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उस पत्रकार की कहानी जिसने 'CIA एजेंट' बनकर प्लेबॉय का खुलासा किया था

कहानी फेमिनिस्ट आइकन ग्लोरिया स्टाइमेन की.

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ग्लोरिया स्टाइनेम अबॉर्शन राइट्स की भी मुखर आवाज़ रही हैं (तस्वीर - इंस्टाग्राम)
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25 मार्च 2022 (Updated: 26 मार्च 2022, 09:30 IST)
Updated: 26 मार्च 2022 09:30 IST
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50 का दशक. अमेरिकी पॉप कल्चर में एक नया जिन्न निकलकर आया. नाम था प्लेबॉय. एकदम कल्ट बन गया. 1953 में अपने प्रकाशन के साथ ही प्लेबॉय मैगज़ीन ने पॉप कल्चर में अपना मुकाम बना लिया था. 1960 में शिकागो में पहला प्लेबॉय क्लब खुला. अमेरिकी लोगों ने ऐसा कुछ कभी नहीं देखा था. कुछ 'लैविश क्लब्स' थे, लेकिन क्लब्स की प्लेबॉय जैसी चेन अमेरिका के लिए नई थी. प्लेबॉय क्लब में काम करने वाली वेट्रेसेस को 'प्लेबॉय बनी' कहा जाता था. खरगोश वाले कान, सैटिन कपड़े का वन पीस, ब्लैक टाइट्स, बो टाई और कफ़लिंक पहनती थीं. क्लब और पब्लिकेशन चेन के मालिक ह्यूग हेफ़नर एक लोकप्रिय नाम बन गए थे. और उनके साथ प्लेबॉय क्लब बन गया था लाइफ़स्टाइल का सबसे 'ऊंचा' स्टेटस सिम्बल.
प्लेबॉय की वेट्रेसेस को भी सेलिब्रिटीज़ की तरह ही देखा जाता था. उस समय की फ़िल्मों में भी उन्हें ग्लैमराइज़, एक्चुअली ऑब्जेक्टिफाई, किया जाता. मतलब माहौल ऐसा था कि प्लेबॉय मॉडल हो जाने को लाइफ सेट हो जाने जैसा माना जाता था. इसी बीच आई एक इंसाइडर कहानी. नाम था 'आई वॉज़ अ प्लेबॉय बनी'. शो मैगज़ीन नाम की मैगज़ीन में छपी ये कहानी खोजी पत्रकारिता में एक मिसाल है. एक पत्रकार ने तीन हफ़्तों तक प्लेबॉय बनी बनकर काम किया और इस ग्लैमरस दुनिया का क्रूर सच सबके सामने ला दिया.
प्लेबॉय के मालिक ह्यूग हेफ़नर हिल गए. बाद में चल कर ये पत्रकार अमेरिकी फेमिनिस्ट आंदोलन का चेहरा बन गईं. ख़बर ये भी आई कि ये पत्रकार CIA एजेंट थी. आज इस पत्रकार का बड्डे है, तो आज आपको इसी पत्रकार (फेमिनिस्ट आइकन) की कहानी बताएंगे और बताएंगे CIA वाले दावे की सत्यता.
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1961 में शिकागो नाइट क्लब में ह्यूग हेफनर (तस्वीर - AP)
कौन हैं ग्लोरिया स्टाइमेन? ग्लोरिया स्टाइनेम. अमेरिकी पत्रकार, लेखिका और विमेन्स राइट्स ऐक्टिविस्ट. दुनिया की फेमिनिस्ट आइकन्स की अगर कभी सूची बने, तो ग्लोरिया का नाम शीर्ष पर होगा. नारीवाद की हर लहर, हर संघर्ष के साथ ग्लोरिया ने आवाज़ मिलाई. चाहे वो मताधिकार की लड़ाई हो, पॉलिटिकल स्पेस में महिलाओं की भागीदारी की लड़ाई हो या अबॉर्शन राइट्स की, ग्लोरिया ने हर आंदोलन में अपना प्रभाव जमाया.
