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पहले द्रविड़, फिर सचिन और अब वीनू मांकड़...ICC हॉल ऑफ फेम में कैसे मिलती है जगह?

कब्रिस्तान से निकालकर वीनू को बनाया गया था क्रिकेटर.

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वीनू मांकड़ 1952 में भारत की पहली टेस्ट जीत के हीरो भी रहे हैं. File Photo
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14 जून 2021 (Updated: 14 जून 2021, 05:06 PM IST) कॉमेंट्स
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1950 तक वर्ल्ड क्रिकेट अलग ही तरीके से चलता था. पूरी दुनिया ऐसे प्लेयर्स के पीछे पागल थी जो बैटिंग के साथ-साथ बोलिंग भी कर लें. फिर चाहे वो लाला अमरनाथ हों, अमर सिंह हों या फिर कप्तान सी.के. नायडू. लेकिन वर्ल्ड क्रिकेट की शक्तियां असली ऑल-राउंडर उसे ही मानती थीं जिसने टेस्ट में कम से कम 1000 रन और 100 विकेट अपने नाम किए हों.
भारत के लिए ऐसा करने वाले पहले खिलाड़ी थे मुल्वंतराय हिम्मतलाल वीनू मांकड़. वीनू जब क्रिकेट खेल रहे थे तो वो दुनिया के सबसे बेहतरीन ऑल-राउंडर माने जाते थे. लेकिन वीनू का दुनिया का बेहतरीन ऑल-राउंडर बनना किसी एक्सिडेंट से कम नहीं है. वीनू तो भारतीय क्रिकेट को मिल ही नहीं पाते. लेकिन भला हो नवानगर के महाराजा कुमार दलीपसिंहजी का, जिन्होंने ना सिर्फ वीनू को खोजा बल्कि उन्हें आगे भी लेकर गए.
महान क्रिकेटर बनने से कई साल पहले एक दिन वीनू एक कब्रिस्तान में क्रिकेट खेल रहे थे. तभी महाराजा दलीपसिंह जी वहां से गाड़ी लेकर गुज़रते हैं. उनकी नज़र उस वीनू पर पड़ी और उन्होंने अपनी गाड़ी रोककर उन्हें पास बुलाकर कहा,
'सांझे जाम बंगला पर आवी जाजो.'(शाम को पैलेस पर आ जाना.)
इसके बाद दलीपसिंह, वीनू को क्रिकेट की ट्रेनिंग देते हैं और उन्हें कामयाब क्रिकेटर बनाते हैं. लेकिन दलीपसिंह जैसे जौहरी के तराशने के बावजूद वीनू को भारत के लिए खेलने में 10 साल लग गए. लंबे इंतजार के बाद आखिरकार दूसरे विश्वयुद्ध के बाद, 1946 में इंग्लैंड जाने वाली टीम में उनका सलेक्शन हुआ. और मौका मिलते ही वो छा गए. इंग्लैंड के खिलाफ उन्होंने तीन टेस्ट मैच और कई फर्स्ट-क्लास मैच खेले. इस दौरे पर उन्होंने इतने रन बना दिए जो कि आज भी एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है.
वीनू ने उस दौरे पर 1129 रन बनाए और 129 विकेट अपने नाम किए. जिसके बाद 1947 में उन्हें विज़डन क्रिकेटर ऑफ द ईयर का अवॉर्ड भी दिया गया. 1946 से 1959 तक वो भारतीय क्रिकेट का एक नायाब हीरा रहे. 1959 में उन्होंने क्रिकेट से संन्यास का ऐलान कर दिया.
अब आप सोच रहे होंगे कि आज ना तो वीनू दा बड्डे है, और ना ही बरसी. फिर आखिर क्यों वीनू मांकड़ को याद किया जा रहा है. दरअसल इस संन्यास के लगभग 62 साल बाद वीनू को एक सम्मान दिया गया है. ICC ने वीनू मांकड़ को हॉल ऑफ फेम में शामिल किया है.
वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप फाइनल से पहले ICC ने अलग-अलग युग से दस खिलाड़ियों को ICC हॉल ऑफ़ फेम में जगह दी है. जिसमें वीनू के साथ-साथ कुमार संगाकारा और एंडी फ्लावर का नाम भी शामिल है. इनके साथ जिन 10 खिलाड़ियों को इस लिस्ट में शामिल किया गया है. उनके बारे में जानते हैं. युगों के हिसाब से जानें किस-किस खिलाड़ी को मिली जगह:1918 से पहले का युग: इस युग से दक्षिण अफ्रीका के ऑब्रे फॉकनर और ऑस्ट्रेलिया के मोंटी नोबल को शामिल किया गया है.
1918-1945 इंटर-वॉर युग: वेस्टइंडीज के पूर्व ऑलराउंडर सर लेरी कॉन्सटेंटाइन और ऑस्ट्रेलिया के पूर्व बल्लेबाज स्टेन मैककैब को इस युग से हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया है.
1946-1970 पोस्ट-वॉर युग: इस युग में भारत के दी ग्रेट ऑल-राउंडर वीनू मांकड़ और इंग्लैंड के टेड डेक्सटर को चुना गया है.
1971-1995 ODI युग: वनडे युग से वेस्टइंडीज के पूर्व बल्लेबाज डेसमंड हेंस और इंग्लैंड के पूर्व तेज गेंदबाज बॉब विलिस को जगह मिली है.
कुमार संगकारा (Reuters)
कुमार संगकारा (Reuters)

