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UP MLC Election में वो हो गया, जो BJP सत्ता में रहते हुए कभी नहीं कर पाई थी

यूपी विधान परिषद चुनाव को लेकर जैसा अनुमान लगाया जा रहा था परिणाम वैसा ही आया. समाजवादी पार्टी को तगड़ा झटका लगा है. विधान सभा में मुख्य विपक्षी दल को विधान परिषद में एक भी सीट नहीं मिली है. कुल 36 सीटों में से बीजेपी ने 33 सीटों पर जीत दर्ज की है.

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Yogi Akhilesh
UP MLC Election Result आने के बाद विधानपरिषद में सपा का दबदबा खत्म हो गया है, जबकि बीजेपी पूर्ण बहुमत में आ गई है. ( फाइल फोटो- PTI)
12 अप्रैल 2022 (Updated: 25 अप्रैल 2022, 16:19 IST)
Updated: 25 अप्रैल 2022 16:19 IST
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यूपी विधान परिषद चुनाव को लेकर जैसा अनुमान लगाया जा रहा था परिणाम वैसा ही आया. समाजवादी पार्टी को तगड़ा झटका लगा है. विधान सभा में मुख्य विपक्षी दल को विधान परिषद में एक भी सीट नहीं मिली है. कुल 36 सीटों में से बीजेपी ने 33 सीटों पर जीत दर्ज की है. 9 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार निर्विरोध जीते. जबकि 27 सीटों पर हुए चुनाव में 24 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. बाकी की तीन सीटों में से दो पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं. बीजेपी से निष्कासित एमएलसी यशवंत सिंह के बेटे विक्रांत सिंह रिशू आजमगढ़ से और बाहुबली बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह वाराणसी से जीतने में सफल रहीं. जबकि प्रतापगढ़ से राजा भैया के चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह जनसत्ता दल से चुनाव जीते.

आज उत्तर प्रदेश के स्थानीय प्राधिकारी विधान परिषद चुनावों में भाजपा की प्रचण्ड विजय ने पुनः स्पष्ट कर दिया है कि आदरणीय प्रधानमंत्री जी के कुशल मार्गदर्शन एवं नेतृत्व में प्रदेश की जनता राष्ट्रवाद, विकास एवं सुशासन के साथ है।

— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) April 12, 2022

कौन-कहां से जीता?

रायबरेली सीट पर योगी सरकार में मंत्री दिनेश प्रताप सिंह, गोरखपुर-महाराजगंज से रतनपाल सिंह, लखनऊ-उन्नाव सीट से रामचंद्र प्रधान, रामपुर-बरेली से महाराज सिंह, बाराबंकी से अंगद कुमार सिंह, आगरा-फिरोजाबाद से विजय शिवहरे, बलिया से रविशंकर सिंह पप्पू, सीतापुर से पवन सिंह चौहान, सुल्तानपुर से शैलेन्द्र प्रताप सिंह, बहराइच-श्रावस्ती से प्रज्ञा त्रिपाठी और कानपुर-फतेहपुर से अविनाश सिंह चौहान विधान परिषद के लिए चुने गए हैं.

इसके अलावा गोंडा से अवधेश कुमार सिंह, बस्ती-सिद्धार्थनगर से सुभाष यदुवंश, गोरखपुर-महाराजगंज से सीपी चंद, इटावा-फर्रुखाबाद से प्रांशु दत्त, इलाहाबाद से डॉक्टर केपी श्रीवास्तव, जौनपुर से बृजेश सिंह प्रिंसू, फैजाबाद से हरिओम पांडे, मेरठ-गाजियाबाद से धर्मेंद्र भारद्वाज, झांसी-जालौन से रमा निरंजन, गाजीपुर से विशाल सिंह चंचल और मुरादाबाद-बिजनौर से सतपाल सैनी बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते हैं.

कहां मिली हार?

आज़मगढ़, प्रतापगढ़ और वाराणसी की सीट बीजेपी जीतने में सफल नहीं हो पाई. आज़मगढ़ सीट पर बीजेपी से निष्कासित एमएलसी यशवंत सिंह के बेटे विक्रांत सिंह निर्दलीय जीत दर्ज करने में सफल रहे. विक्रांत सिंह आजमगढ़ सीट से टिकट की दावेदारी कर रहे थे. लेकिन पार्टी ने उनकी बजाय सपा विधायक रमाकांत यादव के बेटे को टिकट दिया था. विक्रांत ने निर्दलीय नामांकन कर दिया तो बीजेपी ने यशवंत और विक्रांत को पार्टी से निष्कासित कर दिया था. इसके बावजूद विक्रांत चुनाव जीतने में सफल रहे.

