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Man boobs, Chest fat और Gynecomastia के कारण लड़कों को क्या- क्या झेलना पड़ता है?

ये एक मेडिकल कंडीशन है, जिसे गायनेकोमास्टिया कहते हैं.

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समाज मानता है कि औरतें पुरुषों से कमतर हैं. इसलिए एक पुरुष का औरत सा दिखना उसके अस्तित्व का सवाल बन जाती है.
10 दिसंबर 2021 (Updated: 9 दिसंबर 2021, 03:24 IST)
Updated: 9 दिसंबर 2021 03:24 IST
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आप नीचे एक तस्वीर में एक पुरुष को देख रहे हैं. या यूं कहें कि एक पुरुष के स्तनों को उसकी टीशर्ट के अंदर से झांकते हुए देख रहे हैं. ये तस्वीर 2011 की है और ये कोई आम आदमी नहीं है. ये अमेरिका के पूर्व पॉलिटिशियन बर्नी फ्रैंक हैं. उस वक़्त ये कांग्रेसमेन, जिसे हम इंडिया में सांसद कहते हैं, वो थे. ये तस्वीर संसद के ही एक सत्र की है. इस तस्वीर को टॉप पर लगाते हुए टैबलॉइड डेली मेल ने एक स्टोरी छापी. जिसकी हेडलाइन थी- बर्नी को सपोर्ट की कमी, संसद में स्वेटर के अंदर से अपने स्तन दिखाए. ज़ाहिर है, यहां बात राजनैतिक सपोर्ट नहीं, बल्कि ब्रेस्ट सपोर्ट की हो रही थी.
बर्नी फ्रैंक
ऐसा कई बार हुआ है कि राजनेताओं और बड़ी हस्तियों को अपने शरीर की वजह से भद्दे टिप्पणियां सुननी पड़ी हो (तस्वीर में बर्नी फ्रैंक)