सबसे पहले आपको ग्लोरिया का वो क़िस्सा बता देते हैं, जिसका हमने शुरू में ज़िक्र किया. अख़बार में एक इश्तेहार आया - "हां, यह सच है! आकर्षक युवा लड़कियां अब न्यूयॉर्क प्लेबॉय क्लब में $200-$300 प्रति सप्ताह कमा सकती हैं.." शो मैगज़ीन ने इस मुद्दे पर स्टिंग करने का फ़ैसला किया. इसके लिए चुना ग्लोरिया स्टाइनेम को. एक झूठा नाम रखा - मैरी ओच्स. अप्लाई किया. ऑडिशन के लिए उन्हें बिकिनी और हाई-हील्स पहनकर बुलाया गया था. दो राउंड इंटरव्यू और कॉस्ट्यूम राउंड के बाद एक शारीरिक परीक्षा हुई. एक 'बनी मदर' लेक्चर, एक 'बनी फादर' लेक्चर, यहां तक कि ड्रिंक परोसने की ट्रेनिंग हुई. फिर बनी बाइबल के दो लेक्चर हुआ. असल में ये बनी बाइबल प्लेबॉय क्लब्स के तौर-तरीक़ों का एक मैनुअल होता है. फिर आख़िरकार, ग्लोरिया ने काम शुरू किया और क़रीब तीन हफ़्तों तक मैरी ओच्स नाम की प्लेबॉय बनी की पहचान के साथ रहीं.
ये तो हुई भर्ती की बात. अपने आर्टिकल में ग्लोरिया ने बताया कि दूर से चमचम की ये दुनिया कितनी अंधेरी है. ग्लोरिया ने लिखा कि एक बनी को हमेशा प्रेज़ेंटेबल लगना होता था. अपने एक्सेसरीज़ और मेकअप का ख़र्च खुद उठाना होता था और उन्हें सैलरी के तौर पर उतने पैसे भी नहीं मिलते थे. अपनी रिपोर्ट में ग्लोरिया ने ये भी खुलासा किया कि प्लेबॉय बनीज़ को पैडेड कॉस्ट्यूम्स पहनने होते थे. यहां तक कि कुछ मॉडल्स को इम्पलांट सर्जरी तक करवानी पड़ी थी. कुल-मिलाकर वर्क कल्चर घोर महिला-विरोधी था. स्टोरी सामने आई तो इस लैविश क्लब चेन की ख़ूब भद्द पिटी.
प्लेबॉय की कहानी तो हमने बता दी, अब ये बताते हैं कि ये पत्रकार आंदोलनों का चहरा कैसे बनीं.
Gloria
ग्लोरिया स्टाइमेन को अपनी रिपोर्ट के बाद अकादमिक और पत्रकारिता जगत में एक अलहदा पहचान मिली (फोटो - इंस्टाग्राम)
संपादक कहते थे, 'मैं तुम्हें इस क़ाबिल नहीं समझता' ग्लोरिया का जन्म 25 मार्च, 1934 को ओहायो के टोलेडो में हुआ. जो लियो और रूथ स्टाइनेम की दूसरी बेटी थीं ग्लोरिया. पिता एक ट्रैवलिंग सेल्समैन का काम करते थे. स्टाइनेम ने अपने शुरुआती साल अपने माता-पिता के साथ एक ट्रेलर में यात्रा करते हुए बिताए. 1946 में अपने मां-पिता के तलाक के बाद, ग्लोरिया अपनी मां के साथ ओहायो के टोलेडो में बस गईं. ग्लोरिया की मां क्रोनिक डिप्रेशन का शिकार थीं, तो मां की देखभाल की ज़िम्मेदारी के साथ ग्लोरिया ने अपना स्कूल पूरा किया. हाई स्कूल के बाद स्टाइनेम अपनी बड़ी बहन के साथ रहने के लिए वॉशिंगटन चली गईं.