वहीं वाराणसी में बाहुबली बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह ने निर्दलीय जीत दर्ज की. पिछले दो दशकों से बृजेश सिंह का परिवार इस सीट से चुनाव जीतता आ रहा है. इसके अलावा प्रतापगढ़ से राजा भैया के चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह, जनसत्ता दल से चुनाव जीतने में सफल रहे. अक्षय प्रताप सिंह पांचवी बार विधान परिषद के लिए चुने गए हैं.

अखिलेश की यूथ ब्रिगेड चित

विधान परिषद चुनाव में सपा ने 36 में से 34 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. जबकि 2 सीटें सहयोगी दल RLD को दी थीं. नामांकन के समय 4 सीटों पर सपा प्रत्याशी अपना फॉर्म नहीं जमा कर पाए थे, जबकि 5 उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया था. इस तरह से 9 सीटें समाजवादी पार्टी ने वोटिंग से पहले ही गवां दी थी. बची 27 सीटों में किसी सीट पर जीत दर्ज कर पाना तो दूर जमानत बचाने के लिए भी पार्टी के उम्मीदवारों को काफी मशक्कत करनी पड़ी. कभी सपा का गढ़ कहे जाने वाले कन्नौज से अखिलेश यादव के करीबी पुष्पराज जैन पंपी, लखनऊ-उन्नाव सीट से सुनीय कुमार साजन, बलिया से समाजवादी युवजन सभा के अध्यक्ष अरविंद गिरी और देवरिया-कुशीनगर से डॉ. कफील खान चुनाव हार गए.

क्या है विधान परिषद?

जैसे केंद्र में दो सदन हैं लोकसभा और राज्यसभा, उसी तरह राज्यों में भी दो सदन हो सकते हैं. एक विधानसभा (Legislative Assembly) और दूसरा विधान परिषद (Legislative Council). जैसे राज्यसभा संसद का उच्च सदन कहलाता है वैसे ही विधान परिषद भी राज्य का उच्च सदन मानी जाती है. संसद में लोकसभा और राज्य की विधानसभा में सदस्य सीधे जनता से चुन कर आते हैं. वहीं, राज्यसभा और विधान परिषद में जनता के नुमाइंदे ही इसके सदस्य चुनते हैं. बस एक फर्क है. संसद में चाहें कोई भी सदन हो, सभी सदस्य MP कहलाते हैं. लेकिन राज्यों में विधान सभा के सदस्य को MLA और विधान परिषद के सदस्य को MLC कहा जाता है.

फिलहाल देश के 6 राज्यों में विधान परिषद हैं- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार और यूपी. पहले जम्मू-कश्मीर में भी विधान परिषद थी, लेकिन केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद उसकी मान्यता खत्म हो गई.

उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के गठन का स्वरूप

उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के गठन का स्वरूप

कैसे चुने जाते हैं विधान परिषद के सदस्य?

विधानसभा के सदस्य 5 साल के लिए चुने जाते हैं. लेकिन विधान परिषद के सदस्य का कार्यकाल छह साल के लिए होता है. इस इलेक्शन का सिस्टम कुछ ऐसा है,

# चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु 30 साल होनी चाहिए.
# एक तिहाई सदस्यों को विधायक चुनते हैं. मतलब विधानसभा में जिस पार्टी के सदस्य ज्यादा होंगे उसका एक तिहाई सदस्य चुनने में ज्यादा दखल रहता है.
# एक तिहाई सदस्यों को नगर निगम, नगरपालिका, जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत के सदस्य चुनते हैं.
# 1/12 सदस्यों को शिक्षक और
# 1/12 सदस्यों को रजिस्टर्ड ग्रैजुएट चुनते हैं.

यूपी विधानपरिषद में कितनी सीटें?

नियमों के मुताबिक़, किसी राज्य की विधान परिषद में विधानसभा की एक-तिहाई संख्या से अधिक सदस्य नहीं हो सकते. नियम ये भी है कि विधान परिषद के लिए कम से कम 40 सदस्य चुने जाते हैं. उत्तर प्रदेश में 403 विधानसभा सीटें हैं. यानी कि यहां पर 134 से ज्यादा विधान परिषद सदस्य नहीं हो सकते हैं. फिलहाल उत्तर प्रदेश में विधान परिषद सदस्यों की संख्या 100 है. इन 100 में से 38 सदस्यों को विधायक चुनते हैं. वहीं 36 सदस्यों को स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र के तहत जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य (BDC) और नगर निगम या नगरपालिका के निर्वाचित प्रतिनिधि चुनते हैं. 10 मनोनीत सदस्यों को राज्यपाल नॉमिनेट करते हैं. इसके अलावा 8-8 सीटें शिक्षक निर्वाचन और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती हैं.

