साल 2017 चल रहा है लेकिन अभी भी लोग माहवारी पर बात करने से कतराते हैं. बहुत कुछ दिखा देने वाला बॉलीवुड भी इस पर बात नहीं करता. लेकिन अब इस टॉपिक पर अक्षय कुमार की फिल्म आने वाली है. अक्षय कुमार ने इस साल आने वाली अपनी 4 फ़िल्मों के पोस्टर इंस्टाग्राम पर साझा किए हैं, जिनमें से एक का नाम है ‘पैडमैन’. फ़िल्म के पोस्टर पर सैनिटरी पैड की फ़ोटो है. बॉलीवुड में अभी भी औरतों के मुद्दों से जुड़ी कहानियों का टोटा है, ऐसे वक़्त में माचो छवि वाले अक्षय कुमार की माहवारी जैसे मुद्दे पर फ़िल्म आना सहज ही सभी का ध्यान खींच रहा है.
स्ट्रॉन्ग क़यास लगाए जा रहे हैं कि असल ज़िंदगी में ‘मेंसट्रुअल मैन’ के नाम से विख्यात ‘पद्मश्री’ अरुणाचलम मुरुगनाम के कृतित्व पर ही फ़िल्म की कहानी होगी. कोयंबटूर के अरुणाचलम ने अपनी पत्नी शांति को माहवारी के दौरान गंदे, पुराने, फटे कपड़े लगाते देखा तो वो बेचैन हो उठे. इसी बेचैनी में उन्होंने लड़कियों के लिए सस्ते सैनिटरी पैड बनाने की ठानी. अरुणाचलम को अपने बनाए पैड्स को टेस्ट करना था लेकिन उस दौर में जब औरतें आपस में ही माहवारी के बारे में बात करने से सकुचाती थीं, तो किसी ग़ैर मर्द से कैसे बात करतीं. हारकर अरुणाचलम ने जानवरों के ख़ून की थैलियां बनाईं और ख़ुद के शरीर पर लगाकर अपने बनाए सैनिटरी पैड्स की टेस्टिंग करनी शुरू कर दी. मेडिकल कॉलेज की लड़कियों को मुफ़्त में बांटना शुरू किया. धीरे-धीरे ही सही उनके काम की पहचान होने लगी और माहवारी के लिए जागरूकता की उनकी अलख देश भर में फैल रही है.
ऐसी ही एक मशाल राजस्थान में एक नौजवान ने उठा रखी है. अभिषेक चंचल, जिसे माहवारी से हुई एक बच्ची की मौत ने द्रवित कर दिया और इस तरलता को उसने माहवारी से ज्यादा पीड़ा देने वाले दकियानूसी असंवेदनशील समाज को झकझोरने के लिए दहकते लावा में तब्दील किया. ‘लल्लनटाप’ से बातचीत में उसने बताया कि कैसे घूंघटनशीं औरतें घबरा जाती थीं माहवारी शब्द सुनते ही, उस लड़की की कहानी जो ख़ून का बहाव रोकने के लिए घंटों धूप से चिलचिलाते पत्थर पर बैठी रहती थी, कैसे एक बाली उमर की नई ब्याहता पति के हुक़्म पर चक्कर आ जाने तक नाचती रहती थी बस इसलिए कि उस दिन पति की हवस नहीं मिटा पाई थी. अभिषेक हर हफ़्ते सभा करते हैं, चर्चा करते हैं, मां-बेटियों को आपस में बात करने की पहल करना सिखाते हैं, पैड क्यों जरूरी है, इसके लिए रैलियां निकालते हैं. बर्फ़ पिघल रही है, बदलाव की बयार भी बह रही है. अभिषेक बताते हैं कि जिन लड़कियों के मुंह से बोल नहीं निकलते थे, उन्होंने अभी हाल ही में मिलकर छेड़खानी के ख़िलाफ़ सरपंच को ख़त लिखा है. अब उन गांवों में भी लड़कियां न सिर्फ़ अपनी हाइजीन के लिए सजग हैं बल्कि माहवारी के बारे में भी खुलकर बात कर रही हैं.
ये स्टोरी प्रज्ञा श्रीवास्तव ने लिखी है.
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