स्टाइनेम भारत भी आई थीं. छह महीने के लिए. 1956 में स्मिथ कॉलेज से ग्रैजुएशन के बाद, स्टाइनेम स्कॉलरशिप पर भारत आई थीं. दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस कॉलेज में पढ़ती थीं. तब ग्लोरिया ने सरकारी नीतियों के ख़िलाफ़ चल रहे प्रोटेस्ट्स में हिस्सा लिया. फिर वापस अमेरिका चली गईं. 1960 में उन्होंने न्यूयॉर्क में उन्होंने जर्नलिस्ट के तौर पर काम करना शुरू किया. प्लेबॉय से जुड़े जिस आर्टिकल का ज़िक्र हमने शुरू में किया था, वो 1963 में छपा. 'आई वॉज़ अ प्लेबॉय बनी' के साथ ग्लोरिया ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया. इसके बाद ग्लोरिया स्टाइनेम की पॉलिटिक स्पेस में भागीदारी बढ़ गई.
ग्लोरिया ने न्यूयॉर्क मैग्जीन के लिए 'द सिटी पॉलिटिक' नाम से एक कॉलम लिखना शुरू किया. फ़्रीलांस आर्टिकल्स भी लिखे. 50-60 के दौर में महिलाओं को बड़े असाइनमेंट्स मिलते नहीं थे. न्यूज़रूम्स में पुरुषों का एकाधिकार था. महिलाओं को ज्यादातर सेक्रेटेरियल और बिहाइंड द सीन वाले काम मिलते थे. एक इंटरव्यू में स्टाइनेम ने बताया था कि जब वे द न्यूयॉर्क टाइम्स संडे मैगज़ीन के न्यूज़रूम में पॉलिटिकल स्टोरीज़ पिच करती थीं, तो उनके संपादक कहते थे,
'मैं तुम्हारे बारे में ऐसे सोचता नहीं."
1968 तक आते-आते ग्लोरिया को एक पब्लिक इंटेलेक्चुअल के तौर पर जाना जाने लगा. ग्लोरिया ने 'रेड स्टॉकिंग्स' नाम ने एक रैडीकल नारीवादी समूह की बैठक में हिस्सा लिया और यहां से शुरू हुई ग्लोरिया की नारीवादी यात्रा. हालांकि, ग्लोरिया स्टाइनेम की फैमिली में नारीवादी एलिमेंट था ही. उनकी नानी 1908 से 1911 तक ओहियो महिला मताधिकार संघ की अध्यक्ष थीं.
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2016 में ग्लोरिया ने टेलीविज़न डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ 'वुमन विद ग्लोरिया स्टाइनेम' की मेज़बानी की थी (फोटो - इंस्टाग्राम)

इसके बाद जुलाई, 1971 में बेटी फ्राइडन, बेला अबज़ग और शर्ली चिशोल्म के साथ ग्लोरिया ने राष्ट्रीय महिला राजनीतिक कॉकस की स्थापना की. उसी साल दिसंबर में ग्लोरिया ने 'मिस मैगज़ीन' शुरू की. 70 के दशक में ये इस तरह का पहला रेगुलर पब्लिकेशन था, जिसने समकालीन मुद्दों को नारीवादी दृष्टिकोण से देखा.
70s में स्टाइनेम ने अपना ज़्यादातर समय राजनीतिक संगठनों को दिया और महिला आंदोलनों की अगुवाई की. लेबर यूनियन विमेन, वोटर्स फ़ॉर चॉइस, विमेन अगेंस्ट पॉर्नोग्राफी और विमेन मीडिया सेंटर के फ़ाउंडिंग मेंम्बर्स में ग्लोरिया का नाम है.
2013 में स्टाइनेम को प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ़ फ़्रीडम से सम्मानित किया गया था. 2016 में उन्होंने टेलीविज़न डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ 'वुमन विद ग्लोरिया स्टाइनेम' की मेज़बानी की, जो महिलाओं के मुद्दों पर केंद्रित था. ग्लोरिया का CIA कनेक्शन? ग्लोरिया स्टाइनेम के नाम के साथ अमेरिकी सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) का नाम जोड़ा जाता रहा है. वैसे तो मेन स्ट्रीम मीडिया ने उनके जीवन के इस पहलू पर कम रिपोर्ट किया है. वहीं, जितनों ने किया उन्होंने स्टाइनेम पर आरोप ही लगाए.
