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कर्नाटक हाईकोर्ट का बड़ा बयान, 'जाति व्यक्ति के जन्म से तय होती है'

कोर्ट ने कौन-सा श्लोक सुनाया, जानिए पूरा मामला

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कर्नाटक हाई कोर्ट (फोटो: इंडिया टुडे)
23 मार्च 2022 (Updated: 23 मार्च 2022, 09:51 IST)
Updated: 23 मार्च 2022 09:51 IST
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'आप अपने मन से किसी जाति को नहीं अपना सकते, जाति का निर्धारण जन्म से होता है.' ये कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) का फैसला है. अभिलाषा नाम की एक महिला ग्राम पंचायत की सदस्य बनी थी. महिला ने जिस पद पर चुनाव जीता था, वह अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित है. लेकिन महिला की जाति ST नहीं है, इसलिए उसे 1 फरवरी को शिवमोगा के अतिरिक्त वरिष्ठ सिविल जज के आदेश पर उसके पद से हटा दिया गया. महिला ने सिविल जज के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी, लेकिन हाईकोर्ट ने महिला की याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने क्या कहा? इस मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की सिंगल जज बेंच ने फैसला सुनाया. इस मामले में याचिकाकर्ता का पक्ष अधिवक्ता वेंकटेश टीएस रख रहे थे. जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित ने फैसला सुनते हुए कहा,
"इस पर कोई विवाद ही नहीं है कि याचिकाकर्ता जन्म से अनुसूचित जनजाति से संबंध नहीं रखती है. हालांकि वह अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य से शादी करके अनुसूचित जनजाति की सामाजिक स्थिति हासिल करने का दावा कर सकती है. आमतौर पर, जाति का निर्धारण जन्म से होता है या व्यक्ति की जाति उसके पिता की जाति के आधार पर तय की जाती है."
जज कृष्णा एस दीक्षित ने महाभारत के एक श्लोक को दुहराते हुए कहा,
"दैव यत्नाम कुले जन्मा, पुरुषा यत्नाम पौरुषम"
यानी, कुल में जन्म लेना देव अर्थात ईश्वर के अधीन है, जबकि पुरुष के अधिकार में उसका पुरुषार्थ है. हालांकि याचिकाकर्ता अभिलाषा का दावा है कि उसने एक ST जाति के व्यक्ति से शादी की है इसलिए उसकी जाति भी ST है. इस पर हाईकोर्ट ने कहा,
"यह सच है कि कुछ खास परिस्थितियों में एक महिला अपने पति की जाति का दर्जा हासिल कर लेती हैं, बशर्ते वह यह साबित कर पाए कि उसके पति के समाज ने उसे अपनी जाति में स्वीकार किया हो. हालांकि, याचिकाकर्ता ने यह मामला नहीं रखा है. इस याचिका को अब रिट याचिका में लिया जा रहा है और इसे चुनाव याचिका में दलील के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है."
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता लोगों द्वारा चुनी गई एक प्रतिनिधि है, न कि किसान या मजदूर जो इस तरह के मामलों में नरमी की मांग कर रही है.

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