पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिले कासगंज में 26 जनवरी को भड़की हिंसा में 20 साल के चंदन गुप्ता की मौत हो गई. ये हिंसा ABVP-VHP कार्यकर्ताओं और मुस्लिमों के बीच हुई. चंदन ABVP-VHP की तिरंगा रैली में शामिल थे और वो पथराव के बीच चली गोली के शिकार हो गए. चंदन की हत्या के बाद से कासगंज में कई गाड़ियां और दुकानें फूंकी जा चुकी हैं और कई जगहों पर पथराव हो चुका है. सोशल मीडिया पर लोग भयानक गुस्सा ज़ाहिर करते हुए चंदन की तुलना दादरी और अलवर हत्याकांड से कर रहे हैं.

चंदन की उम्र 20 साल थी. वो बीकॉम फाइनल इयर के स्टूडेंट थे और घर के छोटे बेटे थे. चंदन के पिता का नाम सुशील गुप्ता है, जो एक प्राइवेट हॉस्पिटल में कंपाउंडर हैं. मां संगीता गुप्ता हाउसवाइफ हैं. चंदन के एक बड़े भाई और एक बड़ी बहन हैं.
चंदन की मौत के बाद उनके परिवार ने उनका अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया था. वो पहले प्रशासन और सरकार से बात करना चाहते थे. ये बात हुई एक बंद कमरे में, जिसके बाद आई रिपोर्ट्स में बताया गया कि परिवार ने 50 लाख रुपए मुआवजे और चंदन के बड़े भाई को सरकारी नौकरी का आश्वासन मिलने के बाद चंदन का अंतिम संस्कार किया. पर इसके बाद चंदन के माता-पिता की तरफ से दो बयान आए, जिन पर गौर किए जाने की ज़रूरत है.
चंदन के पिता सुशील गुप्ता ने NBT से बात करते हुए कहा,
‘मेरा बेटा भारत माता की जय कहते हुए शहीद हो गया. मेरे बेटे को रोक लिया गया और कहा गया कि पाकिस्तान ज़िंदाबाद और हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाओ. जब चंदन ने इनकार कर दिया, तो उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. वो संकल्प नाम की एक प्राइवेट संस्था चलाता था और गरीबों की मदद करने और ब्लड डोनेट करने जैसे सामाजिक काम करता रहता था.’
चंदन की मां संगीता गुप्ता ने इसी बातचीत के दौरान कहा,
‘अगर हिंदुस्तान में रहते हुए हिंदुस्तान ज़िंदाबाद कहना अपराध है, तो हमें भी गोली मार दी जाए. मेरे बेटे को शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए.’

चंदन और गुप्ता परिवार के साथ जो हुआ, वो गलत है. गलत ही नहीं, बुरा है और बहुत भयानक है. कैसा लगता होगा किसी माता-पिता को, जिसकी 20 साल की औलाद उसके सामने मार दी जाए. कासगंज में अभी जो भी हो रहा है, वो सब गलत है. किसी की हत्या, पथराव और आगजनी… ये सब नहीं होना चाहिए. हत्या किसी की भी हो, गलत ही होती है. कोई भी तर्क किसी की हत्या को जस्टिफाई नहीं कर सकता.
लेकिन चूंकि चंदन की मौत एक सांप्रदायिक हिंसा में हुई, तो क्या उन्हें शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए?
ये भी ज़्यादती है. ये वो तर्क है, जब आप किसी ढंग की बहस को बेढब मोड़ दे देते हैं. बात इसकी होनी चाहिए कि कासगंज में कैसे हालात सुधरें, कैसे लोग एक-दूसरे पर भरोसा करना शुरू करें और कैसे प्यार से साथ में रहें. पर भयंकर मानसिक उन्माद से उपजी घटना को क्या हमें गर्व से देखना चाहिए? आप खुद से पूछिए कि एक 20 साल के लड़के की मौत आपके लिए गर्व की बात हो सकती है?
कासगंज में रिपोर्टिंग कर रहे इंडिया टुडे के रिपोर्टर मुनीष बताते हैं कि चंदन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य नहीं थे. हालांकि, बीजेपी कार्यकर्ताओं से उनका मिलना-जुलना होता था. 26 जनवरी को वो तिरंगा यात्रा में इसलिए गए थे, क्योंकि उनके दोस्त भी जा रहे थे. लेकिन कुछ लोगों की निजी ज़िद और खीझ का खामियाजा उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा. हम कैसे कह सकते हैं कि एक भीड़ के उन्माद का शिकार बने इंसान को शहीद का दर्जा दिया जाए?
चंदन को शहीद का दर्जा देने की मांग करना एक लॉजिकल बहस को इमोशनल बनाना है. कुछ ऐसा कह देना, जिसके बाद बात करने की गुंजाइश ही खत्म हो जाए. हां, किसी की जान गई है और इसमें संवेदना को धक्का लगेगा ही. मगर क्या शहीद का दर्जा मिलने भर से चंदन की मौत जस्टिफाई हो जाती है?
ऐसी डिमांड करेंगे, तो इस पर सियासत होगी. अलग-अलग झंडों-नारों वाले लोग आपके पास आएंगे और अपनी छिछली बातों से आपको प्रभावित करने की कोशिश करेंगे. कासगंज में तो इसकी शुरुआत भी हो चुकी है. ऐसा हो रहा है, क्योंकि आप मौका दे रहे हैं.

