ये आर्टिकल ‘दी लल्लनटॉप’ के लिए ताबिश सिद्दीकी ने लिखा है. ‘इस्लाम का इतिहास’ नाम की इस सीरीज में ताबिश इस्लाम के उदय और उसके आसपास की घटनाओं के बारे में जानकारी दे रहे हैं. ये एक जानकारीपरक सीरीज होगी जिससे इस्लाम की उत्पत्ति के वक़्त की घटनाओं का लेखा-जोखा पाठकों को पढ़ने मिलेगा. ये सीरीज ताबिश सिद्दीकी की व्यक्तिगत रिसर्च पर आधारित है. आप ताबिश से सीधे अपनी बात कहने के लिए इस पते पर चिट्ठी भेज सकते हैं – writertabish@gmail.com
इस्लाम के पहले का अरब: भाग 14
मुसैलिमा या मुसलमा के साथ-साथ और भी कुछ लोग थे, जिन्होंने पैगंबर होने का दावा कर रखा था. उनमें से एक था ‘साफ़ इब्न सैय्यद’. इसने बहुत छोटी उम्र में, जबकि ये एक किशोर बालक था, अपने आपको पैगंबर घोषित कर दिया था. एक किशोर का ऐसा दावा करना ये बताता है कि उस समय के अरब में ख़ुद को पैगंबर साबित करने की कैसी होड़ लगी थी. अरब का परिवेश एक बहुत बड़े बदलाव के लिए बेचैन था. इब्न सैय्यद एक बालक था, पंद्रह या सोलह बरस का, जबकि मुहम्मद की उम्र उस समय लगभग पचास के आस-पास रही होगी. इब्न सैय्यद के साथ मुहम्मद की पहली मुलाक़ात का किस्सा बहुत दिलचस्प है.
जिसने पैगंबर मुहम्मद का अपमान कर दिया था
सहीह बुख़ारी की हदीस (Book 041, Number 7000) बताती है कि एक दिन पैगंबर मुहम्मद अपने साथी उमर के साथ गलियों में घोड़े पर सवार होकर जा रहे थे. उस समय तक मुहम्मद स्वयं को पैगंबर घोषित कर चुके थे. रास्ते में कुछ बच्चे आपस में बैठे खेल रहे थे. उन बच्चों में इब्न सैय्यद भी था. मुहम्मद को आता देख ज़्यादातर बच्चे रास्ते से हट गए मगर इब्न सैय्यद अपनी जगह से नहीं हटा और वहीं बैठा रहा. उसको रास्ते में बैठे देख मुहम्मद उसके पास गए. उसकी पीठ पर हाथ रखकर कहा. “क्या तुमको पता नहीं है कि मैं अल्लाह का पैगंबर हूं?”
इब्न सैय्यद ने पलट कर उन्हें देखा और कहा, “मुझे बिलकुल पता है कि तुम जाहिलों के पैगंबर हो. मगर क्या तुम ये नहीं जानते हो कि मैं अल्लाह का पैगंबर हूं?”
जवाब में मुहम्मद ने इंकार कहते हुए कहा, “मुझे अल्लाह और उसके पैगंबर पर पूरा विश्वास है.”
इब्न सैय्यद के ऐसे जवाब से क्रोधित हो कर उमर ने अपनी तलवार निकाल ली और कहा, “ऐ मुहम्मद, अगर आप हुक्म करें, तो मैं इसकी गर्दन अभी काट दूं?”
जिसके जवाब में मुहम्मद ने कहा, “अगर ये वही है (दज्जाल), जो आखिरी क्षणों में प्रकट होगा, तो तुम इसे नहीं मार पाओगे और अगर ये वो नहीं है, तो भी तुम्हें इसे मार के कोई फ़ायदा नहीं होगा.”
