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ईडी के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह ने लिया VRS, BJP के टिकट पर लड़ सकते हैं चुनाव

सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबर से जुड़े मामलों की जांच कर चुके हैं राजेश्वर सिंह.

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Rajeshwar Singh की एक फोटो. (फोटो: यूट्यूब)
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9 जनवरी 2022 (Updated: 9 जनवरी 2022, 08:29 IST)
Updated: 9 जनवरी 2022 08:29 IST
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पांच राज्यों की चुनावी तारीखों का ऐलान होते ही अधिकारियों के VRS (एच्छिक सेवा निवृत्ति) लेने की खबरें आने लगी हैं. कानपुर के पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने जहां 8 जनवरी को अपने VRS आवेदन और बीजेपी में शामिल होने के बारे में बताया, वहीं अब खबर है कि प्रवर्तन निदेशालय यानी ED के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह (Rajeshwar Singh) के VRS को स्वीकार कर लिया गया है. लखनऊ में तैनात रहे राजेश्वर सिंह ने पिछले साल अगस्त में यह आवेदन किया था. मीडिया में खबरें हैं कि राजेश्वर सिंह आगामी यूपी चुनाव में बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं. हालांकि, अभी तक इस संबंध में राजेश्वर सिंह की तरफ से कुछ कहा नहीं गया है.
असीम अरुण की ही तरह राजेश्वर सिंह भी काफी हाई प्रोफाइल अधिकारी रहे हैं. असीम अरुण जहां एक तरफ देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सुरक्षा में तैनात रहे और ISIS के आतंकवादी सैफुल्ला के एनकाउंटर से चर्चा में आए, वहीं राजेश्वर सिंह ने सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम से जुड़े मामलों में कार्रवाई के जरिए सुर्खियों में रहे. उनके खुद के ऊपर आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे. आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी हुई. राजेश्वर सिंह कॉमनवेल्थ गेम्स, टू जी स्पेक्ट्रम और कोयला घोटाले जैसे मामलों की जांच में भी शामिल रहे हैं. पुलिस सेवा से ईडी में शामिल राजेश्वर सिंह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के पखरौली के रहने वाले हैं. उनके पास बी.टेक की डिग्री है. साथ ही साथ राजेश्वर सिंह ने पुलिस, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय विषय में पीएचडी की है. साल 1996 बैच के PPS अधिकारी (Provisional Police Service) होने के साथ-साथ वो यूपी पुलिस के अधिकारी के तौर पर भी काम कर चुके हैं. साल 2009 में वो प्रवर्तन निदेशालय में शामिल हुए. छह साल बाद यानी 2015 में उन्हें स्थाई तौर पर ईडी के कैडर में शामिल कर दिया गया. फिर वो ईडी लखनऊ जोन के संयुक्त निदेशक भी बनाए गए. ईडी में शामिल होने के बाद ही उनका नाम हाई प्रोफाइस मामलों से जुड़ता चला गया.
Rajeshwar Singh के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोप लग चुके हैं. (फोटो: यूट्यूब)
Rajeshwar Singh के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोप लग चुके हैं. (फोटो: यूट्यूब)

इस बीच उनके खिलाफ 2011 में शिकायतें भी आईं. प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर राष्ट्रपति कार्यालय और अलग-अलग मंत्रालयों में राजेश्वर सिंह के खिलाफ लगभग एक जैसी शिकायतें आईं. एक तरफ उनके कामकाज के तरीकों पर सवाल उठाए गए, दूसरी तरफ उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे. इस दौरान राजेश्वर सिंह कई हाई प्रोफाइल मामलों की जांच में शामिल थे. सहारा मामले में कार्रवाई एक ऐसा ही मामला सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय से जुड़ा था. साल 2011 के मई महीने में राजेश्वर सिंह ने सुब्रत रॉय, सुबोध जैन और पत्रकार उपेंद्र रॉय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने कहा कि ये सभी लोग टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले मामले में उनकी जांच में हस्तक्षेप कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस घोटाले में सहारा समूह के भी कुछ सौदे हैं. जिसे बाद में कोर्ट ने स्वीकार किया और मामला दर्ज करने का आदेश भी दिया. राजेश्वर सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सहारा इंडिया न्यूज नेटवर्क और उसके सहयोगी संस्थानों पर राजेश्वर सिंह से जुड़ी किसी भी स्टोरी को प्रकाशित करने पर रोक लगा दी. बाद में सुब्रत रॉय को हाउसिंग फाइनेंस के नाम पर आम लोगों से गैरकानूनी तरीके से पैसे लेने का दोषी पाया गया और उन्हें जेल भेज दिया गया.
सहारा इंडिया के मुखिया सुब्रत रॉय. (File Photo PTI)
सहारा इंडिया के मुखिया सुब्रत रॉय. (File Photo PTI)

एयरसेल-मैक्सिस डील मामले में भी राजेश्वर सिंह ने कार्रवाई की. उन्होंने बताया कि इस डील को हरी झंडी देने के लिए तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर गए. यह पूरा मामला विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (FIPB) से जुड़ा था. दरअसल, साल 2006 में इस डील को उस समय के केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने मंजूरी दी थी. इसके तहत 3,500 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूर किया गया था. हालांकि, वित्त मंत्री के तौर पर चिदंबरम के पास 600 करोड़ से अधिक के प्रोजेक्ट को मंजूरी देने का अधिकार नहीं था. ऐसास करने के लिए उन्हें आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी की मंजूरी लेनी जरूरी थी.
आरोप हैं कि पी चिदंबरम ने ऐसा नहीं किया और नियमों की अनदेखी करते हुए खुद ही इस डील को मंजूर कर दिया. बाद में इस मामले की जांच शुरू हुई तो राजेश्वर सिंह जांच टीम में शामिल रहे. CBI के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा के साथ भी राजेश्वर सिंह की नजदीकी की खबरें आई. यह भी कहा जाता है कि इस वजह से राजेश्वर सिंह एक समय नरेंद्र मोदी सरकार के रडार पर आ गए थे. राजेश्वर सिंह 'क्या यही सच है' नाम की फिल्म में एक्टिंग भी कर चुके हैं.

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