पैदाइश कब की है तुम्हारी? 70s-80s की न? चलो तुम्हारा एक सीक्रेट बताते हैं. मिथुन चक्रवर्ती ऑल टाइम फेवरेट हीरो हैं तुम्हारे. टीवी पर आज भी ‘सुल्तान’ आती है तो रिमोट ‘टांड़’ के ऊपर फेंक देते हो कि कोई चैनल न चेंज कर दे. फिर इत्मीनान से हर काम भूल कर पूरी पिच्चर देखते हो. बीच में आने वाले परचार भी एंजॉय करते होगे. गलत कहे हों तो बताना. आज मित्थुन के बारे में अपन आपको वो चीजें खोद खोद के बताएंगे कि तुमए सीने में घुसा पुराने दिनों का तीर दर्द फेंक देगा. काहे कि आज हैप्पी बड्डे है आइजैक न्यूटन के नियमों की बखिया उधेड़ सुकरात के कोट्स की दैया मैया कर देने वाले ग्रेट मिथुन दा का.
भाईसाब 90s का दौर था. 80 के दशक वाले जवान होने की कोशिश में लगे थे. 12-15 साल के लड़के शर्ट के अंदर स्वेटर पहन कर खुद को नंदी सांड सा महसूस करते थे. एकदम बलवान टाइम. कि धरती को कॉस्को की गेंद समझकर मसल देंगे. कॉलर के अंदर रुमाल लपेट पान मसाला खाए रोड पर टहिलते थे. ये सीडी प्लेयर मार्केट में आने से 2- 4 साल पहले की वारदातें हैं.
तब देहात में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी होते थे. सिर्फ एक चैनल आता था. DD1. उसमें कुल जमा दो दिन पिच्चर आती थी. एक जुमे का रात साढ़े नौ बजे. एक इतवार की शाम चार बजे. गांव में बिजली रात में 10 बजे आती थी. सुबह चार बजे चली जाती थी. बच्चे जानते ही नहीं थे कि ये बिजली वाले लट्टू किसलिए लगे हैं. उसी दौर में किसी रात साढ़े नौ बजे एक फिल्म आई थी ‘स्वर्ग यहां नर्क यहां.’ इस फिल्म से हम हीरो पहचानना शुरू किए थे भैयाजी. हमारे साथ बैठे देख रहे थे छेद्दू चच्चा. खटिया के पैताने उकड़ू बैठे हुए. जहां मित्थुन दा एक लात उचक के मारते थे विलेन को वहां वो खड़े होकर चिल्लाते थे ‘अइस्सबास.’
तो भैयाजी मिथुन चक्रवर्ती आज की डेट में एक्टर, सिंगर, प्रोड्यूसर, राइटर, सोशल वर्कर, होटल बिजनेसमैन से गुजरकर राज्यसभा सांसद हैं. हालांकि पॉलिटिक्स के बारे में कभी खुलकर बतियाते नहीं. और जब तक किसी के ऊल जुलूल बयान मीडिया में न आए तब तक किसी को नेता मानना भी न चाहिए. आज वो सबसे ज्यादा बिजी बॉलीवुड स्टार हैं. हिंदी, बंगाली, उड़िया, भोजपुरी, तेलुगू और पंजाबी फिल्मों में काम कर चुके हैं. ‘मोनार्क ग्रुप’ नाम से इनकी होटल इंडस्ट्री है. लेकिन कामयाबी एकदम से नहीं मिली. बहुत मेहनत की, स्ट्रगल किया.