आगे उमर बताते हैं कि एक दिन मुहम्मद और उबय इब्न काब साथ में थे, तभी उन्होंने देखा कि इब्न सैय्यद पेड़ की छांव में लेटा हुआ है. मुहम्मद पास जा कर ख़ुद को पेड़ के तने से छिपा कर इब्न सैय्यद की बातें सुनने की कोशिश करते हैं. इब्न सैय्यद उस समय ख़ुद को कंबल से ढंक कर लेटा हुआ था और कुछ बुदबुदा रहा था. तभी इब्न सैय्यद की मां देख लेती है और ज़ोर से बोलती है कि देखो मुहम्मद आया है. जिसे सुनकर इब्न सैय्यद उछल कर उठ कर खड़ा हो जाता है. मुहम्मद इब्न काब से कहते हैं कि अगर आज इसकी मां ने बोला न होता, तो मैंने सब चीजें साफ़ कर दी होती.
इस घटना में जब इब्न सैय्यद स्वयं को पैगंबर बोलता है, तो मुहम्मद उमर से ये शक ज़ाहिर करते हुए कहते हैं कि हो सकता है ये दज्जाल हो. हदीस से ली गई इसी घटना में आगे मुहम्मद अपने लोगों से कहते हैं कि मैं भी तुम्हे आगाह कर रहा हूं दज्जाल के बारे में. जैसे अन्य पैगंबरों ने पहले अपने लोगों को किया था.

(प्रतीकात्मक इमेज सोर्स: answering-christianity.com)
दज्जाल साबित किया गया इब्न सैय्यद को
दज्जाल के बारे में ये कहा जाता था कि मुहम्मद ने अपने लोगों को बता रखा था कि दज्जाल एक झूठा मसीहा होगा. जो बीमार लोगों को ठीक करेगा और उसके पास बहुत ताक़त होगी और वो मुसलमानों को बहका लेगा. ये एक तरह से राक्षस की तरह होगा. जो अपना भेस बदल कर लोगों के बीच रहेगा. वो झूठा होगा और ख़ुद को पैगंबर बोलेगा. इसलिए पैगंबर मुहम्मद के अनुयायी ज़्यादातर ऐसे लोगों को, जो मुहम्मद के अलावा स्वयं को पैगंबर घोषित करते थे, दज्जाल समझने लगते थे. और उनमे दज्जाल को लेकर बहुत अधिक भय व्याप्त हो जाता था.
इब्न सैय्यद ने जब स्वयं को पैगंबर घोषित किया तो मुहम्मद ने उमर से उसके दज्जाल होने का शक़ जताया. आगे की घटना में भी वो इब्न काब से यही कहते हैं कि अगर इसकी मां न पुकारती तो आज मैं इसे दज्जाल साबित कर देता. इन्ही दोनों घटनाओं के बाद लोगों ने इब्न सैय्यद को पूरी तरह से दज्जाल समझ लिया था और उस से बचने लगे थे. वो जहां भी जाता, लोग दूर हट जाते और उसका एक तरह से सामाजिक बहिष्कार होना शुरू हो गया था. एक किशोर बालक के लिए इस तरह का बहिष्कार, उसके मन और मस्तिष्क को कमज़ोर करने के लिए काफ़ी था.

निगरानी भी होने लगी थी
सहीह बुखारी (Book 041, Number 7004) में आगे की एक घटना बताती है कि पैगंबर मुहम्मद के साथी उमर कई बार इब्न सैय्यद से मिले. वो उस से मिलकर यही देखने जाते थे कि वो दज्जाल बना कि नहीं. जब वो उसके दोस्तों से मिलते थे, तो उनसे पूछते थे कि तुम लोग कुछ छिपा रहे हो मुझ से, सच नहीं बता रहे हो. उमर को शक़ था कि उसके दोस्त तो जानते ही होंगे कि ये दज्जाल है. एक बार जब वो इब्न सैय्यद से मिलते हैं, तो देखते हैं कि उसकी आखों में सूजन है. वो उस से पूछते हैं कि उसकी आखों को क्या हो गया है? जिसके जवाब में इब्न सैय्यद कहता है कि उसे नहीं पता. तो उमर कहते हैं कि तुम्हें नहीं पता कि तुम्हारी एक आंख तुम्हारे सर में है?