डॉक्टर स्टुअर्ट ब्रैमहॉल ने उस समय एक लेख लिखा था. "क्या CIA ने नारीवादी आंदोलन को ख़त्म करने के लिए ग्लोरिया स्टाइनेम का इस्तेमाल किया?" ब्रैम्हॉल ने 1958 से 1962 तक का हवाला दिया था, जब स्टाइनेम CIA के फ्रंट ग्रुप इंडिपेंट रिसर्च सर्विस की निदेशक थीं. जब इस बारे में पूछा गया, तो स्टाइनेम ने स्वीकार किया कि उन्होंने CIA के लिए 'एजेंट' के रूप में काम किया. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि वो इंटरनैशनल इवेंट्स के लिए फंड जुटाने में असमर्थ थीं और इन ट्रिप्स को फंड करने के लिए वो CIA के पास गईं. उन्होंने कहा था,
"जिन लोगों के पास मैं अक्सर जाती थी, उनके पास एक ख़ास एजेंडा था. इस वजह से वे बहुत प्रतिबंधित लगाते थे. CIA की फ़ंडिंग में स्वतंत्रता थी. हालांकि, मैं CIA को एक दक्षिणपंथी, आग लगाने वाले समूह के रूप में देखती थी. ये एक पारंपरिक लिबरल दृष्टिकोण था और मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि ऐसा बिल्कुल नहीं था. वे प्रबुद्ध, उदार, गैर-पक्षपातपूर्ण थे."

इंडिया टुडे के 1976 में लिए गए एक इंटरव्यू
 में जब ग्लोरिया से पूछा गया कि जितना उन्होंने सोचा था, क्या वह उतना हासिल कर पाईं. तो ग्लोरिया ने कहा -
"मुझे लगता है कि महिलाओं को यह महसूस करने के लिए भी एक बड़ा संघर्ष करना पड़ता है कि हमारा जीवन हमारा है. मुझे यह विश्वास करने पर मजबूर किया गया कि मैं ख़ुद कुछ नहीं हो सकती, मुझे किसी से शादी करनी पड़ेगी और मुझे लगता है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में हममें से कई इसी तरह से पले-बढ़े हैं. मुझे अपने जीवन के बारे में, अपने काम के बारे में सोचने के लिए नहीं बड़ा किया ही नहीं गया था. हमेशा यही कहा गया कि इसका ध्यान कोई और रखेगा. मेरे पति वगैरह. मेरे लिए स्वायत्त बनने के लिए यह एक लंबा संघर्ष रहा है. असल में यह समझने का संघर्ष रहा है कि हम अपने जीवन के लिए ख़ुद जिम्मेदार हैं."
ग्लोरिया स्टाइनेम का नाम याद कर लीजिए. 'आउटरेजियस ऐक्ट्स ऐंड एवरीडे रिबेलियन्स' (1983), 'रेवल्यूशन फ़्रॉम विदिन (1992)', 'मूविंग बियॉन्ड वर्ड्स: एज, रेज, सेक्स, पावर, मनी, मसल्स: ब्रेकिंग द बाउंड्रीज़ ऑफ जेंडर' (1994) और अमेरिकी ऐक्ट्रेस-सिंगर मर्लिन मुनरो की बायोग्राफ़ी 'मर्लिन' (1997) ग्लोरिया की ज़रूरी किताबें हैं. 2015 में स्टाइनेम का मेमॉयर 'माई लाइफ़ ऑन द रोड' छपा, जिसमें उनकी कहानी का तफ़्सील ब्योरा है.
चलते-चलते एक और इंट्रेस्टिंग फ़ैक्ट भी बता देते हैं. ग्लोरिया स्टाइनेम ने हमेशा शादी को एक ऐसी संस्था के रूप में ख़ारिज कर दिया था, जो रिश्तों को नष्ट कर देती है. हालांकि, वह 66 की उम्र में पहली बार दुल्हन बनीं. मिस मैगज़ीन की संस्थापक स्टाइनेम ने दक्षिण अफ्रीका में जन्मे आंत्रप्रेन्योर डेविड बेल से शादी की. अब ये डेविड बेल कौन हैं? डेविड बेल महान अमेरिकी अभिनेता क्रिश्चियन बेल के पिता हैं.

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