जिसकी लाठी उसकी भैंस

विधान परिषद चुनाव का ये पुराना ट्रेंड है कि जो पार्टी सत्ता में रहती है अधिकतर सदस्य उसी पार्टी के होते हैं. साल 2004 में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. तब के चुनाव में सपा 36 में से 24 सीट जीतने में कामयाब हुई थी. 2010 में बसपा की सरकार थी. तब बसपा 36 में से 34 सीट जीतने में सफल रही थी. 2016 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे समाजवादी पार्टी की सरकार थी. तब समाजवादी पार्टी के हिस्से 36 में से 31 सीट आई थीं.

आज के परिणाम से क्या बदलाव?

विधान परिषद में कुल 100 सीटें हैं. जिसमें बीजेपी के पास 38 सीटें थीं. हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और जयवीर सिंह ने विधायक निर्वाचित होने के बाद इस्तीफा दे दिया था. जबकि यशवंत सिंह को बीजेपी ने पार्टी से निष्कासित कर दिया था. इसके बाद बीजेपी के सदस्यों की संख्या 35 रह गई थी. 12 अप्रैल को चुनाव परिणाम आने के बाद अब बीजेपी के सदस्यों की संख्या 68 हो गई है.

11 अप्रैल को UP MLC Election Result आने के बाद विधानपरिषद की दलीय स्थिति

11 अप्रैल को UP MLC Election Result आने के बाद विधानपरिषद की दलीय स्थिति

जुलाई में फिर बदलेगा समीकरण

हालांकि अभी जुलाई में विधान परिषद की 6 सीटें और खाली होंगी. ये सीटें मनोनीत सदस्यों की हैं. ये सभी 6 सदस्य समाजवादी पार्टी के हैं. जुलाई के बाद बीजेपी के सदस्य मनोनीत होंगे तो सदन में बीजेपी के कुल सदस्यों की संख्या 74 हो जाएगी. मनोनीत और स्थानीय निकाय के अलावा 13 सदस्य विधायकों द्वारा भी चुने जाते हैं. जुलाई में जब इनका चुनाव होगा तो बीजेपी को इसमें से 9 सीट और मिलेंगी. जबकि समाजवादी पार्टी गठबंधन के 4 सदस्य चुने जा सकते हैं. इस तरह से अगले कुछ महीनों में विधान परिषद में बीजेपी के सदस्यों की संख्या 83 तक पहुंच सकती है.

विपक्षी दलों की क्या स्थिति है?

फिलहाल समाजवादी पार्टी के पास विधानपरिषद में 17 सदस्य हैं. जुलाई में विधायकों के वोट से जब विधान परिषद के सदस्य चुने जाएंगे तो ये संख्या और भी कम हो सकती है. बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो विधान परिषद में पार्टी के कुल 4 सदस्य हैं. इनमें से 3 का कार्यकाल जुलाई में खत्म हो जाएगा. जिसके बाद बसपा के सदस्यों की संख्या सदन में केवल एक रह जाएगी. जुलाई में कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल भी खत्म हो जाएगा. जिसके बाद पार्टी का कोई भी सदस्य विधान परिषद का सदस्य नहीं रह जाएगा.

पहली बार विधान परिषद में बीजेपी को पूर्ण बहुमत

36 में से 33 सीट जीतने के बाद 100 सदस्यों वाले विधान परिषद में बीजेपी के 68 सदस्य हो गए हैं. 2022 में लगातार दूसरी बार प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने के बाद बीजेपी ने पहली बार विधान परिषद में बहुमत हासिल किया है. 2017 से 2022 तक पांच साल भले ही बीजेपी ने सरकार चलाई हो, लेकिन वो विधान परिषद में समाजवादी पार्टी के दबदबे को खत्म नहीं कर पाई थी. 2017 से पहले भी बीजेपी सत्ता में रही थी लेकिन विधान परिषद में बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी थी. इस तरह से ये पहली बार है जब बीजेपी के पास विधानसभा के साथ-साथ विधान परिषद में भी पूर्ण बहुमत है.

गौरतलब है कि 9 अप्रैल को वोट डालने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि चार दशक बाद उत्तर प्रदेश विधान परिषद में किसी सत्ताधारी दल को प्रचंड बहुमत मिलेगा. उन्होंने कहा था कि विधानसभा के साथ विधान परिषद में भी प्रचंड बहुमत होने से सरकार लोक कल्याण के कार्यक्रमों, महिलाओं की सुरक्षा व स्वावलम्बन, युवाओं के रोजगार, अन्नदाता किसानों और श्रमिकों के हित में और भी बेहतर काम करने में सक्षम होगी.

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