आप सोच रहे होंगे कि क्या आज चर्चा वार्डरोब मैलफंक्शन पर होने वाली है. नहीं, आज चर्चा होने वाली है पुरुषों के स्तनों पर. जिसे शहरी भाषा में मेल बूब्स और शॉर्ट में मूब्स कहा जाता है. वो कहते हैं न, अंग्रेजी में गाली भी दो, पता नहीं चलता. वैसे ही मूब्स शब्द सुनने में पता नहीं पड़ता कि जिन पुरुषों को ये कंडीशन होती है, उन्हें क्या कुछ सुनना पड़ता है. क्या कुछ सहना पड़ता है.
अब आप सोच रहे हैं कि ये भी कोई कंडीशन हुई. शरीर से चर्बी हटाओ, सीना सपाट हो जाएगा. मसल वगैरह बनाओ, सब ठीक हो जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं है. ये एक मेडिकल कंडीशन है, जिसे गायनेकोमास्टिया कहते हैं. क्या ये कंडीशन एक बीमारी है? नहीं. क्या ऐसा होना आपके शरीर के लिए नुकसान लेकर आता है? नहीं. कम से कम मेडिकली तो नहीं. फिर क्यों आज हमें तमाम तरह के विज्ञापन दिखते हैं जो पुरुषों से उनके चेस्ट को फ्लैट करने का दावा करते हैं. क्यों यूट्यूब पुरुषों के स्तन घटाने के नुस्खों से भरा पड़ा है?
बात करेंगे इसपर. लेकिन पहले मैं आपको ले चलूंगी एक ऐसे पुरुष की दुनिया में जिसने इस कंडीशन का सामना किया है:
"वो एक लड़का मुझे टिट्स (जो कि स्तन के लिए एक अंग्रेजी अपशब्द है) पुकारता था. पूछता था, ब्रा क्यों नहीं पहनते? पूछता था, लड़का हो या लड़की? और जब कभी उसका जी करता तो तेज़ी से आता और मेरा स्तन निचोड़ देता. उसके दोस्त हंसते. स्कूल के गलियारों में मेरा एक ही नाम था- टिट्स."
ये कहानी है मैट कॉर्नेल नाम के एक अमेरिकी व्यक्ति की. जो उन्होंने गार्डियन के लिए एक ब्लॉग की शक्ल में खुद लिखी. मैट लिखते हैं कि किस तरह स्कूल की उम्र से ही उनके चेस्ट कि वजह से स्कूल के बच्चों ने उन्हें इतना चिढ़ाया कि उन्होंने पूरी तरह लूज टीशर्ट पहननी शुरू कर दीं. जो टीशर्ट जरा भी छाती से चिपक जाए तो उसे खींचकर दूर करते रहते. वे आगे लिखते हैं:
"मेरा वज़न वैसे भी ज्यादा था. मगर छाती दिखने या हिलने के डर से मैंने अपना मूवमेंट और भी बंद कर दिया. पूल वगैरह में तो मैं उतरता ही नहीं था. मैंने लोगों को दिखाता था कि मुझे स्पोर्ट्स में रुचि नहीं है. मगर असल में मैं सिर्फ डरता था, शर्मिंदा महसूस करता था."
मैट लिखते हैं कि लोगों ने उन्हें वज़न घटाने को कहा. मगर वज़न घटाने के बाद उनके तथाकथित स्तन और दिखने लगे. अंततः उन्होंने सर्जरी का सहारा लिया. मगर सर्जरी ने उनके स्तन और भद्दे दिखने लगे. वो बताते हैं कि जब उन्होंने वयस्क होने के बाद पहली बार सेक्स किया तो टीशर्ट तक नहीं उतारी. क्योंकि उसके अंदर उन्होंने स्पोर्ट्स ब्रा पहनी हुई थी. और उस ब्रा के अंदर सर्जरी के बाद की गई पट्टी छुपी हुई थी.
इस तरह की बुलीइंग की कहानी हज़ारों, लाखों पुरुषों के पास होंगी. वे सभी सर्जरी नहीं करवाते, लेकिन मानसिक तौर पर वो सब झेलते हैं जो मैट ने झेला. हमने कल ही दांतों को लेकर बात की थी और ये समझा था कि जब किशोरावस्था में किसी लड़के या लड़की को कुरूप और एब्नॉर्मल महसूस करवा दिया जाता है, तो आगे आने वाले कई साल उनके लिए डिप्रेसिंग हो जाते हैं. सोचिए न, अगर आप शरीर में खुश न हों तो आपको अपना जीना ही बेमानी लगेगा. ऐसा ही होता है उन किशोरों के साथ जिनके दिमाग में बॉडी इमेज इशूज ठूंस दिए जाते हैं.
ऐसे ही एक व्यक्ति हैं रवि. ये रवि का बदला हुआ नाम है. उनकी पहचान छुपाने के लिए हमने उनकी आवाज़ भी बदल दी है. सुनिए उनकी कहानी:
"मेरी एक बार तबीयत ख़राब हुई, स्टेरॉयड लेने पड़े. उसके साइड इफेक्ट के तौर पर मुझे वो हुआ जिन्हें मैन बूब्स कहते हैं. वो मेरे जीवन का सबसे बुरा दौर था. लोग मुझे बुली करते, स्कूल जाना शुरू किया तो क्लासमेट मेरे ब्रेस्ट दबाते. पहले मैंने इसे मजाक की तरह लिया. फिर मैंने पाया कि ये मुझे हार्म कर रहा है. बात बढ़ती ही गई. औरतों को भी स्तनों के नीचे पसीना होता है. मुझे भी होता था. लड़के कहते, इसके स्तनों में दूध उतर आया है. मुझे अपने वज़न से इतनी दिक्कत नहीं हुई, जितनी इस एक चीज से हुई. मैंने इससे मुक्त होना चाहता था. मगर हो नहीं पाया. स्कूल के बाद कॉलेज, कॉलेज के बाद नौकरी में. आज भी मेरे दफ्तर में लोग मेरा मजाक उड़ाने से नहीं चूकते.
इसके चलते मैं बहुत मौकों पर टूटा हूं. मैं लंबे समय तक डिप्रेशन में रहा हूं और उसकी सबसे बड़ी वजह यही है. इसने मेरे कॉन्फिडेंस को तोड़ा है. मुझे बार बार महसूस करवाया है कि मैंने पूरा मनुष्य होने से चूक गया, कि मैं एक इंसान के तौर पर दूसरों से कमतर हूं.
मैंने वेट कम करने के प्रोसेस में एक डाइटीशियन से समझा कि मेरे अंदर फीमेल हॉर्मोन अधिक हो गया है."
जहां तक मेरी समझ कहती है, हॉर्मोन किसी में भी ऊपर नीचे हो सकते हैं. आपने सुना होगा कि लड़कियों के भी मेल हॉर्मोन अक्सर बढ़ जाते हैं. कई बार इसी वजह से महिला एथलीट्स को कई खेलों से बाहर किया जाता है. हॉर्मोन का ऊपर नीचे होना बड़ी ही स्वाभाविक और नॉर्मल चीज है जिसकी वजह लाइफस्टाइल से लेकर स्ट्रेस, कुछ भी हो सकता है.
पुरुषों में चेस्ट टिशू क्यों ब्रेस्ट की तरह डेवलप हो जाते हैं, ये समझने के लिए मैंने बात की डॉक्टर से.
"गायनेकोमास्टिया एक पुरुष संबंधी प्रॉब्लम है, जिसमें ब्रेस्ट टिश्यूज़ की स्वेलिंग हो जाती है. इसके कुछ कारण हैं. पहला कारण है हार्मोनल. इस स्थिति में एस्ट्रोजन बढ़ जाता है टेस्टेस्ट्रॉन की कमी हो जाती है. कुछ ऐसी दवाई है जिसके कारण गायनेकोमास्टिया होता है और यह ज़्यादातर टीनएजर्स में होता है."
एक्सपर्ट का मशवरा
डॉक्टर ने बताया, ज़्यादातर ब्रेस्ट से संबंधित समस्याएं अपने आप ठीक हो जाती हैं. 6 महीने से 1 साल के अंदर.

