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क्या काले मोतियाबिंद से गई आंखों की रोशनी वापस आ सकती है?

ग्लोकोमा यानी काला मोतियाबिंद, जिसके होने के चांस बढ़ती उम्र के साथ बढ़ते जाते हैं.

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90 प्रतिशत लोगों में ग्लोकोमा के लक्षण पता नहीं चलते
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4 नवंबर 2020 (Updated: 3 नवंबर 2020, 03:13 IST)
Updated: 3 नवंबर 2020 03:13 IST
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यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.

ग्लोकोमा. इस कंडीशन के बारे में सुना है आपने? आंखों से जुड़ी एक कंडीशन है और आंखों की रोशनी जाने की सबसे बड़ी वजह. ये कंडीशन ज़्यादातर 60 साल से ऊपर के लोगों में होती है. यानी बढ़ती उम्र में आंखों की रोशनी जाने की ये बड़ी वजह है. आज हम ग्लोकोमा के बारे में इसलिए बात कर रहे हैं क्योंकि हमें मेल आया है ज्योति का. उनकी मां की उम्र 62 साल है. काफ़ी समय से उनकी मां की आंखों में दर्द था. धुंधला दिखने लगा था. अब हाल ये है कि आंखों की रोशनी लगभग जा चुकी है. ज्योति चाहती हैं कि हम ग्लोकोमा के बारे में और पता करे. क्या इसका इलाज मुमकिन है. एक बार आंखों की रोशनी चली गई तो क्या वापस आ सकती है? ये सब जानते हैं, पर उससे पहले पता करते हैं कि ग्लोकोमा आख़िर होता क्या है?
क्या होता है ग्लोकोमा?
ये हमें बताया डॉक्टर नेहा जैन ने.
डॉक्टर नेहा जैन, ऑय स्पेशलिस्ट, भारत विकास हॉस्पिटल, कोटा
डॉक्टर नेहा जैन, आई स्पेशलिस्ट, भारत विकास हॉस्पिटल, कोटा


ग्लोकोमा या काला मोतियाबिंद आंखों की एक सीरियस कंडीशन है. इसकी वजह से अगर आंखों की रोशनी चली जाती है तो उसे किसी भी दवाई या सर्जरी से वापस नहीं लाया जा सकता. हमारी आंख में एक ऑप्टिव नर्व होती है जो हमारी आंखों में बनने वाली इमेज को ब्रेन तक पहुंचाती है, पुतली के पीछे एक चैम्बर होता है जिसमें एक क्लियर फ्लूइड होता है. इसी की वजह से आंखों का एक प्रेशर और शेप मेन्टेन रहता है, ये फ्लूइड एक फ़िक्स मात्रा में बनता रहता है और आंखों से निकलता रहता है. अगर किसी वजह से इसकी बनने की मात्रा बढ़ जाए या इसके निकलने में कोई रुकावट आ जाए तो धीरे-धीरे आंखों का प्रेशर बढ़ने लग जाता है. बढ़ा हुआ प्रेशर हमारी नसों को इफ़ेक्ट करना शुरू कर देता है, जिसकी वजह से उसके सेल धीरे-धीरे मरने लग जाते हैं. आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है, इस कंडीशन को ग्लोकोमा या काला मोतियाबिंद कहा जाता है.
What is Traumatic Glaucoma? आंखों का प्रेशर एक तय मात्रा से ज़्यादा बढ़ा होता है तो ग्लोकोमा हो सकता है


कारण
ग्लोकोमा होने का कोई एक कारण नहीं होता. कई रिस्क फैक्टर हैं. इनमें सबसे आम है कि अगर आपके परिवार में पहले से ही किसी को ग्लोकोमा की बीमारी हो, बढ़ती हुई उम्र के साथ इसके होने के चांसेज़ बढ़ जाते हैं. अमूमन 40 साल के बाद ये ज़्यादा देखने को मिलता है, किसी-किसी कंडीशन में ये जन्म के दौरान भी पाया जाता है. अगर कोई बीमारी जैसे थायरॉइड, शुगर, हाइपरटेंशन है तो ग्लोकोमा होने के चांसेज़ ज़्यादा होते हैं, हाई माइनस में चश्मे का नंबर हो तो भी ग्लोकोमा होने के चांसेज़ ज़्यादा होते हैं.
Eye ring is more effective than drops for glaucoma treatment - Medical Plastics News 90 प्रतिशत लोगों में ग्लोकोमा के लक्षण पता नहीं चलते


-आंखों का प्रेशर एक तय मात्रा से ज़्यादा बढ़ा होता है तो ग्लोकोमा हो सकता है, आंखों का प्रेशर नॉर्मल तौर पर 10 से 21 मिलीमीटर ऑफ़ मरक्यूरी के बीच में पाया जाता है. कभी-कभी नॉर्मल प्रेशर के साथ भी ये बीमारी पाई जा सकती है. स्टेरॉयड्स के लंबे समय तक लगातार इस्तेमाल से भी ग्लोकोमा हो सकता है.
ग्लोकोमा क्या होता है, ये आपने जान लिया. पर ज़रूरी है आप इसके लक्षण भी जानें. क्योंकि अगर लक्षण पकड़ में जल्दी आ गए तो इलाज भी जल्दी शुरू हो सकता है.
लक्षण
लक्षणों और इलाज के बारे में हमें बताया डॉक्टर कौशल शाह ने.
डॉक्टर कौशल शाह, ऑय स्पेशलिस्ट, ऑय हील कंप्लीट विज़न केयर, मुंबई
डॉक्टर कौशल शाह, ऑय स्पेशलिस्ट, ऑय हील कंप्लीट विज़न केयर, मुंबई


-90 प्रतिशत लोगों में ग्लोकोमा के लक्षण पता नहीं चलते
-10 प्रतिशत लोगों में इसके लक्षण हैं सिरदर्द, आंखों में दर्द, आंखों का लाल हो जाना, फील्ड ऑफ़ विज़न कम हो जाना
इलाज
-आंखों के लिए ड्रॉप्स दी जाती हैं जिससे आंखों पर पड़ने वाला प्रेशर कंट्रोल में आएगा
-टैबलेट दी जाती हैं. वो भी आंखों पर पड़ने वाले प्रेशर को कम करती है
-सर्जरी. इस सर्जरी में आंखों पर पड़ने वाला प्रेशर कम होता है. ये उस हालत में की जाती है जब ड्रॉप्स और दवाई से आंखों का प्रेशर कम नहीं होता
-लेज़र. ये आंखों पर पड़ने वाले प्रेशर को कम करते हैं
माना कि ग्लोकोमा यंग लोगों में नहीं होता. पर इसके बारे में पुख्ता जानकारी होना ज़रूरी है. ताकि आप अपने पेरेंट्स, ग्रैंडपेरेंट्स, उनकी सेहत का भी ख़याल रख सकें.


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