक़ वेश्याएं गरीबी के मारे छोटी-छोटी जरूरतों के लिए काम करती हैं. एक वेश्या एक दिन इसलिए धंधे पर निकली क्योंकि उसे अपनी वॉशिंग मशीन सही करवाना थी.
हममें से कुछ लोग ‘वेश्या’ शब्द को गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं. कुछ लोग वॉशिंग मशीन सही करवाने के लिए देह बेचने को अनैतिक मान सकते हैं. कह सकते हैं कि पश्चिमी देशों में ऐसा होता है. मगर भारत की स्थिति कुछ अलग नहीं है. गरीबी इन वेश्याओं से क्या कुछ नहीं करवाती. सामाजिक कार्यकर्ता और दी लल्लनटॉप के रीडर अमित कुमार ने भारतीय वेश्याओं पर एक लेख में लिखा था:

‘यौनकर्मियां रोज़ कमाती हैं और रोज़ खाती हैं. स्थिति कई बार इतनी भयावह हो जाती है कि डिलीवरी के दिन तक यौनकर्मियों को अपना पेट भरने के लिए ग्राहक से यौन संबंध बनाने होते हैं. मातृत्व अवकाश तो छोड़िए, मातृत्व सुविधाओं के नाम पर मिलने वाला भत्ता या क्रेच की सुविधा तक नही मिलती. आंगनवाड़ी के नाम पर एक कमरा और उसमें लगे ब्लैकबार्ड के अलावा चहलकदमी करते कुछ बच्चे नज़र आते हैं. जिन्हें ना समय पर मिड डे मील मिलता है और ना ही बेसिक शिक्षा […] सरकार यौनकर्मियों को गैर जिम्मेदार मां मानती है. अगर यौनकर्मी बच्चा गोद लेने की कोशिश करे तो उसे देश का कानून इस हक से वंचित रखता है. कुसुम इसे ‘कानूनी भेदभाव’ करार देती हैं.’
फेयरबैंक्स के मुताबिक़ ये वेश्याएं बुरे हालातों में भी कभी पुलिस के पास या मदद के लिए नहीं पातीं क्योंकि इन्हें न तो इस बात का भरोसा है कि इन्हें सम्मान से ट्रीट किया जाएगा, न ही इन्हें अपने ऊपर कॉन्फिडेंस है.
फेयरबैंक्स आज इसी बात से खुश हैं कि कम से कम अब वेश्याओं के रेप और क़त्ल कम हो गए हैं. वरना पहले तो उन्हें जीवित रहने का अधिकार ही पूरी तरह से मिल जाए, यही बहुत था.