पहले उदाहरण तो बीजेपी सांसद राजवीर सिंह हैं, जो चंदन की मौत के कुछ ही वक्त बात कासगंज पहुंच गए. वहां उन्होंने भड़की हुई भीड़ के सामने कहा कि वो इस घटना की जांच किसी स्थानीय अधिकारी से नहीं कराएंगे, बल्कि इस मामले को अपनी तरह से डील करेंगे. ये अपनी तरह से डील करने का क्या मतलब है? पहले तो आप संविधान, सरकार और सिस्टम को नकार रहे हैं. फिर कह रहे हैं कि इसे अपने हिसाब से देखेंगे. क्या आप भी बंदूक लेकर उस मोहल्ले में जाएंगे और आंखें बंद करके अंधाधुंध गोलियां चलाने लगेंगे? हो सकता है राजवीर के कहने का मकसद ये न हो, पर ‘अपनी तरह से डील करने’ का मतलब तो यही हुआ न कि आप एक अंतहीन संघर्ष को बढ़ावा दे रहे हैं.
बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने अपने एक ट्वीट में चंदन गुप्ता को लाला लाजपत राय के सामने रखा. 28 जनवरी को लाला लाजपत राय की जयंती होती है और इसी दिन मीनाक्षी लिखती हैं,
‘लाला लाजपत राय जी को श्रद्धांजलि, जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज़ उठाने की वजह से मार दिया गया था. ऐसे ही बलिदानों से आजादी आई है. आजाद भारत में ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ जैसे नारे लगाने की वजह से 20 साल के एक लड़के को क्यों मार दिया जाना चाहिए. सेक्युलर गैंग से जवाब का इंतज़ार है.’
Tributes 2 Lala Lajpat Rai Ji,who was killed 4raising slogans against Imperialist British.Such sacrifices brought Azadi.
Why Should a young man of 20 yrs be killed for shouting slogans about Bharat Mata ki Jai & Vande Matram in Azad Bharat ? Awaiting 4 response from secular gang pic.twitter.com/v6WGoq96zc— Meenakashi Lekhi (@M_Lekhi) January 28, 2018
आप इस ट्वीट के एक-एक शब्द की व्याख्या खुद कर सकते हैं. ये अपने आप में बहुत विरोधाभासी है. चंदन गुप्ता की तुलना लाला लाजपत राय से करना. देशभक्ति के नारों को हत्या की वजह बताना, जबकि अभी तक ये साफ नहीं हो पाया है कि झगड़ा क्यों शुरू हुआ. इसके बाद मीनाक्षी सेक्युलर गैंग से जवाब का इंतज़ार कर रही हैं.
क्या सेक्युलर होना किसी गैंग का हिस्सा होना है? क्या सेक्युलर्स होना कम्युनल होने से बुरा है? क्या किसी को 20 साल के एक लड़के की मौत से खुशी मिल सकती है? जवाब आपके ही पास हैं.
चंदन का परिवार यूपी की योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है. परिवार का कहना है कि सरकार कुछ नहीं कर रही है और इस आरोप के साथ चंदन को शहीद का दर्जा देने की मांग भी नत्थी है. ये योगी सरकार के कार्यकाल में हुई पहली बड़ी सांप्रदायिक हिंसा है. यकीनन सरकार को कोई ठोस कदम उठाना होगा. कासगंज तो बस इतना याद रखे कि बड़े-बड़े युद्ध लड़ने के बाद बड़े-बड़े लोग भी बातचीत की मेज़ पर लौट आते हैं. जो हुआ, वो दोबारा नहीं होना चाहिए.
चंदन गुप्ता को शहीद बताना उतना ही बुरा है, जितना रोहित वेमुला को शहीद बताना है. जितना निर्भया को शहीद बताना था. सिस्टम और समाज के मारे शहीद नहीं, पीड़ित होते हैं, शिकार होते हैं.
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