मैंने ये भी समझा कि क्या ये मेल ब्रेस्ट हार्मफुल होते हैं. क्या ये उस पुरुष के लिए कोई मेडिकल दिक्कत ला सकते हैं?
"अधिकतर ब्रेस्ट स्वेलिंग पुरुषों के लिए ख़तरनाक नहीं होती. लेकिन कभी-कभी स्वेलिंग बढ़ जाने पर निप्पल से डिस्चार्ज होने लगता है, फ़्लूइड का या ब्लड का. और इसकी वजह से कैंसर भी हो सकता है. इसीलिए इस कंडीशन में आपको डॉक्टर से कंसल्ट कर लेना चाहिए."
मैंने ये भी पूछा कि इसकी सर्जरी कैसे होती है और क्या ये कुछ नुकसान लेकर आती है.
"ज़्यादातर ब्रेस्ट से संबंधित समस्याएं अपने आप ठीक हो जाती हैं. 6 महीने से 1 साल के अंदर. लेकिन अगर आपको तुरंत आराम चाहिए तो आप सर्जरी करवा सकते हैं, जिसको हम लाइपोसेक्शन कहते हैं. इसमें एक्स्ट्रा फैट-डिपोज़िशन को निकाला जाता है. इसी को साइड-इफ़ेक्ट्स हैं. स्कार आ जाना, ब्लीडिंग हो जाना, दोनों ब्रेस्ट में शेप और साइज़ का फ़र्क़ आ जाना."
मूब्स
स्कूलों में लड़कों की छाती निचोड़ देना एक खेल के समान हो गया है

बॉडी टाइप्स को लेकर हमारी धारणाएं बड़ी सख्त हैं. सिर्फ औरतों को लेकर ही नहीं, पुरुषों को लेकर भी. कई बार लड़कियां रो लेती हैं, टीचर से शिकायत कर देती हैं. मगर लड़कों को तो हम ऐसे बड़ा करते हैं कि उन्हें एक्सप्रेस करना सिखाते ही नहीं. उन्हें समझाते ही नहीं कि अपने मन की बात कहना अच्छी बात है.
ये समाज मानता है कि औरतें पुरुषों से कमतर हैं. इसलिए एक पुरुष का औरत सा दिखना उसकी मर्दानगी, उसके अस्तित्व का सवाल बन जाती है. लड़कियों की तरह चलते हो, लड़कियों की तरह रोते हो. इसी कड़ी का एक और वाक्य है, इसे स्तन तो लड़कियों की तरह हैं. स्तन तो बड़ा ही सभ्य शब्द है. इसके लिए किस किस तरह के शब्द इस्तेमाल होते हैं, और वो सुनने में कितने अप्रिय और कटु लग सकते हैं, ये मुझे आपको बताने की ज़रुरत नहीं है.
एक स्कूल में लड़के अगर किसी लड़की का सीना दबा देंगे या उसके ब्रेस्ट पर टिप्पणी करे तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा, उसे सजा दी जाएगी. और ऐसा होना भी चाहिए. लेकिन कोई बुली लड़का जब किसी दूसरे लड़के की छाती बेरहमी से निचोड़ दे या भद्दी बातें करें तो उसकी सुनवाई कौन करेगा. हम तो जब युवा बेटों को स्कूल भेजते हैं तो यही सोचकर भेजते हैं कि ले तो लड़का है, हर चीज से निपट ही लेगा. ये लड़कियों और लड़कों में तुलना की बात नहीं, ये बात उस खाई की है जो हमने लड़कों और लड़कियों के बीच खोद दी है. सबको बॉडी टाइप्स बांट दिए हैं, सबको सबके पहचान पत्र दे दिए हैं.
क्या राय है आपकी इस मसले पर. मुझे ज़रूर बताएं कमेंट सेक्शन में. शुक्रिया.

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