हममें से ज्यादातर लोगों के लिए थाईलैंड की पहचान उसकी राजधानी बैंकॉक से है. बनारस से तो बैंकॉक के लिए डायरेक्ट फ्लाइट है. हमारे यहां के लोग हाथ लगते वहां घूमने निकल जाते हैं. पर ये देश अभी बुरी तरह फंसा हुआ है. अक्टूबर 2016 में थाईलैंड के राजा भूमिबोल की मौत के बाद उनके बेटे महा वाजिरालोंगकोर्ण बोदिंद्रदेबयावरंगकुन उर्फ राम दसवें ने अपने देश के संविधान को मानने से इंकार कर दिया है. इस देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि 'रामराज' लाने के चक्कर में संविधान को ठुकराया जा रहा है.
अपने पिता के मरने के बाद राम ने 47 दिन तक सिंहासन ग्रहण नहीं किया. बोले कि कुछ दिन शोक मनाना चाहता हूं. दरअसल वो ये देखना चाह रहे थे कि मिलिट्री क्या करती है क्योंकि वे ज्यादातर समय देश से बाहर ही रहते हैं. इस दौरान थाईलैंड के प्रधानसेवक प्रयुथ चान-ओचा सब कुछ संभाल रहे थे. पढ़कर यह मत सोचिए कि प्रयुथ कहीं के क्रूसेडर हैं. 2014 में इन्होंने सत्ता हथिया ली थी. मिलिट्री तानाशाह रह चुका है ये बंदा.
फिर राम ने अगस्त 2016 में बने संविधान के नए ड्राफ्ट को मानने से इंकार कर दिया. बोले कि ये सेना को ही ताकतवर बना रहा है. लोगों के हक कम कर रहा है. पर प्रधानसेवक का कहना है कि हिज मैजेस्टी अपनी ताकत ही बढ़ा रहे हैं. लोगों का तो हक ही मार रहे हैं. हक बढ़ाने वाले आर्टिकल से ही उनको दिक्कत है. राम 65 साल के हैं. 1782 से चलने वाले इस वंश के राजकुमार हैं. अब तो राजा बन गए हैं. पर इनका टेंपर हाई रहता है. तीन शादियां टूट चुकी हैं. पहली शाही हुई थी, बाकी दो आम लड़कियों से. कहते हैं कि जिसको जो सोचना है, सोचे. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.
राम ये प्रावधान चाहते हैं कि देश में बिना किसी को अपना प्रतिनिधि बनाए वो विदेश से भी शासन कर सकें. समझ रहे हैं न आप? ये जर्मनी के म्यूनिख में रहते हैं. वहीं से शासन करना चाहते हैं. अब धमाकेदार बात. इस प्रस्ताव को मान लिया गया था. बिना विरोध किए. राम किसी भी आदेश पर सिर्फ अपने दस्तखत चाहते हैं. वो ये नहीं चाहते कि उनके साथ कोई मंत्री या अधिकारी भी फैसलों में भागीदार बने. मतलब रहेंगे जर्मनी में और सिग्नेचर वे ही करेंगे. कोई और नहीं करेगा.
संविधान ने राजा से पावर लेकर संवैधानिक कोर्ट को दे दिया था. अब ये चाहते हैं कि वीटो से लेकर संसद भंग करने तक का काम सिर्फ इनके ही जिम्मे रहे. मतलब जिस दिन पेट खराब है, अटेंड नहीं करना चाहते. संसद के लोग नाराज हो रहे हैं. तो ये संसद भंग कर देंगे. कहीं किसी बात पर हार गए, तो कहेंगे मैं नहीं खेल रहा. संसद भंग. उस लड़के की तरह बनना चाहते हैं जिसका क्रिकेट किट रहता था. बाकी बच्चे साथ खेलने आते थे. वो लड़का आउट हो जाता तो बैट साथ लेकर घर चला जाता.
पर राम ये भूल रहे हैं कि राजा भूमिबोल ने बड़ी सावधानी से अपने अधिकारों को संभाला था. राजनीतिक समस्या नहीं आने दी थी. तभी वो आधुनिक दुनिया में सबसे ज्यादा 70 साल तक राजा रहे थे.
थाईलैंड तीन चीजों से जूझता रहा है. पॉलिटिक्स, राजघराना और मिलिट्री. 1951 में नये-नये राजा बने भूमिबोल ने मिलिट्री के विरुद्ध राजघराने को मजबूत किया था. इसके लिए संविधान भी बदलवाया था. पर ऐसा भी नहीं रहा है कि राजा ने ही सब कुछ किया है वहां. थाईलैंड सबसे ज्यादा मिलिट्री रूल में ही रहा है. अक्सर वहां की मिलिट्री शासन अपने हाथ में ले लेती है. या फिर शासन के कई हिस्से उनके अंडर रहते हैं.
1997 में संविधान फिर से बनने के बाद, ये देश ब्रिटेन की तरह संवैधानिक राजशाही बन गया. मतलब राजा के साइन करने के बाद हर फैसले पर प्रधानमंत्री का साइन होगा. वीटो का इस्तेमाल बंद हो गया. कोर्ट दोनों से स्वतंत्र हो गई. आर्मी भी सिविल के कंट्रोल में आ गई.
अब राजा एकदम ब्रिटेन की रानी की तरह हो गए. पर राम तो कुछ अलग ही मूड में हैं. अगर ये सारे पावर लें ले तो एकदम इतिहास के राजाओं की तरह हो जाएंगे.
अब ये देखिए कि छोटा सा देश कैसे पिस रहा है. एक देश में ताकत के लिए तीन तरह की संस्थाएं भिड़ रही हैं. तीनों ही कह रही हैं कि हम जनता का भला चाहते हैं. पर क्या जनता का भला किसी एक के या मिलिट्री के हाथ में आने से होगा. नेता चाहे जैसे हों, इन लोगों से तो बेहतर ही रहेंगे. आखिर इंसान मिलिट्री के शंख बजने पर रोज सुबह उठकर भागना तो नहीं चाहता. हर इंसान को हम एक रंग में नहीं रंग सकते. जनतंत्र ही चाहिए जो हर रंग के फूल को खिलने दे सकता है.
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