ये घटना वैसे बहुत मामूली लग सकती है मगर ये एक गहरी मानसिकता की तरफ़ इशारा करती है. ये बताती है कि उस दौर के लोग किस तरह की सोच रखते थे. श्रद्धा और विश्वास ही उनका मूल होता था. जब पैगंबर मुहम्मद ने ये शक़ ज़ाहिर कर दिया कि इब्न सैय्यद दज्जाल हो सकता है, तो उनके अनुयायी उसे दज्जाल ही समझ गए. छिप-छिप कर उस पर निगरानी रखने लगे. गाहे बगाहे उसके पास ये देखने जाते रहते थे कि उसके माथे पर आंख निकली कि नहीं. क्योंकि मुहम्मद ने दज्जाल के बारे में ये घोषणा कर रखी थी कि दज्जाल के माथे के बीचो-बीच एक आंख होगी.

बहिष्कार ने तोड़ कर रख दिया
दज्जाल घोषित होने के बाद इब्न सैय्यद का इस तरह से बहिष्कार शुरू हो गया था कि वो इस बहिष्कार से बहुत परेशान रहने लगा. वो कहीं भी जाता लोग उस से दूर हो जाते. कारवां में उसे अकेला कर दिया जाता और कोई भी उसके साथ न तो खाता-पीता और न ही अपनी कोई वस्तु साझा करता. इस सब से तंग आ कर उसने लोगों को बहुत समझाने की कोशिश की. उसने कहा कि वो कैसे दज्जाल हो सकता है क्योंकि मुहम्मद ने तो कहा है कि दज्जाल कोई काफ़िर होगा. जबकि मैं हज भी करता हूं और धर्म भी मानता हूं.. मेरे बच्चे भी हैं, जबकि दज्जाल के कोई बच्चे नहीं होंगे. मगर उसकी इन बातों को कोई नहीं सुनता था. उसका सामाजिक बहिष्कार जारी रहा.
इस मानसिक प्रताड़ना से तंग आ कर कहते हैं कि इब्न सैय्यद ने अंत में इस्लाम स्वीकार कर लिया. मुहम्मद को अपना पैगंबर मान लिया. अपने पैगंबरी के दावे को ख़ारिज कर दिया. इस तरह इस्लाम के मूलभूत नियमों के हिसाब से एक और झूठे मसीहा/पैगंबर यानि इब्न सैय्यद का अंत हो गया.
क्रमशः
‘इस्लाम का इतिहास’ की पिछली किस्तें:
Part 1: कहानी आब-ए-ज़मज़म और काबे के अंदर रखी 360 मूर्तियों की
Part 2: कहानी उस शख्स की, जिसने काबा पर कब्ज़ा किया था
Part 3: जब काबे की हिफ़ाज़त के लिए एक सांप तैनात करना पड़ा
पार्ट 4: अल्लाह को इकलौता नहीं, सबसे बड़ा देवता माना जाता था
पार्ट 5: ‘अल्लाह’ नाम इस्लाम आने के पहले से इस्तेमाल होता आया है
पार्ट 6:अरब की तीन देवियों की कहानी, जिन्हें अल्लाह की बेटियां माना जाता था
पार्ट 7: कहानी काबा में लगे काले पत्थर की, जिसके बारे में अलग-अलग किस्से मशहूर हैं
पार्ट 8 : सफा और मारवा पहाड़ियां, जहां से देवता आसिफ और देवी नायेलह की मूर्तियां हटाई गईं
पार्ट 9: इस्लाम के आने से पहले औरतों की स्थिति कैसी थी?
पार्ट 10: इस्लाम से पहले अरब के लोग शारीरिक संबंधों को लेकर खुली सोच के थे
पार्ट 11: पैगंबर मुहम्मद के वक़्त और भी कई लोगों ने पैगंबरी पर दावा कर रखा था
पार्ट 12: पैगंबर मुहम्मद के वक़्त का वो दूसरा पैगंबर, जो काबे की तरफ मुंह कर के नमाज़ पढ़ने को मूर्तिपूजा कहता था
पार्ट 13: कहानी पैगम्बर मुसलमा की, जिसे मुहम्मद के जाने के बाद खत्म कर दिया गया
वीडियो: अयोध्या में उस आदमी का इंटरव्यू जिसने बाबरी मस्जिद तोड़ी थी!