कश्मीर प्रेस क्लब में जो हुआ, उसे लेकर कुछ लोग सरकार की मंशा पर सवाल क्यों उठा रहे हैं?
सरकार ने कश्मीर प्रेस क्लब को अपने कब्जे में क्यों ले लिया?
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जम्मू-कश्मीर प्रशासन (Jammu Kashmir Administration) ने सोमवार को कश्मीर प्रेस क्लब (Kashmir Press Club) को आवंटित की गई इमारत वापस ले ली. प्रशासन ने कहा कि श्रीनगर में स्थित पत्रकारों की इस सबसे बड़ी संस्था में ‘गुटबाजी’ को देखते हुए यह फैसला लिया गया है. जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने एक बयान जारी कर यह भी बताया कि कश्मीर प्रेस क्लब को आवंटित इमारत का आवंटन रद्द करके उसे एस्टेट विभाग के हाथों में सौंप दिया गया है.
क्या था मामला?
कश्मीर प्रेस क्लब यानी केपीसी में 300 से ज्यादा सदस्य हैं और इसका पहला चुनाव 2019 में हुआ था. पिछले प्रबंधन ने 14 जुलाई 2021 को अपना दो साल का कार्यकाल पूरा किया, लेकिन अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद की अनिश्चितताओं की वजह से नए चुनाव नहीं हो सके. अप्रैल 2021 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने क्लब से केंद्रीय पंजीकरण सोसायटी अधिनियम के तहत फिर से पंजीकरण कराने के लिए कहा. क्लब ने मई 2021 में पंजीकरण के लिए आवेदन किया और रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज ने 29 दिसंबर 2021 को नया पंजीकरण जारी कर दिया.
इसके बाद बीते 14 जनवरी को कश्मीर प्रेस क्लब ने अपनी नई मैनेजमेंट बॉडी के लिए 15 फरवरी को चुनाव कराने की घोषणा की. लेकिन इसके कुछ देर बाद ही रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज ने प्रेस क्लब के पदाधिकारियों को सूचित किया कि पुलिस की एक रिपोर्ट के चलते पंजीकरण को स्थगित कर दिया गया है. अधिकारियों का कहना था कि सीआईडी के एसएसपी ने क्लब की प्रबंधन समिति के कुछ सदस्यों की पृष्ठभूमि की जांच शुरू की है और जांच पूरी होने तक क्लब का रजिस्ट्रेशन नहीं किया जा सकता.
अगले दिन पत्रकारों के दूसरे गुट ने प्रेस क्लब पर कब्जा कर लिया!
इस घटना के अगले दिन यानी शनिवार 15 जनवरी को कश्मीर प्रेस क्लब की मैनेजमेंट बॉडी पर कथित रूप से कुछ पत्रकारों और अखबार मालिकों के एक समूह ने कब्जा कर लिया. पत्रकार सलीम पंडित टाइम्स ऑफ इंडिया से जुड़े हैं, 2019 में उन्होंने केपीसी के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे. आरोप है कि बीते शनिवार को सलीम पंडित के नेतृत्व में 11 वरिष्ठ पत्रकार अचानक क्लब में आए. इनके साथ कई सुरक्षा कर्मी भी थे, जो आते ही क्लब के गेट पर तैनात हो गए. इस दौरान पंडित व उनके साथ आए अन्य लोगों ने आपस में एक बैठक की और क्लब की अंतरिम मैनेजमेंट बॉडी का गठन कर लिया. जब प्रेस क्लब में यह सब हो रहा था, तब क्लब की (पुरानी) मैनेजमेंट बॉडी का कोई सदस्य वहां मौजूद नहीं था.
द वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक बैठक समाप्त होने के बाद सलीम पंडित ने मीडिया को बताया,
‘हमें आपका, मेरा और सभी का समर्थन है. हमने सर्वसम्मति से अंतरिम मैनेजमेंट बॉडी के तौर पर सलीम पंडित को अध्यक्ष, जुल्फिकार माजिद को महासचिव और अर्शीद रसूल को कोषाध्यक्ष चुना है.’इसके कुछ देर बाद उन्होंने एक और बयान जारी कर बिना किसी का नाम लिए कहा,
‘कश्मीर घाटी में कई पत्रकार संगठनों ने सर्वसम्मति से एक अंतरिम मैनेजमेंट बॉडी बनाने का फैसला किया, जिसे एक कार्यकारी मैनेजमेंट बॉडी बनाने के लिए अधिकृत किया जाएगा, जो केपीसी को आधुनिक प्रेस क्लब के रूप में विकसित होने में मदद करेगा, जो दरअसल वक्त की जरूरत है.’हालांकि, सलीम पंडित के इस बयान का अगले ही दिन घाटी के 9 पत्रकार संगठनों ने कहा कि उन्होंने सलीम पंडित को किसी तरह से अंतरिम मैनेजमेंट बॉडी गठित करने का अधिकार नहीं दिया है. पंडित के फैसले से उनका कोई लेना-देना नहीं है. पूरे देश में इस 'तख्तापलट' की निंदा कश्मीर प्रेस क्लब की अपदस्थ यानी 2019 में चुनी गई मैनेजमेंट बॉडी के सदस्यों ने इस घटना का तीखा विरोध किया. अध्यक्ष शुजा-उल-हक ने कहा,
'सलीम पंडित द्वारा केपीसी पर कब्जा करने से हम सभी को दुख हुआ है क्योंकि यह संस्थान पत्रकार सदस्यों के कल्याण में लगा हुआ था. मैं प्रशासन और जम्मू कश्मीर के माननीय उपराज्यपाल से इस मामले को देखने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह करता हूं कि इस संस्थान को लोकतांत्रिक तरीके से काम करने की अनुमति दी जाए.’देश की अन्य मीडिया संस्थाओं और नेताओं ने भी इस घटना की आलोचना की. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने घटनाक्रम की निंदा करते हुए कहा,
‘स्वघोषित मैनेजमेंट द्वारा हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी में केपीसी पर कब्जा करना क्लब की शुचिता का हनन है और राज्य में प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के रुझान की अभिव्यक्ति है. इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि राज्य पुलिस बिना किसी वॉरंट और कागजी कार्रवाई के केपीसी परिसर में घुसी और इस तख्तापलट में शामिल हो गई.’वहीं, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने भी इस घटना को लेकर चिंता जताई और केपीसी में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराने की मांग की. अपने एक ट्वीट में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने कहा,
'प्रेस क्लब ऑफ इंडिया कश्मीर प्रेस क्लब में हुए घटनाक्रम को लेकर काफी चिंतित है. हम मांग करते हैं कि शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव कराने की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अनुमति दी जाए. हम जम्मू-कश्मीर के माननीय उपराज्यपाल से इस मामले को देखने और चुनाव की सुविधा देने की अपील करते हैं.'
Press Club of India is deeply concerned with the developments with Kashmir Press Club. We demand that the democratic process of holding elections be allowed in a peaceful manner. We appeal to Hon Jammu and Kashmir LG @manojsinha_ to look into the matter and facilitate elections. pic.twitter.com/JFmm6CtZNE — Press Club of India (@PCITweets) January 16, 2022उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती ने क्या कहा? जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने नाम लिए बिना पत्रकार सलीम पंडित पर हमला बोला. अपने एक ट्वीट में उन्होंने लिखा,
"ऐसी कोई सरकार नहीं है, जिसका इस पत्रकार ने इस्तेमाल नहीं किया हो और ऐसी कोई सरकार नहीं है, जिसकी ओर से इसने झूठ नहीं बोला हो. मुझे पता है क्योंकि मैंने दोनों पक्षों को बहुत करीब से देखा है. अब यह राज्य प्रायोजित तख्तापलट से लाभ उठा रहा है."
