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धार्मिक विभाजन को लेकर किरण मजूमदार शॉ ने कर्नाटक सरकार को बड़ी चेतावनी दे दी

अब नहीं संभले तो बड़ा नुकसान होगा!

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किरण मज़ूमदार शॉ ने कर्नाटक के सीएम बासवाराज बोम्मई को टैग करते हुए कम्युनल डिवाइड को कम करने की दिशा में कदम उठाने की बात की.
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31 मार्च 2022 (Updated: 31 मार्च 2022, 15:50 IST)
Updated: 31 मार्च 2022 15:50 IST
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किरण मजूमदार शॉ. बायोकॉन लिमिटेड की चेयरपर्सन हैं. उन्होंने कर्नाटक में बढ़ रहे साम्प्रदायिक माहौल को लेकर चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा है कि इस तरह की घटनाएं भारत की ग्लोबल लीडरशिप को प्रभावित करेंगी. बीते दिनों मंदिर परिसरों में लगने वाले मेलों में गैर हिंदू व्यापारियों के दुकान लगाने पर आयोजकों ने बैन लगा दिया, मामला एक मेले से शुरू होकर कई मेलों तक पहुंचा.
किरण मजूमदार शॉ ने इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर को शेयर करते हुए लिखा,
"कर्नाटक आर्थिक विकास के लिए हमेशा सबको साथ लेकर चला है और हमें धर्म के आधार पर ऐसे भेदभाव को जगह नहीं देनी चाहिए. अगर इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एंड बिजनेस ट्रांसफॉर्मेशन (ITBT) साम्प्रदायिक हो गया तो ये हमारी ग्लोबल लीडरशिप को बर्बाद कर देगा."
किरण मजूमदार शॉ ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बासवाराज बोम्मई को टैग करते हुए उनसे रिक्वेस्ट की कि वो बढ़ते धार्मिक डिवाइड को रिजॉल्व करने के लिए कदम उठाएं.
बता दें कि कर्नाटक बीते कुछ वक्त से ऐसी खबरों के केंद्र में बना हुआ जिनमें धार्मिक ऐंगल इनवॉल्व्ड है.
सबसे पहले कर्नाटक में हिजाब विवाद शुरू हुआ. बात शुरू हुई उडूपी के एक प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज से. यहां कुछ लड़कियों ने हिजाब पहनकर कॉलेज आना शुरू किया, लेकिन कॉलेज प्रशासन ने कहा कि लड़कियां हिजाब पहनकर क्लास अटेंड नहीं कर सकती हैं. मामले ने तूल पकड़ा और फिर देखते ही देखते मामले ने धार्मिक ऐंगल लिया. कई कॉलेजों में एक के बाद प्रोटेस्ट शुरू हुए, धार्मिक संगठन छात्राओं के समर्थन और विरोध में सामने आने लगे. 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला आया, हाई कोर्ट ने हिजाब को धर्म अभिन्न हिस्सा नहीं माना और निर्देश दिया कि लड़कियां यूनिफॉर्म पहनने से इनकार नहीं कर सकती हैं. इस फैसले के विरोध में कई मुस्लिम बहुल इलाकों में व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद रखी थीं.
Karnataka हिजाब पर कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में कई मुस्लिम व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद रखी थीं. फोटो- PTI

कर्नाटक के तटीय इलाकों में अलग-अलग मंदिरों में मार्च-अप्रैल के महीनों में मेलों का आयोजन किया जाता है.कर्नाटक के शिवमोगा के एक मंदिर में 22 मार्च से एक मेला शुरू हुआ था. इस मेले की आयोजन समिति ने कहा था कि मेले में केवल हिंदू ही स्टॉल लगा सकते हैं. शिवमोगा के बाद इलाके के दूसरे मंदिरों में आयोजित मेलों को लेकर भी इसी तरह के बैन लगाए गए.
विधानसभा में ये मामला उठा. विपक्ष ने सवाल उठाया कि इतने सालों से शिवमोगा में हिंदू-मुस्लिम मिलजुलकर रहते आए हैं और सारे त्योहार साथ मनाते हैं. विपक्ष ने आरोप लगाया कि इस तरह का बैन राज्य में हिंदू-मुस्लिम के लकीर खींचने का काम कर रहा है.
हालांकि, राज्य की बीजेपी सरकार ने विधानसभा में इस बैन का बचाव किया. साथ ही 2002 में लागू हुए नियमों का हवाला देते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार ने ही नियम बनाए थे कि मंदिर के आसपास गैर हिंदुओं को लीज़ पर ज़मीन या इमारतें नहीं दी जाएंगी.
कर्नाटक के कानून मंत्री जेसी मधुस्वामी ने कहा कि सरकार बैन का समर्थन नहीं करती है, लेकिन 2002 के कानून के मुताबिक उस पर रोक भी नहीं लगा सकती है.
हालांकि, 2002 का कानून ऐसी प्रॉपर्टीज़ के बारे में बात करता है जिन्हें मूव नहीं किया जा सकता है, जबकि मेले में लगने वाले स्टॉल्स और दुकानें मेले के बाद हटा दिए जाते हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई मुस्लिम व्यापारियों का कहना है कि वो सालों ने मेलों में दुकान लगाते आए हैं और इस तरह का बैन उन पर सीधे तौर पर आर्थिक हमला है.

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