सर्दियों में खांसी, ज़ुकाम से बचा लेगा ये इंजेक्शन?
ये इंजेक्शन हर साल लगवाना पड़ता है.
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(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
प्रदीप 32 साल के हैं. पटना के रहने वाले हैं. पिछले कुछ समय से उन्हें सांस में तकलीफ़ होती है. ये दिक्कत ठंड आते ही बढ़ जाती है. पहले इन्हेलर से उनका काम चल जाता था, पर अब उन्हें आराम नहीं मिलता. सांस फूलने के साथ खांसी आती है. बलगम भी बहुत बनता है. उन्होंने डॉक्टर को दिखाया तो पता चला उन्हें एम्फाइज़िमा हो गया है. एम्फाइज़िमा लंग्स की एक कंडीशन है, जिसमें सांस लेने में तकलीफ़ होती है. ऐसे पेशेंट्स के लंग्स में मौजूद एयर सैक्स डैमेज हो जाते हैं. समय के साथ इन एयर सैक्स की अंदरूनी परत कमज़ोर होकर खराब हो जाती हैं. जिसके कारण लंग्स में मौजूद एयर स्पेसेज बड़े हो जाते हैं. आपके लंग्स में मौजूद एयर सैक्स ऑक्सीजन भीतर लेते हैं, इसलिए आप सांस ले पाते हैं. एम्फाइज़िमा के पेशेंट्स में इनमें ख़राबी आ जाती है. ठंड में ये परेशानी और बढ़ती है. इसलिए प्रदीप चाहते हैं कि हम एम्फाइज़िमा पर एक एपिसोड बनाएं. डॉक्टर से पूछकर बताएं ये क्यों होता है, इसका बचाव और इलाज क्या है. सुनिए. एम्फाइज़िमा क्या होता है? ये हमें बताया डॉक्टर दीपक शुक्ला ने.
डॉक्टर दीपक शुक्ला, पल्मनोलॉजिस्ट, मार्बल सिटी हॉस्पिटल, जबलपुर
-एम्फाइज़िमा फेफड़े की एक ऐसी बीमारी है जिसका असर टर्मिनल ब्रॉन्किओल्स पर पड़ता है.
-टर्मिनल ब्रॉन्किओल्स खून और ऑक्सीजन को एक्सचेंज करने का काम करते हैं.
-जब इनका असामान्य रूप से स्थायी फैलाव हो जाता है, तब इसे एम्फाइज़िमा कहते हैं.
-इस फैलाव में मौजूद इलास्टिक बैंड टूट जाते है और एरिया ब्लॉक हो जाता है.
-इससे न हवा बाहर जा पाती है न अंदर आ पाती है.
-ये एरिया खून के साथ ऑक्सीजन और कार्बन डाईऑक्साइड का एक्सचेंज नहीं कर पाता.
-एम्फाइज़िमा कई तरह का होता है.
-ये किस एरिया पर असर कर रहा है, उसके हिसाब से जाना जाता है. कारण -सबसे आम कारण है स्मोकिंग
-प्रदूषण
एम्फाइज़िमा फेफड़े की एक ऐसी बीमारी है जिसका असर टर्मिनल ब्रॉन्किओल्स पर पड़ता है
-धुंआ
-ज़हरीली गैसों के संपर्क में आना. लक्षण -खांसी में बलगम आना.
-सूखी खांसी.
-कुछ-कुछ मौसम में ये तकलीफ़ बढ़ जाती है.
-सांस लेने में दिक्कत.
-हॉस्पिटल में एडमिट तक होना पड़ सकता है.
-फेफड़ें इतने कमज़ोर हो जाते हैं कि निमोनिया होने के चांसेज़ बढ़ जाते हैं. बचाव -बचाव आसान है.
-स्मोकिंग न करें.
इस बीमारी का सबसे आम कारण है स्मोकिंग
-प्रदूषण से बचकर रहें.
-ज़हरीली गैसों से बचकर रहें. इलाज -इलाज संभव है पर इसे हमेशा के लिए ठीक नहीं किया जा सकता.
-कंट्रोल किया जा सकता है.
-लक्षण के हिसाब से इलाज किया जाता है.
-अगर खांसी आ रही है तो उसकी दवा दी जाएगी.
-खांसी में बलगम आ रहा है तो म्यूकोलिटिक्स दिए जाएंगे.
-खांसी के साथ सांस फूल रही है तो इनहेलर दिए जाते हैं.
-बार-बार निमोनिया हो रहा है तो एंटीबायोटिक दी जाती हैं.
-कई पेशेंट्स को सर्दियों में दिक्कत ज़्यादा होती है.
-सर्दियों में तापमान के बदलने से सांस की नलियां सिकुड़ती हैं.
-सर्दियों के मौसम में वायरस ज़्यादा फैलता है.
इलाज संभव है पर इसे हमेशा के लिए ठीक नहीं किया जा सकता
-पेशेंट के फेफड़े पहले से कमज़ोर होते हैं.
-इसलिए इन वायरस से आसानी से इन्फेक्शन हो जाता है.
-इन्फेक्शन के कारण लक्षण बढ़ जाते हैं.
-इसके कारण खांसी होती है.
-खांसी में बलगम आता है.
-सांस लेने में तकलीफ़ ज़्यादा बढ़ जाती है.
-ठंड से पहले इन्फ्लुएंजा वैक्सीन लगती हैं.
-इस वैक्सीन को समय से ले लें तो इससे बचा जा सकता है.
-कोविड की वैक्सीन ज़रूर लें.
-निमोनिया की वैक्सीन उपलब्ध हैं, वो ले सकते हैं.
-अगर डॉक्टर ने दवाइयां दे रखी हैं तो उन दवाइयों को डॉक्टर की निगरानी में लेते रहें.
-एम्फाइज़िमा के पेशेंट्स को कोविड से ज़्यादा ख़तरा है.
-इसलिए वैक्सीन ज़रूर लगवाएं.
अब अगर आपको डॉक्टर साहब के बताए गए लक्षण महसूस हो रहे हैं, सांस लेने में परेशानी हो रही है तो डॉक्टर से एम्फाइज़िमा की जांच ज़रूर करवाएं. याद रखिए, इसे कंट्रोल किया जा सकता है पर ज़रूरी है कि इसका समय रहते पता चल सके.