पहली फिल्म मृगया थी. सन 1976 में आई थी. सोचो उसी वक्त अमिताभ बच्चन फेमस होना शुरू हो चुके थे. मृगया एक आर्ट हाउस प्रोडक्शन थी. इसके लिए बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला था मिथुन को. मृणाल सेन ने उनको ऑफर की थी ये फिल्म. जिसकी वजह से हमेशा मिथुन ने उनको अपना गुरू माना. एक और फिल्ममेकर थे. मनमोहन देसाई. उनसे जब काम मांगने गए तो उन्होंने मिथुन को दस का नोट दिया. औऱ कहा ‘बेटे तू बहुत आगे जाएगा.’ लेकिन उन्होंने काम नहीं दिया लड़के को. फिर लड़का ऐसा चला कि लोग जमाने तक अमिताभ और मिथुन चक्रवर्ती को एक बराबर खड़ा करते रहे. हालांकि मिथुन बड़े दिल वाले हैं. हमेशा इस बात से इंकार कर जाते हैं.
ऐसा कहा जाता है कि मिथुन नक्सलवादी थे. फिल्मलाइन में आने से पहले. अपने भाई के साथ हुए हादसे और उसकी मौत ने जिंदगी की पटरी को बदलकर दूसरे प्लेटफॉर्म पर पहुंचा दिया. मुंबई में बड़े बुरे दिन गुजारने के बाद जब अच्छे दिन आए तो भैया गजबै ढा दिया. 80 के दशक में सिर्फ मिथुन दा वैसे ही चल रहे थे जैसे आजकल फॉग चल रहा है. मतलब महीने में दो फिल्में आ जाती थीं इनकी. लेकिन तब लोग ज्यादा देख नहीं पाते थे. क्योंकि पिच्चर हॉल सिर्फ शहरों में होते थे. वो भी बहुत महंगे. देहात में तो सिर्फ टीवी था. जिसमें रिलीज होने के कोई तीन चार सौ साल बाद आती थी.
फिर सन 98- 99 में सीडी प्लेयर एक कोशिकीय प्राणी के रूप में विकसित हुआ. और आगे चलकर उसका पूरा इवोल्यूशन हो गया. 2004 के बाद तो इतना सस्ता हो गया कि आदमी के घर पर छप्पर न हो लेकिन टीवी सीडी जरूर मिल जाते थे. ये मिथुन चक्रवर्ती की फिल्मों का स्वर्णकाल था.
इस वक्त जनता ने मिथुन चक्रवर्ती की इतनी फिल्में देखीं जितने आसमां पर सितारे हैं.
और उन फिल्मों को देखने वाली पूरी पीढ़ी का सदाचार सामान्य ज्ञान पूरी तरह से बदल गया. कैसे, इसका नमूना दिखा देते हैं.
साहब ये फाइट सीन था शेरा फिल्म का. इसको देखने के बाद भौतिक विज्ञानियों ने गंगाजल पी लिया होगा. कंग फू वाले गुरू शिफू इनको गुरू एप्वाइंट कर लेते तो भूचाल आ जाता. सोचो जब जैकी चेन हाफ पैन्ट पहनकर स्कूल जाते थे तो उनसे बड़ा एक्शन मास्टर हमारे यहां विलेन की धुलाई करता था. चलो एक और दिखा देते हैं तो यकीन आएगा. इसमें बस लोटे पर नजर रखना. सब उसी का खेला है.
इसके अलावा चीता, कैदी, गुंडा, शतरंज, तड़ीपार, दलाल, अहंकार, गुनाहगार जैसी सैकड़ों फिल्में. हम याद कराएंगे तो आंखें लाल हो जाएंगी लिस्ट देखते देखते. नहीं डिस्को डांसर याद कर लो. जिमी उस जमाने का नरेंद्र मोदी था. इंडिया से लेकर रूस तक डंका बजा था भारत का. बस इतना याद रखो कि साइकिल के पीछे छिपने का खयाल इतिहास में इनके आलावा किसी के दिमाग में नहीं आया होगा.
फिर उसके बाद की दूसरी पारी भी कम दमदार नहीं रही. लेकिन एक्शन उतना नहीं मिला. गुरू फिल्म में अभिषेक को सिर्फ बातों से हड़काया. यही हाल ओह माई गॉड में किया. तब थोड़ा खला था लेकिन गुरू असली हीरो तो आजतक वही हैं.