1996-2015 मॉर्डन क्रिकेट: मॉर्डन क्रिकेट एरा से कुमार संगकारा और एंडी फ्लावर को शामिल किया गया है. फ्लावर जिम्बाब्वे से हॉल ऑफ फेम में जगह बनाने वाले पहले खिलाड़ी बन गए हैं. क्या है ICC हॉल ऑफ फेम? साल 2009 में ICC ने इस सम्मान की शुरुआत की थी. जिसका उद्देश्य क्रिकेट इतिहास से दिग्गज खिलाड़ियों की उपलब्धियों को पहचान कर उन्हें सम्मानित करना है. 2009 में ICC ने जब इसका ऐलान किया को तो इसमें फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल क्रिकेटर्स एसोसिएशन का भी सहयोग था.
शुरुआत में इसमें फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल क्रिकेटर्स एसोसिएशन के सभी 55 खिलाड़ियों को शामिल गया था. जिसके बाद से ICC अवॉर्ड्स समारोह के दौरान हर वर्ष आगे के सदस्यों को जोड़ा जाता है. ICC Hall ऑफ फेम में शामिल भारतीय: वीनू मांकड़ इस लिस्ट में शामिल होने वाले सातवें भारतीय हैं. उनसे पहले बिशन सिंह बेदी, कपिल देव, सुनील गावस्कर, अनिल कुंबले 2015, राहुल द्रविड़ 2018, सचिन तेंडुलकर 2019 इस लिस्ट में पहुंच चुके हैं.
बिशन सिंह बेदी, कपिल देव, सुनील गावस्कर को 2009 में इस लिस्ट में जगह मिल गई थी.
जबकि अनिल कुंबले को 2015, राहुल द्रविड़ को 2018 और सचिन तेंडुलकर 2019 में इस सम्मान से नवाज़ा गया.
Sachin Dravid
सचिन तेंडुलकर और राहुल द्रविड़. File Photo
कैसे होता है ICC हॉल ऑफ फेम में खिलाड़ियों का चयन:# ICC हॉल ऑफ फेम में शामिल होने का सबसे पहला मानदंड. खिलाड़ी को इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास लिए कम से कम पांच साल पूरे होने चाहिए.
# अगर आप बल्लेबाज़ हैं तो इंटरनेशनल क्रिकेट में आपके नाम कम से कम 20 शतक और 8000 रन होने चाहिए. ये क्रिकेट के दोनों प्रारूप टेस्ट या ODI किसी के भी रन हो सकते हैं. या फिर किसी भी एक फॉर्मेट में बल्लेबाज़ी औसत 50 से ऊपर होनी चाहिए.
# अगर गेंदबाज़ को इसमें शामिल होना है तो किसी भी एक फॉर्मेट में उसके नाम 200 विकेट होने चाहिए. जबकि टेस्ट में उसका स्ट्राइक रेट 50 और वनडे में 30 का होना अनिवार्य है.
Jacques Kallis
जैक कैलिस ने बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी में कमाल के प्रदर्शन के दम पर इस लिस्ट में अपनी जगह बनाई. File Photo

# विकेटकीपर्स को अगर इसमें अपना नाम लिखवाना है तो कम से कम उसके नाम कुल मिलाकर 200 शिकार होने ही चाहिए.
# बतौर कप्तान भी इस लिस्ट में शामिल हुआ जा सकता है. अगर किसी कप्तान ने 25 टेस्ट या 100 वनडे में 50% से अधिक जीत दर्ज की है, तो वो भी इस लिस्ट में शामिल हो सकता है.
एक खास बात और, ये भी ज़रूरी नहीं है कि ये सम्मान सिर्फ क्रिकेट खिलाड़ियों को ही दिया जा सकता है. किसी स्पेशल केस में ये सम्मान क्रिकेट खिलाड़ियों के अलावा क्रिकेट के दिग्गज पत्रकार, मैच रेफरी, अंपायर और प्रशासक को भी नोमिटेट किया जा सकता है.
इसके अलावा भी एक और तरह से ये सम्मान मिल सकता है. अगर कोई टीम, संस्थान या फिर खिलाड़ी इन नियमों के तहत नहीं आता है, तो हॉल ऑफ फेम के नामित सदस्य ऐसे लोगों और संस्थान के नाम को नॉमिनेट कर आगे बढ़ा सकते हैं. अगर ऐसे सदस्य का क्रिकेट में योगदान अहम रहा है तो उन्हें भी ये सम्मान दिया जा सकता है. लेकिन इसके लिए भी एक शर्त है. वो ये कि इस पर सभी नामित सदस्यों (हॉल ऑफ फेम का चयन करने वाले सदस्य) का एकमत होना अनिवार्य है.
इस तरह से इन सभी पैमानों पर परखकर मौजूदा समय तक ICC ने कुल 103 खिलाड़ियों को ICC हॉल ऑफ फेम में शामिल किया है.

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