'भारत माता' पर आपत्तिजनक टिप्पणी, कोर्ट ने पादरी पर दर्ज FIR रद्द करने से मना किया
तमिलनाडु का मामला. कोर्ट ने कहा, पादरी ने एक समुदाय को नीचा दिखाया.
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मद्रास हाईकोर्ट ने 'भारत माता' के खिलाफ अभद्र टिप्पणी के आरोपी एक पादरी की अपील खारिज कर दी है. पादरी ने खुद के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की अपील की थी. याचिका को रद्द करते हुए मद्रास हाई कोर्ट की तरफ से कड़ी टिप्पणियां भी की गईं.
क्या है मामला?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पूरा मामला पिछले साल जुलाई का है. इस दौरान सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता फादर स्टैन स्वामी का निधन हुआ था. ऐसे में 18 जुलाई, 2021 को कन्याकुमारी की एक चर्च में उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए एक सभा का आयोजन किया गया था. इस आयोजन में पादरी पी जॉर्ज पोनैय्या भी आए थे.
सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता फादर स्टैन स्वामी का पिछले साल जुलाई में निधन हो गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, पोनैय्या ने अपने भाषण में 'भारत माता' को लेकर अभद्र टिप्पणी की. उनके भाषण का एक वीडियो भी वायरल हुआ. जिसमें वो कहते नजर आ रहे हैं कि कन्याकुमारी के बीजेपी विधायक भारत माता के सम्मान में नंगे पैर चलते हैं, लेकिन हम तो जूते पहनकर चलते हैं. इस भाषण के दौरान पोनैय्या ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ भी आपत्तिजनक टिप्पणी की. बाद में उनके खिलाफ FIR दर्ज हो गई. कोर्ट की कड़ी टिप्पणी अपने खिलाफ FIR को रद्द करने के लिए पौनैय्या ने मद्रास हाई कोर्ट में याचिका डाली. इस याचिका में पौनैय्या ने संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का हवाला दिया. साथ ही साथ बी आर अंबेडकर से भी खुद की तुलना की. दरअसल, अंबेडकर ने अपने लेखन और भाषणों में संस्थागत धर्मों की आलोचना की है. दूसरी तरफ कोर्ट ने पोनैय्या की दलीलों को नहीं माना. कोर्ट ने कहा,
"एक तर्कवादी, सुधारवादी, अकादमिक या कलाकार पृष्ठभूमि से आने वाले लोग, धर्म या धार्मिक आस्था पर कुछ कहते हैं, वो अलग बात है. हमें सार्वजनिक जीवन में चार्ल्स डार्विन, क्रिस्टोफर हिचेन्स, रिचर्ड डॉकिन्स, नरेंद्र दाभोलकर, एम एम कलबुर्गी और ऐसे ही कई लोगों की जरूरत है. जब स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी या अलेक्जेंडर बाबू मंच पर प्रदर्शन करते हैं, तो वे दूसरों का मजाक उड़ाने के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं. फिर, उनकी धार्मिक पहचान अप्रासंगिक है."कोर्ट ने कहा कि तर्कवादी, सुधारवादी और अकादमिक जगत के लोगों को संविधान की तरफ से मिले मूल अधिकारों की सुरक्षा मिलती है. धर्म के संबंध में की गई टिप्पणियां इस बात पर बहुत ज्यादा निर्भर करती हैं, ये किसके द्वारा और कहां की जी रही हैं. 'एक समुदाय को नीचा दिखाने की कोशिश' कोर्ट की तरफ से यह भी कहा गया कि पोनैय्या का जो वीडियो सामने आया है, वो भड़काऊ है. वो साफ तौर पर एक समुदाय को दूसरे समुदाय के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. कोर्ट की तरफ से यह भी कहा गया कि पोनैय्या ने एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है और हिंदू समुदाय से आने वाले लोगों को नीचा दिखाया.
इस मामले में कोर्ट ने कहा कि पौनैय्या के भाषण के आधार पर साफ तौर पर उनके ऊपर IPC की धारा 153 (A) (धर्म, नस्ल और दूसरी पहचानों के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 295 (A) (धार्मिक भावनाओं को आहत करना) के तहत मामला दर्ज होना चाहिए. दूसरी तरफ कोर्ट ने उनके ऊपर से IPC की धाराओं 143, 269 और 506 (1) तथा महामारी रोग अधिनियम (THE EPIDEMIC DISEASES ACT, 1897) की धारा 3 को रद्द कर दिया है.He opined that though #GeorgePonniah
— LawBeat (@LawBeatInd) January 7, 2022
alleged that he had already expressed his regret and clarified that his words were not intended to hurt #Hindu
's religious sentiments there was absolutely no need or necessity to mount a visceral attack on religious beliefs of the Hindus.
इससे पहले पोनैय्या के वकील की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने अपने बयान के लिए माफी मांग ली है और उनका उद्देश्य लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत करना नहीं था. हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को भी नहीं माना.