There is no government this “journalist” hasn’t sucked up to & no government he hasn’t lied on behalf of. I should know, I’ve seen both sides very closely. Now he’s benefited from a state sponsored coup. https://t.co/POIgQV2Ea7 — Omar Abdullah (@OmarAbdullah) January 15, 2022पीडीपी मुखिया महबूबा मुफ़्ती ने इस घटना के पीछे राज्य सरकार का हाथ बता दिया. अपने एक ट्वीट में उन्होंने लिखा,
'आज केपीसी में राज्य प्रायोजित तख्तापलट ने बुरे से बुरे तानाशाहों तक को शर्मसार कर दिया है. यहां राज्य की एजेंसियां निर्वाचित निकायों को उखाड़ फेंकने और सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त करने में व्यस्त हैं. उन लोगों को शर्मिंदा होना चाहिए जिन्होंने अपनी बिरादरी के ही खिलाफ जाकर इस तख्तापलट में मदद की.’
Todays state sponsored coup at KPC would put the worst dictators to shame.State agencies here are too busy overthrowing elected bodies & firing govt employees instead of discharging their actual duties. Shame on those who aided & facilitated this coup against their own fraternity https://t.co/SnyZYSt0mN — Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) January 15, 2022बवाल बढ़ा तो सरकार ने केपीसी परिसर को कब्जे में लिया इस पूरे मामले में जब उंगली जम्मू-कश्मीर प्रशासन पर उठी तो उसने कश्मीर प्रेस क्लब की इमारत का आवंटन ही रद्द कर दिया. पीटीआई के मुताबिक राज्य प्रशासन ने एक बयान जारी कर कहा कि पत्रकारों के दो गुटों में जिस तरह का विवाद है, उसे देखते हुए कानून-व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति का संकेत मिल रहा था. पत्रकारों की सुरक्षा को भी खतरा हो गया था. इसके चलते ही सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा. बयान में यह भी कहा गया है,
'तथ्यात्मक रूप से केपीसी का अब वजूद नहीं रहा और इसकी मैनेजमेंट बॉडी का भी कानूनी रूप से 14 जनवरी, 2021 को अंत हो चुका है. यह वही तारीख है जिस दिन इसका कार्यकाल समाप्त हुआ...केपीसी केंद्रीय पंजीकरण सोसायटी अधिनियम के तहत खुद का पंजीकरण कराने में विफल रही, यह चुनाव भी नहीं करा सकी.'जम्मू-कश्मीर प्रशासन के बयान में आगे कहा गया है कि केपीसी के कुछ सदस्यों ने अंतरिम निकाय का गठन करने का सुझाव दिया था. लेकिन पंजीकरण न होने के चलते मूल केपीसी का ही अस्तित्व समाप्त हो गया है, इसलिए किसी भी अंतरिम मैनेजमेंट के गठन का सवाल ही नहीं उठता. जम्मू-कश्मीर सरकार के मुताबिक वह एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रेस के लिए प्रतिबद्ध है और इसलिए सभी पत्रकारों के लिए जल्द ही एक रजिस्टर्ड सोसायटी का गठन किया जाएगा. 'प्रेस क्लब को बंद करना ही मकसद था' प्रेस क्लब की अपदस्थ यानी 2019 में चुनी गई मैनेजमेंट बॉडी के महासचिव इशफाक तांत्रे ने इशारों-इशारों में सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उन्होंने कहा,
'ऐसा लगता है कि इस पूरी घटना के पीछे का मकसद कश्मीर प्रेस क्लब को बंद करना था. इसी मकसद से उन्होंने पत्रकारों के एक समूह को जबरदस्ती स्थापित करने की कोशिश की. ऐसा करके वे कश्मीर प्रेस क्लब के जरिए आवाज उठाने वाले पत्रकारों की आवाज को दबाना चाहते थे. क्योंकि घाटी में केपीसी ही एकमात्र लोकतांत्रिक और स्वतंत्र पत्रकार निकाय है, लेकिन हमें पूरा विश्वास है कि हमारे पत्रकार इतने सक्षम है कि वे इन चुनौतियों का सामना कर सकेंगे. मैं फिर से दोहराना चाहता हूं कि पत्रकारिता कश्मीर में फली-फूली है और भविष्य में भी यह सभी विपत्तियों को पार कर जाएगी.'