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गुजरात में उद्योग धंधों को हफ्तावार बंद रखने की नौबत क्यों आ गई है?

राज्य की अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा, फिर भी सरकार ने ऐसा आदेश दिया है.

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बाएं से दाएं. गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और इंडस्ट्री की सांकेतिक फोटो. (फोटो: ट्विटर)
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31 मार्च 2022 (Updated: 31 मार्च 2022, 14:08 IST)
Updated: 31 मार्च 2022 14:08 IST
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गुजरात सरकार ने राज्य के उद्योग धंधों को सप्ताह में एक बार बंद रखने का आदेश दिया है. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य में लगभग 500 मेगावाट इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई की कमी पूरी नहीं हो पा रही है. इस फैसले से गुजरात की अर्थव्यवस्था को नुकसान होने का डर है, लेकिन राज्य का बिजली संकट इतना बढ़ गया है कि उसे मजबूरन ये फैसला लेना पड़ा है. गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (GUVNL) की तरफ से जारी किए गए आदेश को तुरंत प्रभाव से लागू किया गया है. इस संबंध में GUVNL के एक अधिकारी ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को बताया,
"सप्ताह में एक दिन काम बंद रखने की ये कवायद हमेशा से रही है. हालांकि, ये वैकल्पिक है. हमने कभी भी इसे जरूरी नहीं बनाया. लेकिन अभी अचानक से पॉवर की डिमांड बढ़ गई है. खेती से जुड़े लोगों को अभी ज्यादा इलेक्ट्रिसिटी की जरूरत है. अगले 15 दिनों में इस मांग के कम होने की संभावना है. फिलहाल इसकी वजह से हर दिन करीब 500 मेगावाट इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई की कमी हो रही है."
अधिकारी ने आगे बताया,
"सरकार की तरफ से 29 मार्च से किसानों को 8 घंटे बिजली दी जा रही है. ऐसे में उद्योग धंधों के लिए बिजली कटौती करना जरूरी हो गया था."
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गुजरात के पास 37 हजार मेगावाट इलेक्ट्रिसिटी उत्पादन की क्षमता है. इसमें से रीन्यूबल यानी नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा करीब 15 हजार मेगावाट है. GUVNL के अधिकारी के मुताबिक, रीन्यूबल एनर्जी से होने वाली सप्लाई उतनी भरोसेमंद नहीं है. कांग्रेस ने उठाया था मुद्दा गुजरात को पावर सरप्लस स्टेट बताया जाता है. यहां के 18 हजार गांव इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड से जुड़े हुए हैं. इसके बावजूद यहां बड़ा बिजली संकट देखने को मिल रहा है. इसकी शुरुआत कुछ सरकारी स्कूलों की बत्ती गुल होने से हुई थी. इसी महीने की शुरुआत में आई इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात के 6 जिलों के 23 सरकारी स्कूलों में बिजली उपलब्ध नहीं थी. राज्य विधानसभा के एक सेशन के दौरान खुद सरकार ने ये जानकारी दी थी. बाद में बिजली कटौती का असर किसानों पर भी दिखने लगा. हर रोज 2 घंटे इलेक्ट्रिसिटी काटी जाने लगी. राज्य सरकार किसानों को प्रतिदिन 8 घंटे बिजली देती है. लेकिन बिजली कटौती के फैसले के चलते इसे 6 घंटे कर दिया गया. इसका सीधा असर उनकी खेती पर हुआ. जाहिर है किसान धरना प्रदर्शन करने को मजबूर हो गए. वडोदरा, मेहसाणा, पाटन समेत कई जिलों में किसानों ने विरोध प्रदर्शन किए. वहीं विपक्षी कांग्रेस ने दावा किया कि बिजली संकट की वजह से किसान बहुत नाराज हैं और उनकी सैकड़ों कॉल्स आ रही हैं. कांग्रेस विधायकों ने कहा कि किसानों की नाराजगी की वजह से उन्हें अपने इलाके में जाने से डर लग रहा है. उधर आम आदमी पार्टी ने किसानों से कहा कि बिजली कटौती के विरोध में वे अपने बिजली बिलों का भुगतान ना करें. पार्टी ने चेतावनी दी कि अगर राज्य सरकार ने इस बारे में कुछ नहीं किया तो वो चक्का जाम करेगी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले कई हफ्तों से गुजरात का एग्रीकल्चर सेक्टर हर दिन 6 घंटे से अधिक के पॉवर कट को झेल रहा था. इसके बाद राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया था. उसने बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार को इंडस्ट्री की पॉवर सप्लाई में कटौती करने का सुझाव दिया था ताकि किसानों को राहत मिल सके. गुजरात में पॉवर सप्लाई का 60 फीसदी हिस्सा उद्योग धंधो में खपत होता है. वहीं एग्रीकल्चर सेक्टर के हिस्से 22 फीसदी पॉवर सप्लाई आती है. घरेलू यूजर्स 18 फीसदी हिस्सा खर्च करते हैं. इधर गुजरात सरकार के इस फैसले पर गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (GCCI) ने निराशा जताई है. संगठन का कहना है कि सरकार के इस कदम से राज्य के उद्योग धंधों को झटका लगेगा. इसकी वजह से राज्य की आर्थिकी को नुकसान पहुंचेगा. संगठन की तरफ से ये भी कहा गया कि ये फैसला बिना किसी नोटिस के लिया गया है. ऐसे में इस फैसले को कम से कम 15 दिन की देरी से लागू किया जाना चाहिए.

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